इंटरसेक्शनलजेंडर लॉकडाउन में बेटियों को बोझ समझने वाले पिता का सहारा बनीं बेटियां | #LockdownKeKisse

लॉकडाउन में बेटियों को बोझ समझने वाले पिता का सहारा बनीं बेटियां | #LockdownKeKisse

इस बार #LockdownKeKisse में पढ़िए रिशु की कहानी जहां उसके पिता के लिए उसकी बेटियां सिर्फ एक बोझ थी।

एडिटर्स नोट : यह लेख फेमिनिस्ट अप्रोच टू टेक्नॉलजी के प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़ी लड़कियों द्वारा लिखे गए लेखों में से एक है। इन लेखों के ज़रिये बिहार और झारखंड के अलग-अलग इलाकों में रहने वाली लड़कियों ने कोविड-19 के दौरान अपने अनुभवों को दर्शाया है। फेमिनिज़म इन इंडिया और फेमिनिस्ट अप्रोच टू टेक्नॉलजी साथ मिलकर इन लेखों को आपसे सामने लेकर आए हैं अपने अभियान #LockdownKeKisse के तहत। इस अभियान के अंतर्गत यह लेख झारखंड के गिरीडीह ज़िले की नीलम ने लिखा जिसमें वह बता रही हैं रिशु और उसकी बहनों की कहानी है।

जैसे-जैसे दिन बीतता गया पेड़ों की टहनियां कुछ इस तरह से फैल रही थी मानो उन्हें नीले आसमान को छूना हो। रिशु की जिंदगी भी कुछ इसी तरह थी। उसे भी अपने जिंदगी में नीले आसमान को छूना था पर किसे पता था कि उसे बाहर के लोगों से कम और घर के लोगों से ज्यादा लड़ना पड़ेगा। रिशु झारखंड राज्य के गिरिडीह के छोटे से गांव नरेंद्रपुरपुर की रहनेवाली थी। उसका परिवार लोगों से भरा पड़ा था, लेकिन क्या फायदा! उसे समझनेवाली सिर्फ एक अकेली उसकी बूढ़ी दादी थी। दि क्कत है कि जब लोग बूढ़े हो जाते हैं तो फटे जूते की तरह एक कोने में फेंक दिए जाते हैं। उसी तरह रिशु की दादी के साथ हुआ। उसके दादा के गुजर जाने के बाद उसके बाबूजी के ऊपर घर की जिम्मेदारी आ गई थी। बाबूजी दिनभर खेत में काम करके सब्जियां और मौसमी फसलें उगाया करते थे। रिशु का खेत ज्यादा बड़ा नहीं था। एक कट्ठा से कम जमीन थी। उसी खेत में जो सब्जियां उगती उनको बाबूजी बेचा करते थे। उसे बेचकर अपना घर चलाते थे। 

घर में पांच बेटियां थी। सबसे बड़ी थी रिशु। जब भी रिशु की मां गर्भवती होती तो उसके बाबूजी को आशा होती कि इस बार तो बेटा ही होगा। लेकिन हर बार लड़की होती। इस बार फिर अम्मा गर्भवती हुई तो उनके गर्भ की जांच करवाई गई। उसमें पता चला कि इस बार भी लड़की है तो बाबूजी ने बिना बताए अम्मा का गर्भपात कराने की कोशिश की। अम्मां के मना करने पर भी वह नहीं माने। लेकिन इस बार गर्भ 3 महीने का हो चुका था और अब गर्भपात कराना मौत के मुंह में जाना था और रिशु की अम्मा लड़का ना पैदा होने के कारण मरना नहीं चाहती थी। आखिर गर्भपात नहीं हो सका और तब अम्मा की इतनी पिटाई हुई थी कि वह कोई काम भी नहीं कर पाई कुछ दिनों तक। कुछ महीनों बाद रिशु की छठी बहन का जन्म हुआ। पांचों बहनें खुश थीं, उसका नाम रखा राजो। लेकिन बाबूजी ने काफी बार उसका गला घोंटने की कोशिश की, किस्मत से हर बार राजो बच जाती। 

