नारीवाद नारीवादी से जुड़ी 4 गलतफहमी: नारीवाद के ढोंगीजामे से

नारीवादी से जुड़ी 4 गलतफहमी: नारीवाद के ढोंगीजामे से

आइये जानते हैं नारीवाद से जुडी चार गलतफहमी क्योंकि ‘आदर्श नारीवादी’ बनने के लिए किसी सांचे में ढलने की नहीं विचार की ज़रूरत होती है|

बदलाव के नामपर हमारे समाज में जितने ज्यादा सकारात्मक बदलाव लाने वाले लोग है उससे कई गुना ज्यादा समस्या खड़े करने वाले लोग है| हम अपनी रोजमर्रा की ज़िन्दगी से लेकर सत्ता-शासन-समाज हर जगह इसके लाखों उदाहरण देख सकते है| महिलाओं के सन्दर्भ में पितृसत्तात्मक समाज, (जो कि हमारे देश का समाज है) में यह समस्या और भी बुरी तरह अपनी पैठ जमाए हुए है| इतिहास से लेकर वर्तमान तक जिन महिला कार्यकर्ताओं ने महिला-अधिकार या उनके विकास से जुड़े मुद्दे उठाये है, उन्हें सीधे और सरल तौर पर पितृसत्ता में नारीवादी कहा जाता है| इस बात को नज़रअंदाज़ करते हुए कि वाकई में नारीवादी होने का मतलब सिर्फ महिला-हक़ की बात करना है बल्कि समाज के हाशिए में रहने वाले हर तबके की बात करना है|

खैर, ये तो चलन के दौर का हिस्सा है| बदलते वक़्त के साथ धीरे-धीरे समाज में ‘नारीवादी’ शब्द की भाषा और इसके भावार्थ बदलते गये है| या अगर हम यों कहें कि पितृसत्ता के अनुसार नारीवादी के सांचे गढ़ते गये है| इस सांचे में उनके पहनावे, व्यक्तित्व और यहाँ तक की उनकी जीवन-शैली को भी बकायदा परिभाषित किया गया है, जिसका सबसे बुरा परिणाम यह हुआ कि ‘नारीवाद’ शब्द को ही समाज में आपत्तिजनक समझा जाने लगा है| आज जब हम किसी नारीवादी की कल्पना करते है तो यह आसानी से मान लिया जाता है कि वह पूरी तरह पुरुष-विरोधी और समाज की संरचना के खिलाफ होगी| इतना ही नहीं, अक्सर इन धारणाओं के आधार पर कई बार महिलाओं पर सार्वजनिक जगहों को शर्मिदा किया जाता है, उन्हें सोशल मीडिया में ट्रोल किया जाता है और कई बार उन्हें बायकाट भी किया जाता है| इस समस्या को दूर करने के लिए यह ज़रूरी है कि नारीवाद पर विश्वास करने वाले हर इंसान को एकजुट होकर इन धारणाओं का खंडन करना चाहिए|

समाज में नारीवाद को लेकर प्रचलित गलत धारणाओं का नतीजा यह हुआ है कि जो भी महिलाएं नारीवादी विचार की होती है और पितृसत्ता में बने ‘आदर्श नारीवादी’ के सांचे खुद को नहीं ढाल पाती है तो वे खुद को नारीवादी मानने से इनकार करने लगती है| आज अपने इस लेख में मैं आपसे उन बातों को साझा करने जा रही हूँ, जिनके साथ होने पर भी आप अपने विचारों से ‘नारीवादी’ ही कहलायेंगे, क्योंकि वास्तव में ‘आदर्श नारीवादी’ बनने के लिए किसी सांचे में ढलने या कोई कवर ओढने की नहीं विचार की ज़रूरत होती है|

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1. ऐसी दिखती है ‘नारीवादी’

नारीवादी महिला कैसी दिखती है? यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है और हो सकता है इस सवाल का जवाब आपके जहन में फिट हो जैसे – उस महिला के बाल छोटे होंगे, लड़कों जैसे या विचित्र डिज़ाइन में कटे हुए? वो अजीब से झोले-जैसे कपड़े पहनती होगी? उसके शरीर में मर्दों की जैसे बाल होंगे? वगैरह-वगैरह| अगर आपका जवाब भी ऐसा ही कुछ है कि नारीवादी महिला ऐसी ही दिखती है तो आपको बता दें कि यह पूरी तरह गलत है| साफ़ शब्दों में कहे तो नारीवाद को मानने वाला इंसान सिर्फ न्याय और समानता पर विश्वास करता है| इसलिए नारीवादी होने के लिए किसी ख़ास वेशभूषा की ज़रूरत नहीं है| अगर आपको साड़ी, सलवार कमीज या बिकनी पहनना पसंद है तो इससे आपके नारीवादी विचार पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता है| हाँ यहाँ फ़र्क पड़ता है तो सिर्फ एकबात से कि – जब आप खुद को नारीवादी दिखाने के लिए किसी ख़ास वेशभूषा का सहारा लेती है क्योंकि नारीवाद एक विचारधारा है जिसे समझकर अपने जीवन लागू किया जाता है न कि किसी ख़ास खोल के आधार पर खुद को नारीवादी दिखाया जाता है|

यहाँ यह समझना ज़रूरी है कि नारीवाद का ताल्लुक आपके विचार से जो कि न्याय और समानता पर आधारित है| इसी तर्ज पर यह आपको भी अपने अनुसार जीने और पसंदीदा पहनावे को पहनने का पूरा समर्थन करता है|

नारीवाद एक विचारधारा है जिसे समझकर अपने जीवन लागू किया जाता है न कि किसी ख़ास खोल के आधार पर खुद को नारीवादी दिखाया जाता है|

