इंटरसेक्शनलजेंडर वर्जिनिटी का मुद्दा औरतों की आज़ादी के ख़िलाफ़ रचा गया षड्यंत्र ही है

वर्जिनिटी का मुद्दा औरतों की आज़ादी के ख़िलाफ़ रचा गया षड्यंत्र ही है

भारतीय समाज में अगर एक औरत अपनी शादी से पहले यौनसंबंध की कल्पना भी करे तो उसे अपराध बोध महसूस करवाया जाता है। जब कोई स्त्री इस कल्पना को अपने जीवन में सार्थक कर ले तो उसे चरित्रहीन घोषित कर दिया जाता है।

हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां आधुनिकता और परंपरा दोनों साथ-साथ चलती हैं। आज भी हम भारतीय हैं ना तो पूरी तरह आधुनिक हो पाए हैं और ना ही पूरी तरह परंपराओं को छोड़ पाए हैं। कई मामलों में हमारे समाज के विचार विरोधाभासी या पाखंडी प्रतीत होते हैं। शादी एक ऐसा ही विषय है जब भी जीवन साथी के चुनाव का सवाल होता है तो उसका दायरा बहुत सीमित कर दिया जाता है। विषमलैंगिक संबंध के सीमा के अंदर रहकर ही उचित जेंडर, जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, त्वचा का रंग, क्षेत्रीय, शिक्षा, स्वस्थ शरीर, आर्थिक और सामाजिक स्थितियों को ध्यान में रखकर जीवनसाथी का चुनाव किया जाता है। भारतीय समाज में अधिकतर शादी या विवाह संस्कार परिवार ही संपन्न करते हैं। हालांकि हमारे समाज में प्रेम-विवाह भी होते हैं लेकिन इस तरह के संबंधों को आज भी खुलकर सामाजिक तौर पर स्‍वीकार नहीं किया जाता है।

भारतीय समाज में अगर एक औरत अपनी शादी से पहले यौनसंबंध की कल्पना भी करे तो उसे अपराध बोध महसूस करवाया जाता है। जब कोई स्त्री इस कल्पना को अपने जीवन में सार्थक कर ले तो उसे चरित्रहीन घोषित कर दिया जाता है। वेश्या, बुरी औरत जैसे तमगे दे दिए जाते हैं क्योंकि हमारे ज़हन में ‘आदर्श स्त्री’ या ‘अच्छी स्त्री’ के विचार को ऐसे गढ़ा गया है कि सभी स्‍त्रियों का धर्म हो जाता है इस ‘आर्दश’ को प्राप्‍त करना तभी उनका जीवन सार्थक बनता है। ‘आदर्श स्त्री’ के रूप या विचार को गढ़ने में पौराणिक ग्रंथों की भी एक अहम भूमिका रही है। जैसे सावित्री और सीता को स्त्रीत्व के आदर्श के रूप में दिखाया गया है। इन्हीं पौराणिक ग्रंथों में हमें सूर्पनखा जैसी चरित्र को बुरी स्‍त्री के रूप में गढ़ा गया है, जो अपने प्रेम के बारे में खुलकर बातें करती है। हमारे समाज में बुरी स्त्री और अच्‍छी स्‍त्री के चरित्र गढ़कर उन्‍हें अलग-अलग खानों में बांट दिया गया है।

और पढ़ें : हाँ, चरित्रहीन औरतें सुंदर होती हैं!

पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की वर्जिनिटी भी हमेशा केंद्र में रही है। यौनसाथी का चुनाव का अधिकार आज भी बहुत सी लड़कियों के पास नहीं है। इसीलिए उनका यौनजीवन शादी के बाद ही शुरू हो पाता है जिसमें उन्हें सिर्फ अपने पति की ज़रूरतों को पूरा करने वाले की भूमिका में देखा जाता है। इस तरह लोकतांत्रिक देश में शादी से यौन संबंध बनाना स्त्री को एक बड़े संदेह के घेरे में खड़ा कर देता है क्योंकि इस पितृसत्तात्मक समाज में वर्जिनिटी का भंग होना उनके शादीशुदा जीवन में खतरे पैदा कर सकता है। बहुत से समुदायों में आज भी शादी की पहली रात को सफेद चादर बिछाकर स्त्री के कौमार्य टेस्ट या जांच की जाती है कि वह कुंवारी है या नहीं। जबकि विज्ञान यही कहता है कि यह जांच या टेस्ट अवैज्ञानिक होता है क्योंकि हायमन कई कारणों से छिन्न हो सकता है जैसे कि व्यायाम, खेलकूद, साइकलिंग आदि के दौरान। वर्जिनिटी के मुद्दे में अपराध और शर्म को भी जोड़ा जाता है।

भारतीय समाज में अगर एक औरत अपनी शादी से पहले यौनसंबंध की कल्पना भी करे तो उसे अपराध बोध महसूस करवाया जाता है। जब कोई स्त्री इस कल्पना को अपने जीवन में सार्थक कर ले तो उसे चरित्रहीन घोषित कर दिया जाता है।

वर्जिनिटी की अवधारणा वैचारिक है, यह एक सामाजिक निर्माण है जो उन विचारों और विश्वासों से संचालित होता है जो हमारे समाज की पितृसत्तात्मक और रूढ़िवादी सोच में मौजूद हैं। इस विचार के आसपास के दबाव, मिथक और अपेक्षाएं, मनुष्यों द्वारा बनाए गए मानदंडों और विचारों का उत्पाद है। जब हम पहली बार सेक्स करते हैं तो हम वास्तव में कुछ भी नहीं खोते हैं। यह हमारी पहचान नहीं बदलता है, यह जीवन नहीं बदलता और न ही यह हमारे चरित्र को प्रभावित करता है। यह बस एक नया अनुभव है। लेकिन वर्जिनिटी की अवधारणा उन लोगों की प्रशंसा करती है जो ‘शुद्ध’ रहते हैं और शादी से पहले यौन संबंध बनाने वालों को शर्मसार करते हैं। शुद्धता के विचार का उपयोग हमें सामाजिक मानदंडों, विशेष रूप से औरतों को नियंत्रण करने के लिए किया जाता है। यह इस विचार को पुष्ट करता है कि महिलाओं में कामुकता की कमी होती है। वर्जिनिटी को एक कमोडिटी के रूप में माना जाता है जिसे खो दिया जा सकता है। इस अवधारणा के अनुसार, जब कोई महिला सेक्स करती है, तो वह चरित्रहीन हो जाती है। वर्जिनिटी लंबे समय से एक ‘महिला के मूल्य’ का निर्धारण करने में एक महत्वपूर्ण कारक रहा है। 

और पढ़ें : अग्नि परीक्षा के बहाने इसके मूल मुद्दे ‘वर्जिनिटी’ की बात !

इसलिए समाज में हमें दोहरे मापदंड दिखाई देते हैं जहां एक तरफ पुरुष जब अपना कौमार्य खोता है तो उसे वर्ज पुरुषत्व प्राप्त करना समझा जाता है वहीं दूसरी तरफ स्त्री द्वारा कौमार्य भंग होने पर उसे चरित्रहीन समझा जाता है। अगर हम वर्जिनिटी के इस विचार का खंडन करना शुरू करते हैं, तो यह सेक्स, यौन संबंधों और उससे जुड़े मुद्दों के बारे में स्वस्थ विचारों को बढ़ावा देने की ओर एक कदम होगा। ज़रूरत इस बात कि है कि हानिकारक सामाजिक निर्माण करने वाली इस अवधारणा को खंडित किया जाए तथा सेक्स के बारे में अपने निर्णय स्वतंत्र रूप से लिए जाने के लिए माहौल बनाए जाए।

और पढ़ें : महाराष्ट्र का कंजरभाट समुदाय,जहां पंचायत करती है महिलाओं का वर्जिनिटी टेस्ट


तस्वीर साभार : Medium

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content