इंटरसेक्शनलहिंसा प्रमोदिनी रॉल : एक एसिड अटैक सर्वाइवर जिन्होंने खुद लड़ी अपने इंसाफ़ की जंग

प्रमोदिनी रॉल : एक एसिड अटैक सर्वाइवर जिन्होंने खुद लड़ी अपने इंसाफ़ की जंग

प्रमोदिनी रॉल यानी रानी केवल महिलाओं की नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए एक मिसाल है जो मुश्किल से मुश्किल समय में भी डटकर लेने की प्रेरणा देती हैं ।

आए दिन हम लड़कियों और महिलाओं के साथ बलात्कार, घरेलू हिंसा जैसे अपराध होने की घटनाओं की खबरें सुनते रहते हैं। महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले इन्हीं अपराधों में से एक भयावह अपराध का नाम है -एसिड अटैक। जो भारत में पिछले कुछ वर्षों में बहुत अधिक चर्चा में आया है और अभी भी एसिड अटैक के केस सामने आते ही रहते हैं। ऐसा ही एक अपराध एक 15 साल की लड़की के साथ साल 2009 में हुआ था। यह कहानी उड़ीसा के एक ज़िले में रहने वाली प्रमोदिनी रॉल की है, जिन्होंने अपने साथ हुए इस अन्याय के बाद भी हार नहीं मानी और अपने सामने आए हर संघर्ष का डटकर सामना किया और अपने इलाज के बाद बिस्तर से उठते ही सबसे पहले उन्होंने अपने आरोपी को सलाखों के पीछे करने का दृढ़ निश्चय किया। वह ‘स्टॉप एसिड अटैक्स कैंपेन’ से जुड़कर इसके खिलाफ आवाज़ उठाने और लोगों में एसिड अटैक को लेकर जागरूकता फैलाने में जुट गई ताकि आगे किसी लड़की को इस अपराध का सामना न करना पड़े ।

प्रमोदिनी रॉल उड़ीसा में तिर्तोल के जगतसिंहपुर नामक जिले की रहने वाली थी। बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया था जिसके कारण उनके परिवार को काफी दिक्कतों और आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। प्रमोदनी रॉल के घर का नाम रानी है। उन्हें बचपन से ही क्लासिकल डांस का शौक था जिसके चलते उन्होंने 6 महीने का कोर्स भी किया पर घर की आर्थिक तंगी को देखते हुए उन्हें डांस छोड़ना पड़ा। दसवीं कक्षा के बाद उन्होंने सिविल सर्विसेज में जाने का निर्णय ले लिया पर उसके कुछ ही वक्त बाद उनके साथ यह अपराध हुआ। जब वे कक्षा 11वीं में थी तो एक 28 वर्षीय फौजी संतोष कुमार ने प्रमोदनी के सामने शादी का प्रस्ताव रखा था। जब प्रमोदनी के घरवालों ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया तब वह प्रमोदनी को परेशान करने लगा। जिसके बाद प्रमोदनी का घर से बाहर निकलना बंद हो गया था और जब 2 महीने तक वह अपने घर से नहीं निकली तो संतोष ने उन्हें फोन करके उनसे अपनी सारी हरकतों के लिए माफी मांग ली और यह कहा कि अब वह उसे परेशान नहीं करेगा। जिसके बाद अगले दिन से ही प्रमोदनी ने वापस से स्कूल जाना शुरू कर दिया। स्कूल से घर लौटते वक्त संतोष ने फिर से प्रमोदनी का रास्ता रोक लिया और जबरदस्ती उनका हाथ पकड़कर उन्हें अपने साथ चलने को कहा पर जब उन्होंने इनकार कर दिया तो वह प्रमोदिनी के सिर पर तेजाब की पूरी बोतल डालकर वहां से भाग गया।

