इंटरसेक्शनल क्या केरल मुख्यमंत्री की बेटी की शादी ‘लव जिहाद’ है?

क्या केरल मुख्यमंत्री की बेटी की शादी ‘लव जिहाद’ है?

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की बेटी टी. वीणा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मोहम्मद रियाज़ की शादी को लव जिहाद बताया जा रहा है।

हाल ही में केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की बेटी टी. वीणा की शादी की ख़बर आई है। पेशे से सॉफ़्टवेयर इंजीनियर वीणा, जो ‘एक्सालॉजिक’ नाम का स्टार्टप चलातीं हैं, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मोहम्मद रियाज़ से शादी के बंधन में बंधी हैं। रियाज़ कम्युनिस्ट पार्टी के युवा संगठन ‘डेमोक्रैटिक यूथ फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया’ (डीवाईएफआई) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और वीणा की तरह ये उनकी दूसरी शादी है। दोनों डिवोर्सी हैं। वीणा एक दस साल के बच्चे, ईशान, की मां हैं और रियाज़ के भी दो बेटे हैं। 15 जून को दोनों के परिवारों की उपस्थिति में यह शादी संपन्न हुई।

सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर इस बीच काफ़ी चर्चा हुई न है। इसके दो कारण हैं। एक तो यह है कि दोनों ही पहले शादीशुदा रह चुके हैं और हमारे यहां डिवोर्स और दूसरी शादी, ख़ासकर औरतों के क्षेत्र में, ज़्यादा प्रचलित नहीं हैं। दूसरी बात यह है कि दोनों का धर्म अलग है। लड़की हिंदू और लड़का मुसलमान हैं। इस वजह से कई लोग इस रिश्ते को ‘लव जिहाद’ का नाम दे रहे हैं।

‘लव जिहाद’ वह शब्द है जो कट्टरपंथी अक्सर अंतरधार्मिक विवाहित जोड़ों पर आक्रमण करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। उनका दावा यह रहता है कि ऐसे विवाह कभी सफल नहीं हो सकते क्योंकि इनके पीछे प्यार नहीं बल्कि एक सोची-समझी चाल है। हर ऐसी शादी, जिसमें पति मुस्लिम और पत्नी हिंदू हो, हिंदू औरतों का जबरन धर्मांतरण करके उन्हें ग़ुलाम बनाने की साज़िश है। इस तथाकथित ‘जिहाद’ को रोकने के लिए कट्टरवादी संगठन आए दिन ‘समुदाय विशेष’  के ख़िलाफ़ ज़हर उगलते हैं। अभिभावकों को लड़कियों पर ‘नज़र रखने’ कि सलाह देते हैं। औरतों को एक खास समुदाय के मर्दों से दूरी बनाए रखने के लिए कहते हैं। 

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इस शब्द की उत्पत्ति साल 2009 में हुई थी यह दावा करने के लिए कि केरल और कर्नाटक के कई क्षेत्रों में गैर-मुस्लिम औरतों को प्यार और शादी का झांसा देकर धर्मांतरित किया जाता है। साल 2017 में हादिया अशोकन केस के दौरान इसका प्रयोग देशभर में फैल गया, जब केरल हाई कोर्ट ने हादिया की शादी इस दावे पर रोक दी थी कि उन्होंने धर्म-परिवर्तन और शादी दबाव में आकर की थी और इसके पीछे आतंकी संगठन आईएसआईएस का हाथ था। एक साल बाद, साल 2018 में ‘राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण’ (एनआईए) ने बताया कि ‘लव जिहाद’ जैसी चीज़ के होने का कोई ठोस सबूत नहीं है और ज्यादातर हिंदू-मुस्लिम विवाह औरत की मर्ज़ी और रजामंदी से होते हैं। केरल हाई कोर्ट ने भी  स्वीकार किया कि हादिया ने स्वेच्छा से शादी की है और उनके विवाह को वैध भी घोषित कर दिया। पर इसके बावजूद यह शब्द आज भी सांप्रदायिक द्वेष फैलाने के लिए इस्तेमाल हो रहा है। न्यूज़ चैनल भी इसका इस्तेमाल करने से नहीं कतराते और वीणा और रियाज़ से पहले भी कई फ़िल्म कलाकारों, क्रिकेटरों, यहां तक कि आईएएस अफ़सरों को लांछित करने के लिए इसका इस्तेमाल हुआ है, जिन्होंने धर्म के बाहर शादी की।

