इंटरसेक्शनलजेंडर क्या शादीशुदा लड़कियों का मायके पर कोई हक़ नहीं होता| #LockdownKeKisse

क्या शादीशुदा लड़कियों का मायके पर कोई हक़ नहीं होता| #LockdownKeKisse

जो मेरे साथ हुआ वह मैं किसी और के साथ नहीं होने दूंगी। अपने घर में या दूसरे के घर में भी किसी की शादी होगी तो मैं कहूंगी कि लड़की अपनी पसंद बताए।

एडिटर्स नोट : यह लेख फेमिनिस्ट अप्रोच टू टेक्नॉलजी के प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़ी लड़कियों द्वारा लिखे गए लेखों में से एक है। इन लेखों के ज़रिये बिहार और झारखंड के अलग-अलग इलाकों में रहने वाली लड़कियों ने कोविड-19 के दौरान अपने अनुभवों को दर्शाया है। फेमिनिज़म इन इंडिया और फेमिनिस्ट अप्रोच टू टेक्नॉलजी साथ मिलकर इन लेखों को आपसे सामने लेकर आए हैं अपने अभियान #LockdownKeKisse के तहत। इस अभियान के अंतर्गत यह लेख बिहार के बक्सर ज़िले की प्रमिला ने लिखा है जिसमें वह बता रही है अपने मायके की कहानी।

मैं एक शादीशुदा लड़की हूं। मेरी उम्र 21 साल है। साल 2019 में मेरी शादी हुई थी, मेरी मर्ज़ी के खिलाफ। मेरा पति मुझे मानता नहीं था, केवल मारता-पीटता, गाली-गलौच करता था। जब मैं पहली बार ससुराल गई थी तो करीब 30 दिनों तक वहां रही थी। मेरा पति रोज़ शराब पीकर आता, गाली देने लगता, झगड़ा करता, छुरी लेकर दरवाजे पर खड़ा हो जाता, दरवाजा तोड़ने की कोशिश करता। ससुराल में बिताए उन 30 दिनों ने मेरा बुरा हाल बना दिया था। आखिरकार मैंने अपने भाई को बुलाया और मैं वापस मायके चली आई। उसके बाद से अपने पति से मेरी मुलाकात नहीं हुई है।

अब मैं अपने मायके में मैं रहती हूं, लॉकडाउन के पहले से यहां थी। मेरे घर में केवल मां-बाप थे मेरे। मेरे दोनों भाई-भाभी बाहर रहते थे। परिवार में एक-दूसरे के साथ कोई झंझट नहीं होता था। जब कोरोना वायरस की महामारी के कारण लॉकडाउन लगा तो सबलोग घर आ गए। अब सबको एक साथ एक ही घर में रहना पड़ता है। घर छोटा है तो लड़ाई-झगड़े बढ़ गए हैं। घर पर तरह-तरह की बातें होने लगी हैं। मुझ पर ससुराल जाने के लिए दबाव दिया जाने लगा है। मेरी जो दो भाभियां हैं वे चाहती हैं कि मैं यहां न रहूं। रोज़-रोज़ मैं उनके ताने मैं सुनती रहती हूं। 

कोविड-19 महामारी के कारण लॉकडाउन हुआ और सब कुछ बंद हो गया। गाड़ियां बंद थीं। इसलिए मेरे भाई लॉकडाउन के बीच किसी तरह ट्रक से बक्सर आए थे। ट्रकवाले ने एक आदमी का दो हजार किराया लिया था। 25 लड़कों ने मिलकर गाड़ी रिजर्व की थी। जब भाई-भाभी घर वापस आए तो मैं बहुत खुश थी। मैंने सोचा कि ये लोग अपने घर आ गए तो अब कोरोना महामारी से बच जाएंगे। लेकिन घर आने के बाद किसी के पास कोई काम नहीं था। रहने के लिए घर था, लेकिन खाने-पीने को लेकर झगड़ा होता था। पैसे को लेकर दिक्कत होने लगी थी, फिर भी मुझे लगता है कि घर में झगड़े का असली कारण पैसे की कमी नहीं हैं। कारण तो यह हैं कि मैं यहां रहती हूं। एक तरह से अपने परिवार से लड़कर ही रहती हूं।

जो मेरे साथ हुआ वह मैं किसी और के साथ नहीं होने दूंगी। अपने घर में या दूसरे के घर में भी किसी की शादी होगी तो मैं कहूंगी कि लड़की अपनी पसंद बताए।  

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भईया और भाभी को मुझे देखकर दुख होता है। उन लोगों को लगता है कि मैं मायके की संपत्ति में हिस्सा लूंगी। समुदाय के और भाभी के मायके के लोग भी कहते हैं कि ससुरालवालों से फैसला करके मेरी दूसरी शादी कर दी जाए। मेरे बारे में सलाह दी जाती है कि बच्ची नहीं है, जवान लड़की है, इसलिए इसकी दोबारा शादी करके विदा करो। मैं घर में सब से कहती हूं कि मैं यहां कुछ दिनों के लिए हूं। उसके बाद मैं सोचूंगी कि क्या करना हैं। मैं कुछ काम करूंगी, अपना रास्ता निकालूंगी। मैं यहां नहीं रहूंगी। घर का काम दोनों भाई और पापा करते हैं। मुझे कहा जाने लगा कि बाहर जाकर भाई के साथ काम करो। भाभी कहती हैं कि अपने ससुराल जाओ, नहीं तो दूसरी शादी कर लो। लेकिन मैंने कहा है कि मैं तुमलोगों की मर्जी से दूसरी शादी नहीं करूंगी। मेरी मर्ज़ी होगी तो मैं कर लूंगी, लेकिन अभी नहीं।    

