समाजख़बर जानें : नए गर्भसमापन कानून के ख़िलाफ़ क्यों सड़कों पर हैं पोलैंड में महिलाएं

जानें : नए गर्भसमापन कानून के ख़िलाफ़ क्यों सड़कों पर हैं पोलैंड में महिलाएं

1989 में पोलैंड में कम्युनिस्ट काल के पतन के बाद यह वहां के इतिहास में इस प्रदर्शन को पहला इतना बड़ा प्रदर्शन माना जा रहा है।

पोलैंड की सड़कों पर ‘मेरा शरीर मेरी मर्ज़ी’ (माय बॉडी माय चॉइस), ‘लड़कियां बस अपने मौलिक अधिकार चाहती हैं ‘(गर्ल्स जस्ट वाना हैव फंडामेंटल राइट्स) जैसे अन्य नारे लिखी हुई तख्तियां थामे बड़ी संख्या में औरतें और उनके साथ अन्य पोलिश लोग प्रदर्शन करते दिख रहे हैं। इस प्रदर्शन को पोलैंड में हुए अब तक के सबसे बड़े औरतों के प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है। पोलैंड के विपक्षी दल के नेता ‘यह एक जंग है’ के नारे वाले पोस्टर लेकर खड़े दिख रहे हैं। 1989 में पोलैंड में कम्युनिस्ट काल के पतन के बाद यह वहां के इतिहास में इस प्रदर्शन को पहला इतना बड़ा प्रदर्शन माना जा रहा है। दस हज़ार से ज्यादा संख्या में वहां के निवासी सड़कों पर उतर चुके हैं। ये प्रदर्शन पिछले एक सप्ताह से ज्यादा समय से चल रहे हैं। मुख्य सड़कें, पुल, चर्च, अन्य महत्वपूर्ण जगहों पर प्रदर्शनकारी अपनी मांग और अपने विरोध का स्वर ऊंचा कर रहे हैं। लोगों में यह गुस्सा और असंतोष पोलैंड सरकार द्वारा पारित नए गर्भसमापन के नए क़ानून को लेकर है।

क्या कहता है पोलैंड का नया गर्भसमापन कानून?

पोलैंड के गर्भसमापन का कानून अन्य यूरोपीय देशों के मुकाबले पहले से ही कठोर था। वहां केवल रेप, गर्भवती मां की जान को ख़तरा और अजन्मे बच्चे के किसी गंभीर बीमारी से जूझने के मामलों में ही कानूनी तौर पर गर्भसमापन करवाया जा सकता था। इनमें से किसी भी मामले में भी डॉक्टरों के पास गर्भसमापन करने से मना करने की छूट थी। पोलैंड में वे धार्मिक मान्यताओं के आधार पर गर्भनिरोधक दवाईयां देने से मना करते रहे हैं। 

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पोलैंड में तत्कालीन सरकार ‘लॉ एंड जस्टिस’ पार्टी की है। इस सरकार ने साल 2016 में गर्भसमापन कानून को और अधिक कठोर करने की कोशिशें की थी। हालांकि सरकार संसद से यह बिल पारित नहीं करवा पाई। पॉलिश लोगों ने उस समय भी सरकार के इस कदम की आलोचना की थी। इसके विरोध में ‘ब्लैक मार्च’ निकाले गए थे और सरकार को अपने कदम पीछे लेने पड़े थे। अंतरराष्ट्रीय मीडिया की माने तो इस सरकार ने न्यायपालिका की आज़ादी को अपने अधीन कर रखा है। 22 अक्टूबर, 2020 को उच्च न्यायालय पालिका ‘कॉन्स्टिट्यूशन ट्रिब्यूनल’ ने अपने एक आदेश में कहा कि भ्रूण के किसी असमान्य स्थिति या बीमारी से ग्रसित होने के कारण उसे ख़त्म कर दिया जाना संविधान के मूल्यों के खिलाफ है। नए गर्भसमापन के कानून में इस तर्ज़ पर कोई गर्भसमापन करवाए तो उसे कानून की नज़रों में जुर्म माना जाएगा। कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पोलैंड में कहीं अपील नहीं की जा सकती। सरकार ने पार्लियामेंट में बिना किसी प्रकार के बहस या राय-मशविरे के इस कानून को पास कर दिया गया।

नए गर्भसमापन कानून के खिलाफ बड़ी संख्या में लोग कर रहे प्रदर्शन। तस्वीर साभार: SKY News

