नारीवाद क्या नारीवादी होने का मतलब पुरुष विरोधी होना है ?

क्या नारीवादी होने का मतलब पुरुष विरोधी होना है ?

नारीवाद का सिद्धांत ये है कि किसी भी इंसान का उसके लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। ये पुरुषों का नहीं बल्कि पितृसत्ता का विरोध है।

अक्सर नारीवादी विचारधारा पर यह आरोप लगाया जाता है कि नारीवाद का मतलब पुरुषों का विरोध है। इस सवाल का जवाब देने के लिए हमें नारीवाद को समझना होगा। नारीवादी होने का मतलब है बराबरी की बात करना। नारीवाद यह मानता है कि औरत को पुरुष से सिर्फ लैंगिक आधार पर कमतर नहीं आंकना चाहिए। नारीवाद यह भी नहीं कहता कि मर्द और औरत समान हैं। बायोलॉजिकली, दोनों अलग हैं लेकिन इन बायोलॉजिकल भेदभावों की वजह से जो भेदभाव एक लड़की जीवनभर सहती है, नारीवाद उस भेदभाव का विरोध करता है।  

एक नारीवादी की यही मांग होती है कि घर में भाई की तुलना में मेरे साथ कम अच्छा बर्ताव सिर्फ इसलिए मत करो क्योंकि मैं एक लड़की हूं। ऑफिस में मेरे सहयोगियों की तुलना में मुझे सिर्फ इसलिए कम तनख्वाह मत दो क्योंकि मैं एक महिला हूं। ससुराल में मेरे करियर को आगे बढ़ने से सिर्फ इसलिए मत रोको क्योंकि मैं एक बहू हूं। मेरे लिंग की वजह से मेरे बारे में पूर्वाग्रहों का अनुसरण मत करो, बस यही मांग है नारीवाद की।  

अगर हम नारीवाद को इस तरीके से देखने और समझने की कोशिश करते हैं तो पाते हैं कि नारीवाद पुरुषों के खिलाफ नहीं है। नारीवाद सिर्फ बराबरी के हक़ की मांग कर रहा है। औरतों के हक़ को सदियों से छीना जा रहा है। अपने हक़ को वापिस लेने की इस प्रक्रिया में महिला बनाम पुरुष हो गया है, लेकिन नारीवाद का असली मकसद पुरुषों का विरोध करना नहीं है, उनसे नफरत करना नहीं है या समाज में सिर्फ महिलाओं की सत्ता स्थापित करना नहीं है।

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नारीवाद को पुरुष विरोधी कई आधारों पर कहा जाता है। मसलन, जो औरतें नारीवाद को मानती हैं वो पुरुषों से नफरत करती हैं। नारीवाद में विश्वास रखने वाली औरतें समाज से पुरुषों की सत्ता हटा देना चाहती हैं और समाज पर खुद शासन करना चाहती हैं। नारीवाद का अनुसरण करने वाली महिलाएं पुरुषों को दबाना चाहती हैं आदि।लेकिन वास्तविकता तो यह है कि नारीवाद समाज में से पुरुषों को हटाना नहीं, बल्कि औरतों को भी उनके बराबरी के अधिकार दिलाना है।

नारीवाद का सिद्धांत यह है कि किसी भी इंसान के साथ उसके लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। यह पुरुषों का नहीं बल्कि पितृसत्ता का विरोध है।

जहां तक रही घर की चार दीवारी की बात तो नारीवाद घर के कामों को पुरुष पर थोपना नहीं चाहता, घर में भी महिला और पुरुष एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करे। जहां तक रही समाज की बात तो नारीवाद समाज से पुरुषों की सत्ता खत्म करना नहीं चाहता बल्कि यह चाहता है कि हमारे सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनैतिक संस्थाओं में महिलाओं की भी बराबर की भागीदारी हो। नारीवाद ये भी चाहता है कि औरत का नज़रिया औरत खुद बताए, फिर वह घर के बारे में हो या बाहरी दुनिया के बारे में। नारीवाद यह भी चाहता है कि बाहरी दुनिया में ऐसी व्यवस्थाएं बनाई जाएं जो औरतों को घर से बाहर निकलने में मदद करे। नारीवाद यह भी चाहता है कि नारी को दूसरे दर्जे के व्यक्ति की तरह न देखा जाए बल्कि उसे एक सक्षम और समर्थ व्यक्ति के तौर पर देखा जाए। इसलिए ये कहना गलत होगा कि नारीवाद पुरुष-विरोधी है।

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हम इसे हाल में जोमैटो द्वारा घोषित पीरियड्स पॉलिसी से समझ सकते है। इस पॉलिसी के तहत जो भी महिलाएं पीरियड्स के दौरान छुट्टी लेना चाहती हैं, वे साल भर में अधिकतम 10 पीरियड्स लीव ले सकती हैं। महिलाओं को दी गई ये अतिरिक्त 10 छुट्टियां पुरुषों के प्रति नफरत की वजह से नहीं दी गई हैं बल्कि इसलिए दी गई हैं क्योंकि पीरियड्स के दौरान कुछ महिलाएं बहुत ही कष्टदायी दर्द से गुजरती हैं। जोमैटो की 10 दिन की ये छुट्टियां महिलाओं के इस कष्टदायी दर्द को पहचानते हुए एक ऐसा कार्यस्थल बनाने की कोशिश की ओर पहला कदम है जो महिलाओं के प्रति सवंदेनशील हो। यह लैंगिक समानता की ओर बढ़ाया गया कदम है। पीरियड्स लीव महिलाओं का विशेषाधिकार नहीं बल्कि उनका अधिकार है।

इसलिए नारीवाद होना परिवार, समाज और देश के लिए बुरा नहीं है बल्कि अच्छा है। नारीवाद वह ज़रिया है जिसके कारण ज्यादा से ज्यादा औरतें हमें बोलती हुई, अपना नज़रिया रखती हुई, विभिन्न प्रकार के कार्यक्षेत्रों में नेतृत्व करती हुई नजर आती हैं। नारीवाद महिलाओं को उनके बराबरी के हक दिलाने की ओर बढ़ाया गया एक कदम है, एक आंदोलन है जो किसी एक लिंग को विशेषाधिकार देने की नहीं बल्कि लैंगिक समानता की वकालत करता है। नारीवाद का सिद्धांत ये है कि किसी भी इंसान के साथ उसके लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। ये पुरुषों का नहीं बल्कि पितृसत्ता का विरोध है।

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तस्वीर साभार : epw

Comments:

  1. Shalini says:

    Well explained. But there are grammatical and spelling mistakes in the article. Keep writing in Hindi it will have wider reach.

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