समाजकैंपस मोरल पुलिसिंग : हमारे शैक्षणिक संस्थानों में एक बड़ी समस्या

मोरल पुलिसिंग : हमारे शैक्षणिक संस्थानों में एक बड़ी समस्या

मोरल पुलिसिंग हमारे देश के स्कूलों में आज भी एक बहुत बड़ी समस्या है। छात्रों की निजी ज़िंदगी में हस्तक्षेप करने का अधिकार टीचर्स को नहीं है।

हाल ही में दिल्ली के जाने-माने ‘संस्कृति स्कूल’ की प्रिंसिपल की एक चिट्ठी ट्विटर पर वायरल हुई है। 28 जनवरी 2014 की यह चिट्ठी एक छात्रा के अभिभावकों को लिखी गई है। इस चिट्ठी में स्कूल की प्रिंसिपल यह शिकायत करती हैं कि छात्रा ने अपने बाल कलर करवाए हैं, जो स्कूल के नियमों के खिलाफ़ हैं। वह छात्रा के अभिभावकों के प्रति यह कहकर कि उन्होंने उसे इस उम्र में बाल कलर करने की इजाज़त क्यों दी अपनी निराशा भी व्यक्त करती हैं? इंटरनेट पर प्रिंसिपल के विचारों की खूब आलोचना हो रही है। इसे मोरल पुलिसिंग बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि स्कूल को इससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए कि छात्रों के बाल किस रंग के हैं। बल्कि शिक्षकों को छात्र की पढ़ाई और बौद्धिक विकास पर ही ज़्यादा ध्यान देना चाहिए। 

इस पर चर्चा करते हुए कई और ट्विटर यूजर स्कूल में अपने ‘मोरल पुलिसिंग’ के अनुभव लेकर सामने आए हैं। उनका कहना है कि भारतीय स्कूलों में इस तरह की मोरल पुलिसिंग बहुत आम बात है। छात्रों की पढ़ाई और प्रतिभा से ज़्यादा ध्यान उनके कपड़ों, उनके शरीर, और उनके व्यक्तिगत रिश्तों पर दिया जाता है। टीचर्स यह बात भूल जाते हैं, या स्वीकार नहीं करना चाहते कि उनके छात्र आखिर इंसान हैं जिनके अपने अपने शौक हैं। वे अपने बाल कैसे संवारते हैं, वे नाक में नथ पहनते हैं या नहीं, उनकी स्कर्ट कितनी छोटी है और नाखून कितने लंबे हैं, इन चीज़ों से स्कूल अधिकारियों का कोई लेना देना नहीं होना चाहिए। 

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मैं खुद तब सातवीं क्लास में थी जब एक दिन हिंदी टीचर ने हम सब लड़कियों को अलग से बुलाया और बताया, ‘बेटा आप लड़कियां हैं। आपको स्कर्ट इतनी छोटी नहीं पहननी चाहिए और स्कर्ट के नीचे लेगिंग्स पहनने चाहिए। लड़कों के सामने ऐसे रहना अजीब लगता है।’ मैं समझ नहीं पाई थी कि स्कर्ट अगर घुटनों से दो इंच ऊपर हो तो इसमें इतना अजीब लगने जैसा क्या है कि उसे लेगिंग्स से ढकना पड़े? क्लास के लड़कों की वजह से हम अपने घुटने क्यों ढककर रखें? गौर करने वाली बात यह है कि उस वक़्त हम लड़कियां बारह या तेरह साल की रही होंगी। इतनी कम उम्र में हमें स्कूल की टीचर ने यह सिखा दिया कि हमारा शरीर एक वस्तु है जिसे ढककर नहीं रखा गया तो लड़कों को बहुत तकलीफ़ होती है। इसलिए उनकी सुविधा के लिए हमें दिल्ली की गर्मी में भी लंबी स्कर्ट के नीचे लेगिंग्स पहनने चाहिए। 

