स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य महिलाओं का पीसीओएस की समस्या को अनदेखा करना ख़तरनाक है

महिलाओं का पीसीओएस की समस्या को अनदेखा करना ख़तरनाक है

पॉलीसिस्टिक ओवरियन सिंड्रोम (पीसीओएस), महिलाओं में होने वाला ऐसा हॉर्मोनल असंतुलन है जो एक ज़माने में असाधारण हुआ करता था पर अब आम हो गया है।

पॉलीसिस्टिक ओवरियन सिंड्रोम (पीसीओएस), महिलाओं में होने वाला ऐसा हॉर्मोनल असंतुलन है जो एक ज़माने में असाधारण हुआ करता था पर अब आम हो गया है। आंकड़े देखे जाएं तो भारत में हर पाँच में से एक वयस्क महिला और हर पाँच में से दो किशोरियाँ पीसीओएस की चपेट में हैं। वहीं वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (डब्लूएचओ) की माने तो विश्व की 11.6 करोड़ औरतें इससे प्रभावित हैं। पीसीओएस एक ऐसी समस्या है जिसमें महिलाओं के अंडाशय में छोटे या बड़े अल्सर (सिस्ट) बनने लगते हैं। इसी के साथ ही उनके शरीर में एंड्रोजन (पुरुष हॉर्मोन) की मात्रा भी बढ़ जाती है। इस सिंड्रोम को ठीक होने में सालों भी लग सकते हैं और यह जीवनभर भी चल सकता है। इससे पिरीयड अनियमित होने से लेकर गर्भधारण ना कर पाने तक की परेशानी झेलनी पड़ सकती हैं।

शारीरिक रूप से पीसीओएस के प्रमुख सार्वजनिक लक्षण हैं माहवारी की अनियमितता, मोटापा, मुहांसे, अवांछित बाल, तैलीय त्वचा व बाल पतले होना। हालांकि इन सभी की बात हर कोई करता है। लेकिन जो लक्षण मानसिक व भावनात्मक रूप से सामने आते हैं, उन्हें कई बार चिकित्सकों द्वारा भी अनदेखा कर दिया जाता है। पीसीओएस के दो सबसे बड़े लक्षण हैं- अवसाद और मूड स्विंग “पीसीओएस वास्तव में मेरे मूड को प्रभावित करता है और मुझे बहुत उदास महसूस करवाता है। चूंकि मुझे माहवारी अक्सर कम होती है और अनियमित रूप से होती है, मेरे हॉर्मोन आमतौर पर उथल-पुथल रहते हैं। पीसीओएस के साथ रहने का मेरा अनुभव बहुत ही अजीब है। यह समस्या बहुत से लोगों के लिए बिल्कुल अज्ञात है और यही इसके बारे में सबसे कठिन बात है।”  यह कहना है 20 वर्षीय मान्या सुराना का जो लगातार इलाज करने के बाद भी पीसीओएस से जूझ रही हैं।

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सामाजिक परिवेश में वैसे ही महिलाओं की शारीरिक संरचना को एक रूढ़िवादी नज़रिये से देखा जाता है। ऊपर से जब पीसीओएस जैसे विकार दैनिक जीवन में बाधा डालने लग जाएं तब इस जद्दोजहद से निकलना और भी मुश्किल हो जाता है। मोटापा या वज़न बढ़ना, पीसीओएस का एक ऐसा लक्षण है जो आपके लिए शारीरिक प्रताड़ना से ज़्यादा मानसिक प्रताड़ना बन सकता है। पीसीओएस से जूझ रही महिलाओं को यह ख्याल रखना पड़ता है कि उनका वज़न हमेशा कण्ट्रोल में रहे। उन्हें शारीरिक व्यायाम और खानपान पर ध्यान देने की सलाह दी जाती है। हाँ यह हमारे जीवन के लिए एक अच्छी आदत है लेकिन लोगों पर इसका उल्टा असर भी पड़ सकता है। कुछ महिलाएं वज़न घटाने के चक्कर में ठीक से खाना-पीना ही छोड़ देती हैं जिससे उनकी परेशानी बढ़ने की सम्भावना होती है। कुछ मामलों में यह भी पाया गया है कि अचानक होने वाले मोटापे से महिलाओं का आत्मविश्वास कमज़ोर पड़ जाता है जिससे उनमें अवसाद पैदा होने लगता है।

पीसीओएस एक ऐसी समस्या है जिसमें महिलाओं के अंडाशय में छोटे या बड़े अल्सर (सिस्ट) बनने लगते हैं।

