इंटरसेक्शनलहिंसा ऑफलाइन हिंसा का विस्तार है ऑनलाइन हिंसा | #AbBolnaHoga

ऑफलाइन हिंसा का विस्तार है ऑनलाइन हिंसा | #AbBolnaHoga

संचार क्रांति के विकास ने महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा का एक और द्वार खोल दिया । अब महिलाओं को ऑनलाइन हिंसा का भी सामना करना पड़ रहा है

पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था में सत्ता को संचालित करने का अधिकार अघोषित रूप से पुरुषों के हाथ में है जिसका सीधा सा अर्थ है उन्हें श्रेष्ठ और शक्तिमान माना जाता है। धर्म, समाज और रूढ़िवादी परंपरा पितृसत्ता को अधिक ताकतवर बनाती है। इससे पुरुष की सोच और उसके कृत्यों को और ज्यादा मजबूती मिलती है।  इसी व्यवस्था के तहत सदियों से पुरुष महिलाओं को अपनी इच्छा के अनुरूप संचालित  करता आ रहा है। घर के पुरुष सदस्य, दादा,पिता,चाचा ,भाई ,पति ,बेटा घर की महिलाओं की गतिविधियों पर अंकुश लगाने का अधिकार रखते हैं। यह अधिकार पुरुष को कब और किसने दिया इसका कोई लिखित अधिनियम या कानून नहीं मगर सदियों से ऐसा होता आ रहा है जिसे सामाजिक तौर पर मान्यता मिली हुई है। यही पितृसत्तात्मक मान्यताएं आगे चलकर ऑफलाइन और ऑनलाइन हिंसा का रूप ले लेती हैं।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने इस बारे में उल्लेख किया गया है कि विषाक्त मर्दानगी की भावनाएं पुरुषों के जहन में बहुत छोटी उम्र से ही बैठा दी जाती हैं। उन्हें ऐसी सामाजिक व्यवस्था का आदी बनाया जाता है, जहां पुरुष ताकतवर और नियंत्रण रखने वाला होता है। साथ ही उन्हें यह विश्वास दिलाया जाता है कि लड़कियों और महिलाओं के प्रति प्रभुत्व का व्यवहार करना ही उनकी मर्दानगी है। इसी वातावरण में जन्मी और पली बढ़ी लड़कियां बचपन से ही इस व्यवस्था के अनुकूल ढल जाती हैं। वे सोच ही नहीं पाती कि इसके इतर भी दुनिया का स्वरूप हो सकता है। आज 21वीं सदी के बीसवें वर्ष में भी हम बेटे के जन्म लेने पर थाली बजाते हैं मगर बेटी के जन्म लेने पर चुप्पी साध लेते हैं मानो कोई मातम की खबर आई हो। लड़कियों के अभिवावकों को सांत्वना मिलने लगती हैं, लक्ष्मी आई है,अपने भाग्य का खाएगी। मानो बेटा पैदा होते ही अपना कमाया खाने लग जाएगा।

शुरू से लड़कियों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाने लगता है। उसके बड़े होने पर उसकी पढ़ाई ,उसके स्वास्थ्य और दूसरी मूलभूत आवश्यकताओं को न्यूनतम खर्च में पूरा करने का जुगाड़ किया जाता है। इसके पीछे यही भावना होती है कि इसे दूसरे घर जाना है और शादी में दहेज़ भी देना होगा। ये भी वे ख़ुशक़िस्मत बेटियां होती हैं जो कोख में मारी नहीं गईं वरना लड़कियों की भ्रूण हत्या का सिलसिला तो तमाम कानून बन जाने के बावजूद भी आज भी अनवरत रूप से चल रहा है। सशक्त अपनी शक्ति का प्रयोग अशक्त पर हमेशा से ही करता आया है और पुरुषों के लिए तो महिला हमेशा से ही सॉफ्ट टारगेट रही हैं। सर्वे हमे बताते हैं कि भारत में महिलाओं की कुल आबादी में से एक तिहाई महिलाएं घरेलू हिंसा का दंश झेल रही हैं।

संचार क्रांति के विकास ने महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के लिए एक और द्वार खोल दिया है। 

और पढ़ें : आइए जानें, क्या है ऑनलाइन लैंगिक हिंसा | #AbBolnaHoga

ज्यादातर घरेलू हिंसा (शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक )के पीछे बहुत छोटे-छोटे से कारण होते हैं। जैसे घर के मुखिया को मनपसंद और समय पर खाना न मिलना, बच्चों की पढ़ाई और उनके आचरण से संतुष्ट न होना, घर की सफाई ठीक से न होना, उसकी अनिच्छा के बावजूद मायके वालों से संबंध रखना, घर से बाहर निकलना, बाहरी लोगों से संपर्क रखना या पुरुष की इच्छा न होने के बावजूद नौकरी करना, ऑफिस से घर आने में देर हो जाना ,सहकर्मियों से बातचीत करना ,मन मुताबिक दहेज़ न मिलना आदि। यह कितना विस्मय और व्यथित कर देने वाला तथ्य है कि महिलाओं के बहुत जीवट और जिजीविषा से भरपूर होने के बावजूद हिंसा की शिकार होने वाली महिलाओं की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है। 