‘द न्यू यॉर्कटाइम्स’ में प्रकाशित आंकड़ों के हिसाब से वहां 1100 में से 1074 कानूनी रूप से हुए गर्भसमापन भ्रूण की असामान्य स्थिति के कारण ही होते हैं। कई पोलिश औरतें सरकार के इस फैसले को उनके देश में गर्भसमापन को पूरी तरह से बंद करने के कगार पर लाकर खड़े कर देने वाले एक अमानवीय कदम की तरह देखती हैं। प्रदर्शन स्थल से जारी किए गए वीडियो में एक महिला कहती हुई नजर आती हैं, “पोलैंड की औरतों को एक ऐसे बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर किया जा रहा है जो जन्म के साथ ही एक बीमारी के असहनीय दर्द झेलने के बाद एक बुरी मौत मर जाएगा। यह मानवाधिकार के खिलाफ है, यह महिलाओं के अधिकार के खिलाफ है। एक नई पीढ़ी होने के नाते इसके खिलाफ खड़े होना मेरा फ़र्ज़ है।” इस फैसले के बाद बड़ी संख्या में सड़कों पर प्रदर्शकारी उतर आए हैं। लाल रंग में बिजली कड़कने का एक चिह्न पूरे देश में इस प्रदर्शन की पहचान बन रहा है। प्रदर्शन में भाग ले रही गर्भसमापन की पक्षधर कार्यकता नतालिया ब्रायोनियारजेक एक वीडियो में कहती हैं, “एक समय में मेरे पास देश के बाहर जाने के पैसे नहीं थे और मुझे मालूम था कि यहां के मेडिकल क्लीनक्स में गर्भसमापन करवाना संभव नहीं है। ये सरकार चाहती है कि हम औरतें घरों में रहें, परिवार देखें और बच्चे पालें।”

1989 में पोलैंड में कम्युनिस्ट काल के पतन के बाद यह वहां के इतिहास में इस प्रदर्शन को पहला इतना बड़ा प्रदर्शन माना जा रहा है। दस हज़ार से ज्यादा संख्या में वहां के निवासी सड़कों पर उतर चुके हैं, ये प्रदर्शन पिछले एक सप्ताह से ज्यादा समय से चल रहे हैं।

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धर्म का दख़ल

साल 2015 से सत्ता में आई ‘लॉ एंड जस्टिस पार्टी’ अपने आप को पारंपरिक कैथोलिक मूल्यों का रक्षक कहती आई है। इनका रवैया पश्चिमी उदारवाद मूल्यों को लेकर तीखा रहा है। पोलैंड की इस धुर दक्षिणपंथी सरकार ने समलैंगिकता को भी पोलिश संस्कृति के दुश्मन की तरह दिखाने की भरपूर कोशिश की है। गर्भसमापन के कानून के खिलाफ आवाज़ बुलंद करते प्रदर्शनकारियों ने जानबूझकर सीधे और तीखे शब्दों में पोस्टर पर नारे लिखे हैं। वे यह संदेश देना चाहते हैं कि जनता सरकार के महिला विरोधी नीतियों पर चुप नहीं रहेगी। महिला अधिकारों की कुछ कार्यकर्ताओं ने कई चर्च के बाहर चर्च विरोधी और सरकार विरोधी नारे लगाए। उनके पोस्टर्स पर लिखा था, “यह एक जंग है”, “हमने बहुत सहा।” कुछ चर्चों की दीवार पर ग्रैफिटी बनाकर महिलाओं ने अपने संदेश लिखे हैं। कई जगहों से इन प्रदर्शकारियों और चर्च के समर्थकों के बीच हुई झड़प की घटनाएं भी सामने आई हैं।

नए गर्भसमापन कानून के के विरोध में सड़क पर महिलाएं। तस्वीर साभार: ABC News

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पोलैंड के डिप्टी विदेश मंत्री पावेल जेबलोनेसकी का कहना है, “हम नहीं मानते कि गर्भसमापन को लेकर कोई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार नियम हैं। हालांकि ऐसा करने की कोशिश में कई समूह लगे हैं। ऐसा करना गलत है।” 27 अक्टूबर को डिप्टी प्रधानमंत्री जारोस्लाव कैकज़ायन्सकी ने अपने समर्थकों से अपील की कि वे “पोलैंड को बचाएं, राष्ट्रप्रेम को बचाएं” और “पोलिश चर्चों को बचाएं।” कई लोग इसे पोलैंड में चर्च की सत्ता के लिए पतन के समय की तरह भी देख रहे हैं। महिलाओं का कहना है कि उन्हें राजनीतिक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि बाकी जरूरी मुद्दे जैसे कोविड-19 जैसी महामारी को संभालने में सरकार अपने नाकामयाबियों को छिपा सके। पोलैंड में हो रहे इस व्यापक प्रदर्शन के बीच वहां के राष्ट्रपति ने यह इशारा किया है कि वह जल्द ही इस विषय पर एक नया बिल पेश करेंगे। माना जा रहा है कि वह प्रदर्शनों को खत्म करने के लिए एक नया बिल लाने की सोच रहे हैं। हालांकि यह नया बिल भी औरतों के हक़ में होगा या नहीं यह तो बिल पेश होने के बाद ही कहा जा सकता है।  

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तस्वीर साभार : insider

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