इंटरसेक्शनलयौनिकता लड़कियों में प्यार करने का रोग नहीं साहस होता है

लड़कियों में प्यार करने का रोग नहीं साहस होता है

पितृसत्तात्मक समाज में स्वतंत्र इंसान की तरह अपनी पसंद के इंसान से प्यार कर पाना किसी औरत के लिए आसान नहीं होता|

दिल्ली की जीबी रोड पूरी दुनिया में बदनाम गलियों के नाम से जानी जाती है| ये कहानी भी उसी बदनाम गली की है| एकदिन महेश (बदला हुआ नाम) उस गली का ग्राहक बनकर गया| उस दिन वो ज़िन्दगी से थोड़ा उदास और थका हुआ था| नतीजतन बदनाम गलियों की चमकीली गुमनामी को उसने अपनी उदासी दूर करने के लिए चुना| लेकिन महेश को क्या पता था कि ये गुमनाम गली उसकी किस्मत में एक नया अध्याय जोड़ने को बेताब है| महेश जिस लड़की के पास अपनी उदासी दूर करने पहुंचा तो उसने पाया कि वो वही लड़की है जिससे उसकी मुलाक़ात करीब दो साल पहले बाज़ार में हुई थी|

पहली झलक में महेश को वो लड़की अपनी-सी लगी थी| फिर क्या था उन दोनों ने पूरी रात एक-दूसरे से बातें करने में गुज़ार थी – जैसे वो दोनों सालों से एक-दूसरे को जानते हो| महेश उस लड़की का रेगुलर ग्राहक बन गया| हर रोज वो उससे मिलने और बातें करने कोठे पर जाया करता| धीरे-धीरे उनदोनों पर प्यार का रंग चढ़ने लगा और यों उनदोनों के मिलने का सिलसिला भी करीब दो साल तक लगातार चला| महेश और लड़की ने अब शादी करने का मन बना लिया था| अगर उस लड़की की पहचान समाज में सामान्य लड़की की तरह होती तो शायद शादी के बंधन में बंधना इतना मुश्किल नहीं होता| लेकिन वो लड़की नहीं एक वेश्या थी समाज की नज़रों में| जिसकी अपनी की पहचान, आज़ादी, परिवार, प्यार या भाग्य नहीं होता|

लेकिन वो लड़की नहीं एक वेश्या थी समाज की नज़रों में|

उनदोनों को कई सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा| लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और शादी कर ली| आज वो दोनों अपने वैवाहिक-जीवन में बेहद खुश है| ये कहानी शायद आपको फ़िल्मी लगे पर ये एक सच्ची कहानी है|

कांटें प्यार के

अक्सर कहा जाता है कि प्यार एक नैसर्गिक चीज़ है| आदमी उसे जानबूझकर नहीं करता है| आदमी के स्वभाव में ही प्यार होता है| इंसान का पहला भाव प्यार ही है| नफरत तो प्यार के बाद आती है| मनुष्य की पहली भावना दूसरे से मिलने की होती है| बच्चा पैदा होता है तो सबसे पहले माँ को खोजता है| प्यार की शुरुआत वहीं से हो जाती है| इंसान का बुनियादी भाव होने की वजह से प्यार इतना ताकतवर है| इसके बराबर ताकत किसी चीज़ में नहीं होती| अगर यह इतना शक्तिशाली नहीं होता तो इतने विवाद भी नहीं होते|

समाज भी इसकी ताकत को जानता है| इसलिए वह व्यवस्था बनाता है कि किससे किस सीमा तक प्यार कर सकते हैं| यह जो सामाजिक नियम है, वह ऊपर से थोपी गयी चीज़ है| लेकिन प्यार का असल रूप तो यह नहीं है| मूलतः प्यार तो एक नैसर्गिक चीज़ है जो न नैतिक है, न पवित्र है, न अपवित्र| उसे अश्लील, अपवित्र या अनैतिक हम बनाते हैं, हमारा समाज बनाता है|

