स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य कोरोना महामारी के दौरान पीरियड्स से जुड़ी समस्याओं में क्यों हो रही बढ़ोतरी ?

कोरोना महामारी के दौरान पीरियड्स से जुड़ी समस्याओं में क्यों हो रही बढ़ोतरी ?

पीरियड्स से जुड़ी समस्याओं में कोरोना महामारी के कारण लागू हुए लॉकडाउन के दौरान डॉक्टरों के मुताबिक लगभग 20 से 25 फ़ीसद बढ़ोतरी हुई है।

कोरोना वायरस महामारी ने हम सबकी ज़िंदगी को किसी न किसी तरह से प्रभावित किया है। हमारी रोज़ की ज़िंदगी में इतने कम समय में इतने बड़े बदलाव शायद इससे पहले कभी नहीं आए हैं। ऐसे हालात में मानसिक तनाव का बढ़ना बेहद स्वाभाविक है। मगर क्या होता है जब इस मानसिक तनाव का असर महिलाओं के शरीर पर पड़ता है? जब हमारे शरीर की प्राकृतिक गतिविधियों के लिए यह तनाव एक बाधा बन जाए? डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना महामारी के दौरान पीरियड्स से जुड़ी समस्याओं में लगभग 20 से 25 फ़ीसद बढ़ोतरी हुई है। कई महिलाएं यह शिकायत कर रही हैं कि उनके पीरियड्स, जो पहले समय पर आते थे, अब देर से आने लगे हैं। कुछ महिलाओं के पीरियड्स अचानक बंद हो गए हैं। कुछ महिलाओं में पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) जैसी प्रजनन बीमारियों के लक्षण नज़र आए हैं। 

स्त्री-रोग विशेषज्ञ डॉ. अनीता मित्र ने 5677 महिलाओं का सर्वे किया, जिनमें से 65 फ़ीसद महिलाओं ने बताया कि उनके पीरियड्स अनियमित हो गए हैं और पीरियड्स के दौरान होने वाली शारीरिक तकलीफ़ भी बहुत बढ़ गई है। स्वास्थ्य-संबंधित वेबसाइट ‘प्रैक्टो’ के मुताबिक हर तीसरी औरत ने लॉकडाउन के दौरान स्त्री-रोग विशेषज्ञ से संपर्क करने की कोशिश की है। अखबार ‘नैशनल हेरल्ड’ से बात करते हुए दिल्ली की डॉ. अनुभा सिंह ने बताया, ‘कई मरीज़ों ने हमें फोन पर बताया कि वे पीरियड्स संबंधित समस्याओं से जूझ रहे हैं। उन सब से बात करने के बाद सामने आया कि वे मानसिक तनाव से पीड़ित हैं। इस महामारी के दौरान महिलाओं में तनाव बहुत बढ़ गया है। तनाव के कारण शरीर में कॉर्टीसॉल हॉर्मोन का संचार बढ़ जाता है। इससे हॉर्मोनल संतुलन बिगड़ जाता है जिसकी वजह से कई शारीरिक समस्याएं पैदा होती हैं।’

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लॉस एंजलिस की डॉ. साराह टोलर कहती हैं, ‘कॉर्टीसॉल एक स्ट्रेस हॉर्मोन है जिसका अत्याधिक संचार एस्ट्रोजेन जैसे प्रजनन हॉर्मोन्स का संचार रोक देता है। इसकी वजह से अंडाशय ठीक तरह से काम करना बंद कर देते हैं और पीरियड्स संबंधित समस्याएं आने लगती हैं।’ यह भी देखा गया है कि शरीर में इंसुलिन की कमी की वजह से लेप्टिन हॉर्मोन की मात्रा कम हो जाती है, जिसकी वजह से अक्सर पीरियड्स 7-8 दिन देर से आते हैं। इसे ‘ओलिगोमेनोरिया’ कहते हैं। पीरियड्स से जुड़ी समस्याओं के साथ साथ हॉर्मोनल असंतुलन से त्वचा और बालों की समस्याएं, मानसिक स्वास्थ्य पर असर, और बांझपन भी हो सकते हैं। 