2. घरेलू कामों वाली ‘नारीवादी’

नारीवादी किन मूल्यों की धड़ल्ले से आलोचना करता है? दमन, भेदभाव और अज्ञानता का| न की खाना बनाने की कला, साफ़-सफाई करने की या फिर अन्य घरेलू कामों की|

सदियों से घरेलू कामों का कोई मूल्य नहीं रखा गया| शायद इसका कारण यह भी रहा कि इसे महिलाओं के जिम्मे सौंपा गया| नारीवाद घरेलू कामों में महिलाओं की अहम भूमिका को नज़रंदाज़ करने की संस्कृति का विरोधी है न की घरेलू कामों का| इस बात को उदाहरण के ज़रिए आसानी से समझा जा सकता है कि घर में अगर पत्नी की तबियत खराब है और पति उसपर यह दबाव बनाता है कि खाना पत्नी ही बनाये क्योंकि यह काम उसके जिम्मे है तो यहाँ नारीवाद इस दृष्टिकोण का विरोधी है| वहीं दूसरी ओर, अगर महिला-पुरुष साथ में घरेलू कामों को करते है तो यहाँ नारीवाद इसबात का समर्थन करता है|

इसलिए अगर आप नारीवादी विचारधारा को मानती है और इसके बावजूद आपको गंदगी पसंद नहीं जिसके लिए आप सफाईपसंद है या फिर आपको खाना पकाना पसंद है या घर से जुड़ा कोई भी काम आपको पसंद है तो ये सभी बातें आपकी विचारधारा को कहीं से भी प्रभावित नहीं करती है| घरेलू कामों को करने के बाद भी आप नारीवादी ही कहलाएंगी|

नारीवादी विचारों पर विश्वास करने के बावजूद शादी के सपने देखना, अपने पारिवारिक जीवन के बारे में सोचना या फिर मातृत्व सुख की कल्पना करना पूरी तरह से सही है |

3. मेरा भी एक परिवार हो ‘नारीवादी’

एक मर्द के सन्दर्भ में यह तनिक भी ताज्जुब की बात नहीं होगी कि वह नौकरी के साथ-साथ परिवार बसाने की ख्वाइश रखता है| लेकिन जब बात महिलाओं के सन्दर्भ में होती है तो उनका करियर और परिवार बसाना दोनों ही एक-दूसरे के विरोधाभासी जैसे नज़र आने लगते है, जो कि पूरी तरह से गलत है|

आपको इनदोनों में से किसी एक को चुनने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आप इनदोनों को अपने जीवन के लिए चुन सकती है| आमतौर पर लोग इसबात पर विश्वास करते है नारीवादी महिला हमेशा अपने करियर को वरीयता देती है और वह खुद का परिवार बसाने के विरोध में होती है| पर यहाँ मैं खुद आपसे यह कहना चाहूंगी कि समाज के किसी गढ़े सांचे (जैसा कि नारीवादी के सन्दर्भ में गढ़ा गया है कि वे परिवार बसाने में विश्वास नहीं करते है) में खुद को ढालना आपको कहीं से भी नारीवादी नहीं बनाता है|

इसलिए नारीवादी विचारों पर विश्वास करने के बावजूद शादी के सपने देखना, अपने पारिवारिक जीवन के बारे में सोचना या फिर मातृत्व सुख की कल्पना करना पूरी तरह से सही है क्योंकि यह आपकी अपनी पसंद है| अपने परिवार को समय देना या उनके प्रति आकांक्षायें रखना कहीं से भी गलत नहीं है|

4. भावुक नारीवादी

भावात्मक होना यह दिखाता है कि आप इंसान है, न कि भावुक प्रवृत्ति के होने पर आपको नारीवादी नहीं माना जायेगा| लोगों का अक्सर यह मानना होता कि नारीवादी बेहद कठोर मिजाज के होते है, वे किसी की भावनाएं नहीं समझ सकते है क्योंकि उनका दृष्टिकोण सिर्फ तार्किक होता है या फिर नारीवादी को किसी से प्यार नहीं हो सकता है और अगर इनसब में से कोई भी नारीवादी ऐसा करता है तो वह नारीवादी नहीं हो सकता है| अगर आप भी लोगों की इन बातों पर भरोसा करते हैं तो आपको बता दें कि यह पूरी तरह गलत है| नारीवाद को मानने वाला भी इंसान होता है और उसके नारीवादी होने और भावुक होने में कोई ताल्लुक नहीं है| इसी तरह सख्त मिजाजी होना किसी भी इंसान को नारीवादी नहीं बनाता है| बल्कि समान तौर पर लोगों को उनकी खूबियों-खामियों के साथ अपनाना आपको नारीवादी बनाता है|

‘आदर्श नारीवादी’ बनने के लिए किसी सांचे में ढलने या कोई कवर ओढने की नहीं विचार की ज़रूरत होती है|

सालों से खुद को ‘नारीवादी’ कहलवाने की होड़ ने नारीवादी बनने की बजाय नारीवादी जैसे दिखावे करने की संस्कृति को खूब बढ़ावा दिया है जिसका नतीजा यह हुआ कि आमजन में नारीवाद की छवि इसके विचारों-मूल्यों से ज्यादा इसके दिखावे के मानकों तक ज्यादा सिमटकर रह गयी| पर वास्तव में नारीवाद, समान अधिकारों, स्वतंत्र विचारों और दमन के विरोध के सन्दर्भ में है| न की शादी करने या बच्चे पैदा के विरोध में| नारीवाद दुनियाभर के सभी जेंडरों के लिए भेदभावमुक्त बेहतर समाज बनाने का दृष्टिकोण है इसलिए लोगों के मन में इसके मूल से इतर नारीवाद की कोई और परिभाषा या मानक पनपने न दें|

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