इंटरसेक्शनलजेंडर पीरियड के मुद्दे ने मुझे मर्द होने का असली मतलब समझा दिया

पीरियड के मुद्दे ने मुझे मर्द होने का असली मतलब समझा दिया

पीरियड के मुद्दे पर काम करने से मुझे मर्द होने का असली मतलब समझ आ गया कि मर्द होने का मतलब औरतों से अपनी तुलना करके उनको नीच दिखाना नहीं|

उस दिन जब पिताजी का फ़ोन तो आया तो हाल-चाल की बातों के बाद उन्होंने मेरे काम पर बात शुरू की| मुहीम संस्था को शुरू करने का वो शुरूआती दौर था जब हमने यह तय किया था कि हम ‘पीरियड्स’ के मुद्दे पर काम करेंगें| पिताजी ने मुझसे पूछा कि ‘तुम लोगों का एनजीयो किस मुद्दे पर काम कर रहा है?’ इसके जवाब में मैनें तुरंत कहा ‘महिलाओं के लिए काम कर रहा है|’ पर पिताजी को मेरा जवाब अधूरा-सा लगा और उन्होंने ने कहा कि ‘अरे! महिला के भी किस मुद्दे पर काम कर रहे हो तुमलोग|’ उनकी ये बात सुनकर मैंने सोच लिया कि अब बिना हिचके मुझे बोलना है और मैनें जवाब दिया कि ‘हमलोग गाँव में महिलाओं और किशोरियों के साथ माहवारी के मुद्दे पर काम कर रहे है| हमलोग उन्हें माहवारी से जुड़ी स्वास्थ्य संबंधित जानकारियों के साथ-साथ अन्य सामाजिक दकियानूसी बातों के प्रति जागरूक करने का काम करते है और उन्हें घर के पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करके सेनेटरी पैड बनाने की ट्रेनिंग भी दे रहे है|’ मेरे इस जवाब पर  पिताजी ने कहा ‘बहुत सही विषय चुना है तुमलोग ने|’

मुझे उम्मीद नहीं थी कि पिताजी ये प्रतिक्रिया होगी, क्योंकि जिस ग्रामीण परिवेश से मैं ताल्लुक रखता हूँ वहां बाप-बेटे के बीच ऐसे किसी मुद्दे पर बात होना नामुमकिन-सा है और मेरी भी पिताजी के साथ कभी-भी ऐसे किसी विषय (खासकर महिला से जुड़े किसी मुद्दे) पर बात नहीं हुई थी|

पिताजी ने आगे कहा कि ‘गाँव में बहुत ज़रूरत है इसपर काम करने की| महिलाएं मारे शर्म के इसपर कुछ भी बोल नहीं पाती है और तरह-तरह की बिमारियों का शिकार हो जाती है| इतना ही नहीं, बच्चियों को भी इसके बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं दी जाती है जिससे वो लोग पहली बार महीना आने पर डर जाती है और कई को बीमार होते तो मैनें खुद अपने रिश्तेदारों और आसपास में देखा है|’ उन्होंने अपनी बातों में एक और घटना का भी जिक्र किया कि ‘एकबार किसी महिला को धार्मिक कार्यक्रम से दुत्कार कर निकाल दिया गया था क्योंकि उसके पीरियड्स चल रहे थे|’ करीब एक घंटे तक इस विषय मेरी पिताजी के साथ बात हुई| यों तो इस विषय पर जब हमलोगों ने काम करना शुरू किया था तब दोस्तों के साथ इसपर अच्छी बातचीत होती थी, लेकिन ये पहली बार था जब मैनें पिताजी के साथ इस विषय पर बात की थी|

हम सभी जिस सामाजिक परिवेश में पले-बढ़े थे वहां इन सब विषयों से हम लड़कों को दूर रखा जाता था|