सिर्फ़ अनियमित पीरियड्स ही नहीं, मानसिक तनाव पीसीओएस जैसी गंभीर प्रजनन समस्याओं का भी कारण बन सकता है। डॉ. सिंह कहती हैं, “अगर आपको पीसीओएस होने का रिस्क है तो तनाव से यह रिस्क बढ़ जाता है और आप इस बीमारी का शिकार हो सकते हैं। महामारी के दौरान ऐंग्ज़ायटी और पैनिक अटैक से पीरियड्स में तकलीफ़ भी बढ़ सकती है।”

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तनाव के अलावा हॉर्मोनल असंतुलन और शारीरिक समस्याओं का एक कारण है अस्वस्थ जीवन शैली। ‘द न्यूज मिनट’ से बात करते हुए चेन्नई की डॉ. अर्चना कहती हैं, “महामारी के दौरान लोगों की रोज़ की ज़िंदगी में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। नींद से जुड़ी समस्याएं हो रही हैं, खाना-पीना ठीक से नहीं हो पा रहा है और सब बहुत ज़्यादा तनाव में हैं। हमारे स्वास्थ्य पर इन सबका बहुत गहरा असर हुआ है। औरतों में इसका नतीजा हम पीरियड्स से जुड़ी समस्याओं के रूप में देख सकते हैं। लंबे समय तक हॉर्मोन्स में असंतुलन रहने से भी यह समस्याएं होती हैं।” 

यह हमने पहले भी देखा है किस तरह लॉकडाउन के दौरान महिलाओं की घर की ज़िम्मेदारियां बढ़ गई हैं, जिसके साथ-साथ उन्हें ‘वर्क फ्रॉम होम’ भी करना पड़ रहा है। इससे मानसिक दबाव काफ़ी हद तक बढ़ गया है, जिसका असर शरीर पर भी पड़ रहा है। इस तनाव को दूर करने के लिए कई औरतें भारी मात्रा में अपौष्टिक खाना खाती हैं या शराब और सिगरेट का सेवन करती हैं, जिससे समस्या बढ़ जाती है। लॉकडाउन के दौरान बाहर जाना नहीं हो पा रहा है, रोज़ व्यायाम करना भी नहीं हो पा रहा और हम लंबे समय तक बैठे या लेटे रहते हैं जो हमारे लिए ठीक नहीं है। 

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एक वैश्विक महामारी के दौरान मानसिक रूप से विचलित या तनावग्रस्त होना स्वाभाविक है। ऐसे में हमें अपनी तरफ़ ध्यान देने, अपना ख्याल रखने की थोड़ी और ज़रूरत है। ख़ासकर औरतों को, जिन्हें घर और बाहर दोनों की ज़िम्मेदारी संभालनी पड़ रही है, खुद का ध्यान रखने की बहुत ज़रूरत है।

अगर हम अपनी ज़िंदगी में कुछ छोटे-छोटे बदलाव लाएं तो शायद हम इस कठिन समय का मुकाबला कर सकते हैं। खाने-पीने की ओर ध्यान देकर और पर्याप्त मात्रा में नींद लेकर हम अपने शरीर का ध्यान रख सकते हैं। हमें अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी उतना ही ध्यान रखना चाहिए। हमें अपने आस-पास एक ऐसा माहौल बनाकर रखना जहां हम शांति से रह और काम कर सकें। जितना संभव हो उतना ख़ुश रहने की कोशिश करना ज़रूरी है और ज़रूरत पड़े तो हमें थेरपी की मदद लेने से झिझकना नहीं चाहिए। यह समय कठिन ज़रूर है पर थोड़ा धीरज रखने से और अपना पूरा ख्याल रखने से हम इससे भी बाहर आ सकते हैं।


तस्वीर साभार : thehindu

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