इंटरसेक्शनलशरीर हमारे घरों से होती है बॉडी शेमिंग की शुरुआत

हमारे घरों से होती है बॉडी शेमिंग की शुरुआत

लेकिन अब वो वक़्त आ गया है कि हम ठहरे और खुद से पूछे कि क्या वास्तव में 'परफेक्ट बॉडी' जैसा कुछ होता भी है? एक 'इम्पर्फेक्ट इंसान' की 'परफेक्ट बॉडी' कैसे हो सकती है?

बॉडी शेमिंग का मतलब होता है किसी भी व्यक्ति का उसके शरीर के आकार, वजन, रंग आदि की वजह से उसे शर्मिंदा करना। बॉडी शेमिंग अक्सर महिलाओं के साथ सबसे अधिक देखने को मिलती है। उदाहरण के तौर पर अक्सर लड़कियों और महिलाओं को ऐसी बातें सुनने को मिलती हैं, “सांवली हो, इतनी सुन्दर नहीं हो, कम से कम थ्रेडिंग तो करवा लिया करो, कितने बाल है तुम्हारे चेहरे पर कुछ करती क्यों नहीं, लड़कियों को अपने वज़न पर काबू रखना चाहिए” वगैरह,वगैरह। सामान्य लगने वाली ये बातें न जाने कितनी ही बार लड़कियां और महिलाएं को सुननी पड़ती हैं। लेकिन ये बातें सामान्य बिल्कुल नहीं हैं। ये बातें हमारी एक गहरी रूढ़िवादी मानसिकता की और इशारा करती है और यह मानसिकता आज भी एक ‘परफेक्ट बॉडी’ को ही एक सामान्य शरीर मानती है।  

परफेक्ट बॉडी के ये मापदंड हर लड़की से उम्मीद रखते हैं कि वह गोरी, पतली होनी चाहिए लेकिन ज्यादा पतली भी नहीं, उसके शरीर पर बहुत ज्यादा बाल नहीं होने चाहिए और अगर हो भी तो समय-समय पर वैक्सिंग करवानी चाहिए, कमर पर ज्यादा चर्बी नहीं चढ़ी होनी चाहिए, जांघें मोटी नहीं होनी चाहिए, स्तनों की लम्बाई-चौड़ाई बहुत कम नहीं होनी चाहिए और न जाने क्या-क्या। ये सारे मापदंड बार-बार मजबूर करते हैं लड़कियों और महिलाओं को यह मानने पर कि उनके शरीर में कोई कमी है, वे अच्छी नहीं दिखती। मन में ऐसी बातों का घर कर जाने से न सिर्फ लड़कियां अपने शरीर पर फेस पैक, हल्दी, दूध- दही जैसे सामानों का उपयोग करने पर मजबूर हो जाती है बल्कि मन ही मन खुद को कमतर भी आंकने लगती हैं।   

परफेक्ट बॉडी की ये मांग घर से ही शुरू होती है। थोड़ा सा वजन बढ़ा नहीं कि “मोटी हो रही हो, शादी कैसे होगी” जैसे तानों की बौछार कर दी जाती है। ज्यादा पतले हो जाने पर घर से बाहर निकलना दूभर कर दिया जाता है- “घर वाले खाना नहीं देते क्या” “इतनी पतली हो, बच्चे कैसे पैदा करोगी”, ऐसे न जाने कितने ताने दिए जाते हैं। काफी लम्बे समय से अगर आईब्रोस या अपरलिप्स के बाल न हटवाए जाए तो यह तक कह दिया जाता है कि “मर्दों जैसी दाढ़ी-मूंछ क्यों उगा रखी है”, “भालू लग रही हो”। अगर बगलों के बाल न हटवाए जाएं तो घरवालों के ही नाक सिकुड़ जाते हैं। बगलों के बाल हटाएं बगैर स्लीवलेस कपड़े पहनने के बारे में सोच भी लिया जाए, तो वहीं डांट-फटकार दिया जाता है। लड़कियों के बगलों के बालों को गंदगी की तरह देखा जाता है। ऐसे बालों वाली तस्वीरें को अगर कोई लड़की सोशल मीडिया पर अपलोड करती है तो न इन तस्वीरों को घिनौनी तस्वीरों की उपाधि दी जाती है। इस तरह के व्यवहार से हम लड़कियों को मजबूर किया जाता है अपने मौजूदा शरीर से नफरत करने के लिए, हमारे अंदर आत्मविश्वास की जगह खुद पर शक करना सिखाया जाता है। मात्र यही नहीं, इस नफरत के साथ-साथ हमारे दिमाग में यह भी भरा जाता है कि उन्हें पूरी जिंदगी ‘परफेक्ट बॉडी’ के लक्ष्य का पीछा करना है। नतीजन, लड़कियां ऐसा करती हैं और अपनी बेटियों को भी यही सिखाती हैं कि कैसे उन्हें एक ‘परफेक्ट बॉडी’ हासिल करनी चाहिए।।

