समाजपरिवार लॉकडाउन में फिर से जगाई आशिया ने उम्मीद| #LockdownKeKisse

लॉकडाउन में फिर से जगाई आशिया ने उम्मीद| #LockdownKeKisse

आशिया ने सोचा कि यह समस्या तो रहेगी ही जब तक लॉकडाउन रहेगा। क्यों ना हंसी-खुशी का माहौल बनाया जाए क्योंकि लॉकडाउन के कारण घर में काफी चिंता का माहौल बन गया था

एडिटर्स नोट : यह लेख फेमिनिस्ट अप्रोच टू टेक्नॉलजी के प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़ी लड़कियों द्वारा लिखे गए लेखों में से एक है। इन लेखों के ज़रिये बिहार और झारखंड के अलग-अलग इलाकों में रहने वाली लड़कियों ने कोविड-19 के दौरान अपने अनुभवों को दर्शाया है। फेमिनिज़म इन इंडिया और फेमिनिस्ट अप्रोच टू टेक्नॉलजी साथ मिलकर इन लेखों को आपसे सामने लेकर आए हैं अपने अभियान #LockdownKeKisse के तहत। इस अभियान के अंतर्गत यह लेख झारखंड के गिरीडीह ज़िले की नीलम ने लिखा है जिसमें वह बता रही हैं आशिया की कहानी।

“बिटिया सारे घर में पंखे लगे हुए हैं तो तुम उसको छोड़कर बाहर में क्यों बैठी हो? इतनी गर्मी है।” आशिया के अब्बू अपने कुर्ते के हाथ का बटन लगाते हुए बोले। “अब्बू इस बाहर की दीवार पर बाजी ने जो सूरज की तस्वीर बनाई है वह मुझे कुछ सोचने का इशारा करती है। इसीलिए जब मुझे कुछ सोचना होता है तो मैं यहीं आकर बैठ जाती हूं।”  आशिया के अब्बू हंसते हुए आशिया के पास आकर बैठ गए और कहा, “क्या बात है मेरी गुड़िया रानी? बाहर आकर क्या सोच रही है? ज़रा हमें भी पता चले।” आशिया ने मुस्कुराते हुए कहा,“जी अब्बू, क्यों नहीं? दरअसल, यह जगह हमें अपनी अम्मी की याद दिलाती है। वह भी यहीं आकर कुछ ना कुछ सोचती थी।” अब्बू कुछ गहरी सोच में डूब गए। यह देखकर आशिया ने अब्बू से पूछा – “क्या आपको अम्मी की याद आ रही है?” “हां”, अब्बू ने बस इतना कहा और वहां से चले गए। आशिया भी सीधे रसोईघर की ओर चली गई। शाम होनेवाली थी।

खैर, इस ख़्याल को छोड़कर वह चाय बनाने चली। जैसे ही चाय का डिब्बा उसने खोला, पता चला कि चायपत्ती ही नहीं है। अब क्या करें? उधर अब्बू के चाय पीने का समय हो चुका था। फिर वह चाची के घर से चायपत्ती लाने चली गई। तब तक अब्बू रसोईघर के न जाने कितने चक्कर काट चुके थे। आशिया की किताब किनारे रखते हुए उन्होंने कहा, “आज चाय मिल जाएगी ना आशिया?” आशिया ने धीरे से हां में जवाब दिया, तब तक चाय बन चुकी थी। चाय देते हुए उसने अब्बू से पूछा – “क्या आपको और कुछ चाहिए?” उसकी बात खत्म हुई भी नहीं थी कि उसकी बड़ी बहन सानिया आ गई और पूछने लगी, “हमारी चाय किधर है?” आशिया बिना जवाब दिए वहां से चली गई! बाजी भी रसोईघर की ओर चली गई। चाय की चुस्की लेते हुए उसने अब्बू से पूछा कि आशिया इतनी बदली-बदली क्यों लग रही है। अब्बू ने उसे बताया कि उसे आज अपनी अम्मी की बहुत याद आ रही है।

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फिर जाते-जाते वह बोले, “सानिया, तुम आशिया का ध्यान रखना और तुमदोनों बहनों को कुछ चाहिए तो बता दो। हम बाजार जा रहे हैं तो लेते आएंगे।” “ हमें कुछ नहीं चाहिए”, कहते हुए सानिया अपने कमरे की ओर चली गई! आशिया से पूछती गई कि आज के खाने में क्या बनाएं पनीर या आलू की पकौड़ी? जब आशिया का कोई जवाब नहीं आया तो सानिया ने उसके में जाकर झांका। आशिया अब्बू के कपड़े तहकर अलमारी में रख रही थी, दोबारा पूछने पर भी उसने कोई जवाब नहीं दिया। सानिया अपने कमरे में चली गई। इसी बीच अब्बू भी बाज़ार से आ गए। उन्होंने दोनों बेटियों को पुकारा, “देखो तुम्हारे लिए क्या लाए हैं!” आशिया और सानिया खुश होते हुए अपने कमरे से बाहर निकलीं। आशिया के लिए बहुत सारे मिट्टी के खिलौने थे और सानिया के लिए लाल रंग का सुंदर सा दुपट्टा था। हर इतवार को अब्बू कुछ न कुछ दोनों को लाकर देते थे। इस बीच अब्बू ने पूछा कि क्या आज वह खाना बना सकते हैं।

