इंटरसेक्शनल भेदभाव और ग़ैर-बराबरी की किताब मनुस्मृति का ‘दहन दिवस’

भेदभाव और ग़ैर-बराबरी की किताब मनुस्मृति का ‘दहन दिवस’

बाबा साहेब ने महाड़ तालाब के महासंघर्ष के अवसर पर खुलेतौर पर मनुसमृति जलाई थी। ब्राह्मणों के खिलाफ बहुजनों की यह सबसे बड़ी लड़ाई कही जाती है।

ज्योतिबा फुले ने कहा था ‘ब्राह्मणों ने झूठे ग्रंथ लिखे है!’ ये बात जब ज्योतिबा फुले ने कही होगी तो उनके मन में एक किताब का नाम जरूर आया होगा ‘मनुस्मृति।’‘एक लड़की हमेशा अपने पिता के संरक्षण में रहनी चाहिए, शादी के बाद पति उसका संरक्षक होना चाहिए, पति की मौत के बाद उसे अपने बच्चों की दया पर निर्भर रहना चाहिए, किसी भी स्थिति में एक महिला आज़ाद नहीं हो सकती।’ मनुस्मृति के पांचवें अध्याय के 148वें श्लोक में ये बात लिखी है। ये महिलाओं के बारे में मनुस्मृति की राय साफ़तौर पर बताती है। मनुस्मृति में दलितों और महिलाओं के बारे में कई ऐसे श्लोक हैं, जो अक्सर विवाद का विषय बनती है। इतिहासकार नराहर कुरुंदकर बताते है कि ’स्मृति का मतलब धर्मशास्त्र होता है। ऐसे में मनु का लिखा गया धार्मिक स्मृति मनुस्मृति कही जाती है। मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं, जिनमें 2684 श्लोक हैं। कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2964 भी है।”

इस किताब की रचना ईसा के जन्म से दो-तीन सौ सालों पहले शुरू हुई थी, जिसके पांचवे अध्याय में महिलाओं के कर्तव्यों, शुद्धता और अशुद्धता आदि का ज़िक्र है। ज्योतिबा फुले उन पहले शख्सों में से थे, जिन्होंने मनुस्मृति को ब्राह्मणवाद का प्रतीक माना। उनका मानना था कि इस ग्रंथ के कारण ही ब्राह्मण समाज दलितों-पिछड़ों और महिलाओं का शोषण करता है।

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बाबा साहेब ने महाड़ तालाब के महासंघर्ष के अवसर पर खुलेतौर पर मनुसमृति जलाई थी। ब्राह्मणों के खिलाफ बहुजनों की यह सबसे बड़ी लड़ाई कही जाती है।

आज हम समाज में नारीवादी सोच की बात करते हैं। बराबरी की बात करते हैं। ताकि इस समाज में हर एक जो शोषित वर्ग है, उसे इस समाज में बराबरी मिले। इसके विपरीत मनुस्मृति एक ऐसी किताब है जो हमें वक्त में पीछे धकेल रही है। हमारे भारतीय समाज में अब भी ऐसे लोग हैं जो इस किताब का समर्थन करते हैं, जो किताब महिलाओं और पिछड़े वर्गों को इंसान नहीं मानती। केवल पितृसत्ता और ब्राह्मणवाद को बढ़ावा देती है। यह किताब पुरुषों को हमेशा सत्ता के केंद्र में रखती है और महिलाओं को अपने पैरों के नीचे दबाकर रखना चाहती है। यह गैर-बराबरी की किताब है।

ऐसे में हमें याद आता है, 25 दिसंबर 1927 का वह दिन जब बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने हमारे समाज में ऊंच- नीच, जात-पात की खाई पैदा करने वाले ब्राह्मणों के बनाए शास्त्र मनुस्मृति का दहन किया था और भारतीय समाज को संविधान की किताब दी, जिसमें सभी की बराबरी की बात कही गई, जिसने इस समाज में भेदभाव और गैर-बराबरी को समाप्त किया। बाबा साहेब ने महाड़ तालाब के महासंघर्ष के अवसर पर खुलेतौर पर मनुसमृति जलाई थी। ब्राह्मणों के खिलाफ बहुजनों की यह सबसे बड़ी लड़ाई कही जाती है। इसलिए इसे गर्व से याद किया जाता है। हमें भी इस दिन को याद रखना चाहिए, जिस दिन गैर-बराबरी की इस किताब को जलाया गया। ताकि फिर कभी यह गैर-बराबरी और महिलाओं को दबाकर रखने वाली सोच वापस न आए।

आधुनिक शिक्षा के दौर में भी कई रूढ़िवादी लोग और संगठन में यह किताब बसी है। वे इसे अपनी परंपरा का हिस्सा मानते हैं। ताकि जो मर्दवाद और ब्राह्मणवाद हैं। उसे बरकरार रखा जाए। लेकिन हमें इस देश के संविधान को मानना चाहिए, जो इस समाज के हर एक वर्ग को बराबर दर्जा देता है। महिलाओं और पुरुषों में भेदभाव नहीं करता, जिससे हम एक अच्छे समाज का निर्माण कर सके।

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तस्वीर साभार : ajeetbharti

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