इंटरसेक्शनल साइंस के क्षेत्र में होनी चाहिए ‘महिलाओं की पूरी भागीदारी’

साइंस के क्षेत्र में होनी चाहिए ‘महिलाओं की पूरी भागीदारी’

महिलाओं को भी साइंस और टेक्नोलॉजी की समझ होती है, बस ज़रुरत होती है उसे संवारने और प्रोत्साहित करने और हर स्तर पर इन्हें बढ़ावा देने की।

महिलाओं को जब-जब मौका मिलता है, वह हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा लेती हैं क्योंकि कहते हैं ना प्रतिभा को कोई ढ़ककर नहीं रख सकता। बदलते वक्त के साथ महिलाओं ने खुद को ढ़ाला है और समय के साथ कदम-से-कदम मिलाकर समाज को अपने अस्तित्व का भान करवाया है। आप सबने बायोलॉजी क्लास में डीएनए के बारे में जरुर पढ़ा होगा कि यह जेनेटिक मेटेरियल है। इसके साथ ही आप शायद यह भी जानते होंगे कि इसे खोज करने का श्रेय वाटसन और क्रिक को दिया जाता है मगर अमेरिकन काउंसिल ऑन साइंस एंड हेल्थ की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार डीएनए रोजालिंड फ्रैंकलिन ने खोजा था, मगर उन्हें इसका श्रेय नहीं दिया गया।

महिलाओं ने हमेशा से साइंस और टेक्नोलॉजी में योगदान दिया है और उसे एक आंदोलन का रुप भी दिया है। आज भी अनेकों क्षेत्र हैं, जहां महिलाओं का योगदान अतुलनीय है। आपको ‘मिशन मंगल यान’ याद ही होगा, जिसने हम सभी भारतवासियों को गर्व से भर दिया था।

इस मिशन मंगल यान में महिला वैज्ञानिकों की संख्या करीब 27 फीसद थी। इससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि महिलाएं अपना वर्चस्व कायम करने में आगे बढ़ रही हैं। इन महिलाओं को समर्पित एक फिल्म भी बनी थी। मंगल मिशन में मीनल संपत, अनुराधा टी, रितु करिधल, नंदिनी हरिनाथ और मौमिता दत्ता के बारे में दिखाया गया है। मंगल यान को सफल बनाने में अपना योगदान देनी वाली मीनल संपत अपने एक इंटरव्यू में कहा था, आमलोगों की मदद करने का मेरा सपना था। जब उन लोगों ने मॉम की सफलता के बारे में खबरों में देखा, न्यूज़ पेपर में पढ़ा होगा तो उनके मन में आया होगा कि हां ऐसा भी हो सकता है। ये बात खुशी देती है।’

साथ ही अनुराधा टी ने लड़कियों के हौसले को बढ़ाने के लिए कहा था कि ‘लड़कियों अपना फोकस पूरी तरह से क्लीयर रखो। तुम्हें पता होना चाहिए कि क्या करना चाहती हो। खुद को रास्ते से भटकने मत दो। दूसरों के विचारों से प्रभावित मत हो, जो तुम्हें सही लगता है, वो करो। इन दो बातों पर आप गौर करेंगे तब आप पाएंगे कि महिलाओं ने हमेशा से साइंस के क्षेत्र में अपना योगदान दिया है मगर उन्हें अपने काम के लिए क्रेडिट मिलने में काफी समय लगा क्योंकि अभी भी अधिकांश लोगों को लगता है कि महिलाएं अगर फ्रंट में आकर काम करेंगी तब पुरुषों का इगो हर्ट होगा जबकि ऐसा नहीं है।

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यही वजह है कि 21 वीं सदी से लैंगिक समानता आज भी सबसे अधिक विवादित विषयों में से एक है। महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार और अवसर मिलते हैं, फिर भी ऐसी कई चुनौतियां हैं, जिनका सामना एक महिला को नियमित रूप से करना पड़ता है। किसी भी क्षेत्र में महिलाओं का योगदान पुरुषों की तरह ही योग्य रहा है लेकिन किसी भी तरह उनके योगदान के बारे में ज़्यादा बात नहीं की गई है या उन्हें समय के साथ भुला दिया गया है।

