इंटरसेक्शनलधर्म होली के रंग में घुला ‘पितृसत्ता, राष्ट्रवाद और सांप्रदायिकता का कुंठित मेल’

होली के रंग में घुला ‘पितृसत्ता, राष्ट्रवाद और सांप्रदायिकता का कुंठित मेल’

होली के मौसम में महिलाओं की चोली, ब्लाउज़, लहंगे, दुपट्टे, साड़ी के आंचल में पुरुषवादी मानसिकता घुसने को बेचैन होती है, जिसका विरोध बेहद ज़रूरी है।

युद्ध हो या दंगे-फसाद हमने अक्सर देखा है कि ऐसे हालात में महिलाओं को सबसे अधिक निशाना बनाया जाता है। महिलाओं का ऐसे हालात में फंसना एक दुष्चक्र माना जाता है। पुरुषों को जहां एक तरफ मौत का डर सताता है वहीं महिलाओं को मारे जाने के साथ-साथ जिंदा रहने का भी खौफ सताता है। कॉक्स बाजार में तैरती रोहिंग्या मुसलमानों के बलात्कार की कहानी, युद्धग्रस्त सीरिया, यमन में महिलाओं की हालत, दिल्ली में हाल ही में हुए दंगों में महिलाओं की स्थिति ये सब उदाहरण हैं कि कैसे महिलाओं की जिंदगी हिंसा के दुष्चक्र में फंसकर बद्तर होती जाती है। हिंसा के हालात में जो वर्ग और समुदाय मजबूत होता है वह कमजोर पक्ष की संपत्ति के साथ-साथ महिलाओं पर भी अपना अधिकार समझता है। ऐसे हालात में महिलाओं के साथ यौन हिंसा का होना एक सामान्य बात मानी जाती है। होली पर मुस्लिम महिलाओं पर अधिकार के साथ जबरन रंग लगाने वाली विचारधारा इसी आधार पर फल-फूल रही है। होली जैसे त्योहार के मौके पर भारत की बहुसंख्यक मर्द आबादी अल्पसंख्यक आबादी की औरतों पर आधारित ऐसे संदेशों के जरिए अपने बहुसंख्यक होने की बात पर जोर देना चाहता है। 

होली और महिलाओं पर बनने वाले अश्लील गानों, होली के दौरान होने वाली यौन हिंसा, अभद्र टिप्पणियों का पुराना रिश्ता रहा है। सोशल मीडिया के दौर में आजकल होली के करीब आते-आते यौन कुंठा से भरे वॉट्सऐप फॉरवर्ड्स, फेसबुक और ट्विटर पर मीम्स की बाढ़ आ जाती है। होली के मौसम में महिलाओं की चोली, ब्लाउज़, लहंगे, दुपट्टे, साड़ी के आंचल में पुरुषवादी मानसिकता घुसने को बेचैन होती है। जो कुंठा पहले मुहजुबानी जाहिर की जाती थी अब उसका डिजिटल रूप हमारे सामने है। गुझिया, रंग गुलाल, पिचकारियां सिर्फ पांचवी क्लास के बच्चों के निबंध तक सीमित रह जाती है। 

महिलाओं के खिलाफ कुंठा तो साल भर जाहिर होती ही रहती है लेकिन होली के दौरान अब महिलाओं के खिलाफ जाहिर होने वाली यौन कुंठा ने घोर सांप्रदायिक रूप ले लिया है। कई संदेशों में मुसलमान समुदाय की महिलाओं के खिलाफ जो जहर उगला जा रहा है वह दिखाता है कि बतौर समाज हम कितने सड़ चुके हैं। महिलाओं पर केंद्रित होली के अश्लील गानों से शुरू हुआ सफर अब रेप की धमकियों वाले मेसेज तक पहुंच चुका है। उदाहरण के तौर पर इन दिनों ट्विटर पर एक वीडियो काफी वायरल हो रहा है। इस वीडियो में एक शख्स एक मुस्लिम महिला को जबरदस्ती रंग लगाता दिख रहा है। वीडियो में दिख रही महिला ने बुर्का पहन रखा और वीडियो के साथ मेसेज वायरल हो रहा है- इस होली रंग दो हर बुर्के वाली की चोली

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ट्विटर पर हर दिन हज़ारों ऐसे ट्वीट्स किए जा रहे हैं जिनमें मुस्लिम महिलाओं को जबरन रंग लगाने के लिए उकसाया जा रहा है। इस ज़हरीले माहौल में ये एकता के संदेश ढकोसले नज़र आते हैं।  यह महज़ एक उदाहरण है होली के रंगों में घुले सांप्रदायिकता के रंग का सोशल मीडिया पर ऐसे मीम्स, तस्वीरों और वीडियो की भरमार है जहां हिंदू युवकों को मुस्लिम महिलाओं को रंग लगाते दिखाया गया है। आपकी नज़र में यह एक सामान्य बात हो सकती है क्योंकि हम उसी समाज में पले बढ़े हैं जहां होली औरतों को जबरन रंग लगाने का उत्सव माना जाने लगा है। सांप्रदायिकता और राष्ट्रवाद का साथ इस त्योहार में कुंठित पितृसत्ता को मिली नई कामयाबी है।

