इंटरसेक्शनलहिंसा यौन उत्पीड़न बनता जा रहा है हर ज़िन्दगी का हिस्सा

यौन उत्पीड़न बनता जा रहा है हर ज़िन्दगी का हिस्सा

यौन उत्पीड़न का मतलब होता है ‘किसी भी तरह का उत्पीड़न जो लिंग पर आधारित हो। यह उत्पीड़न कई तरह का और कई स्तरों पर होता है|

यौन उत्पीड़न ये एक ऐसा अपराध है, जिसपर आये दिन गली-मोहल्लों से लेकर न्यूज़ चैनलों तक चर्चा हो रही है| वहीं दूसरी तरफ बहुत से लोगों के लिए यौन उत्पीड़न सच्चाई भी नहीं है| ये वो लोग हैं जो विशेषाधिकारों के साथ बैठे हैं और इनमें से अधिकतर  खुद को ‘मर्द’ कहलाने में गर्व करते हैं| (यहाँ मुझे बहुत संभलकर  बात करनी होगी इन के बारे में बोलते वक्त| क्यूंकि वो क्या है न इनकी ‘मर्दानगी’ डर बहुत जल्दी जाती है पर इसे अपना डर नहीं बल्कि ‘अपमान’ समझती है और मान-अपमान का पाठ तो मर्दों के अलावा सभी को बखूबी सिखाया जाता है तो उसका पालन करना भी उनके अलावा सभी को आना चाहिए।) गौर फरमाइयेगा ‘मर्दानगी’ भी स्त्रीलिंग है|

यौन उत्पीड़न मतलब?

यौन उत्पीड़न का मतलब होता है ‘किसी भी तरह का उत्पीड़न जो लिंग पर आधारित हो। यह उत्पीड़न कई तरह का और कई स्तरों पर होता है| यहाँ ये ज़रूरी नहीं है कि केवल छेड़छाड़, बलात्कार या हिंसा ही यौन उत्पीड़न है| बल्कि लिंग के आधार पर किसी भी तरीके का उत्पीड़न यौन उत्पीड़न है| जैसे कि बिना मर्ज़ी के या मानसिक तनाव का सहारा लेकर किसी की नंगी तस्वीरें माँगना| उनकी ‘ना’ को ज़बरदस्ती अपने फायदे के लिए ‘हाँ’ बनाना। जब बात जबरदस्ती की हो तो ध्यान देने वाली बात ये है कि जबरदस्ती ज्यादातर उन रिश्तों में होती है जहाँ असमान शक्ति सम्बन्ध हो और ये सम्बन्ध सार्वभौमीक हैं; जैसे कि भाई-बहन से ज्यादा शक्तिशाली होता है| पति पत्नी से, पिता माता से पुरुष बाकि सभी लिंगों से वगैरह-वगैरह।

कानून को सुरक्षा से ज्यादा सशक्तिकरण पर ध्यान देना होगा|

यहाँ अधिकतर उदाहरण परिवार की संस्था के अंदर हैं, क्यूंकि परिवार यौन उत्पीड़न और मानव अधिकारों के उल्लघंन पहली और सबसे ख़ास जगह है। उम्र, लिंग, जाति, धर्म, वर्ग और कई अन्य कारकों से शक्ति की गतिशीलता बहुत प्रभावित होती है; जैसे – अगर उम्र की बात करें तो बड़ा भाई छोटे भाई से ज्यादा ताकत रखता है|

परत-दर-परत में मौजूद है यौन उत्पीड़न

आगे लिखे गये उदाहरण मैंने बाइनरी का इस्तेमाल किया है, क्यूंकि मेरा लक्ष्य यह दिखाना है कि जब भी कोई बाइनरी मौजूद है, वहां एक पदानुक्रम भी मौजूद है जिससे एकदूसरे से अधिक शक्तिशाली और श्रेष्ठ है। इसलिए उन्हें समाज में श्रेष्ठ समझा जाता है| वो अपने से नीचे के वर्ग को दबाकर रखना चाहता है। जैसे- मर्द औरत को [इन निचले वर्गों में भी पदानुक्रम होता है जैसे की गोरी महिला सांवली महिला से ज्यादा श्रेष्ठ मानी जाती है]। ये जटिल पहलू है जो यौन उत्पीड़न की बात करते समय किसी को भी सम्बोधित करना चाहिए।

