समाजपर्यावरण सुनीता नारायण : पर्यावरण संरक्षण के लिए जीवन समर्पित करने वाली ‘एक सशक्त महिला’

सुनीता नारायण : पर्यावरण संरक्षण के लिए जीवन समर्पित करने वाली ‘एक सशक्त महिला’

सुनीता पर्यावरण की सुरक्षा के लिए तत्पर हैं। उनके काम के लिए उन्हें साल 2005 में पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

प्रदूषण के कारण आज पूरी दूनिया परेशान है। हालांकि लॉकडाउन के कारण स्थिति में बदलाव हुए हैं मगर यह स्थिति बनी रहेगी इसमें संशय बरकरार है। हर किसी को साफ प्रदूषण रहित हवा की जरुरत होती है मगर आम जनता केवल शिकायत करती है। कभी बदलाव की ओर अपने कदम नहीं बढ़ाती मगर इनमें से कुछ लोग और हस्तियां ऐसी होतीं हैं, जो बदलाव की ओर अपने कदमों को बढ़ाया करते हैं और लोगों के लिए मिसाल बन जाते हैं। एक ऐसी ही एक शख्सियत का नाम है – सुनीता नारायण। सुनीता 59 वर्षीय हैं और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए तत्पर हैं। वह पर्यावरण बचाने के उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं।

सुनीता नारायण को इस काम के लिए उन्हें साल 2005 में पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। साल 2016 में उन्हें टाइम की 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में भी शामिल किया गया था। सुनीता ने साल 1982 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के साथ काम करना शुरू किया था। इस समय संस्थापक अनिल अग्रवाल के साथ काम करते हुए ही उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई पूरी की। साल 1985 में उन्होंने भारत की पर्यावरण रिपोर्ट का सह-संपादन भी किया और फिर वन प्रबंधन से संबंधित मुद्दों का अध्ययन किया। 

इस परियोजना के लिए उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों के लिए लोगों के प्रबंधन को समझने के लिए देशभर में यात्रा की। साल 1989 में स्थानीय लोकतंत्र और सतत् विकास के विषय पर सुनीता और अनिल अग्रवाल ने ‘टुवर्ड्स ग्रीन विलेजेज’ लिखा। उन्होंने पर्यावरण और विकास के बीच संबंधों का अध्ययन किया है और सतत विकास की आवश्यकता के बारे में सार्वजनिक चेतना बनाने के लिए काम भी किया है ताकि लोगों में जागरुकता का विकास हो। इसके साथ ही, साल 2012 में एक्स्ट्रेटा मामलों में उन्होंने भारत की 7 वीं राज्य पर्यावरण रिपोर्ट ( Excreta Matters ) पर शहरी भारत की जल आपूर्ति और प्रदूषण का विश्लेषण लिखा था।

1990 के दशक की शुरुआत में वह वैश्विक पर्यावरण के मुद्दों के साथ जुड़ गई और शोधकर्ता और अधिवक्ता के रूप में इनपर काम करती रहीं। वैश्विक लोकतंत्र से लेकर जलवायु परिवर्तन पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ स्थानीय लोकतंत्र की आवश्यकता पर भी कार्य करती रहीं। जिसमें उन्होंने वन-संबंधी संसाधन प्रबंधन और जल-संबंधी दोनों मुद्दों पर काम किया। सुनीता राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सक्रिय भागीदार हैं। इसके साथ वह कई अनुसंधान परियोजनाओं और सार्वजनिक अभियानों में सक्रिय भूमिका भी निभाती हैं।

पर्यावरण के लिए दिए अपने योगदान के लिए सुनीता को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इसके साथ ही सुनीता कलम की भी बहुत धनी हैं। वह अपने लेखों के जरिये भी जागरुकता का प्रसार करती हैं ताकि लोगों के मन में पर्यावरण को लेकर भावनाएं जागृत हो सके।

सुनीता पर्यावरण की सुरक्षा के लिए तत्पर हैं। उनके काम के लिए उन्हें साल 2005 में पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

