इतिहास बेहतर भविष्य के लिए लड़नेवाली 5 भारतीय महिला पर्यावरणविद

बेहतर भविष्य के लिए लड़नेवाली 5 भारतीय महिला पर्यावरणविद

यहां हम बात करेंगे पांच ऐसी महिला पर्यावरण विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं की, पर्यावरण संबंधित विभिन्न क्षेत्रों में जिनका काम अमूल्य रहा है।

हम सब यह बात जान गए हैं कि हमारी धरती ख़तरे में है। प्रदूषण, वनोन्मूलन और प्राकृतिक संसाधनों की कमी जैसी कई चीज़ें इसका कारण हैं और इनका सामना करके पृथ्वी को बचाए रखना हमारे लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। पर्यावरण को अधिक क्षय से बचाने के लिए और आनेवाली पीढ़ियों के लिए इस दुनिया को रहने लायक रखने के लिए कई वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों, और कार्यकर्ताओं ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यहां हम बात करेंगे पांच ऐसी महिला पर्यावरण विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं की, पर्यावरण संबंधित विभिन्न क्षेत्रों में जिनका काम अमूल्य रहा है।

1. वंदना शिवा

वंदना शिवा ‘रिसर्च फाउंडेशन फ़ॉर साइंस, टेक्नोलॉजी, ऐंड नैचुरल रिसोर्स पॉलिसी’ की निर्देशक हैं। देहरादून में स्थित यह संस्था वनों की रक्षा, जैव विविधता संरक्षण और पर्यावरण संबंधित मामलों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए काम करती है। वंदना ‘ईको-फ़ेमिनिस्ट’ यानी पर्यावरणीय नारीवादी हैं, जिनका मानना है कि पर्यावरण की सुरक्षा कृषि व्यवस्थाओं में महिलाओं को प्राधान्य देकर की जा सकती है। वे मानती हैं कि महिलाएं और प्रकृति दोनों ही पुरुषों द्वारा शोषित हैं, जिसके कारण पर्यावरण रक्षा और नारी सशक्तिकरण के मुद्दे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। 

साल 1987 में वंदना ने अपने एनजीओ ‘नवधान्य’ की स्थापना की, जो जैविक खेती, जैविक विविधता संरक्षण, और किसानों के अधिकारों पर काम करता है। नवदान्य अब तक चावल के लगभग 2000 प्रकारों के संरक्षण में कामयाब हुआ है और भारत के 22 राज्यों में 122 ‘बीज बैंक’ स्थापित कर चुका है, जहां विभिन्न प्रकार के बीजों का संरक्षण और उन पर अध्ययन किया जाता है।अपने कार्य के लिए वंदना शिवा को 1993 में ‘राइट लाइवलीहुड’ पुरस्कार से नवाज़ा गया। 

2. सुनीता नारायण

सुनीता ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ (सीएसई) की निर्देशक के साथ ‘डाउन टू अर्थ’ मासिक पत्रिका की संपादक भी हैं। उनका अध्ययन और कार्य ख़ासतौर पर पर्यावरण और मानव  विकास के संबंध पर केंद्रित है, और 1989 में सीएसई संस्थापक अनिल अग्रवाल के साथ उन्होंने ‘टुवर्ड्स ग्रीन विलेजेस’ नाम का शोधपत्र  लिखा, जो ग्रामीण विकास और पर्यावरण संरक्षण पर प्रकाश डालता है। 2012 में उन्होंने भारत की सातवीं पर्यावरण रिपोर्ट ‘एक्सक्रीटा मैटर्स’ लिखी, जो हमारे शहरों में जल आपूर्ति और प्रदूषण का विस्तृत विश्लेषण करती है। 

सुनीता के अनुसार शहरीकरण का मतलब सिर्फ़ बड़ी बड़ी इमारतें खड़ी करना नहीं है। पर्यावरण के बारे में जागरूकता के बिना विकास अधूरा है। इसलिए शहरों में पर्यावरण रक्षा के लिए योजनाओं की ज़रूरत है। साल 2005 में सुनीता नारायण को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था और 2016 में ‘टाइम’ पत्रिका ने उन्हें साल के 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की सूचि में शामिल किया था। 

और पढ़ें : ‘पर्यावरण संरक्षण आंदोलन’ में भारतीय महिलाओं की सक्रिय भागीदारी

3. अनुमिता रॉय चौधरी 

सीएसई के शोध और पक्षपोषण विभाग की निर्देशक अनुमिता का कार्य संधारणीय विकास और शहरीकरण पर केंद्रित है। साल 1996 में  ‘राइट टू क्लीन एयर’ अभियान के नेतृत्व में उनकी अहम भूमिका रही है, जिसका लक्ष्य दिल्ली की हवा को स्वच्छ बनाने की ओर है। इसी अभियान के चलते आज दिल्ली के सभी सार्वजनिक वाहन डीज़ल की जगह संपीड़ित प्राकृतिक गैस (सीएनजी) पर चलते हैं। यह अभियान वाहनों के उत्सर्जन मानकों में सुधार लाने में सफल हुआ है और पर्यावरण-अनुकूल परिवहन पर नीतियां लाने में सहायता भी कर चुका है। 