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धीरे-धीरे वक्त बीता और उधर शादी के लिए रिशु को देखने बार-बार लोग आ रहे थे लेकिन रिशु को पढ़ना था। वह घर में किसी को बिना बताए गांव के स्कूल के शिक्षक से पढ़ती थी। केवल अम्मा को यह पता था। पढ़ने के बाद सीधे रिशु खेत जाती और वहां पर सब्जियों की देखभाल करती, सब्जियां तोड़कर लाती ताकि सुबह बेचा जा सके और बाबूजी को शक ना हो। पढ़ाई में उसको अच्छा देखकर गुरुजी ने रिशु को स्कूल में दाखिला लेने के लिए कहा मगर रिशु के बाबूजी को पसंद नहीं था कि उनकी कोई भी बेटी पढ़े। मन ही मन में रिशु सोच रही थी कि यह बात कैसे गुरुजी को बताए। खेत से आने के बाद सारी बहनें मिलकर घर का काम करती थी। जैसे ही रात होती सारी बहनें एक साथ बैठ जाती और जो भी रिशु ने अपने गुरुजी से सीखा होता वे वह सारी चीजें अपनी बहनों को सिखाती। सबसे छोटी बहन राजो को रिशु की बात बहुत पसंद आती। अगली सुबह रिशु की अम्मा की तबीयत बेहद खराब हो गई। सुबह होते ही उन्होंने कहा, “आज तो खटिया छोड़ने का मन नहीं कर रहा है। पता नहीं क्यों थोड़ा कमजोरी सी लग रही है। जरा मेरे लिए लस्सी लाना रिशु।” रिशु लस्सी लेकर तुरत आई। लस्सी पीते-पीते अम्मां बेहोश हो गई। यह देखकर रिशु जोर से चिल्लाई। सब बहनें घबराए हुई आईं और लोटे से पानी के छींटे डालने लगीं। जब अम्मां को होश नहीं आया तो मंजु डॉक्टर को बुलाने भागी। बगल के ही गाॆव में मुरली नाम के एक डॉक्टर रहते थे। सुबह के 8:00 बजनेवाले थे और उनके क्लिनिक जाने का समय हो रहा था। उनके घर पहुंचकर हांफते हुए मंजु ने कहा, “काका, काका ! जरा रुको तो!” डॉक्टर ने पूछा, “क्या हुआ मंजु इतना घबराई क्यों हो? सब ठीक है ना? क्या फिर से किशन ने तुमलोगों को मारा पीटा है? मंजु बोली, “नहीं नहीं, काका! अम्मां की तबीयत बहुत बिगड़ गई है। आपको लेने आए हैं।” फ़ौरन साथ में दोनों चल पड़े ! 

मुरली काका के घर के अंदर आते-आते अम्मा होश में आ गई थी। काका ने चेकअप किया। अपने क्लिनिक में आने को कहा और कुछ दवाइयां देकर चले गए। अम्मा की तबीयत खराब होने की खबर सुनकर बुआ के घर से दादी भी लौट आई। जब यह बात बाबूजी को पता चली तो सीधे खेत से आने के बाद कमरे में गए। बाबूजी दादी से कहा, “क्या कम थे घर पर खानेवाले जो तुम यह सुनकर लौट आई हो। तेरी बहू मर नहीं रही है। जब मर जाती तो खबर पहुंचा देते। जरा सा बीमार नहीं हुई, सबलोग इस महारानी की सेवा में लग गए हैं।” यह भुनभुनाते हुए कुदाल लेकर रिशु के बाबूजी फिर से खेत में चले गए। अम्मा से बाबूजी ने एक बार पूछा तक नहीं कि क्या हुआ। अम्मां को पता था कि वह फिर से गर्भवती है। लेकिन वह किसी को बताने से डर रही थी। उसके शरीर में बस हड्डियां दिख रही थी। एक दिन सफिया दीदी घर पर जनगणना करने आई। वह हर घर में जा-जाकर फार्म भर रही थी। रिशु के घर पर भी आई। उसकी अम्मा गर्भवती होने की बात बताना नहीं चाह रही थी, पर छिपा भी नहीं सकती थी। जब उसने बताया तो सफिया दीदी ने सलाह दी कि गांव के कुछ ही दूर में चिकित्सा भवन है। वह खास तौर पर कमजोर गर्भवती महिला के लिए है और वहां पर मुफ्त इलाज होता है। यह सुनकर अम्मा के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई क्योंकि वह कमज़ोरी की वजह से अपने बच्चे को कुपोषित नहीं होने देना चाहती थी। उधर रिशु के बाबूजी को सब पता चल चुका था। उनका वही रवैया था कि जांच कराओ कि लड़का है या लड़की पर इस बार अम्मा ने साफ मना कर दिया। वह बोली कि यह गैरकानूनी है और वह चेकअप करवा-करवाकर थक चुकी हैं। सुनने भर की देरी थी। बाबूजी ने अम्मा को बहुत मारा। 

