इंटरसेक्शनल गर्भनिरोध के ऐसे तरीके, जिनसे आप हैं बेखबर

गर्भनिरोध के ऐसे तरीके, जिनसे आप हैं बेखबर

ऐसे बहुत से अन्य गर्भनिरोधक तरीके हैं, जिनके बारे में शहरी क्षेत्रों में भी जागरूकता सीमित है। आइए जानते हैं कि बर्थ कंट्रोल के अन्य तरीके क्या हैं|

देश में बढ़ती आबादी एक गंभीर और चिंताजनक स्थिति है। ऐसे में गर्भनिरोधक तरीकों की जानकारी होना हम सब के लिए ज़रूरी है। पर शर्म और मिथकों की वजह से हम इस विषय में मात खा जाते हैं। हालांकि धीरे-धीरे लोग इस बारे में चर्चा कर रहे हैं और परिस्थितियों में सुधार भी होता दिखाई दे रहा है, पर अभी भी ये बेहद सीमित है। आंकड़ों की बात करें तो भारत में बर्थ कंट्रोल के सबसे सार्वजनिक उपाय नसबंदी, कॉन्डम और गर्भनिरोधक गोलियां हैं। लेकिन हमारे विकल्प केवल यहीं तक सीमित नहीं है। ऐसे बहुत से अन्य गर्भनिरोधक तरीके हैं, जिनके बारे में शहरी क्षेत्रों में भी जागरूकता सीमित है। आइए जानते हैं कि बर्थ कंट्रोल के अन्य तरीके क्या हैं|:

1. बर्थ कंट्रोल के बैरियर मेथड (बाधा विधि)

(क) बाहरी कॉन्डम : यह लेटेक्स या पॉलीयूरिथेन से बना हुआ पुरुष गर्भनिरोधक है। बर्थ कंट्रोल के साथ- साथ कॉन्डम यौन संचारित रोगों (जैसे एचआईवी/एड्स) से भी हमें सुरक्षित रखता है। यह भारत में सरकार द्वारा भी निरोध के नाम से उपलब्ध करवाया जाता है।

(ख) आंतरिक कॉन्डम : “फीमेल कॉन्डम” के नाम से मशहूर यह गर्भनिरोधक स्त्रियों की योनि में बैठाया जाता है। यह पूरी तरह बाहरी कॉन्डम जैसे ही काम करता है। स्पर्म को कॉन्डम के अंदर रखता है और उसे यूट्रस के अंदर जाने से रोकता है। इसी के साथ यौन संचारित रोगों से भी बचाव करता है ।

(ग) डायाफ्राम : डायाफ्राम लेटेक्स या सिलिकॉन से बना हुआ एक लचीली रिम वाला कप होता है जो अलग-अलग आकारों में आता है। इसे चिकित्सकों की सलाह लेकर योनि के अंदर फिट किया जाता है ताकि अंडे फ़र्टिलाइज़ ना हो सके। डायाफ्राम के साथ स्पर्मिसाइड (शंक्राणु नाषक) जेल का उपयोग किया जाता है जिसे कप के अंदर भरा जाता है। सेक्स के बाद डायाफ्राम को कम से कम 6 घंटों तक योनि के भीतर ही रखा जाना चाहिए।

(घ) वजाइनल रिंग : यह एक छोटी, मुलायम, प्लास्टिक की रिंग होती है जिसे योनि के अंदर रखा जाता है। वजाइनल रिंग एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टोजेन जैसे हारमोंस को लगातार रक्त में मिलाती है जिससे गर्भावस्था को रोकने में मदद मिलती है।

2. इंट्रायूटरिन डिवाइस (आई यू डी)

आई यू डी ‘T’ के आकार का प्लास्टिक से निर्मित अंतर्गर्भाशयी उपकरण होता है जिसे गर्भ में डाला जाता है। यह लंबे समय तक चलने वाला गर्भनिरोध है। आई यू डी को आसानी से हटाया जा सकता है क्योंकि यह स्थाई गर्भनिरोधक नहीं है। यह कॉपर और हार्मोनल दोनों प्रकार के होते हैं और तीन साल से बारह साल तक इस्तेमाल किए जा सकते हैं। पर ध्यान दें कि आई यू डी यौन संक्रामक रोगों से सुरक्षा प्रदान नहीं करते।

3. गर्भनिरोधक गोलियां

गर्भनिरोधक गोलियां दो प्रकार की होती हैं। पहली होती है संयुक्त गोली। इसमें एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टोजेन हार्मोन होते हैं और इसका सेवन दिन में एक बार किया जाता है। दूसरी होती है वह गोली जिसमें केवल प्रोजेस्टोजेन हार्मोन होता है और इसका सेवन भी दिन में एक बार किया जाता है। गर्भनिरोधक गोलियां काफी प्रभावशील होती है और यह मासिकधर्म से होने वाले दर्द, मुंहासे व एनीमिया की परिस्थितियों में भी सुधार लाती हैं।