मौजूदा समय में ज़रूरी है कायर मर्दानगी को डराना और उसका ‘अपमान’ करते रहना, क्यूंकि अब #timesup और #MeToo जैसे अभियानों के ज़रिए उत्पीड़कों की करतूतों का पर्दाफाश किया जाने लगा है| अब ज़रूरी है कि ‘मर्द’ और  ‘मर्दानगी’ पर झूठी शान की बजाय सवाल उठाये जाए कि आखिर मर्दानगी क्या है और ये ही क्यों सबसे ऊपर है? साथ ही, हमें पहले ये सोचना होगा कि क्या मर्दानगी का ताल्लुक किसी ख़ास लिंग से है?

वास्तविकता ये है कि अगर हम पितृसत्ता की घटिया राजनीति को समझ लेंगे तो आधी से ज्यादा परेशानी और सवालों के जवाब हमें खुद-ब-खुद मिल जायेंगें और यौन उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई और भी सशक्त हो जायेगी।

योनि में बसती पितृसत्ता की इज्जत

पितृसत्ता के लिए उसकी इज्जत औरत की योनि में बसती है इसीलिए तो ‘बलात्कार’ को ‘इज्जत लूट ली’ ऐसे भी कहा जाता है और बलात्कार या छेड़छाड़ या किसी तरीके का यौन उत्पीड़न एक हमला होता है औरतों से ज्यादा उस औरत के घर के मर्दों की इज्जत पर जहाँ एक ‘मर्द’ दूसरे ‘मर्द’ की औरत की इज्जत लूटकर उसे उसकी ‘औकात’ दिखाता है| यहाँ मेरी पदानुक्रम वाली बात पर भी ध्यान दिया जाय तो समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाज़ा हो जाएगा।

अब ज़रूरी है की इस झूठी इज्जत से बाहर निकला जाय और स्व-न्याय के लिए लड़ा जाय। यौन उत्पीड़न समाज पर धब्बा है न कि उसपर जो ऐसे खिनौने अपराधों को झेलकर अपने आपको उभारते हैं ।

सवाल ये है कि अपराध करके चैन से खुलेआम जीने की पात्रता अपराधियों में आती कैसे है? इनमें इतना आक्रोश होता है कि सबक के नामपर मासूम बच्चों को भी दरिंदगी का शिकार बना देते हैं|

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‘यौन उत्पीड़न तो आम है’

‘यौन उत्पीड़न आम बात है’ ऐसा बोल-बोलकर न जाने कितनी जिन्दा लाशें पाल रखीं है इस समाज ने| ये लाशें उनकी हैं जिनके लिए यौन उत्पीड़न सामान्य है| जिनके लिए यौन उत्पीड़न एक पात्रता है| जिनके लिए यौन उत्पीड़न मज़ा है| जिनकी रूह अमानवीय है|

हमें इसी मनुवादी सोच से लड़ना ज़रूरी है जो समाज में जात और लैंगिक आधार पर सदियों से भेदभाव करती आई है और यौन उत्पीड़न जैसी गंभीर समस्या को सामान्य करती आई है। इसी सोच की वजह से हाशियों पर जीने वाले एक प्रतिष्ठित जीवन भी नहीं जी पाते हैं| क्यूंकि उनकी जात उनके पिछले जनम के कर्मों का फल है|

वो तेरे पंखों को कतरेंगे ,
तू अपने पंजों में ताकत भरना,
वो जलाएंगे तुझे राख़ होने तक,
तू उस राख़ से आग बनना!