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खैर, 9 महीने पूरे हो चुके थे और इस बार लड़का हुआ। घर पर सबलोग हैरान थे कि यह कैसे हुआ। बाबूजी ने पंडित को बुलाकर घर में हवन कराया और पड़ोसियों को मिठाई खिलाई! वे जोर-जोर से चिल्ला रहे थे कि मेरे यहां लड़का पैदा हुआ है। अपने बेटे को खटिया पर सुलाते हुए वह कह रहे थे कि देखो मेरा सिर उठानेवाला आ गया है! तुम सब कोई कर्म की नहीं हो। बस खाने के लिए पैदा हुई हो। हम इतना सारा दहेज कहां से लाएंगे और बेटियों को कोसते हुए वे खेत पर काम करने चले गए। सारी बहनें छिप-छिप के लगातार पढ़ रही थीं। एक दिन सबसे बड़ी रिशु की शादी हो गई और उसे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। उसके ससुराल चले जाने के बाद बाकी बहनों की पढ़ाई छूटने की नौबत आ गई। भाई ना पढ़ता और ना किसी को पढ़ने देता। किसी तरह राजो अपनी सहेली चंपा की किताब से पढ़ाई करती रही। राजो और चंपा बहुत अच्छी सहेली थी। राजो अक्सर याद करती थी कि क्या दिन थे वे जब दोनों सहेली बकरी चराते समय तालाब के किनारे बैठ के गप्पें मारते। उधर सबसे छोटा भाई राजेश बड़ा हो चुका था। राजेश को बाबूजी पढ़ाने की बहुत कोशिश कर रहे थे, लेकिन उसे अपने दोस्तों के साथ जुआ खेलने से फुर्सत नहीं थी। तब भी वे उसको कुछ नहीं कहते थे। बेटियां कुछ भी मांग लें तो मार के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिलता था। यहां तक कि खाना भी ज्यादा मांग लो तो मार पड़ जाती थी। जबकि बेटा जो मांगे उसकी हर जिद बाबूजी पूरी करते थे। 

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एक दिन मुरली काका को रास्ते में मंजु और राजो दिखे। उन्होंने मंजु से कहा – “अभी तुमलोग घर से बाहर मत निकलना। कोरोनो के कारण लॉकडाउन है!” मंजु समझी नहीं और कहा हां, राजो इसके बारे में कुछ समझा रही थी पर किसी को इसके बारे में ठीक से नहीं पता है कि कोरोना क्या होता है।” राजो बोली, “दीदी कोरोना एक वायरस है यह पूरे हमारे देश में फैल गया है और लोग इस बीमारी से मर रहे हैं। अभी तक इसका कोई इलाज नहीं है। यह लोगों के संपर्क में आने से फैलता है। इसमें तेज बुखार, सांस लेने में तकलीफ, सिर दर्द, खांसी, मांसपेशियों में दर्द और थकान जैसे लक्षण दिखते हैं। कई बार पता ही नहीं चलता है या हमें 15 दिनों के बाद पता चलता है कि कोरोना हुआ है या नहीं। वह भी जांच करवाने के बाद। इसीलिए लॉकडाउन लागू किया गया है वायरस से बचने के लिए ताकि लोग सुरक्षित रहें।” मंंजु ने कहा, “अच्छा, अभी तो लॉकडाउन को एक महीने का हो चुका है। कहा गया है कि कोई घर से बाहर नहीं जाएगा। जब घर पर सब रहने लगे तो खाने की दिक्कत तो होगी न? बाकी दिक्कतें भी हैॆ ही।”