अनुमिता वायु को प्रदूषण-मुक्त करने की कई सरकारी योजनाओं में शामिल रहीं हैं और कई समाचार पत्रों में पर्यावरण संबंधित मुद्दों पर लिख चुकीं हैं। वायुमंडल सुरक्षा पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सभाओं में एक सदस्य और सलाहकार के रूप में उनका योगदान मूल्यवान रहा है। साल 2017 में अमेरिका के कैलिफोर्निया की सरकार की तरफ़ से उन्हें ‘हेगेन स्मिट क्लीन एयर अवॉर्ड’ से पुरस्कृत किया गया।

4. सुमायरा अब्दुल अली 

सुमायरा ‘आवाज़ फाउंडेशन’ की संस्थापक है, जो ध्वनि प्रदूषण के मुद्दे पर काम करता है। इस क्षेत्र में उनके अथक प्रयासों की वजह से उनका नाम  ‘भारत की ध्वनि मंत्री’ पड़ गया है। साल 2003 में उन्होंने मुंबई में ‘साइलेंस ज़ोन’ के निर्माण के लिए बंबई उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दर्ज की थी। इसके सात साल बाद, साल 2009 में ही न्यायालय ने बृहनमुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) को अस्पतालों, धार्मिक स्थलों, और शैक्षणिक संस्थाओं से सौ मीटर की दूरी पर 2237 इलाकों को ‘साइलेंस ज़ोन’ घोषित करने का आदेश दिया। 

साल 2007 में अपनी संस्था के साथ उन्होंने एक और याचिका पेश की यातायात, वाहनों के हॉर्न, कंस्ट्रक्शन के काम, और पटाखों से आनेवाली आवाज़ पर नियंत्रण के लिए। इस याचिका में उन्होंने ध्वनि प्रदूषण के नियम लागू करने और  मुंबई शहर का ‘ध्वनि नक्शा’ बनवाने की भी मांग की। साल 2016 में न्यायालय ने इन सभी मांगों की पूर्ति का आदेश दिया। साथ ही मुंबई के अलावा महाराष्ट्र के सभी शहरों में ध्वनि अध्ययन और मानचित्रण को अगले 25 वर्षों तक सरकारी विकास योजना में शामिल करने का भी आदेश दिया। 

अवैध रेत खनन के ख़िलाफ़ भी सुमायरा सक्रिय रही हैं जिसकी वजह से उन्हें और उनकी तरह कई कार्यकर्ताओं को रेत माफिया से धमकियां भी मिली हैं। न धमकियों के विरोध में ‘मूवमेंट अगेंस्ट इंटिमीडेशन, थ्रेट एंड रिवेंज अगेंस्ट एक्टिविस्ट्स’ का गठन हुआ, जिसकी वे संयोजक हैं। सुमायरा को अपने काम के लिए मदर टेरेसा पुरस्कार मिला है।

और पढ़ें : वंदना शिवा : जैविक खेती से सतत विकास की ‘अगुवा’

5. कृति करंथ 

डॉ. कृति अमेरिका के ड्यूक यूनिवर्सिटी से पर्यावरण विज्ञान और नीति में पीएचडी हैं। वे 20 साल से भारत में वन्य जीवन संरक्षण पर शोध कर रहीं हैं, और बेंगलुरु में स्थित ‘सेंटर फॉर वाइल्डलाइफ स्टडीज़’ की निर्देशक हैं। उन्होंने ड्यूक यूनिवर्सिटी और राष्ट्रीय जीवविज्ञान केंद्र में अध्यापन भी किया है।

डॉ. कृति ने विलुप्ति, मानव-वन संबंध, और वन पर्यटन के प्रभाव पर कई शोधकार्य किए हैं। वे वन्य जीवन पर करीब 90 निबंध और एक बाल पुस्तक लिख चुकीं हैं। वे आज लगभग 120 वैज्ञानिकों को वन्य जीवन के अध्ययन पर प्रशिक्षित कर रही हैं।साल 2019 में उन्हें अपने कार्य के लिए ‘विमेन इन डिस्कवरी’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

और पढ़ें : अभय जाजा : जल, जंगल और ज़मीन के लिए लड़ने वाला एक युवा आदिवासी नेता

संबंधित लेख

Skip to content