संचार क्रांति के विकास का एक सकारात्मक पहलू यह है कि हमारा संपर्क एक दूसरे से बना रहे। मगर जब उस तकनीक का इस्तेमाल नकारात्मकता के साथ किया जाता है तो उसके दुष्परिणाम हमें देखने को मिलते हैं। संचार क्रांति के विकास ने महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के लिए एक और द्वार खोल दिया है। अब लड़कियों और महिलाओं को परिवार, दफ्तरों, सार्वजनिक स्थलों पर ही नहीं बल्कि ऑनलाइन हिंसा का भी सामना करना पड़ रहा है जो और भी ज्यादा खतरनाक और मानसिक प्रताड़ना देने वाला है। सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों जैसे व्हाट्सअप, फेसबुक मैसेंजर, इंस्टाग्राम आदि से जहां लोग आपस में जुड़ रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ इससे धोखाधड़ी, ब्लैकमेल, धमकियां देने, बदनाम करने जैसे कृत्यों को अंजाम देना भी आसान हो गया है। महिलाएं इसका सॉफ्ट टारगेट बनती हैं क्योंकि इससे महिलाओं की प्रतिष्ठा खराब करना सबसे आसान होता है। किसी के न चाहने पर भी बार-बार फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजना और मैसेज करना आजकल बहुत आम बात हो गयी है परन्तु लड़कियों के लिए यह बहुत परेशानी का कारण बन जाता है। वो सोशल मीडिया से अपने आपको अलग कर लेती हैं जिससे उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अप्रत्यक्ष रूप से हनन होता है। महिलाओं को उनके साथ की गई चैट, शेयर की गई फोटो आदि को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने अथवा उन्हें वायरल करने की धमकियां मिलती हैं। कई बार उन्हें ब्लैकमेल कर उनसे पैसे ऐंठे जाते हैं।

और पढ़ें : आइए समझें, क्या है लैंगिक हिंसा ? | #AbBolnaHoga

ऐसे में महिलाएं दोहरी मार झेलने को मजबूर हैं। वे परिवार वालों को बताती हैं तो उनके सोशल मीडिया पर पाबंदी लगा दी जाती है जबकि दोषी वे नहीं होती। उनके घर से बाहर निकले पर रोक लगा दी जाती है, उनकी पढ़ाई छुड़वा दी जाती है, यहां तक कि उसकी नौकरी भी छुड़वा दी जाती है। यह कितनी बड़ी विडंबना है की पीड़ित को ही सजा दी जाती है। यदि पीड़िता घर पर यह सब नहीं नहीं बताती हैंतो वो इस दंश को अकेले भोगने को अभिशप्त होती हैं। अवांछित मांगों को मानना उसकी मजबूरी बन जाती है। यह मजबूरी उसे अवसाद का शिकार बना सकती है। इसके अलावा कंप्यूटर हैकिंग, साइबर-स्टॉकिंग द्वारा भी किसी व्यक्ति या समूह को धमकाने और उसके बारे में झूठी जानकारी फैलाने जैसे काम किए जाते हैं जो एक तरह की ऑनलाइन हिंसा ही है। ऑनलाइन हिंसा की चपेट में आने वालों में भी महिलाओं की संख्या ज्यादा है क्योंकि उनको समाज में उनकी छवि धूमिल करने की धमकी देकर बहुत आसानी से डराया धमकाया जाता है। 

ऐसा नहीं है कि ऑफलाइन और ऑनलाइन हिंसा के खिलाफ हमारे देश में कानून नहीं है। मगर हमारा सामाजिक ढांचा महिलाओं को खुलकर अपनी समस्या बताने में आड़े आ जाता है। इसलिए कानून बनाने से ज्यादा जरूरी है ऐसे समाज का निर्माण किया जाए जहां बेटी और बेटे में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं हो। पुरुष और महिला मिलकर समाज की सरंचना करते हैं। महिलाओं पर होने वाली हिंसा सिर्फ महिलाओं के सशक्त होने से भी समाप्त नहीं हो जाएगी। जब तक पुरुषों की मानसिकता में सुधार नहीं होगा तब तक यह सिलसिला नहीं रुकेगा। निश्चित रूप से पुरुष अपनी सत्ता को आसानी से अपने हाथ से निकलने नहीं देंगे। यह लड़ाई बहुत लम्बी और कठिन है मगर एक अच्छी सशक्त शुरुआत से अच्छे परिणाम के संकेत हमें मिलते हैं। 

हम अभी भी संभल जाएंगे तो हमारी आगे की पीढ़ियां ऐसे समाज में सांस ले पाएंगी जो बराबरी की दुनिया होगी। जहां लड़के और लड़की में कोई भेद नहीं होगा और महिलाओं के पास सिर्फ कागजी समान अधिकार नहीं बल्कि हकीकत में उनके पास होंगे। ऐसे मानवीय मूल्यों वाले समाज में महिलाओं को सही मायनों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त होगी। यह उम्मीद तो हम कर ही सकते हैं कि महिलाओं को अपने से कमतर समझने और उनको पीड़ित करने वाली पुरुषों की भावना कभी तो शर्मसार होगी और उनको इंसानियत का सही पाठ समझ आएगा कि जो वो अब तक करते आए हैं वह ठीक नहीं था। जब पितृसतात्मक व्यवस्था को खुद खारिज़ करने वाली सोच के साथ पुरुष महिला को अपने जैसा ही एक इंसान मानने लगेगा तब ही महिलाएं ऑफ़लाइन हिंसा के साथ साथ ऑनलाइन हिंसा से बच पाएंगी। 

और पढ़ें : साइबर क्राइम की शिकायत कैसे करें | #AbBolnaHoga


यह लेख वीना करमचन्दाणी ने लिखा है जो सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ,राजस्थान सरकार में पूर्व सहायक निदेशक रह चुकी हैं।

तस्वीर साभार : सुश्रीता भट्टाचार्जी

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content