समाजख़बर कोविड-19 : संक्रमण से निकलने वाला मेडिकल कचरा बना एक गंभीर समस्या

कोविड-19 : संक्रमण से निकलने वाला मेडिकल कचरा बना एक गंभीर समस्या

जैसे-जैसे कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही वैसे-वैसे इससे जुड़े मेडिकल कचरे के निपटारे की एक बड़ी समस्या पैदा होती जा रही है।

एक तरफ भारत कोरोना महामारी के विकराल रूप से जूझ रहा है। 42 लाख से ऊपर पहुंच चुके कोरोना संक्रमण के मामलों के साथ ही भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर पहुंच चुका है। जितनी तेज़ी से कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, उतनी ही तेज़ी से बढ़ रही है मास्क, पीपीई किट और सैनिटाइज़र, ग्लव्स की मांग। कोरोना के संक्रमम से बचने के लिए लोग इन चीज़ों का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन लगातार बढ़ रहे इनके प्रयोग से मेडिकल कचरे के डिस्पोजल की एक बड़ी समस्या भी उठ खड़ी हुई है।

अधिकतर देशों की सरकारें कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए T-3 यानी ट्रेस- टेस्ट-ट्रीटमेंट की नीति पर तो ज़ोर दे रही हैं। हालांकि इसके बाद के महत्वपूर्ण कामों पर ध्यान अधिक नहीं दिया जा रहा नतीजतन इन मेडिकल उपक्रमों का प्रयोग भी बढ़ रहा है। जितना जरूरी सोशल डिस्टेंसिंग और फेस मास्क का प्रयोग और अन्य सुरक्षा नियमों का पालन करना है, उतना ही ज़रूरी इसके कचरे का निपटारा करना भी है। अगर कोरोना वायरस से संबंधित कचरे को ठीक तरह से निपटाया न जाए तो ये बीमारी फैलने का एक बड़ा कारण बन सकता है। एक अनुमान के मुताबिक हमारे देश में रोजाना 101 टन मेडिकल कचरा पैदा हो रहा है। जैसे-जैसे कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही वैसे-वैसे इससे जुड़े मेडिकल कचरे के निपटारे की बहुत बड़ी समस्या पैदा हो रही है, जिसके समाधान पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा है।

हाल ही में जारी हुई वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस से लड़ने के लिए हर महीने 1.5 बिलियन मास्क और 0.5 बिलियन दस्तानों की आवश्यकता है। वहीं इसके विपरीत इन मेडिकल कचरे का डिस्पोजल मात्र 1 फीसद है। पूरे विश्व के मेडिकल वेस्ट की बात करें तो हर दिन वुहान में 247 टन, मनिला, कुआलालम्पुर, बैंकॉक में 154-280 टन और भारत में इससे पांच गुना ज्यादा कोविड कचरा निकाला जा रहा है।

हाल ही में एनजीटी में पेश अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा था कि देश में लगभग आधे से अधिक अस्पताल, नर्सिंग होम और स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं जिन्हें मेडिकल कचरे के निपटारे से संबंधित अनुमति प्राप्त नहीं है। तेज़ी से बढ़ रहे संक्रमण के मामलों के साथ ही उत्तर प्रदेश में भी मेडिकल कचरे का निपटारा एक विकराल चुनौती बन गया है। हालांकि इसपर सरकार का कहना है कि उसके पास इस कचरे के निपटारे के समुचित उपाय मौजूद हैं लेकिन राज्य के अलग-अलग हिस्सों से मिल रही मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि कई जगहों पर यह कचरा ऐसे ही खुले में फेंका जा रहा है, जिससे संक्रमण का ख़तरा और बढ़ गया है।

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एनजीटी को सौंपी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर रोज 101 टन कोविड कचरा निकाला जा रहा है। इसके अलावा 609 टन मेडिकल कचरा पहले से ही पैदा हो रहा था। महाराष्ट्र में कोरोना का सबसे अधिक 17.5 टन कचरा पैदा हो रहा है, वहीं गुजरात में 11.69 टन और दिल्ली में 11.11 टन कचरा पैदा हो रहा है। इन कचरों के समाधान की बात करें तो कचरे के निपटारे के लिए देशभर में 120 केंद्र हैं जिनमें रोजाना 840 टन मेडिकल कचरे का निपटारा किया जा सकता है।

अगर कोरोना वायरस से संबंधित कचरे को ठीक तरह से निपटाया न जाए तो ये बीमारी फैलने का एक बड़ा कारण बन सकता है। एक अनुमान के मुताबिक हमारे देश में रोजाना 101 टन मेडिकल कचरा पैदा हो रहा है।

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प्लास्टिक से बने ये उपकरण जैसे कि सुई, रूई, पट्टी, खाली बोतलें और शीशियां, मास्क, दस्ताने और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई किट) आदि पर्यावरण को भी खासा नुकसान पहुंचा सकते है क्योंकि लोगों की रक्षा कर उन्हें कोरोना वायरस से संक्रमित होने से बचाने में लगे ये उपकरण ज्यादातर प्लास्टिक से बने होते हैं। जिसमें मास्क और ग्लव्स गैर-नवीकरणीय उपकरण हैं और प्लास्टिक के बने होने की वजह से हमेशा के लिए नष्ट भी नहीं होते हैं। पिछले तीन महीनों में मेडिकल वेस्ट रूपी यह प्लास्टिक कचरा पहले से ही भर चुके कूड़े के ढेर में पहुंच रहा है। इससे कूड़े के निपटारे में लगे सफाई कर्मचारियों, कूड़ा इकट्ठा करने वालों और कचरा बीनने वालों को स्वास्थ्य संबंधी जोखिम का सामना करना पड़ रहा है। एक तो कचरा बीनने वालों का काम बढ़ गया है, वहीं ये खतरों से भरा काम भी हो गया है क्योंकि इसका सीधा संबंध उनके स्वास्थय से है।

इस सम्बन्ध में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मेडिकल कचरे के निपटारे के लिए अस्पतालों, प्रयोगशालाओं, क्वारंटीन केंद्रों द्वारा पैदा होने वाले कोरोना से संबंधित कचरे के साथ क्या करना है, इस पर एक विस्तृत गाइडलाइन जारी की थी। इसके मुताबिक उपयोग किए जाने वाले मास्क, दस्ताने, हेड और जूता कवर, डिस्पोजेबल लिनन गाउन, गैर-प्लास्टिक और प्लास्टिक कवर को एक सामान्य जैव चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा (सीबीडब्ल्यूटीएफ) में डिस्पोजल के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पीले बैग में निपटाया जाना था। भारत में भले ही सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कोरोना के बढ़ते मामलों के बावजूद संक्रमण मुक्त होने वालों की संख्या बाकी दुनिया के देशों से बेहतर है लेकिन यदि समय रहते मेडिकल कचरे का निपटारा नहीं किया गया तो यह आने वाले समय में विकराल रूप धारण कर सकता है।

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तस्वीर साभार : waste4change

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