समाजराजनीति चुनावी मौसम में उनलोगों की बात जो इसबार मतदान नहीं कर पायेंगें

चुनावी मौसम में उनलोगों की बात जो इसबार मतदान नहीं कर पायेंगें

बेघर और वंचित तबकों मतदान के अधिकार से दूर होना न केवल शासन की बल्कि हमारे समाज, देश और विचारधारा की विफलता को दिखाता है|

किसी भी लोकतांत्रिक देश में मतदान किसी महापर्व से कम नहीं होता है| इन दिनों हमारा भारत देश भी इस महापर्व को धूमधाम से मनाने के लिए तैयार है| कई जगह इस महापर्व का आयोजन ज़ारी है तो कई जगहों पर बाकी है|

इस साल भारत देश में करीब 90 करोड़ लोग मतदान करेंगें| लेकिन देश के वो लोग जो बेघर है और जिनकी संख्या करीब 4 करोड़ है, वे मतदान के इस अधिकार से वंचित रह जायेगें| इसका प्रमुख कारण है बेघर लोगों के पास मतदाता पहचान पत्र का न होना| हाल ही में महिला मानवाधिकार समूह ने कहा कि भारत में इस साल जरूरी पहचान पत्रों की अनुपलब्धता की वजह से लाखों महिलाएं चुनाव ने अपना मत नहीं दे पाएंगीं|  

हम जब भी लोकतन्त्र कहते हैं तो इसमें लोगों को केंद्र में रखकर लोगों से और लोगों का शासन की बात होती है, लेकिन ऐसे में जब हम समाज में बेघर और वंचित तबकों को किन्हीं कारणों से अपना शासन बनाने की प्रक्रिया में शामिल नहीं कर पाते है तो ये न केवल शासन की बल्कि हमारे समाज, देश और विचारधारा की विफलता को दिखाता है|

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गौरतलब है कि हमारा देश वही देश है, जहाँ आज भी आमतौर पर राजनीति को बुरी नज़रों से देखा जाता है| इसके चलते कोई भी मध्यमवर्गीय युवा राजनीति के क्षेत्र को अपने करियर के रूप में नहीं देखता| अब अगर हम आमजन से ये जानने की कोशिश करें कि आखिर किन आधारों पर वे भारतीय लोकतंत्र की राजनीति को अच्छा नहीं मानते है तो हमें ढ़ेरों जवाब मिलेंगें और जब हम इन जवाबों का विश्लेषण करें तो यही पायेंगें कि राजनीति को बुरी नज़र से इसलिए देखा जाता है क्योंकि आमजन का मानना है कि सत्ता में एकबार काबिज होने के बाद सत्ताधारी अपनी सत्ता को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहता है और इसके लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार होता है| फिर वो अपने भ्रष्टाचार की वजह से हो या फिर वोट पाने के लिए ढ़ेरों अनैतिक पैतरों का इस्तेमाल करने की वजह से हो|  

लोकतांत्रिक देश में मतदान किसी महापर्व से कम नहीं होता है|

ऐसे में ये सवाल हमेशा मन में कौंधता है कि जब हर राजनीतिक पार्टी अपना वोट बैंक बनाने, बढ़ाने और बनाये रखने के लिए जब इतने धन-बल का इस्तेमाल करते हैं तो आखिर क्यों समाज के बेघर और वंचित तबकों को मतदान का अधिकार पाने में उनकी मदद नहीं करते है|

इस साल चुनाव के लिए दिल्ली चुनाव आयोग का उद्देश्य है कि कोई भी मतदाता इस बार मतदान के अधिकार से वंचित नहीं रहेगा| लेकिन बेघर और आश्रय घर में रहने वाले लोगों के मतदाता पहचान पत्र बनवाने और उपलब्ध करवाने के लिए कोई प्रभावी योजना को उजागर नहीं किया गया है| शहरी अधिकार मंच नामक एक वकील समूह के अशोक पांडेय ने बताया कि साल 2014 में राजधानी दिल्ली में 10,000 से अधिक बेघर लोगों को इससे मतदाता पहचान पत्र मिल सका| लेकिन अभी भी करीब 3,000 बेघर लोग इससे वंचित रह गये है|

बेघर और वंचित तबकों मतदान के अधिकार से दूर होना न केवल शासन की बल्कि हमारे समाज, देश और विचारधारा की विफलता को दिखाता है|

ये सीधेतौर हमारे समाज की उदासीनता को दिखाता है, खासकर समाज के वंचित तबकों से के संदर्भ में जो किन्हीं मायनों में मुख्यधारा में नहीं है और उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के प्रति ये उदासीनता सिर्फ और सिर्फ हमारे समाज की है, क्योंकि सरकारें भी हमारे समाज से बनती है और उदासीनता का ये आलम कहीं से भी लोकतंत्र की मजबूत बुनियाद को नहीं दिखाता|

उल्लेखनीय है कि एक लोकतांत्रिक देश में लोगों के माध्यम से जो भी सरकार चुनी जाती है, वहीं आगामी सालों के लिए समाज के विकास की दिशा और दशा निर्धारित करते है| इसलिए इस चुनावी मौसम में ज़रूरी है कि मतदान से जुड़े इन अहम मुद्दों को भी न केवल उजागर किया जाए, बल्कि इसपर काम होने की अपेक्षा भी आगामी सरकार से की जाए|

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स्रोत : straitstimes


तस्वीर साभार : davidmcelroy

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