इंटरसेक्शनलयौनिकता यौन-प्रजनन स्वास्थ्य से है एचआईवी/एड्स का गहरा नाता

यौन-प्रजनन स्वास्थ्य से है एचआईवी/एड्स का गहरा नाता

एचआईवी/एड्स की तुलना में मुख्य रूप से यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों के विषय पर कम ध्यान दिया जा रहा है| यह ज़रूरी है कि अनेक तरह के विषयों पर एक समान और संतुलित रूप से ध्यान दिया जाए|

एचआईवी/एड्स को सबसे पहले करीब बीस साल पहले पहचाना गया था| पूरी दुनिया में प्रजननशील उम्र के हर सौ वयस्कों में से एक वयस्क एचआईवी संक्रमण से बाधित है| कुछ अफ्रीकी देशों में तो प्रजननशील उम्र के 40 फीसद पुरुष और महिलाएं इस संक्रमण का शिकार हैं| अब तक इसकी वजह से लाखों लोगों की मौत भी हो चुकी है| लेकिन फिर भी इस विश्व के धनी देशों को इस रोग के प्रसार की भीषणता को देखते हुए ये जानने में बीस साल लग गये कि एचआईवी संक्रमण की रोकथाम, उपचार और देखभाल सुविधाओं की किन जगहों पर ज्यादा ज़रूरत है| अब अचानक ही राजनीतिक नेतृत्व में तेज़ी से हो रहे बदलावों, प्राथमिकताओं में बदलाव, प्रभावशाली मध्यस्थता और स्वास्थ्य व विकास के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय वित्त व्यवस्था की नीतियों में हुए परिवर्तनों की वजह से पूरे विश्व में संसाधनों को पाने की होड़ में, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य को दी जा रही कम प्राथमिकता को बहुत बुरा समझा जा रहा है और यह माना जा रहा है कि इस विषय पर एड्स की अपेक्षा कम ध्यान दिया जा रहा है|

ऐसा विचार रखने वालों को यह लगता है कि इनमें से किसी एक विषय पर काम करने का दूसरे विषय पर काम करने से कोई संबंध ही न हो| रातों रात यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं के लिए धन की उपलब्धता में कमी आई है और एड्स पर नियन्त्रण पाने के लिए हर ओर से प्रभावित देशों में इतनी बड़ी मात्रा में धन उपलब्ध कराया जा रहा है कि स्वास्थ्य और विकास से जुड़े अन्य सभी कार्यक्रमों के लिए संकट की हालत पैदा हो गयी है| यह विडंबना ही है कि इनमें से अधिकाँश देश किसी भी तरह इस पूरे धन को खर्च नहीं कर पाएंगे, जिनकी मांग धनदाता देशों से की जा रही है| क्योंकि इन देशों में कार्यशील सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों और यौनिकता पर जानकारी देने के कार्यक्रमों की कमी है|

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फिर भी, जिस ईमानदारी से साल 1987 में मातृ मृत्युदर के बारे में और साल 1994 और साल 1999 में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के संकेतकों के बारे में कहा गया था, उसी ईमानदारी को बरतते हुए यह कहें कि इस महामारी में कमी लाने के लिए कम से कम बीस साल का समय लगेगा तो क्या तब तक यह धनदाता देश इन्हें धन उपलब्ध कराते रहेंगें? या फिर कम समय तक ध्यान देते रहने की प्रक्रिया इन देशों की तथाकथित चट्टान सी मजबूत कटिबद्धता को कमजोर कर देगी?

यौन व प्रजनन स्वास्थ्य से ज्यादा एड्स पर ध्यान?

इसी संदर्भ में यह देखा गया है कि एचआईवी/एड्स की तुलना में मुख्य रूप से यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों के विषय पर कम ध्यान दिया जा रहा है| हालांकि नब्बे के दशक के शुरूआती सालों से इन दो विषयों को एक साथ लाने के अनेक गंभीर प्रयास किये गये हैं| यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के विषय पर कार्यरत अनेक मातृ व बाल स्वास्थ्य/परिवार नियोजन कार्यक्रमों ने अपने कामों में यौन संचारित संक्रमण की रोकथाम, इनके लक्षण उत्पन्न होने पर उपचार और एचआईवी जांच और परामर्श जैसे विषयों को सम्मिलित किया है| इन कामों को बहुत ही सीमित रूप से किया गया है और इसे करने के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण और संसाधनों के अभाव के चलते यौन संचारित संक्रमण और एचआईवी संक्रमण के प्रसार को कम करने पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ा है और इन्हें लागू कर पाने को कठिन मानते हुए नकार दिया गया है, जबकि यह प्रयास नकारे जाने के योग्य नहीं है|

अगर एचआईवी/एड्स ऐसे गर्भनिरोधकों के सामने एक चुनौती के रूप में उभरता है जो यौन संचारित रोगों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान नहीं करते| साथ ही, एचआईवी संक्रमण की दर अधिक होने पर भी परिवार नियोजन को बढ़ावा दे रहे संदेशों में कोई बदलाव नहीं किया जाता| यही कारण है कि अब भी बहुत से लोग एचआईवी और इससे जुड़े खतरों की अपेक्षा अनचाहे गर्भधारण के प्रति ज्यादा फिक्रमंद रहते हैं|

