इंटरसेक्शनल नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ विदेशों में भी विरोध

नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ विदेशों में भी विरोध

राष्ट्र में हर तरफ सीएए व एनआरसी के विरोध में प्रदर्शन चल रहे हैं। प्रदर्शनों की यही लहर भारत की सीमा के पार अंतरराष्ट्रीय फलक पर भी देखने को मिल रही है।

भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम, एक आपदा की तरह आया, जिससे भारतीय नागरिकों के जीवन की नींव पर गहरी चोट लगी। इसके साथ ही गृहमंत्री अमित शाह ने एनआरसी को पूरे देशभर में लागू किए जाने के दावों पर भी देश का माहौल गर्म है। राष्ट्र में हर तरफ सीएए व एनआरसी के विरोध में प्रदर्शन और आंदोलन चल रहे हैं। प्रदर्शनों और आंदोलनों की यही लहर भारत की सीमा के पार अंतरराष्ट्रीय फलक पर भी देखने को मिल रही है। विदेशो में रहने वाले भारतीय नागरिक इस अधिनियम को गैर- लोकतांत्रिक और असंवैधानिक मानते है।

विदेशों में फैलता विरोध

बर्फ से ढकी बॉस्टन की सड़कों पर 300 लोगों ने हॉवर्ड विश्वविद्यालय के विज्ञान केंद्र के बाहर एक‌‌त्रित होकर सामूहिक रूप से सीएए और भारत में पुलिस की तरफ़ से की जा रही हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन किया। सभी लोगों ने भारतीय संविधान के प्रमुख गद्य पढ़कर और हम देखेंगे  जैसे गाने गाकर अपना विरोध व्यक्त किया।

इन लोगों का कहना है कि सीएए को लागू करना लोकतंत्र की धर्म-निरपेक्षता से खिलवाड़ करना है। प्रदर्शनकारियों में से शादाब रूहा नामक एक चिकित्सक का कहना था कि, ‘प्रदर्शन करने के लिए अगर आज हम यहां किसी वजह से आए हैं, तो वो वजह भारत के लिए हमारा प्यार है। वो सभी बातें जिनको लेकर हम भारत के प्रति गर्व महसूस करतें हैं, उनमें से प्रमुख है हमारे देश का स्वतंत्रता संघर्ष और हमारे राष्ट्र की नींव रखने वाले लोगों के निर्णय,जो उन्होंने साल 1947 में लिए थे। भारत का संविधान और उसके मूल्य हमारा गौरव है। और अगर कोई उनको चुनौती देने की कोशिश करेगा तो हम लोग इसी तरह -4 डिग्री सेल्सियस में सड़कों पर उतर कर विरोध करेंगे।’

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हॉवर्ड विश्वविद्यालय के ही एक अन्य विद्यार्थी रोहन संधू ने ट्वीट किया,’शिक्षा कुछ भी नहीं, अगर वो सक्रिय नागरिकता से संबंधित न हो।’ इसी तरह के विरोध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बर्लिन, न्यूयॉर्क, वॉशिंगटन डीसी, लंदन, हेग और टोरंटो में भी छात्रों की तरफ़ से आयोजित किए जा रहें हैं।

जिस तरह का व्यवहार जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ पुलिस ने किया, उसकी कड़ी निंदा हो रही है। विदेशी छात्रों का जामिया और अलीगढ़ विश्वविदयालय के विद्यर्थियों के समर्थन में कहना है कि उनके साथ किया जाने वाला हिंसक बर्ताव मानवाधिकारों के खिलाफ है। 19 विश्वविद्यालयों, जिनमें हॉवर्ड, येल, कोलंबिया, स्टैनफोर्ड और टफ्ट्स शामिल हैं, वहां के 400 छात्र- छात्राओं ने एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने जामिया और अलीगढ़ के विद्यार्थियों के मानवाधिकारों और भारतीय संविधान को बचाने की पैरवी की। इसी प्रकार के विरोध के स्वर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से भी गूंजे। यह साफ है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लोग भारत में चलाई जाने वाली असंवैधानिक नीतियों को लेकर जागरूक हैं। जिस तरह देश के अंदर होने वाले प्रदर्शनों में युवा विद्यार्थियों का योगदान सर्वोपरि है, उसी तरह विदेशो में भी इन विरोधो का नेतृत्व करने वाले युवा विद्यार्थी ही हैं।

जेकब लिंदेंथल की कहानी

जेकब लिंदेंथल, आईआईटी मद्रास के एक्सचेंज प्रोग्राम का छात्र था। जेकब ने कैंपस में चल रहे सीएए के विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया। उसने अपने हाथ में एक पोस्टर पकड़ा हुआ था, जिसपर लिखा था,’ साल 1933-1945 हम वहां रह चुकें हैं।’