सचमुच और भी दिक्कतें थी। रिशु-मंजु और राजो का घर कच्ची मिट्टी का था। बरसात होती तो घर की छत से पानी टपकता था अंदर। जैसे-तैसे घर चल रहा था। यह सब जानकार मुरली काका ने राजो को अगले दिन काम करने के लिए अपने दफ्तर आने को कहा। राजो आठवीं कक्षा तक पढ़ी थी और मुरली काका का दफ्तर उसके घर से ज्यादा दूर नहीं था। इस कारण उसे जाने और आने में भी परेशानी नहीं होती। राजो का काम करना बाबूजी को बहुत अखर रहा था। पर वह क्या करते? घर को कोई तो चलानेवाला होना चाहिए था। हारकर उन्होंने राजो को जाने दिया। इस काम से राजो को 2000 रुपए मिलते थे। उसी से वह पूरे घर को चला रही थी और अपनी अम्मां का इलाज भी करवा रही थी! जब सुबह-सुबह राजो दफ्तर के लिए जा रही थी तो एक दिन उसके बाबूजी ने पूछा कि क्या कुछ खाने का सामान है तुम्हारे पास। यह सुनकर राजो हैरान थी कि जो इंसान बार-बार बेटी का गला घोंटने और उसको मार देनेवाला था वह आज खाने की बात कर रहा है। राजो मन ही मन सोच रही थी, “सच बोलती थी रिशु दी कि एक दिन हम बहनों में से कोई एक जरूर इस घर की जिम्मेदारी उठाएगी। बाबूजी हमेशा बोलते थे कि हमारा बेटा एक दिन घर का सारा बोझ उठाएगा। लेकिन आज देखो, राजेश न घर का है न घाट का। बेटी ही काम आ रही है।” 

उसी समय स्कूल के गुरुजी वहां से गुजर रहे थे। जैसे ही उन्होंने मुरली काका को देखा वह वहां रुक गए। राजो को देखकर गुरुजी ने पूछा क्या उसने भी रिशु की तरह पढ़ाई छोड़ दी। राजो के हां कहने पर उन्होंने कहा कि उसे पढ़ाई जारी रखनी चाहिए थी। राजो ने अपनी परेशानी कि वह पढ़ना चाहती है लेकिन उसके पिताजी नहीं मानेंगे।तब गुरुदी मे कहा कि जब रिशु पढ़ा करती थी उस समय भी बात करने पर उनके बाबूजी ने साफ मना कर दिया था। लेकिन हमें लगता है कि अब वह मना नहीं कर सकते हैं क्योंकि राजो ही तो घर को चलाती है। ये सारी बातें बाबूजी एक कोने में रुककर सुन रहे थे। उन्होंने सामने आकर कहा, “मुझे माफ करना गुरुजी। काश आपकी बात हमने पहले मान ली होती तो आज हमारी सारी बेटियां पढ़ रही होती। अब हम यह गलती सुधारना चाहते हैं। पहले हमें लगता था इतनी सारी बेटियों का बोझ कैसे उठा पाएंगे। इसलिए बेटा-बेटा रट रहे थे। हमें लगता था कि वह हमारा काम आसान कर देगा। हमेशा बेटे को ही पढ़ाने-लिखाने का जतन किए। लेकिन यह हमारी गलतफहमी थी। बोला जाता है न कि जब जागो तभी सवेरा। तो आज हम जाग गए हैं। अपनी सारी बेटियों को हम पढ़ाएंगे। हम अच्छे पद पर उनको देखना चाहते हैं।”

यह सुनकर राजो मुस्कुराई। सोचने लगी कि अब जल्दी से रिशु को वह यह सब बताएगी, बाकी बहनों को बताएगी। अम्मां का दुख भी इससे कम होगा। वह भी शायद नीला आसमान छू पाए। आज राजो पूरा घर चला रही है। राजो का सपना था कि वह एक समाजसेवी बने। अपने सपनों की दुनिया को वह हकीकत में बदल रही है और अपने गांव में एक लीडर बन चुकी है। उसे गांव के लोग पहचानते हैं।

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तस्वीर : फेमिनिज़म इन इंडिया

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