4. इमरजेंसी गर्भनिरोधक गोलियां

इन आपातकालीन गोलियों में प्रोजेस्टिन लेवोनोरगेस्ट्रिल हार्मोन होता है जो कि एक सिंथेटिक हार्मोन है। चिकित्सकों की माने तो यह गोली असुरक्षित यौन संबंध होने पर 72 घंटों के भीतर ले लेनी चाहिए। पर यह नियमित सेवन करने के लिए नहीं है। चूंकि इसमें मिला हार्मोन सिंथेटिक होता है, इसलिए यह शरीर पर दुष्प्रभावी हो सकता है। इनपर पूरी तरह भरोसा करना भी उचित नहीं है।

आंकड़ों की बात करें तो भारत में बर्थ कंट्रोल के सबसे सार्वजनिक उपाय नसबंदी, कॉन्डम और गर्भनिरोधक गोलियां हैं।

5. पुरुष नसबंदी

पुरुष नसबंदी को अंग्रेज़ी में वैसेक्टॉमी कहा जाता है। इसका अर्थ होता है वह ऑपरेशन जिसमें पुरुषों की उस ट्यूब को काट दिया जाता है, जो स्पर्म को वृषण से लिंग तक पहुंचाता है। इस प्रक्रिया के बाद सेक्स पर कोई भी असर नहीं पड़ता। पुरुष वीर्यपात (ejaculation) कर सकते हैं; केवल स्पर्म का निकलना बंद हो जाता है जिससे महिला गर्भवती नहीं हो सकती। यह उपाय स्थाई है, यानी कि इसे बदला नहीं जा सकता।

6. महिला नसबंदी

महिला नसबंदी को अंग्रेजी में ट्यूबेक्टॉमी या ट्यूबल लिगेशन कहा जाता है। गर्भनिरोध का यह उपाय स्थाई है। इसके ऑपरेशन में फैलोपियन ट्यूब को अवरुद्ध कर दिया जाता है। इससे अंडे गर्भ तक नहीं पहुंचते और महिला गर्भवती नहीं होती। एनएफएचएस 4 की रिपोर्ट अनुसार भारत में महिला नसबंदी देश का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला गर्भनिरोधक तरीका है।

और पढ़ें : एचआईवी/एड्स से सुरक्षा और गर्भावस्था

7. गर्भनिरोधक इंजेक्शन

यह इंजेक्शन अकेले प्रोजेस्टोजेन या फिर प्रोजेस्टोजेन और एस्ट्रोजन हार्मोन के साथ लगाया जाता है। इसे एक महीने में या फिर तीन महीने में एक बार डॉक्टर की सलाह पर लगवाना पड़ता है। यह गर्भनिरोधक गोलियों की तरह ही काम करता है। इसका असर आठ से तेरह सप्ताह तक बना रहता है। गर्भनिरोधक इंजेक्शन भी तीन प्रकार के होते हैं, जिसपर आप अपने चिकित्सक से विचार-विमर्श कर सकते हैं।

8. गर्भनिरोधक इंप्लांट

गर्भनिरोधक इंप्लांट (प्रत्यारोपण) छोटी और पतली प्लास्टिक से बनी रॉड होती है, जिसे महिला की बाँह की अंदरूनी त्वचा में फिट किया जाता है। इसमें ईटोनोगेस्ट्रेल हार्मोन होता है जो धीरे-धीरे रक्त में मिलता जाता है। यह अधिकतर 4 साल तक के लिए गर्भावस्था से सुरक्षा प्रदान करता है और ज़्यादा प्रभावशाली होता है।

9. गर्भनिरोधक पैच

गर्भनिरोधक पैच को महिलाएं अपने पेट, पीठ, बाँह और कूल्हे पर लगा सकती हैं। इसमें एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोजेन हार्मोन होते हैं जो अंडों को अंडाशय से बाहर नहीं निकलने देते। तीन सप्ताह के लिए हर हफ्ते एक नया पैच लगाना होता है। यह तरीका काफी प्रभावशाली है।

10. बर्थ कंट्रोल के प्राकृतिक तरीके

(क) प्रजनन जागरूकता विधि (रिदम मेथड) 

प्रजनन जागरूकता विधि को अंग्रेजी में फर्टिलिटी अवेयरनेस मेथड कहते हैं। जब आप मासिकधर्म का अनुमान लगाती हैं जिससे आपको यह पता चलता है कि आपकी ओव्यूलेशन के दिन कौन से होंगे, तब उसे रिदम मेथड कहा जाता है। यह उपाय अधिक प्रभावशाली नहीं होता है क्योंकि स्त्रियों में माहवारी अनियमित हो सकती है।

(ख) विद्ड्रॉअल मेथड ( पुल आउट मेथड)

यह ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सेक्स के दौरान पुरुष योनि के अंदर वीर्यपात नहीं करता और समय से पहले ही अपने लिंग को बाहर निकाल लेता है। हालांकि गर्भनिरोध का यह तरीका आम जिंदगी में उतना प्रभावशाली नहीं हो सकता। और ऐसी परिस्थिति से बचना ही उचित है।

(ग) स्तनपान

जन्म नियंत्रण का यह तरीका बच्चे के जन्म के बाद ही अपनाया जा सकता है। जब एक महिला बच्चे को अधिक रूप से स्तनपान करवाती है, तब उसका शरीर अंडों का निर्माण करना बंद कर देता है। इस दौरान सेक्स करने पर अधिकतर महिलाएं गर्भवती नहीं होती हैं।

और पढ़ें : सुरक्षित गर्भावस्था की चुनौतियाँ


तस्वीर साभार : naukrinama

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