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रहे आंदोलनों की भी यही मांग है कि भारत की अंखंडता, धर्म – निरपेक्षता और एकता सदा बनी रहे।

प्रदर्शन का एक सक्रिय हिस्सा बनने के कारण लिंदेंथल को ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन ऑफिशियल की तरफ से सोमवार के दिन भारत छोड़ कर जाने का आदेश आ गया। कुछ सूत्रों के मुताबिक यह पता लगा कि उसे लिखित रूप से कोई जानकारी नहीं दी गई थी, बल्कि केवल मौखिक रूप से ही यह बताया गया कि उसने अपने वीज़ा नियमों का उल्लघंन किया है। बीओआई के अनुसार जेकब को बुलाकर उससे भारतीय राजनीति और सीएए को लेकर कई प्रकार के सवाल किए गए। उसे देश छोड़कर जाने के लिए कहा और साथ ही बताया कि अगर वो दोबारा भारत आना चाहता है तो उसे पुनः अपील करनी पड़ेगी। जेकब को अंततः देश छोड़कर जाना पड़ा।

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इतना विरोध आखिर क्यों?

सीएए के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में रहने वाले  गैर- मुस्लिम लोग, जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर 2014 की तारीख तक भारत में प्रवेश कर चुके थे, उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी। लोगों को लगता है कि यह अधिनियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लघंन करता है। इस्लामिक लोगों को सीएए से बाहर रखकर धर्म निरपेक्षता का खंडन किया जा रहा है और सबसे बड़ी समस्या तो तब आती है जब देश के गृहमंत्री एनआरसी को भी पूरे देशभर में लागू करने की बात करतें हैं।

इन सभी असंवैधानिक फैसलों को रोकने के लिए देश और ‌विदेश में आंदोलन और प्रदर्शनों की लहर देखने के लिए मिली। पर सरकार ने इन विरोधो को भी कुचलने का भ्रसक प्रयास किया। जामिया और अलीगढ़ के छात्रों पर डंडे बरसाए गए। विद्यार्थियों को कैंपस के अंदर घुसकर मारा। जामिया के अंदर तो लड़कियों के साथ भी पुरुष पुलिस कर्मचारियों ने हिंसा की। इसके अलावा 48‌‌ घंटों तक की समय सीमा के लिए कई क्षेत्रों का इंटरनेट बन्द कर दिया।

वहीं असामाजिक तत्वों ने पूरे के पूरे शहरों को आग में झोंकने की कोशिश की। लोगों में ना केवल सीएए को लेकर भय हैं बल्कि मुस्लिम समाज इस बात को लेकर भी चिंतित है कि उनका प्रारब्ध क्या होगा? क्या वो भारतीय नागरिक बने रहेंगे या उन्हें डिटेंशन कैम्प में भेज दिया जाएगा? इन सभी बातों को लेकर विरोध के स्वर भारत के साथ-साथ विदेशो में भी फैल रहें हैं और लोगों का प्रदर्शन  करना सही भी जान पड़ता है। आखिर देश के संविधान को बचाने के लिए भी अगर आवाज़ नहीं उठाई जाएगी तो भारतीय होने का क्या औचित्य होगा?

कोई भी इंसान गैर कानूनी नहीं है!

इस बात का क्या स्पष्टीकरण दिया जा सकता है कि पुलिस को एक विश्वविद्यालय के कैंपस में हिंसा करनी पड़ी? या धर्म के आधार पर लोगो को बांटा जा रहा है? या अगर एनआरसी पूरे देश में आ गया तो सालो से देश में रह रहे लोगों को कागजों के आधार पर बाहर, किसी वस्तु की तरह, फेंक दिया जाएगा? या देश के संविधान की मूल भावना के साथ खिलवाड़ किया जाना ठीक है?

‘कोई भी इंसान गैर कानूनी नहीं है।’ यह विदेशों में चल रहे प्रदर्शन की एक मुख्य पंक्ति और विचारधारा है। हमें यह समझना ज़रूरी है कि मानव के जीवन को धर्मो और काग़ज़ों के आधार पर नहीं बांटा जा सकता। हम किसी का तिलक देखकर उसे देशभक्त या किसी की टोपी देखकर उसे देशद्रोही नहीं कह सकते। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रहे आंदोलनों की भी यही मांग है कि भारत की अंखंडता, धर्म – निरपेक्षता और एकता सदा बनी रहे।

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तस्वीर साभार : thequint

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