एचआईवी/एड्स के साथ यौन व प्रजनन स्वास्थ्य के गहरे संबंध को भी हमें समझने की ज़रूरत है|

एचआईवी/एड्स के संदर्भ में माँ से बच्चे को होने वाला एचआईवी संक्रमण (पीएमटीसीटी), कार्यक्रमों के केंद्र में साल 1995 के बाद तब आया जब प्रसव के समय माँ से शिशु को होने वाले संक्रमण की रोकथाम के प्रभावी उपचार विकसित कर लिए गये| अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूएनएड्स की तरफ से ज़ारी दिशानिर्देशों में प्रसव पूर्व जांच, प्रसव के समय और प्रसव के बाद की देखभाल में पीएमटीसीटी सेवाएं दिए जाने की बात कही गयी है और इसे परिवार नियोजन और गर्भसमापन सेवाओं में भी शामिल किया गया है| फिर भी वास्तविकता यही है कि पीएमटीसीटी सेवाओं में किये जाने वाले प्रयास मुख्य रूप से बाल स्वास्थ्य के क्षेत्र में अधिक विकसित हुए हैं और इनके अंतर्गत एचआईवी बाधित महिलाओं से जुड़े विषयों की ओर बहुत कम ध्यान दिया गया है|

एड्स सेवाओं से जुड़े यौन व प्रजनन स्वास्थ्य के विषय

एंटी-रेट्रो वायरल दवाओं से उपचार और एचआईवी से संबंधित दूसरे चिकित्सीय उपचारों की वजह से महिलाओं को गर्भधारण करने, शिशु जन्म और महिलाओं के स्तनपान कराने के अनुभवों में क्रांतिकारी बदलाव हुआ है| लेकिन अब भी एड्स का उपचार कर रहे स्वास्थ्य केन्द्रों में महिलाओं को इसके लिए तैयार करने के लिए या इस संबंध में अधिक जानकारी व सेवाएं पाने के लिए इसके बारे में कोई खास प्रयास नहीं किये जाते हैं| इसके अलावा एड्स उपचार केन्द्रों में एचआईवी बाधित महिलाओं को गर्भनिरोधक मुहैया नहीं कराए जाते और न ही उन्हें गर्भपात कराने आदि के लिए दूसरे अस्पतालों में भेजा जाता है| इन केन्द्रों में इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया जाता कि एचआईवी/यौन संचारित संक्रमण के अधिक जोखिम का सामना कर रहे इंजेक्शन से मादक दवाएं लेने वाले पुरुषों और महिलाओं या फिर यौन कर्मियों को अतिरिक्त यौन व प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की ज़रूरत हो सकती है| एचआईवी बाधित पुरुषों को आमतौर पर पिता के रूप में नहीं देखा जाता है या फिर एड्स रैफल केंद्र यह मान लेते हैं कि उनकी जानकारी और सेवाएं प्राप्त करने की अपनी अलग ज़रूरत हैं| इसके अलावा ये तथ्य कि एचआईवी बाधित किशोरियों और महिलाओं की उपचार की ज़रूरत पुरुषों से अलग हों सकती हैं (उदाहरण के लिए, यौन शोषण या यौन हिंसा के बाद उपचार की ज़रूरत), ऐसे देशों में उजागर होना शुरू हुआ है, जिनमें एचआईवी का प्रसार अधिक है| पुरुषों की अपेक्षा केवल महिलाओं को एंटी-रेट्रो वायरल उपचार सेवाएं देने से जुड़े वैकल्पिक सवालों पर भी अभी हाल ही में ध्यान दिया जाना शुरु हुआ है कि ऐसी हालत में महिलाओं की माता, अध्यापिका या स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में भूमिकाएं किस तरह प्रभावित होंगी|

और पढ़ें : मानव अधिकारों के रूप में ‘यौन अधिकार’

जैसे-जैसे उपचार मिलने के व्यवहार पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा है| वैसे-वैसे ही एचआईवी की रोकथाम के लिए धन की व्यवस्था कर पाना और अधिक कठिन होता जा रहा है| यहाँ तक कि कंडोम के इस्तेमाल को बढ़ावा देने पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है| देखभाल सेवाओं से जुड़े विषयों को भी अनदेखा किया जा रहा है जैसे कि एड्स का उपचार न मिल पाने की वजह से छोटी उम्र में मर जाने वाले लोगों के अनाथ बच्चों की देखभाल कर रहे उनके दादा-दादी या नाना-नानी की सहायता नहीं की जाती| इस तरह यह ज़रूरी है कि अनेक तरह के विषयों पर एक समान और संतुलित रूप से ध्यान दिया जाए| या यों कहें कि एचआईवी/एड्स के साथ यौन व प्रजनन स्वास्थ्य के गहरे संबंध को भी हमें समझने की ज़रूरत है|


यह लेख क्रिया संस्था की वार्षिक पत्रिका एचआईवी/एड्स और मानवाधिकार : एक विमर्श (अंक 4, 2009) से प्रेरित है| इसका मूल लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें|

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तस्वीर साभार : singleandlivingfab

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