औरत का तो अपना परमेश्वर भी नहीं होता|

किस्सा प्यार की ताकत का

जितना ताकतवर प्यार है, उतनी ही ताकतवर उसकी विरोधी शक्तियाँ भी है| जैसे प्यार नैसर्गिक चीज़ है, वैसे ही लगता है सत्ता हासिल करना, राजा बन जाना, दूसरों को दबाकर शासन करना भी इंसान की प्रवृत्ति है| इस प्रवृत्ति के तहत शासक वर्गों ने समाज चलाने के लिए कुछ खांचे या प्रारूप बनाए अपने हिसाब से और लोगों पर लाद दिए| पर प्यार में किसी का शासन तो चल नहीं सकता| इसीलिए समाज के ठेकेदारों ने सबसे पहले प्यार को ही रोका| उन्होंने प्यार के विरोध में कानून-कायदे बनाए, वर्ण-भेद बनाया, भाषा-भेद किया और उससे प्यार की टकराहट चलती रहती है|

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औरत का परमेश्वर पति

शादी और प्यार के आपसी संबंध को लेकर अक्सर कई तरह के सवाल उठते रहते हैं| सबसे पहले मैं यह बता दूँ कि प्यार और शादी में कोई संबंध नहीं है| यह हमारा बहलावा है, भ्रम है कि जिससे विवाह हो, उससे प्यार भी हो| शादी यानी अरेंज मैरिज| इसमें कहा जाता है कि यह जो लड़की है, आज से तुम्हारी पत्नी बन गई है, अब इससे प्यार चालू करो| यह जो लड़का है, तुम्हारा पति है, इससे प्यार शुरू कर दो| कितनी अजीब बात है, प्यार क्या किसी के कहने से होता है? पानी भी जब रौ में आता है तो बाँध तोड़ देता है|

शादी में तो किसी अनजान इंसान को उसका पति परमेश्वर बना दिया जाता है| औरत का तो अपना परमेश्वर भी नहीं होता| उसकी जगह तो पति की ले लेता है|

स्वतंत्र इंसान की तरह अपनी पसंद के इंसान से प्यार कर पाना किसी औरत के लिए आसान नहीं होता|

लड़कियों में प्यार करने का रोग नहीं, साहस होता है

एक पितृसत्तात्मक समाज में बंदिश और औरत एक-दूसरे के पर्यायवाची होते है| ऐसे में, स्वतंत्र इंसान की तरह अपनी पसंद के इंसान से प्यार कर पाना किसी औरत के लिए आसान नहीं होता| एक तरफ तो औरत के लिए समाज की दमघोंटू व्यवस्था को तोड़ना उनके लिए एक बड़ी चुनौती होती है| वहीं दूसरी ओर, मर्दों के उस समाज (जहाँ भक्षक भी पुरुष है और रक्षक भी पुरुष है) में किसी मर्द को अपने प्यार के चुनना अपने आप में बड़ा जोखिम है| लेकिन इसके बावजूद लड़कियां ये जोखिम उठाती है| इसलिए नहीं कि उन्हें स्वछंदता रास आती है या उन्हें प्रेम करने का रोग होता है| बल्कि इसलिए क्योंकि उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि उनके वर्तमान से ही उनका आने वाला भविष्य होगा| और अगर उन्होंने अपने समाज को खुद के स्वतंत्र व्यक्तित्व का एहसास नहीं करवाया तो आने वाले समय में भी औरत का किस्सा पितृसत्ता की कठपुतलियों का होगा| प्यार की सफलता या विफलता इंसान की समझदारी, विवेक और विश्वास पर निर्भर करता है| लेकिन इसबात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि प्यार की शुरुआत लड़की के उस साहसिक कदम से होती है जब वो अपने पसंद के साथी की तरफ बढ़ाती है|

संदर्भ

  1. चर्चा हमारा – मैत्रेयी पुष्प

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