यौन उत्पीड़न के खिलाफ पहला कदम ‘शिक्षा’

पढाई बहुत ज़रूरी है| इस मुकाबले में जब हमारे विद्यालय शुरुआत से ही लिंग संवेदनशील होंगे, लैंगिकता के प्रति जागरूक होंगे तो हम ये सीखेंगे कि सभी लिंग सामान हैं और कोई भी किसी से श्रेष्ठ नहीं है। तब कोई अपराध करने को अपनी पात्रता नहीं समझेगा| न ही कोई सहेगा| क्यूंकि तब ये गलत सीख मिटा दी जाएगी कि मर्द कुछ भी कर सकते हैं या मर्द मर्द होते हैं’ और ‘औरत मर्द के पैर की जूती होती है|’ जब लड़कियां खुशी से, सम्मान से साइंस पढ़ पाएंगी और लड़कों को आर्ट्स पढ़ने में शर्म नहीं आएगी, तब हमारा भारत हकीकत में लैंगिक समानता अपने व्यवहार में ला पायेगा|

‘यौन उत्पीड़न आम बात है’ ऐसा बोल-बोलकर न जाने कितनी जिन्दा लाशें पाल रखीं है इस समाज ने|

दूसरा ज़रूरी कदम – नारीवाद की क्लास

जब नारीवाद की क्लास हर जगह लगेगी, तब पितृसत्ता की जड़ें खोखली होती जाएंगी| क्यूंकि अगर पितृसत्ता ताकत है तो नारीवाद इस ताकत के खिलाफ लड़ने का जूनून है| ताकत बढ़ती उम्र और ढलती सरकार के साथ कम होती जाती है| पर ये जूनून ही है जिसने हमें मथुरा से मनोरमा तक खींच लाया है और आज बात सिर्फ उनकी नहीं है, तुम्हारी है, हमारी है, सबकी है| ज़रूरी है कि हम अपने आपको अपनी खाक (जो हम भीतरसे जलते जलते बन चुके हैं ) से आग बनायें| यही आग हमारे सीने में ज़रूरी है यौन उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने के लिए| इसलिए बोलना ही नहीं गुर्राना भी ज़रूरी है और इस चुप्पी को तोडना ज़रूरी है|

तीसरे पायदान में हो न्याय-व्यवस्था में लैंगिक संवेदनशीलता

न्याय-व्यवस्था में लैंगिक संवेदनशीलता और जागरूकता बेहद ज़रूरी है जिससे पीड़ितों से ऐसे सवाल न पूछे जाएं जहाँ उनका दोहरा उत्पीड़न हो और जहाँ सबूत न पेश करने पर बिना किसी सबूत के ये न निर्धारित कर लिया जाय कि  पीड़ित झूठा है| साथ ही, काम करने वाले सभी लोगों को एक सुरक्षित कार्यस्थल मिले चाहे वो फॉर्मल सेक्टर हो या इनफॉर्मल सेक्टर|

वैवाहिक बलात्कार को कानूनन अपराध बनाना पड़ेगा| क्यूंकि शादी यौन उत्पीड़न का लाइसेंस नहीं होता है| साथ ही, कानून को सुरक्षा से ज्यादा सशक्तिकरण पर ध्यान देना होगा क्यूंकि सभी का स्वतंत्र होना बेहद ज़रूरी है ।

और पढ़ें : #MeToo: यौन-उत्पीड़न की शिकार महिलाओं की आपबीती 

चौथा कदम – घर की बात

माँ बाप को भी यह समझना बहुत ज़रूरी है कि बाल यौन शोषण हो या बेटी का यौन उत्पीड़न इसे सामान्य करना भी अपराध है|साथ ही अपनी झूठी शान के लिए उनकी जान लेना भी अपराध है| ये भी एक तरीके का यौन उत्पीड़न है जहाँ अगर कोई अपनी मर्ज़ी से धर्म और जात के बाहर जाकर अपने जीवनसाथी को चुनता है और जीना चाहता है तो उसे समाज का डर और इज्जत के नाम पर मार दिया जाता है|


यह लेख नम्रता मिश्रा ने लिखा है|

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