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कुछ वक्त तक तो प्रमोदनी को समझ नहीं आया कि उनके साथ क्या हुआ। वह जमीन पर गिर गई और दर्द से चिल्लाने लगी उन्हें ऐसा लग रहा था मानो उनके शरीर में किसी ने आग लगा दी हो। वहां लोगों की भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी पर क्योंकि वह सब गांव के लोग थे और उस वक्त तक एसिड अटैक के बारे में कोई जागरूकता भी नहीं फैली थी, जिसके कारण वहां के लोग कुछ नहीं कर सके यह सोचकर कि पानी डालने से उसकी जान ना चली जाए। बाद में उन्हें अस्पताल ले जाया गया पर प्राथमिक उपचार के अभाव के कारण बहुत देर हो चुकी थी। उनका पूरा चेहरा बिगड़ चुका था और उनकी दोनों आंखें भी जा चुकी थी। वो 9 महीने तक आईसीयू में ही रही और क्योंकि उस वक्त तक सरकार द्वारा एसिड अटैक पर कानून भी नहीं बनाया गया था जिससे उन्हें किसी भी तरह की कोई मेडिकल सहायता प्राप्त नहीं हुई और उस वक्त उनके इलाज में कई लाख तक का खर्चा लग चुका था जो कि उनके परिवार वालों को ही उठाना पड़ रहा था। उनके आरोपी को भी बिना सजा दिए पुलिस ने केस बंद कर दिया था क्योंकि उस वक्त प्रमोदिनी के घर पर भी कोई उनका साथ देने वाला नहीं था क्योंकि सबको यही लग रहा था कि अब उनकी ज़िन्दगी का कोई मतलब नहीं है। वह 5 साल तक अपने बिस्तर पर एक चादर के साथ ही रही। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी अपने सारे दर्द से अकेले ही लड़ती रही जब तक कि उन्हें इंसाफ नहीं मिला। उन्होंने बिस्तर में लेटे हुए भी जब वह चल फिर भी नहीं सकती थी, ये दृढ़ निश्चय कर लिया था कि वह अपने आरोपी को सजा दिलवाए बगैर चैन से नहीं बैठेंगी।

प्रमोदिनी रॉल यानी रानी केवल महिलाओं की नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए एक मिसाल है जो मुश्किल से मुश्किल समय में भी डटकर लेने की प्रेरणा देती हैं ।

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साल 2014 में उनके चेहरे की रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के लिए उनकी जांघों से चमड़ी ली गई थी पर ठीक से उपचार ना होने के कारण उनकी जांघों में इंफेक्शन हो गया जिसके कारण वह चल नहीं सकती थी। जिस अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था वहां एक नर्स के एक दोस्त सरोज साहू अस्पताल में आते- जाते रहते थे, जहां उनकी मुलाकात प्रमोदनी से हुई। शुरू- शुरू में तो उन दोनों की बात नहीं होती थी पर एक दिन उन्होंने डॉक्टर को प्रमोदनी की मां से बात करते सुना कि वह 1 साल तक चल भी नहीं पाएगी। जिसके बाद सरोज ने उनकी मां को हिम्मत दी और रोज अस्पताल आकर वह प्रमोदनी की चलने में मदद करते थे और जल्द ही उनकी मेहनत रंग लाई और 4 महीने में ही वह बिना किसी सहारे के चलने- फिरने लगी।

धीरे-धीरे रानी और सरोज की दोस्ती मोहब्बत ने बदल गई, सरोज और रानी की प्रेम कहानी ने बता दिया कि प्यार का व्यक्ति के रूप- रंग से कोई ताल्लुक नहीं। कुछ साल बाद उन दोनों ने सगाई कर ली और जल्द ही वे दोनों अब शादी के बंधन में भी बंधने वाले हैं। साल 2016 में वह छांव फाउंडेशन का हिस्सा बनी और शिरोज़ कैफे में काम करने लगी जिसकी सहायता से वे उत्तर प्रदेश सरकार के एसिड अटैक सरवाइवर के इलाज के लिए पैसे जुटाने में सफल हुई। इलाज के बाद अपनी आंखों की रोशनी आते ही वे अपने आरोपी को सजा दिलवाने में जुट गई। उन्होंने ओडिशा के मुख्यमंत्री को ट्वीट किया और मीडिया में आकर अपनी बात रखनी शुरू की, जिसके बाद मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से उनकी मुलाकात हुई और उनका केस फिर से खोला गया। आरोपी संतोष कुमार बेदांता को नवंबर 2017 में पश्चिमी बंगाल से ढूंढ़ निकाला गया और हिरासत में ले लिया और वह अभी भी सलाखों के पीछे ही है। हालांकि केस अभी भी चल रहा है पर उम्मीद है जल्द ही उसे उम्र कैद की सजा भी सुना दी जाएगी।प्रमोदिनी रॉल यानी रानी केवल महिलाओं की नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए एक मिसाल है जो मुश्किल से मुश्किल समय में भी डटकर लेने की प्रेरणा देती हैं। इन्होंने स्टॉप एसिड अटैक तथा स्टॉप चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज जैसे कैंपेन में निर्णायक भूमिका निभाई और रानी को कई पुरस्कारों से भी सम्मानित भी किया गया है। आज वह एक मोटिवेशनल स्पीकर और सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं जो एसिड अटैक सरवाइवर्स की रिहैबिलिटेशन और समाज में एसिड अटैक के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए सक्रिय रूप से कार्यरत हैं। रानी वास्तव में नारीवाद का जीता जागता उदाहरण है ।

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तस्वीर साभार : प्रमोदनी रोल के फेसबुक पेज से

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