‘अनुशासन’ के नाम पर लड़कियों की पोशाक और शरीर पर निगरानी रखने का यह इकलौता उदाहरण नहीं है। छात्राओं को अपने बाल खुले छोड़ने या अपने नाखून लंबे रखने तक के लिए टीचरों से डांट पड़ती है। बालों के क्लिप और हेयर बैंड किस रंग के होंगे यह भी स्कूल निर्धारित करता है। किसी भी लड़की की स्कर्ट छोटी हो, उसके कानों में एक से ज़्यादा पियरसिंग हो या बाल चोटी की जगह पोनी टेल में बंधे हो तो उसे हर तरह के ताने दिए जाते हैं, या उस पर अनुशासन तोड़ने का आरोप लगाया जाता है। इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता कि इस उम्र में सजने-संवरने का शौक बहुत स्वाभाविक है और यह कोई अनुशासनहीनता या चरित्रहीनता का प्रतीक नहीं है।

मोरल पुलिसिंग का सबसे घटिया तरीका है छात्रों के आपसी रिश्तों को लेकर टिप्पणी करना। किसी छात्रा की बहुत सारे लड़कों से दोस्ती हो तो उसे पूरी क्लास के सामने टोका जाता है‌।

यह नियम आमतौर पर लड़कियों ज़्यादा सख्त हैं, पर लड़कों और क्वीयर छात्रों को भी इनसे छुटकारा नहीं मिलता। लड़कों को लंबे बाल रखने या नाक और कान में पियरसिंग रखने के लिए पूरी कक्षा के सामने ज़लील किया जाता है। क्वीयर छात्रों को भी उनके चलने-बोलने के तरीके और विपरीत लिंग के लोगों की तरह खुद को संवारने के लिए टीचर्स और बाकी छात्रों द्वारा मज़ाक का पात्र बनाया जाता है। ख़ासकर गे और ट्रांस छात्रों को ‘लड़की’ कहकर या ‘मीठा’, ‘छक्का’ जैसे आपत्तिजनक शब्दों से उन्हें चिढ़ाया जाता है। स्कूल प्रशासन इसके ख़िलाफ़ कोई कदम नहीं उठाता।

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मोरल पुलिसिंग का सबसे घटिया तरीका है छात्रों के आपसी रिश्तों को लेकर टिप्पणी करना। किसी छात्रा की बहुत सारे लड़कों से दोस्ती हो तो उसे पूरी क्लास के सामने टोका जाता है‌। कोई छात्र क्लास की किसी लड़की से करीब हो तो उसका मज़ाक बनाया जाता है। लड़कों और लड़कियों के बीच स्वस्थ और स्वच्छंद रिश्तों को रोकने के लिए हर तरह का प्रयास किया जाता है। चाहे लड़कों को लड़कियों से अलग बिठाने की प्रथा हो या छात्रों को आपस में गले मिलने से रोकने वाले नियम।

शिक्षकों को समझना चाहिए कि स्कूल में अनुशासन ज़रूरी है, पर इसका मतलब यह नहीं कि हम छात्रों के व्यक्तिगत रिश्तों और पसंद-नापसंद पर हस्तक्षेप करें। कोई छात्र अपने बालों को लाल रंग करवाए तो इससे उसकी पढ़ाई में कोई बहुत बड़ा फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। किसी छात्र का बॉयफ्रेंड है मतलब यह नहीं कि उसके बोर्ड में कम नंबर आएंगे। और कोई छात्र अगर “लड़कियों की तरह” लंबे बाल रखना और नथ पहनना पसंद करता है तो इससे स्कूल को रत्तीभर का फ़र्क़ नहीं पड़ना चाहिए। स्कूल और शिक्षकों का काम है छात्रों को पढ़ाना, उनकी प्रतिभा के विकास पर ध्यान देना, और करियर के मामलों में उनका मार्गदर्शन करना। छात्रों के व्यक्तिगत जीवन पर नियंत्रण करना उनका अधिकार नहीं है।

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तस्वीर साभार : financialexpress

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