इंटरसेक्शनलमर्दानगी ‘लिपस्टिक लगाने से रेप होगा’: प्रोग्रसिव सोच का दोहरा सच

‘लिपस्टिक लगाने से रेप होगा’: प्रोग्रसिव सोच का दोहरा सच

पितृसत्ता में जीने वाले पुरुष प्रगतिशीलता का जामा पहनकर महिलाओं के खिलाफ सड़ी सोच और वीभत्स सोच को बढ़ावा देते है|

आशीष हिंदी से एमए कर रहा था| वो भी ऐसी वैसी नहीं देश की प्रगतिशील यूनिवर्सिटी से| शायद यही वजह थी कि उसके विचार भी काफी प्रगतिशील थे, जैसा कि सोशल मीडिया पर उसकी पोस्ट से पता चलता था| एकदिन सोशल मीडिया में उसने मुझे मेसेज किया जिसमें उसने मेरे लिखे की सराहना करते हुए मेरी किताब पढ़ने और मुझसे मुलाक़ात करने की इच्छा ज़ाहिर की| मैंने उसे अपनी किताब पोस्ट कर दी|

एकबार जब मैं यूनिवर्सिटी गयी तो उससे मेरी मुलाकात हुई| उसने अपना महिमामंडन शुरू किया कि मैं कविताएँ, शायरी और गजल लिखता हूँ| मेरा लिखा देश के कोने-कोने से लोग पढ़ते है, वगैरह-वगैरह| जब उसे यह महसूस हुआ कि मुझे उसकी इन सब बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है तो उसने स्त्री-मुक्ति पर बातों की शुरुआत कर दी| महिलाओं के संदर्भ में समानता और स्वतंत्रता को लेकर उसकी ढेर सारी बातों को सुनने के बाद जब मैंने उससे पूछा कि आप इस सब बातों को अपने घर में कैसे लागू करते है? या फिर अपनी महिला साथियों के साथ इसे व्यवहार में कैसे लाते है? इसपर उसने कहा कि ‘देखिये! मेरा घर गाँव में है और मैं अपने परिवार में सबसे बड़ा हूँ| मुझसे छोटी बहन है और एक भाई है| घर में मेरी ज्यादा चलती है|’ मैंने अपने सवाल को आगे बढ़ाते हुए उससे कहा कि तो फिर आप बड़े भाई होने के नाते अपनी छोटी बहन के लिए उन सभी समानता और स्वतंत्रता की बातों को कैसे लागू करते है जिनका जिक्र आप अपने लिखे और बातों में करते है?

साक्षरता और शिक्षा के बीच फ़र्क को समझा जाए|

आशीष ने अब भोजपुरी में जवाब देना शुरू किया, ‘हम महिला के लिए आज़ादी-वाजादी का समर्थन करते है| पर इ तो आपको भी पता होगा कि इसे हम घर में लागू नहीं करते है| हमारी बहनिया भी यूनिवर्सिटी में पढ़ना चाहती थी पर हम उसे मना किये कि हमारे गाँव-समाज का माहौल ऐसा नहीं है और पढ़ने बाहर जायेगी तो इसका जिम्मा कौन लेगा? ढेर पढ़ ले तो यहू आफत कि लड़का खोजो उतना पढ़ा-लिखा| एकदिन उसको रिश्तेदारी की एक शादी में ले जा रहे थे| देखे तो ऊ होंठवा में ओंठलाली (लिप बाम) लगा रही थी| हम तो मार बैठे इसपर उसे| हमारी माई आई तो हम कहे उनसे कि ई बताइए कि वो शादी में जा रही है कि फैशन शो में| इतना सज-धज के जायेगी अगर रेप हो गया तो कौन लेगा जिम्मा? हमलोग नहीं देख रहे है शहर में सजने वाली लड़कियों का हाल होता है? आखिर लड़कियां केकरे बदे एतना सज के जा रही है? चार आदमी देखेंगे कोई ऊंच-नीच हो गया तो का करेगी? इसके बाद हमने तुरंत उसकी शादी तय दी| अब देखिये बढिया से शादी हो गया तीन बच्चे है और बीए फर्स्ट इयर भी फर्स्ट क्लास पास कर ली| फिर शादी के बाद पहले साल में ही जब उसका लड़कवा हुआ तो खुदे कही कि अब नहीं पढ़ेंगे, बहुत बोझा हो जा रहा है| अब आप ही बताइये कि लड़कियां जब खुद पीछे हट जाए तो कोई का करे? हम तो पीछे नहीं हटे उसको पढ़ाने से| अब सुरक्षा के लिहाज से उसकी शादी भी ज़रूरी थी| बाकी अब जब वो आगे बढ़ना ही नहीं चाहती है तो हम का करें?’

