समाजकानून और नीति नई नौकरी शुरू करने से पहले पूछिए यह 6 सवाल

नई नौकरी शुरू करने से पहले पूछिए यह 6 सवाल

बराबरी की लड़ाई अब भी बहुत लंबी है क्योंकि अक्सर कार्यस्थलों में महिलाओं की ज़रूरतों और शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जाता।

आज के ज़माने में औरतें घर की चारदीवारी में सीमित नहीं हैं यह हम सब जानते हैं। उच्च-शिक्षा हासिल करने के बाद वे आज अलग-अलग क्षेत्रों में अपना करियर बना रहीं हैं और रोज़ नई सफलताएं हासिल कर रहीं हैं। लेकिन हमारी बाहर की दुनिया भी उतनी ही पितृसत्तात्मक है जितना घर। हमारा कार्यक्षेत्र भी इससे वंचित नहीं हैं। कई छोटे-बड़े उद्योगों में महिला कर्मचारियों की ज़रूरतों का ध्यान नहीं रखा जाता या उन्हें शोषित किया जाता है। अगर आप नौकरी ढूंढ रही हैं या किसी विशेष जगह नौकरी के लिए आवेदन कर रही हैं, तो आपको ये छह सवाल पूछने चाहिए ताकि आप तय कर सके कि यह कार्यस्थल महिलाओं के लिए ठीक है या नहीं। 

1. क्या इस कार्यालय में आंतरिक अभियोग कमिटी (आईसीसी) है?

‘कार्यस्थल में महिला यौन शोषण (निरोध, निषेध व निवारण) कानून, 2013’ या POSH कानून के अनुसार, हर कार्यक्षेत्र जहां दस से अधिक कर्मचारी हो, वहां यौन शोषण की शिकायतों के लिए एक कमिटी होना ज़रूरी है। इसके लिए संस्थान में किसी महिला कर्मचारी का होना ज़रूरी नहीं है। इस कमिटी में एक पीठासीन अधिकारी, एक बाहरी सदस्य और कम से कम दो कर्मचारी सदस्यों का होना ज़रूरी है। अगर आप अपनी नौकरी की शुरुआत करने जा रही हैं तो ज़रूर आईसीसी और यौन शोषण संबंधित अधिनियमों के बारे में पूछताछ करें। कार्यस्थल में यौन शोषण के ख़िलाफ़ हर संस्था को कदम उठाने चाहिए।

2. क्या यह कार्यालय मातृत्व लाभ कानून (संशोधन), 2017 के अनुसार गर्भवती कर्मचारियों को अवकाश और लाभ प्रदान करता है? 

‘मातृत्व लाभ कानून’ 1961 में पारित किया गया था ताकि महिला कर्मचारियों को मां बनने पर कार्यालय की तरफ़ से कुछ विशेष सुविधाएं दी जाएं। यह कानून ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं को घर के बाहर काम करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बनाया गया था। साल 2017 में इस कानून में संशोधन हुआ और नया कानून यह कहता है कि गर्भ के छठे महीने में कर्मचारी को 26 हफ्तों तक का वेतन-सहित अवकाश दिया जाना चाहिए। छठे महीने के बाद भी कर्मचारी आठ हफ्तों तक का अवकाश ले सकती है। पता लगाएं आपके कार्यालय में गर्भवती महिलाओं को क्या-क्या सुविधाएं दी जाती हैं। 

3. क्या एक ही पद पर काम करने वाले कर्मचारियों को समान वेतन मिलता है?

‘समान वेतन कानून’ (1976) के अनुसार कार्यालय में एक ही काम करनेवाले हर कर्मचारी को बराबर वेतन मिलना चाहिए, चाहे उनकी जाति, उनका धर्म या उनका लिंग कुछ भी हो। इसकी जानकारी ज़रूर लें कि आपके कार्यालय में भी इसका पालन होता है या नहीं। पुरुष और महिला कर्मचारियों को एक ही काम के लिए अलग-अलग वेतन देने का कोई कारण नहीं है, बल्कि यह लैंगिक भेदभाव है। 

बराबरी की लड़ाई अब भी बहुत लंबी है क्योंकि अक्सर कार्यस्थलों में महिलाओं की ज़रूरतों और शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जाता।

4. क्या नाइट शिफ़्ट में काम करनेवाली महिलाओं के लिए उचित सुविधाएं उपलब्ध हैं? 

दुर्भाग्यवश, भारत में आज भी महिलाओं के लिए एक सुरक्षित माहौल नहीं है, जिसकी वजह से रात को अकेले निकलने में महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं। कई कंपनियां इस बात को समझतीं हैं और देर रात तक काम करनेवाली महिलाओं को कार्यालय आने-जाने के लिए ट्रांसपोर्ट की सुविधा देती हैं। ज़रूर पता लगाएं कि आप जहां काम करेंगी वहां ऐसी सुविधा उपलब्ध है या नहीं। साथ ही यह देख लीजिए कि नाइट शिफ़्ट में कितनी महिलाएं काम करतीं हैं। अगर गाड़ी के चालकों के बारे में जानकारी इकट्ठा कर सकतीं हैं तो यह और बेहतर होगा।

5. क्या कार्यालय ‘क्रेश’ की सुविधा देता है?

मातृत्व लाभ कानून के अनुसार हर कार्यालय जहां 50 से अधिक कर्मचारी हो वहां उनके बच्चों के लिए क्रेश या डे केयर सेंटर की सुविधा होनी चाहिए। यह क्रेश कार्यालय के अंदर या 500 मीटर की दूरी पर स्थित हो सकता है, जहां बच्चों को छोड़ने और ले जाने में आसानी हो। सरकारी अधिनियमों द्वारा संचालित डे केयर सेंटर हर बड़े उद्योग में होना ज़रूरी है ताकि महिला कर्मचारियों को नौकरी और बच्चों का भार एक साथ न संभालना पड़े। 

6. कार्यालय में महिलाओं के लिए शौचालयों की क्या हालत है? 

यह सबसे ज़रूरी मुद्दों में से एक है। महिलाओं के इस्तेमाल के लिए उपयुक्त शौचालयों का होना हर संस्था में ज़रूरी है। शौचालय साफ़-सुथरे हैं, वहां पानी का प्रबंध अच्छा है, वहां सैनिटेरी पैड और डायपर मशीन है कि नहीं यह ज़रूर पता लगा लें। स्वास्थ्य और स्वच्छता ज़रूरी हैं और इन पर कोई समझौता नहीं होना चाहिए। 

आज औरतें उन सभी क्षेत्रों में काम कर रहीं हैं जहां कभी मर्दों का वर्चस्व था लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि ये काफ़ी नहीं है। बराबरी की लड़ाई अब भी बहुत लंबी है क्योंकि अक्सर कार्यस्थलों में महिलाओं की ज़रूरतों और शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जाता। यौन हिंसा और उत्पीड़न की तो बात ही अलग है। ऐसे में ज़रूरी है कि किसी भी संस्था में काम शुरू करने से पहले हम यह अच्छी तरह पता कर लें कि यह परिवेश महिलाओं के लिए कितना अनुकूल है, यहां हमारे अधिकारों की कितनी कद्र होती है और हमारी शिकायतों को कितनी अहमियत दी जाएगी। 

और पढ़ें : यौन-उत्पीड़न की शिकायतों को निगलना और लड़कियों को कंट्रोल करना – यही है ICC ?


तस्वीर साभार : shrm

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