इंटरसेक्शनलजेंडर अब महिलाओं को राजनीति करनी पड़ेगी

अब महिलाओं को राजनीति करनी पड़ेगी

राष्ट्र में सही मायने में लैंगिक-समानता के लिए, महिलाओं को अपने राजनीतिक अधिकारों के बारे में जागरूक होना पड़ेगा और चुनावी राजनीति में भाग लेना पड़ेगा |

साल 2019 के चुनाव में मतदान सूची से करीब 2.1 करोड़ महिला मतदाता गायब है| फिर भी ये चुनाव एक “मूक क्रांति” से कम नहीं है क्योंकि पहली बार महिला मतदाता पुरुष की तुलना में अधिक हो सकती है। पिछले कई राज्यों के चुनावों में यह देखा गया है कि महिलाओं का मतदाता अनुपात या तो पुरुषों के मुकाबले बराबर था या अधिक रहा है।

ऐतिहासिक रूप से, महिलाओं के राजनैतिक हक़ों की लड़ाई लंबी और कठिन रही है| खासकर पश्चिमी राष्ट्र की महिलाओं के लिए| अपने राजनीतिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए भारत में महिलाओं को साल 1947 में स्वतंत्रता और 1साल 950 में संविधान के गठन के बाद पुरुषों के साथ ही वयस्क मताधिकार मिला।

महिलाएं बदलाव के लिए ज्यादा वोट देती हैं।

भारतीय महिला मतदाताओं की वर्तमान स्थिति और उनकी आकांक्षाएं विशेष रूप से पुरुषों की तुलना में एक भिन्नता को दर्शाती हैं। जहां पुरुष जाति, क्षेत्र, धर्म, भाषा आदि के आसपास पहचान के लिए अधिक वोट देते हैं| वहीं महिलाएं बदलाव के लिए ज्यादा वोट देती हैं। स्वयं, बच्चों और समुदाय के लिए चिंता के मामले उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य, पीने के पानी की पहुंच, स्वच्छता जैसे मुद्दे उनके मतदान के लिए अहम हैं। इससे अधिक पार्टियां महिलाओं को अपने वोट बैंक के रूप में प्राथमिकता देती हैं और उनकी चिंताओं के प्रति अधिक प्रावधान घोषणापत्र में  प्रस्थापित करते हैं।

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युवा महिला मतदाताओं में शिक्षा और मीडिया की पहुंच के कारण उनके राजनीतिक अधिकारों और चिंताओं को दूर करने के बारे में अब विश्वास बढ़ रहा है। करीब 60 फीसद से अधिक लोगों का यह भी मानना है कि महिलाओं को चुनाव लड़ना चाहिए। आज हम अधिक महिला सरपंच गांवों में देखते हैं और साल 2019 के चुनावों में टीएमसी, बीजेडी और एनटीके जैसे दलों ने 33 फीसद , 41 फीसद से 50 फीसद महिलाओं को उम्मीदवारी दी है। अधिक ट्रांसजेंडर उम्मीदवार पहले की तुलना में चुनाव लड़ रहे हैं| हालांकि यह संख्या अभी भी नगण्य है।

दम-दम डेमोक्रेसी से प्राजक्ता देशमुख की रिपोर्ट

हम राजनीति में महिलाओं की बढ़ती पर कहीं न कहीं आज भी कम भागीदारी को नजरअंदाज नहीं कर सकते। भारत के निचले सदनों में महिलाओं के मामले में दुनिया के सबसे गरीब देशों में शुमार है, जो आजादी के 70 साल बाद भी 12 फीसद  ही है। यहां तक की पड़ोसी चीन और पाकिस्तान के साथ तुलना में भी हम काफी पीछे रह गए हैं | राजनीति अत्यधिक पितृसत्तात्मक होने के कारण, आज भी एक पुरुष गढ़ है, जो बेहद मजबूत है| इसके चलते इसके जीतने की क्षमता के मुद्दे पर महिलाओं का चयन नहीं करती है|  जबकि शोध से यह साबित होता है कि अधिक लोग महिला उम्मीदवार को वोट देना चाहते हैं|

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इसलिए राष्ट्र में सही मायने में लैंगिक-समानता के लिए, महिलाओं को अपने राजनीतिक अधिकारों के बारे में जागरूक होना पड़ेगा, चर्चाओं में शामिल होना पड़ेगा , चुनावी राजनीति में भाग लेना पड़ेगा | सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड, गैर-सांप्रदायिक, गैर-भ्रष्ट और गैर-लिंगभेद कार्यों के साथ सही उम्मीदवारों के लिए मतदान करना  पड़ेगा।


प्राजक्ता देशमुख की रुचि वीडियो बनाने, विरोध संगीत गाने, अमेरिकी 60 के दशक के “काउंटर कल्चर” पर शोध करने में है! वह वर्तमान में “हक़दर्शक” नामक एक सामाजिक उद्यम में काम करती हैं | अपने यूट्यूब चैनल “डम डम डेमोक्रेसी” के साथ चुनावी राजनीति से परे जाकर देखना चाहती हैं कि लिंग, कला, सामाजिक मनोविज्ञान, अलग विचारधाराएं इत्यादि की राजनीति हमारे रोजमर्रा के जीवन से कैसे अभिन्न जुडी हुई है।

तस्वीर साभार : India Spend

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