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की बेटी टी. वीणा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मोहम्मद रियाज़ की शादी को लव जिहाद बताया जा रहा है।

‘लव जिहाद’ का यह हौवा इस्लामोफ़ोबिक तो है ही। समाज में नफ़रत तो फैलाता ही है। पर उससे भी ज़्यादा, इस शब्द में कूट कूटकर पितृसत्ता भरी हुई है। ऐसा मान ही लिया जाता है कि जो औरतें अपनी मर्ज़ी से अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनती हैं, वे नासमझ हैं। अपना भला-बुरा नहीं समझतीं। जिसकी वजह से उन्हें ‘समझाने’ और उन पर ‘नज़र रखने’ की ज़रूरत है। कानून के अनुसार 18 साल होने के बाद एक लड़की बालिग हो जाती है और अपनी ज़िम्मेदारी खुद उठा सकतीं हैं, पर हमारे धर्म के ठेकेदार यह मानने को तैयार नहीं हैं। उनके अनुसार औरतें ‘बेवकूफ़’ हैं, और आसानी से मर्दों के ‘जाल’ में ‘फंस’ जाती हैं। कोई संभावना ही नहीं हो सकती कि उन्होंने सोच समझकर अपना फ़ैसला लिया हो। 

ऊपर से इस शब्द से अब ‘कोख जिहाद’ और ‘जनसंख्या जिहाद’ जैसे शब्दों की उत्पत्ति होने लगी है। दावा यही है कि मुस्लिमों द्वारा हिंदू औरतों का धर्मांतरण करके उनसे और मुस्लिम बच्चे पैदा करवाकर जनसंख्या बनाने की साज़िश चल रही है। इस तरह की सोच और कुछ नहीं बस एक बेहद नीच मानसिकता को दर्शाती है, जो औरत को सिर्फ़ बच्चा जनने का साधन मानती है। अपनी मर्ज़ी से शादी करनेवाली औरतों के बारे में ऐसे अनुमान लगाकर हिंदुत्व के तथाकथित रक्षक उन्हीं औरतों के सबसे बड़े दुश्मन सिद्ध हो रहे हैं, जिनकी ‘रक्षा’ का ठेका उन्होंने ले रखा है। 

‘लव जिहाद’ के अस्तित्व के सबूत के तौर पर यौन हिंसा की ऐसी कई घटनाओं का ज़िक्र किया जाता है जिनमें पीड़िता ग़ैर-मुस्लिम और दोषी मुस्लिम हों। यह औरतों के शारीरिक और यौन शोषण के मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश के सिवा और कुछ भी नहीं है। औरतों की हत्या, बलात्कार, और घरेलू हिंसा किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं हैं और ऐसी घटनाओं की तुलना एक स्वस्थ, स्वैच्छिक संबंध से करना शोषण की पीड़िताओं के साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी है।

हिंदू-मुस्लिम जोड़ों के ख़िलाफ़ ‘लव जिहाद’ के नाम पर जो नफ़रत उगला जाता है वह और कुछ नहीं, एक शोषणकारी सामाजिक व्यवस्था द्वारा सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने और महिलाओं को नियंत्रण में रखने का एक तरीका है। यह क्रूर व्यवस्था सिर्फ़ नफ़रत और पितृसत्तात्मक नियंत्रण पर टिकी हुई है और इसे ध्वस्त सिर्फ़ प्यार और सौहार्द के ज़रिए किया जा सकता है। उम्मीद है हम अब और ख़ुद को इस तरह नियंत्रित नहीं होने देंगे और अपने धर्म और अपनी जाति से बाहर प्यार और विवाह करने से नहीं डरेंगे। हमारी स्वतंत्रता और एक बेहतर समाज के लिए यह ज़रूरी है।

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तस्वीर साभार : navbharattimes

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