बारहवीं के बाद पढ़ाई के लिए जब मैं बीएचयू आया था तब पीरियड्स को लेकर दोस्त आपस में खूब हंसी-मजाक करते थे और शायद ऐसा इसीलिए था कि हम सभी जिस सामाजिक परिवेश में पले-बढ़े थे वहां इन सब विषयों से हम लड़कों को दूर रखा जाता था, जिससे हम इधर-उधर से वो बातें सुनते थे उसी के आधार पर हमारी समझ विकसित होती थी| लेकिन जब मैंने अपनी टीम के साथ इस विषय पर ग्रामीण क्षेत्रों में काम करना शुरू किया तब धीरे-धीरे मुझे इस विषय की गंभीरता समझ आने लगी| शुरू में जब दोस्तों को ये पता चला कि मैनें पीरियड्स के विषय पर काम करना शुरू किया है तो कई दोस्तों ने सलाह दी कि ‘अरे और भी कई मुद्दे है उनपर काम करो|’ कई ने मेरा मजाक भी बनाया और कुछ ने सराहना भी की| कुल मिलाकर मिलीजुली सी प्रतिक्रिया रही|

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वास्तविकता ये है कि संस्थागत तरीके से इस विषय पर काम करने के बाद न केवल इस विषय पर समझ बढ़ी बल्कि महिलाओं के प्रति मेरी सोच में भी बदलाव आया है, जिसे मैं अपने परिवार में प्रत्यक्ष रूप से देखता हूँ| अब मुझे अपनी बहनों से इस विषय पर बात करने में कोई हिचक महसूस नहीं है| मेरी छोटी बहन जो कि नर्सिंग कर रही है वो भी अब बिना हिचके मुझसे इन मुद्दों पर खुलकर बात करती है|

पीरियड के मुद्दे पर गाँव में किशोरियों के साथ कार्यशाला करते रामकिंकर

ग्रामीण क्षेत्रों में पीरियड के मुद्दे पर काम करने की पहल हमलोगों के लिए एक बड़ी चुनौती है, खासकर तब जब हमारे पास आर्थिक रूप से कोई संसाधन नहीं है और न ही कोई बड़ी टीम| लेकिन इन सबके बावजूद जब हम गाँव में महिलाओं और किशोरियों के साथ बातचीत के कार्यक्रम के बाद पीरियड्स पर कला-प्रतियोगिता आयोजित करते हैं तब उनके विचार चित्रों और संदेशों के ज़रिए कागज पर उतरते है, जिसमें उनके कड़वे अनुभव, पीड़ा और सोच बदलने की आस की झलक साफ़ दिखाई देती है और यही वजह से हम सभी रुकने की कल्पना भी नहीं करते है|

ऐसे विषयों पर जब कोई पुरुष सहजता और संवेदनशीलता के साथ बात करता है तो घर-परिवार, दोस्त-रिश्तेदार इन सबमें अपने आप स्वस्थ्य माहौल विकसित होने लगता है|

करीब सालभर से लगातार इस विषय पर काम करते हुए हमलोगों ने पन्द्रह से अधिक गाँव में काम किया है और धीरे-धीर इसका प्रभाव भी हमें गाँव में दिखने लगा है लेकिन जब मैं अपने व्यक्तित्व में हुए इस बदलाव को देखता हूँ तो यही सोचता हूँ कि अक्सर जब एक पुरुष किसी महिला के मुद्दे (खासकर उसके शरीर से जुड़े किसी मुद्दे) पर बात करता है तो उसकी बातों को बेबुनियादी करार दिया जाता है जो कुछ हद तक सही ही है| लेकिन एक पुरुष होने के नाते जब मैं खुद तो इस विषय पर देखता तो मेरा अनुभव यही कहता है कि ऐसे विषयों पर जब कोई पुरुष सहजता और संवेदनशीलता के साथ बात करता है तो घर-परिवार, दोस्त-रिश्तेदार इन सबमें अपने आप स्वस्थ्य माहौल विकसित होने लगता है|

गर्व है मुझे कि मैं इस मुद्दे पर काम कर रहा हूँ क्योंकि इस मुद्दे पर काम करने से मुझे मर्द होने का असली मतलब समझ आने लगा है कि असल में मर्द होने का मतलब औरतों से अपनी तुलना करके उनको नीच दिखाना नहीं बल्कि उनसे जुड़े विषयों को संवेदनशील तरीके से समझकर स्वस्थ्य माहौल बनाना है| मैं ये नहीं कहूँगा कि आप सभी भी मेरी तरह इस मुद्दे पर काम करने में जुट जाइये, लेकिन ये ज़रूर कहूँगा कि ऐसे मुद्दों को मजाक का विषय बनाने की बजाय अपनी समझ और संवेदनशीलता बढाइये, ये आपके और आपके परिवार दोनों के लिए बेहद ज़रूरी है|

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