महिलाओं को भी साइंस और टेक्नोलॉजी की समझ होती है, बस ज़रुरत होती है उसे संवारने और प्रोत्साहित करने और हर स्तर पर इन्हें बढ़ावा देने की।

साइंस एंड टेक्नोलॉजी का क्षेत्र रिसर्च से भी संबंधित होता है, जहां अपना काफी समय देना पड़ता है मगर महिलाएं अपना इतना समय नहीं दे पाती हैं। जिसकी वजह से साइंस एंड टेक्नोलॉजी में महिलाओं की संख्या कम होती है। यूआईएस के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया के 30 फ़ीसद से कम शोधकर्ता महिलाएं हैं। इससे यह साफ पता चलता है कि महिलाएं साइंस से फ्रेंडली बहुत कम है। साथ ही द वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम 2018 के अनुसार दुनियाभर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में 22 फ़ीसद ही पेशेवर महिलाएं हैं।

महिलाओं के लिए साइंस इसलिए भी साथ देने वाला नहीं रहा है क्योंकि साइंस के कारण महिलाएं अपने रोज़गार से दूर हुई हैं। साइंस के बढ़ते दायरे और लोगों की ज़िंदगी में बढ़ते हस्तक्षेप ने महिलाओं से उनके रोज़गार को भी छिना है, जिस वजह से महिलाएं साइंस से फ्रेंडली नहीं हो पाती हैं क्योंकि ग्रामीण इलाकों में फसलों की सफाई में महिलाएं ही रहा करती थीं मगर अब मशीनों ने उनकी जगह ले ली हैं। साथ ही मशीनों के आते ही सबसे पहले रोज़गार से महिलाओं को निकाला जाता है क्योंकि लोगों के मन में यह धारणा बन गई है कि महिलाएं साइंस और टेक्नीकल चीज़ों को समझ नहीं पाती हैं।

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सरकार को महिलाओं की साइंस के क्षेत्र में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करने चाहिए। जिसके लिए लोकल स्तर से शुरुआत करने की ज़रुरत है। सरकार ने कुछ प्रयास किए हैं, जैसे- विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने 2017 में उन्नत विज्ञान ज्योति योजना में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के लिए 2,000 करोड़ रुपए आवंटित करने की घोषणा की गई थी। इस योजना का उद्देश्य कक्षा 9, 10 और 11 की छात्राओं को महिला वैज्ञानिकों से मिलने की सुविधा दी गई थी। जो महिलाएं इस फिल्ड में काम कर रहीं हैं, उनके लिए भी सुविधाएं होनी चाहिए ताकि महिलाएं इस क्षेत्र से जुड़ी रहें। परिवार में रम जाने के कारण भी महिलाएं साइंस और रिसर्च से दूर हो जाती हैं, जिसके लिए सरकार कुछ प्रयास कर सकती है ताकि महिलाएं अपने क्षेत्र में बनी रहें। उन्हें अपने रिसर्च आदि में परेशानी ना हो इसका ध्यान रखा जाना चाहिए।

इसके अलावा भी प्रयासों को बढ़ाने की जरुरत है ताकि महिलाएं साइंस के क्षेत्र में और आगे बढ़ सकें और साइंस और महिलाओं के बीच की खाई कम की जा सके। महिलाओं को भी साइंस और टेक्नोलॉजी की समझ होती है, बस ज़रुरत होती है उसे संवारने और प्रोत्साहित करने की। इसलिए हर स्तर पर प्रयासों को बढ़ाना चाहिए और महिलाओं को कमतर होने का एहसास नहीं कराया जाना चाहिए। महिलाएं हर क्षेत्र में आगे हैं, इसलिए खुद के इंटरेस्ट के अनुसार ही आगे बढ़ना चाहिए।

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तस्वीर साभार : dnaindia

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