इंटरसेक्शनल महाराष्ट्र का कंजरभाट समुदाय,जहां पंचायत करती है महिलाओं का वर्जिनिटी टेस्ट

महाराष्ट्र का कंजरभाट समुदाय,जहां पंचायत करती है महिलाओं का वर्जिनिटी टेस्ट

कंजरभाट समुदाय में वर्जिनिटी टेस्ट होता है जिसमें पँचायत के सामने सफ़ेद चादर पर खून के धब्बे दिखाकर लड़की की वर्जिनिटी साबित करनी होती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब सीता जी रावण की कैद से मुक्त होकर वापिस आयोध्या आये तो प्रजा में उनकी पवित्रता को लेकर अनेक सवाल उठने लगे, जिसके चलते उन्हें अपने पवित्र होने का परिणाम अग्नि परीक्षा देकर करना पड़ा। पवित्रता की अग्नि परीक्षा आदिकाल से अब आधुनिक काल तक महिलाएँ देती आ रही हैं। लेकिन परीक्षा के तौर तरीके में बदलाव हो गया है । लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर  महिलाओं के सन्दर्भ में पवित्रता का अर्थ क्या है? दूसरा सवाल यह भी है कि महिलाओं की पवित्रता का मालिक और रक्षक पुरुष ही क्यों है?

महिलाओं के संदर्भ में पवित्रता को महिलाओं की यौनिकता से जोड़कर देखा जाता है। पितृसत्तात्मक सोच के अनुसार ऐसा माना जाता है कि किसी भी महिला की यौनिकता पर सिर्फ और सिर्फ उसके पति का ही हक है। बचपन से ही महिलाओं को भी इसी सोच के साथ पालन पोषण होता है। यही कारण है कि महिलाओं की यौनिकता को पवित्रता से जोड़कर देखा जाता है। यह इसलिए भी किया जाता है ताकि वो पितृसत्ता के बनाये गए दायरों से बाहर ना जाये।  इसलिए अच्छी औरत और पवित्रता को आड़ बनाकर महिलाओं को पितृसत्तात्मक के जाल में फँसाकर रहा जाता है। अगर यौनिकता को पुरुषों के जोड़कर देखते है तो विषमलैंगिक पुरुषों में  ऐसा कोई बंधन नजर नहीं आता। बल्कि विषमलैंगिक पुरुषों में यौन सम्बन्धों में पुरुष जितना सक्रिय और अनुभवी  होगा उतना ही पक्का मर्द माना जाता हैं। हालांकि समलैंगिक पुरुषों के संदर्भ में पितृसत्ता के दायरें कड़े निर्देशों साथ नजर आते है। इस कारण ही समलैगिंक पुरुषों को घर और बाहर हिंसा का सामना करना पड़ता है। 

महाराष्ट्र के कंजरभाट समुदाय के रीति-रिवाजों में वर्जिनिटी टेस्ट की एक परम्परा है जिसमें पूरी पँचायत के सामने सफ़ेद चादर पर खून के धब्बे दिखाकर यह साबित करना पड़ता है कि लड़की  वर्जिन थी। कंजरभाट समुदाय में शादी के बाद दूल्हे से पंचायत यह पूछती है कि ‘तुम्हें जो माल दिया गया  वो कैसे था। अगर लड़की वर्जिन थी वो दूल्हा कहता है तीन बार ‘खरा’ बोलता है। अगर लड़की वर्जिन नही थी तो लड़का तीन बार ‘खोटा’ बोलता है। लड़की के वर्जिन ना होने पर लड़की के परिवार व रिश्तेदार उसके साथ हिंसा करते है। कंजरभाट समुदाय को समुदाय के बनाए गए क़ायदे कानून को मानना पड़ता है। अगर कोई व्यक्ति इसका पालन नही करता तो उनका समुदाय से बहिष्कार कर दिया जाता है। इस प्रथा के ज़रिए इस समुदाय में महिलाओं की यौनिकता पर नियंत्रण किया जाता है ।

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कंजरभाट समुदाय में वर्जिनिटी टेस्ट होता है जिसमें पँचायत के सामने सफ़ेद चादर पर खून के धब्बे दिखाकर लड़की की वर्जिनिटी साबित करनी होती है।

यह सिर्फ किसी एक समुदाय की बात नही है लगभग सभी समुदाय में अलग-अलग तरीको से यौनिकता पर नियंत्रण किया जाता है। सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि कैसे मुनाफ़ा कमाने वाला बाजार इस  तरह के नियंत्रण का इस्तेमाल अपने बिजनेस को चमकाने के लिए करता हैं। इसका एक उदाहरण है 18 अगेन प्रोडक्ट के नाम से एक विज्ञापन है। इस विज्ञापन में दिखाया गया है कि 18 अगेन प्रोडक्ट को इस्तेमाल करने से महिलाएँ वर्जिन जैसा महसूस करती है। यह प्रोडक्ट इस बात को सिद्ध करता है कि कैसे इस तरह की परम्परों का बाज़ारीकरण होता है ।

गौरतलब है कि सिर्फ 18 अगेन ही एक मात्र उदाहरण नही हैं। अगर हम  गूगल सर्च इंजन में देखे तो ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने आ जाएंगे। आज विज्ञान के युग में भी पितृसत्तात्मक सोच इतनी हावी है कि वर्जिनिटी (यानी महिलाओं के हायमन) को फिर से सर्जरी के ज़रिए बनाया जा सकता है। ऐसी बहुत-सी लड़कियाँ है जो किसी ना किसी कारण से वर्जिन नहीं है। वो कारण खेलकूद या अन्य कोई  शारिरीक श्रम या सेक्शुअल सक्रियता भी हो सकती है। सामाजिक दवाब के चलते बहुत सारी लड़कियाँ हाइमेनोप्लास्टी या हाइमन सर्जरी करवाती है।

हाइमेनोप्लास्टी या हाइमन सर्जरी एक ऐसी सर्जरी है जिसमें टूटी हुई झील्ली (जिसे हायमन कहा जाता है) को फिर से बना दिया जाता हैं।  प्राइवेट हॉस्पिटल इस सर्जरी के लिए क़रीब 40 हज़ार से 60 हज़ार रु तक ऐंठते है। इस सर्जरी के लिए ज्यादातर वो लड़कियाँ जाती है जिनकी जल्द ही शादी होने वाली है। गौरतलब है कि बड़े शहरों के साथ-साथ छोटे शहरों से भी लड़कियां इस सर्जरी के लिए जा रही है । पितृसत्तात्मक दबाव के चलते  ना जाने कितनी लड़कियों को  इस तरह की सर्जरी से गुजरना पड़ता है जो उनके स्वास्थ्य पर एक बुरा असर डालती है ।

कंजरभाट समुदाय के क़ायदे कानून से लेकर हाइमेनोप्लास्टी  तक हर जगह पितृसत्तादण्ड का डर दिखाकर समाज की लड़कियों और महिलाओं को अपने दायरों में रहने के लिए मजबूर करती रही है। इस डर का फायदा उठाकर बाज़ार विज्ञान का इस्तेमाल करके मुनाफ़ा कमा रहा है। ऐसे में सतत विकास के सपने को साल 2030 तक पूरा करना एक कल्पना मात्र ही हैं क्योंकि जब तक पितृसत्ता का खौफ कायम रहेगा, तब तक सही मायनों में विकास नहीं हो सकता।

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तस्वीर साभार : satyagrah

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