ऐसा ही एक और वाकया मेरे बॉयफ्रेंड के साथ भी हुआ| वो एक रिसर्च स्कॉलर था, जिसकी पीएचडी के टॉपिक से लेकर सोशल मीडिया की पोस्ट और यहाँ तक की बुक सेल्फ पर रखी किताबों का कलेक्शन भी प्रगतिशीलता को दिखाता था| एकबार हम दोस्त बैठकर बात कर रहे थे जिसमें वो भी साथ था| तभी बातों-बातों में मासिकधर्म का मुद्दा उठा| इसपर मैंने खुलकर अपनी बात रखी और हममें मासिकधर्म से जुड़ी तमाम समस्याओं पर अच्छी चर्चा हुई| इसमें बॉयफ्रेंड ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया| कुछ समय बाद जब मुझे यह पता चला कि वो मुझे धोखा दे रहा है तो मैनें तुरंत उसके साथ अपनी बातचीत खत्म कर ली| हमारी आखिरी बात में उसने मेरे चरित्र को केन्द्रित करने के लिए ‘मासिकधर्म वाली बात’ को मुद्दा बनाया और उसने कहा कि तुम्हें इतनी भी तमीज नहीं है कि औरतों की बात सबके साथ नहीं की जाती है| वहां और भी लड़कियां थी उनलोगों ने तो अपना मुंह नहीं खोला पर तुम जैसी चरित्रहीन लड़कियां ही ऐसे मुद्दों पर चार आदमी के सामने बोल सकती है|’ इसपर मैंने भी उसे सख्ती से जवाब देते हुए अपनी जिंदगी से दफा कर दिया|

आजकल लोग खरबूजे की तरह एक-दूसरे को देखकर अपने विचार बदल लेते है, खासकर महिला के संदर्भ में|

आशीष की और मेरे बॉयफ्रेंड की बातों को सुनना मेरे जीवन का कड़वा अनुभव रहा, जब मैंने पितृसत्ता की सड़ी-बदबूदार सोच को प्रत्यक्ष रूप से अपने सामने देखा था| मेरे लिए यह विश्वास कर पाना बेहद मुश्किल था कि ये वही इंसान है जिन लोगों ने दुनिया के सामने प्रगतिशीलता का जामा पहना हुआ है और प्रगतिशीलता के नामपर इतनी बड़ी-बड़ी बातें करते फिरते है|

पर वास्तविकता यही है कि यह हमारे समाज का दोहरा मगर सच्चा चरित्र है, जहाँ पुरुष समयानुसार महिला के संदर्भ में ढेर सारे प्रगतिशील विचार सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक और लेख से लेकर अपनी पीएचडी की थीसिस तक बांछते चलता है| लेकिन जैसे ही इसे अपने जीवन में लागू करने की बात आती है तो भाग खड़ा होता है| वो हर दिशा में बदलाव में चाहता है जिसका गान हर जगह करते फिरता है लेकिन इसकी शुरुआत पड़ोसी के घर से चाहता है| आज भी औरत का बोलना खासकर महिला-विषयक मुद्दों पर पितृसत्ता की नज़रों में उसे चरित्रहीन घोषित कर देता है|

गौरतलब है कि जब उच्चतर शिक्षा लेने वाले युवा की सोच इतनी गिरी हुई और घटिया है तो फिर समाज में किसी भी बदलाव की उम्मीद किससे रखी जाए भला? हम आये दिन अपने जीवन में ऐसे उदाहरण देखते है कि खुद को पढ़ा-लिखा और प्रगतिशील कहने वाले लोग महिलाओं के प्रति उतनी ही गिरी हुई ओछी सोच रखते है| ऐसे में ज़रूरी है कि साक्षरता और शिक्षा के बीच फ़र्क को समझा जाए| आजकल लोग खरबूजे की तरह एक-दूसरे को देखकर अपने विचार बदल लेते है, खासकर महिला के संदर्भ में| पर अगर उनके इस बदले हुए जामे की तह में जाया जाए तो अस्सी फीसद लोग ऐसे ही मिलेंगे जिनका उन विचारों से कोई सरोकार नहीं होता है| इतना ही नहीं, महिलाओं के खिलाफ उनके चरित्र का रूप उतना ही वीभत्स होता है|

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