लेकिन अब वो वक़्त आ गया है कि हम ठहरे और खुद से पूछे कि क्या वास्तव में ‘परफेक्ट बॉडी’ जैसा कुछ होता भी है? एक ‘इम्पर्फेक्ट इंसान’ की ‘परफेक्ट बॉडी’ कैसे हो सकती है?

और पढ़ें :  खुला ख़त : उन लोगों के नाम, जिनके लिए सुंदरता का मतलब गोरा होना है।

बॉडी शेमिंग का सामना सिर्फ शादी से पहले ही नहीं बल्कि बाद में तो और भी ज्यादा करना पड़ता है, ख़ास तौर पर जब एक लड़की गर्भवती होती है। आम तौर पर बच्चे पैदा करने के बाद महिला के शरीर में काफी बदलाव होते हैं। समाज की नज़रों में वह पहले जैसी ‘अट्रैक्टिव’ नहीं रह जाती। शरीर में इस बहुत बड़े बदलाव की वजह से न सिर्फ एक महिला इस समाज की पितृसत्तात्मक सोच से उपजी बॉडी शेमिंग का सामना करती है बल्कि वह क्या पहन सकती है क्या नहीं, इसके लिए भी उसे अपने आस-पास के लोगों की पसंद के अनुसार चलना पड़ता है।       

लेकिन अब वो वक़्त आ गया है कि हम ठहरे और खुद से पूछे कि क्या वास्तव में ‘परफेक्ट बॉडी’ जैसा कुछ होता भी है? एक ‘इम्पर्फेक्ट इंसान’ की ‘परफेक्ट बॉडी’ कैसे हो सकती है? ‘परफेक्ट बॉडी’ की परिभाषा बस बाज़ार और पितृसत्ता ने मिलकर गढ़ी है। जब तक हम इस बात को नहीं समझेंगे तब तक हम मजबूर करेंगे लड़कियों और महिलाओं को ‘परफेक्ट बॉडी’ के इस लक्ष्य के पीछे भागने के लिए और अगर वे ऐसा नहीं कर पाए तो हम उनकी बॉडी शेमिंग करेंगे। इसलिए समस्या का निदान तभी संभव है जब हम खुद से ये सवाल करे कि क्या किसी भी व्यक्ति की (फिर भले ही वो लड़का हो या लड़की) एक ‘परफेक्ट बॉडी’ हो सकती है? क्या ऐसा कभी संभव भी है?

और पढ़ें : बॉडी डिसमोर्फिक डिसॉर्डर : एक बीमारी जिसमें अपने शरीर से ही नफ़रत होने लगती है।

बॉडी पाजिटिविटी की इस दिशा में दुनिया भर में कई सारे आंदोलन भी शुरू हुए है। लेकिन सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण बदलाव तब शुरू होगा जब हम अपने घरों से ऐसे शुरुआत करेंगे। अगली बार जब आपकी बेटी आपके पास आए और कहे, “मां, मेरी कमर कितनी मोटी है न”, तो उसे आप यह जवाब दीजिए, “किसने कहा पतली कमर सुंदरता का पैमाना है?” जब तक हमारे घरों में इस तरह की बातें नहीं होंगी और परफेक्ट शरीर पाने के लिए सिर्फ ताने ही ताने होंगे तब तक बॉडी शेमिंग कभी खत्म नहीं होगी। हर इंसान को ये फैसला लेने का हक़ है कि उसे कितना वजन चाहिए, कैसा रंग-रूप चाहिए, आदि। हम बार-बार मदद/ सलाह के नाम पर बॉडी शेमिंग कब बंद करेंगे?    

और पढ़ें : फैट ऐकसेपटेंस : क्योंकि मोटे होने में शर्म कैसा?


तस्वीर साभार : सुश्रीता भट्टाचार्जी

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content