होली के मौसम में महिलाओं की चोली, ब्लाउज़, लहंगे, दुपट्टे, साड़ी के आंचल में पुरुषवादी मानसिकता घुसने को बेचैन होती है। जो कुंठा पहले मुहजुबानी जाहिर की जाती थी अब उसका डिजिटल रूप हमारे सामने है।

पिछले कुछ सालों में देश में सांप्रदायिकता की जड़ें गहरी हुई हैं। सत्ताधारी पार्टी बीजेपी सत्ता में आई तो विकास के वादों के साथ लेकिन अब इस पार्टी की नीतियां समाज में सांप्रदायिकता के भावना को और प्रबल करती जा रही है। सांप्रदायिकता का ये रंग पितृसत्ता के साथ मिलकर और ज़हरीला होता जा रहा है, जिसमें एक खास समुदाय से ताल्लुक रखने वाली महिलाओं पर अधिकार जमाने का संदेश दिया जा रहा है। मुस्लिम महिलाओं को रंग लगाती ये तस्वीरें और वीडियो में हंसते मर्द इस देश की बहुसंख्यक समुदाय की विचारधारा का अट्टाहस नजर आते हैं। ये पुरुषवादी विचारधारा दूसरे समुदाय की महिलाओं को जबरन रंग लगाने में अपनी विचारधारा की जीत के दंभ में जी रही है। इन तस्वीरों के बहाने ये बहुसंख्यक पुरुषवादी विचारधारा बलात्कार की मानसिकता को सींच रहे हैं, बढ़ावा दे रहे हैं। एक खास विचारधारा की आड़ में अपनी कुंठित मानसिकता का सामान्यीकरण कर रहे हैं।

याद कीजिए पिछले साल आया सर्फ एक्सेल का विज्ञापन जहां एक हिंदू बच्ची एक मुस्लिम बच्चे को रंगों से बचाती हुई मस्जिद ले जाती है। कितना ज़हर उगला गया था तब। अब इस संदेश को पलटकर देखते हैं। फर्ज कीजिए एक मुस्लिम युवक किसी हिंदू औरत को जबरन रंग लगाता दिखे। तब देश इसे लव जिहाद का नाम देगा, हां ये अलग बात है कि हाल ही में गृह मंत्रालय ने माना है कि लव जिहाद जैसा कोई केस सामने नहीं आया है। हालांकि गृह मंत्रालय ने ये नहीं माना कि लव जिहाद सिर्फ एक खास विचारधारा रखने वाले समूह की दकियानूसी सोच की उपज है। देश के मौजूदा माहौल में जहां टोपी पहने एक खून से सने एक मुस्लिम शख्स की पिटाई पर जनता अट्टाहस करे वहां ऐसे किसी संदेश के बारे में सोचना ही गुनाह साबित होगा। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के बीच नफरत की ये खाई दिनों-दिन गहरी होती जा रही है जो कभी होली के ऐसे संदेशों तो कभी दिल्ली दंगों के रूप में हमारे सामने आती है।

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ध्यान देने की बात ये है कि मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ वायरल हो रहे संदेश होली जैसे त्योहार का एक पक्ष है। कुंठित मानसिकता हर धर्म की महिलाओं के लिए बराबर है। इस वक्त वर्जिनिया वुल्फ की वो लाइन आती याद आती है- औरतों का कोई देश नहीं होता। एक पक्ष होली के त्योहार को सांप्रदायिक रंग देकर अपनी जीत समझ रहा है तो एक पक्ष वह भी है जो होली पर महिलाओं के खिलाफ अश्लील गाने बजाकर, उनसे छेड़खानी करने की तैयारी में लगा होता है। बड़ी-बड़ी होली पार्टियों में भी फूहड़ गानों की धुन पर महिला विरोधी संगीत बजता है क्योंकि होली का महिला विरोधी होना एक न्यू नॉर्मल माना जा चुका है। फर्ज कीजिए आपके किसी पुरुष रिश्तेदार ने आपको जबरदस्ती रंग लगाया, आपने विरोध भी किया लेकिन बहुत कम उम्मीद है कि आपके इस विरोध को विरोध माना जाएगा क्योंकि महिलाओं पर जबरन रंग घसना होली की परंपरा में कब जुड़ गया हमने कभी सोचा ही नहीं।

विरोध यहां होली जैसे पर्व से नहीं बल्कि जिस तरीके से इस त्योहार को मनाया जा रहा है उससे है। पितृसत्ता, सांप्रदायिकता और उग्र राष्ट्रवाद की अवधारणा पूरी तरह महिलाओं के खिलाफ ही रची गई है। ऐसे में अगर यह होली के रूप में भी सामने आता है तो हमारा विरोध दर्ज करवाना ज़रूरी हो जाता है।  

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तस्वीर साभार : edtimes

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