संस्कृतिकिताबें मन्नू भंडारी : अपने लेखन के ज़रिये लैंगिक असमानता पर चोट करने वाली लेखिका

मन्नू भंडारी : अपने लेखन के ज़रिये लैंगिक असमानता पर चोट करने वाली लेखिका

मन्नू भंडारी, जिन्होंने लैंगिक असमानता, वर्गीय असमानता और आर्थिक असमानता को अपनी कहानियों के माध्यम से दूर करने की कोशिश की।

अंग्रेज़ों से आज़ादी के बाद देश को जाति, धर्म और लैंगिक असमानता जैसे मुद्दों से अभी आज़ादी लेनी बाकी थी जिसके लिए उस दौर के क्रांतिकारी लेखकों ने अपनी कलम उठाई और इन विषयों को एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनाकर उन पर लिखना शुरू किया। इन क्रांतिकारी लेखकों की सूची में से एक थी मन्नू भंडारी, जिन्होंने लैंगिक असमानता, वर्गीय असमानता और आर्थिक असमानता को अपनी कहानियों के माध्यम से दूर करने की कोशिश की। मन्नू भंडारी हिन्दी की लोकप्रिय कहानीकारों में से एक हैं।

मन्नू भंडारी का शुरुआती जीवन

हिंदी की प्रसिद्ध कहानीकार और उपन्यासकार मन्नू भंडारी का जन्म 3 अप्रैल 1931 को मध्यप्रदेश में मंदसौर ज़िले के भानपुर गांव में हुआ। मन्नू का बचपन का नाम ‘महेंद्र कुमारी’ था। मन्नू भंडारी के पिता का नाम सुख संपत राय था। वह उस दौर के जाने-माने लेखक और समाज सुधारक थे जिन्होंने स्त्री शिक्षा पर बल दिया। वह लड़कियों को रसोई में न भेजकर, उनकी शिक्षा को प्राथमिकता देने के समर्थक थे। मन्नू के व्यक्तित्व निर्माण में उनके पिता का काफी योगदान रहा। उनकी माता का नाम अनूप कुंवरी था जो कि उदार, स्नेहिल, सहनशील और धार्मिक प्रवृति की महिला थी। इसके अलावा परिवार में मन्नू के चार-बहन भाई थे। बचपन से ही उन्हें, प्यार से ‘मन्नू’ पुकारा जाता था इसलिए उन्होंने लेखन में भी अपने नाम का चुनाव मन्नू को ही किया। लेखक राजेंद्र यादव से शादी के बाद भी महेंद्र कुमारी मन्नू भंडारी ही रही। मन्नू भंडारी ने अजमेर के ‘सावित्री गर्ल्स हाई स्कूल’ से शिक्षा प्राप्त की और कोलकाता से बीए की डिग्री हासिल की थी। उन्होंने एमए तक शिक्षा ग्रहण की और वर्षों तक दिल्ली के मिरांडा हाउस कॉलेज में पढ़ाया।

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लेखन और रचनाएं

मन्नू भंडारी मिरांडा कॉलेज में बतौर हिंदी की प्राध्यापिका के पद पर बनी रही और उन्होंने साल 1991 तक प्रध्यापिका का कार्यभार संभाला। सेवानिवृत होने के बाद वह दो साल तक उज्जैन में प्रेमचंद सृजनपीठ की निदेशिका (1992-1994) के पद पर कार्यरत रही थी। उन्होंने अपने लेखन कार्यकाल में कहानियां और उपन्यास दोनों लिखे हैं। ‘मैं हार गई’ (1957), ‘एक प्लेट सैलाब’ (1962), ‘यही सच है’ (1966), ‘त्रिशंकु’, ‘तीन निगाहों की एक तस्वीर’ और ‘आंखों देखा झूठ’ उनके द्वारा लिखे गए कुछ महत्त्वपूर्ण कहानी संग्रह है। उन्होंने अपनी पहली कहानी ‘मैं हार गई’ अजमेर में ही लिखी थी जो काफी मशहूर हुई थी।

उनका उपन्यास ‘आपका बंटी’ जिसे 1971 में लिखा गया था हिन्दी के सफलतम उपन्यासों में गिना जाने वाला उपन्यास है । इस उपन्यास को विवाह विच्छेद की त्रासदी में पिस रहे एक बच्चे को केंद्र में रखकर लिखा गया था। वहीं, उनका उपन्यास ‘एक इंच मुस्कान’ जिसे साल 1962 में लिखा गया, जिसमें पढ़े-लिखे आधुनिक लोगों की एक दुखांत प्रेमकथा है। एक इंच मुस्कान मन्नू भंडारी का पहला उपन्यास था। इस उपन्यास को उन्होंने अपने पति राजेंद्र यादव के साथ मिलकर लिखा था। साल 1979 में उनके द्वारा लिखे ‘महाभोज’ जैसे उपन्यास में भ्रष्टाचार में लिप्त अफसरशाही के बीच आम आदमी की पीड़ा और दर्द और दलित समुदाय के शोषण को दर्शाया गया है। इसी प्रकार उनके उपन्यास ‘यही सच है’ पर बनी फिल्म ‘रजनीगंधा’ भी अत्यंत लोकप्रिय हुई थी और उसको 1974 की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। साथ ही उनके उपन्यास स्वामी पर भी एक फिल्म बनाई गई जिसे बासु भट्टाचार्जी ने डायरेक्ट किया था।

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मन्नू भंडारी द्वारा हासिल किए गए पुरस्कारों और सम्मान की सूची काफी लंबी है उन्हें हिन्दी अकादमी, दिल्ली का शिखर सम्मान, बिहार सरकार, भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, व्यास सम्मान और उत्तर-प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है।

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तस्वीर साभार : फेसबुक

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