एक वेबसाइट में प्रकाशित उनके एक साक्षात्कार के अनुसार सुनीता ने शहरीकरण चुनौती और आगे का रास्ता विषय पर बोलते हुए कहा था कि शहरीकरण का मतलब सिर्फ बड़े-बड़े मॉल बनाना ही नहीं है, बल्कि पर्यावरण के प्रति जागरुकता फैलाकर उसे बचाने के बारे में भी सोचा जाना चाहिए। इसमें उन्होंने शहरीकरण के असली मानकों को बताया है कि शहरीकरण कैसा होना चाहिए क्योंकि आजकल लोग बड़े-बड़े मॉल और बिल्डिंग खड़ी करने को शहरी करण का नाम दे देते हैं। उन्होंने कहा था कि हंटर चलेगा तो ही बच पाएगी हमारी धरती। 

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इसके साथ ही वायु प्रदूषण के मुद्दे पर उन्होंने कहा था कि वायु प्रदूषण के कई कारण हैं। इनमें गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण सबसे अहम है। डीज़ल की गाड़ियों पर लगाम लगाने की ज़रूरत है क्योंकि इनसे बहुत ज्यादा प्रदूषण होता है, जो बहुत ज़हरीला है। डीज़ल की कीमत कम इसलिए रखी जाती है क्योंकि वह किसानों के काम आ सके, पब्लिक ट्रांसपोर्ट के काम आ सके लेकिन ऐसा हो नहीं रहा, डीज़ल से महंगी कारें चलाई जा रही हैं। हम इसके लिए सबकुछ कर चुके हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं है। यह लॉबी बड़ी मज़बूत है। बेहतर तो यह है कि हम पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें लेकिन इसमें समस्या है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट अच्छी होगी तभी तो जनता उसका इस्तेमाल करेगी। सड़कों पर पर्याप्त संख्या में बसें हैं ही नहीं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट के मामले में किसी भी शहर में सरकार का काम नाकाफी है। एक समाधान यह है कि हम अपने घर के कचरे को निगम को न दें क्योंकि अगर वह निगम के जरिए लैंडफिल तक पहुंचा तो पक्का है कि उसे जलाया जाएगा इससे तो प्रदूषण बढ़ेगा ही।

फिर प्रदूषण का एक और कारण है डस्ट। इसके लिए जहां भी सड़कें या नए घर बन रहे हैं, उनके आसपास डस्ट कंट्रोल के उपाय किए जाने चाहिए। जहां काम चल रहा हो वहां प्लास्टिक की स्क्रीन लगाई जाए और पानी का छिड़काव किया जाए। हां, यह पानी पीने वाला न हो बल्कि रीसाइकिल किया हुआ पानी इसके लिए यूज किया जाए। घरों के आसपास खाली जमीन से धूल-मिट्टी न उड़े इसके लिए कॉलोनी वाले मिलकर पेड़-पौधे और घास लगा सकते हैं।

सुनीता कहती हैं कि, ‘हमारे देश में दिक्कत यह है कि हम नियम तो बहुत बना देते हैं पर उन्हें पूरी तरह से लागू नहीं करा पाते। सरकार में इसके लिए इच्छाशक्ति भी दिखाई नहीं देती। इस देश में सबसे बड़ी समस्या यह हो गई है कि किसी भी चीज़ को लागू करना हो तो हंटर घुमाना ही पड़ेगा। हालांकि हंटर घुमाने में भी समस्या यह है कि उसे थमाएं किसके हाथ में। अगर गलत हाथ में हंटर दे दिया तो उसका मकसद भी खत्म हो सकता है, तो फिर उपाय क्या है?’ सुनीता से प्रेरणा पाकर हर किसी को पर्यावरण बचाने के लिए अपने अनुसार छोटे-छोटे प्रयास करने चाहिए ताकि हमारी धरती हमेशा हरी-भरी रहे क्योंकि प्रकृति है, तभी हम हैं। 

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तस्वीर साभार : asifalihashmi

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