“मुझे शुरू से ही पीरियड अनियमित होने की शिकायत रही है। मुझे महीनों पीरियड नहीं आता और जब आता है तो रुकता नहीं। मैंने बहुत से चिकित्सक बदले हैं और अपना इलाज करवाया है। चूंकि मेरा हीमोग्लोबिन बचपन से ही कम था, हर किसी ने मुझे यह बताते हुए दवाइयां दी। यह पूरी स्कूल लाइफ चला। जब मैं कॉलेज में पहुँची तो मैंने किसी दूसरे डॉक्टर से अपना इलाज करवाया। तब उन्होंने सोनोग्राफी कर मुझे पीसीओएस के बारे में बताया और मेरी सही दवाइयाँ शुरू हुईं। डॉक्टर ने मुझे वज़न और खान-पान का ख्याल रखने की सलाह भी दी गयी। पर अब भी हालत यह है कि मुझे 10-12 महीने में फिर से क्लिनिक जाना ही पड़ता है।”  यह पता चला 20 वर्षीय मोनिका सामद से जो पिछले 9 साल से पीसीओएस की शिकार हैं।

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पीसीओएस के बारे में पहली बार साल 1935  में अमेरिकन स्त्री रोग विशषज्ञ इर्विंग स्टीन और माइकल लेवेंथल ने बताया था। पर इसके पीछे का असली कारण अभी तक मेडिकल साइंस नहीं बता पाया है। यह एक ऐसा विकार है जिसे लोग चिंता, जंक फूड और जेनेटिक्स जैसी हज़ार वजहों से जोड़ते हैं पर उनमें से एक भी वजह ठोस नहीं है। समूएल थैचर ने अपनी किताब ‘पीसीओएस : द हिडन एपिडेमिक’ में पीसीओएस का विवरण कुछ इस प्रकार किया – “इस सिंड्रोम के कारणों, निदान, लक्षण या उपचार, कुछ भी अच्छी तरह से परिभाषित नहीं है।” यही वजह है कि महिलाएं चिकित्सकों के पास जाकर इसका इलाज करवाने से परहेज़ करती हैं। बहुत सी महिलाओं का ऐसा मानना है कि वे घरेलू उपचार करके पीसीओएस से निपट लेंगी, लेकिन क्या यह तरीका पूरी तरह काम करेगा? 

पीसीओएस के बारे में पहली बार साल 1935  में अमेरिकन स्त्री रोग विशषज्ञ इर्विंग स्टीन और माइकल लेवेंथल ने बताया था।

“मैं पीसीओएस के बारे में कुछ नहीं कह सकती क्योंकि इसकी संभावना डॉक्टर ही बता सकता है। केवल कुछ लक्षणों को देखकर घर बैठे यह मान लेना कि मुझे पीसीओएस है, यह सरासर गलत है। इससे आपकी शारीरिक और मानसिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। सही वक़्त पर सही डॉक्टर से सही इलाज करवाना बहुत ज़रूरी है। हाँ मुझे भी कभी-कभी लगता है कि मैं पीसीओएस से पीड़ित हूँ पर मैं जल्द ही इसकी जाँच एक अच्छे चिकित्सालय से करवाउंगी।” यह कहना है 23 वर्षीय दीक्षा कटारे का जो एक मेडिकल स्टूडेंट रहीं हैं।

पीसीओएस का दुष्प्रभाव प्रजनन स्वास्थ्य पर भी होता है। इस परिस्थिति में एस्ट्रोजन हॉर्मोन के अधिक उत्पादन होने से ओवुलेशन की प्रक्रिया में बाधा आती है। चूंकि ओवुलेशन सही से नहीं होता तो पीरियड अनियमित होता है जिससे बाकि परेशानियां होती हैं। ऐसे बहुत से मामले सामने आये हैं जिसमें महिला गर्भधारण नहीं कर सकी क्योंकि वह पीसीओएस से पीड़ित है। हालांकि ऐसा करना असंभव नहीं है। सही उपचार और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से केवल प्रजनन स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि पीसीओएस की समस्या जड़ से नष्ट हो सकती है। ज़रूरी है तो बस एक अच्छे स्त्री रोग विशेषज्ञ की, जिनसे आप खुलकर अपनी परेशानी बता पायें। और वे शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक हर तरह से आपके इलाज में सहायक हों।

Also read in English: PCOS And Women: What We Need To Know


तस्वीर साभार : research.bayer

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