सानिया ने कहा, “हां, पर आप क्यों बनाएंगे?” इस पर अब्बू ने कहा कि वह क्यों नहीं खाना बना सकते? वह तो पहले हर रात खाना पकाया करता था। वे लोग जब छोटी थी तब वह ही खाना बनाया करते थे। यह सुनकर आशिया को विश्वास नहीं हुआ। अब्बू अपना सिर हिलाते हुए खाना बनाने चले गए। दोनों बहनें आपस में गपशप करने लगी। उधर अब्बू का खाना पक चुका था। बर्तन में खाना परोसते हुए उन्होंने पुकारा – “आ जाओ सब। खाना खाते हैं। रात बहुत हो गई है।” खाना खाने के बाद सब सोने चले गए। सुबह आंखें खोलते ही सानिया ने कहा ,“कल रात तो बहुत अच्छी नींद आई।” कमरे से निकलकर वह सीधा गाय को चारा देने चली गई। अब्बू भी जाग चुके थे। अपनी साइकिल निकालते हुए बोले – “मैं रायपुर जा रहा हूं। आज वहीं जाकर सामान बेचूंगा।” आशिया का भी स्कूल का समय हो गया था और वह भी स्कूल चली गई।

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आशिया ने सोचा कि यह समस्या तो लॉकडाउन तक रहेगी, क्यों ना हंसी-खुशी का माहौल बनाया जाए क्योंकि इससे घर में काफी चिंता का माहौल था।

सब कुछ अच्छा चल रहा था। अब्बू की मीट की दुकान थी। वह रायपुर की दुकान से ही मीट खरीदते और उसे लाकर अपनी दुकान में बेचते थे। उससे आमदनी ठीक-ठाक हो जाती थी। एक दिन अखबार पढ़ते हुए पता चला कि विदेश में कोरोना वायरस नाम की एक बीमारी है जो बहुत तेज़ी से फैल रही है। देखते-देखते बहुत सारे देश में यह बीमारी आ पहुंची। ऐसा लग रहा था कि इस बीमारी ने पूरी दुनिया को उलट-पुलट कर रख दिया हो। हमारा भारत भी नहीं छूटा इससे। बहुत सारे लोग कोरोना वायरस के संक्रमण का शिकार हो रहे थे। जब यह बीमारी लोगों को बड़ी संख्या में शिकार बनाने लगी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन की घोषणा कर दी। बताया गया कि बहुत ज़रूरी कामों को छोड़कर किसी चीज़ के लिए घर से बाहर जाने की इजाज़त नहीं दी जा रही है। अब्बू यह सोचकर परेशान हो गए कि अब उनकी दुकान कैसे चलेगी। रोज कमाने से ही उनका घर चलता था। अब क्या होगा, यह सोचकर सब और भी दुखी हुए।

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सुबह-सुबह जब अब्बू दुकान पर काम कर रहे थे तो एक सड़क चलते राहगीन ने उनसे कहा कि वह मीट क्यों काट रहे हैं। इसे तो कोई नहीं लेगा। साथ ही सलाह दी कि वह दुकान बंद करके घर वापस चले जाएं। सुबह से शाम होनेवाली थी, पर कोई मीट लेने नहीं आया। हर रोज़ ऐसे ही गुजरने लगा और आखिरकार एक दिन उन्हें दुकान बंद करनी पड़ी। लोग इस बीमारी से इतना डर गए थे कि क्या कहें! किसी ने अफवाह उड़ा दी कि मांस में कोरोना वायरस है और उसे लोगों ने खाना बंद कर दिया। यह सब सोच-सोचकर अब्बू बहुत परेशान हो गए थे। आशिया और सानिया भी बहुत परेशान रहने लगी। फिर आशिया ने सोचा कि यह समस्या तो रहेगी ही जब तक लॉकडाउन रहेगा। क्यों ना हंसी-खुशी का माहौल बनाया जाए क्योंकि लॉकडाउन के कारण घर में काफी चिंता का माहौल बन गया था और फिर आशिया, सानिया वैसे ही रहने की कोशिश करने लगी जैसे पहले रहा करती थी। धीरे-धीरे यह अफवाह खत्म हो गई। अखबारों में भी इससे जुड़ी खबरें छपने लगी। यह गलत साबित होने के बाद लोगों का डर खत्म हुआ और फिर से मीट की दुकान खुल गई। पहले तो उम्मीद ही छूट रही थी, लेकिन नए सिरे से उम्मीद जगी। आशिया और सानिया ने अब्बू को भरोसा दिलाया कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। किसी को उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। अब्बू ने दोनों को गले लगा लिया और मुस्कुराते हुए बोले कि आज वह उन दोनों के लिए अपने हाथ से मीट कोरमा बनाएंगे। सुनते ही आशिया और सानिया का चेहरा खिल गया।

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