पहली शादी मैंने अपनी मर्जी से नहीं की थी। मेरे पापा ने मुझे लड़का नहीं दिखाया था और बिना मेरी सहमति के मेरी शादी कर दी थी। शादी हो जाने के बाद मैंने लड़के को देखा तो मुझे वह पसंद नहीं आया। लड़का पढ़ा-लिखा भी नहीं था। एक तो पसंद नहीं, दूसरा वह शराबी था। इसलिए मैं उसके साथ रहना नहीं चाहती थी। मुझे पसंद वह इसलिए नहीं आया कि वह उम्र में भी मुझसे बहुत बड़ा था। मैंने अभी नहीं सोचा है कि मुझे कैसा लड़का चाहिए। आगे जीवन में क्या करूं क्या ना करूं, कुछ समझ नहीं आ रहा है। लेकिन जो मेरे साथ हुआ वह मैं किसी और के साथ नहीं होने दूंगी। अपने घर में या दूसरे के घर में भी किसी की शादी होगी तो मैं कहूंगी कि लड़की अपनी पसंद बताए।  

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लड़का गोरा हो या काला, उससे मुझे नहीं फर्क पड़ता है। लेकिन शराबी या मुझसे बड़ी उम्र का नहीं होना चाहिए। लॉकडाउन हो या ना हो उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि मैंने ससुराल में पति के साथ समय भी नहीं बिताया तो मुझे क्यों लगेगा कि मैं अकेली हूं। जैसे पहले रहती थी वैसे ही अभी भी हूं। मैं प्यार के बारे में कभी नही सोचती हूं। मुझे भईया-भाभी को साथ देखकर अपना घर याद नहीं आता है। मैं ज्यादा दिन ससुराल में नहीं रही हूं। ना ससुराल के बारे में कुछ जानती हूं। न ही किसी का प्यार जानती हूं। तो मुझे क्या याद आएगा ? लेकिन एक बात सोचती हूं कि मेरा पति अच्छा होता तो ये दिन मुझे नहीं देखना पड़ता, मायके में नहीं रहना पड़ता। 

शुरू में मैंने अपने पति को समझाने की बहुत कोशिश की ताकि वह नशा करना छोड़ दे। वह एक ही बात कहता है कि वह शराब पीना नहीं छोड़ेगा। हर नशा करूंगा। चाहे मैं उसके साथ रहूं न रहूं। वह सुधरनेवाला नहीं है। तो मैं क्या करूं? शुरू में उसकी मां ने उसकी नशामुक्ति के बहुत उपाय किए थे, फिर भी उसने नहीं छोड़ा। अब मैं कुछ नहीं कर सकती। उसकी हरकत देखकर मेरा दिल टूट गया है। मुझे एक छोटा सा भी काम मिल जाए तो मैं उसी काम के सहारे अकेले जी लूंगी। मुझे मायके में भाभियों की गाली बर्दाश्त नहीं होती है। मां के साथ भी वे लोग झगड़ा करती हैं। पता नहीं अपने झगड़ा में भी मुझे क्यों गाली देती हैं। जब मैं कुछ जवाब देती हूं तो बुरा-भला सुना देती हैं। इसके चलते मेरी नानी भी कहती है कि तुम पति के पास चली जाओ। लेकिन मेरा दिल नहीं करता है कि मैं पति के साथ रहूं।।

आजकल मैं FAT संस्था से जुड़कर काम करती हूं। उसके बारे में मेरी नानी बार-बार कहती हैं कि सब काम छोड़ दो। मेरा घर मम्मी-पापा का है, नानी का नहीं। नानी का गांव पास में ही है। जब भी नानी के घर जाती हूं तो सब लोग पूछते हैं, “अपने पति से बात करती हो।” मैं कहती हूं, नहीं। तब वे लोग कहते हैं कि बात करो तभी वह सुधरेगा। बाहर जाकर उसके साथ रहो। तुम कमाकर कितना भी पैसा मायके में दोगी तो भी यहां तुम्हें इज्जत नहीं मिलेगी। इन सब बातों से दिल में चोट लगती है। मैं इन पर ध्यान नही देने की कोशिश करती हूं। जो मेरा दिल करता है वही करती हूं मगर अकेले भी रहना अच्छा नहीं हैं।

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कोविड-19 के दौरान मुझे FAT की तरफ से कुछ राशन के लिए पैसा भी मिला था। मेरी वजह से ही मेरे घर में राशन आया फिर भी यहां मेरी कदर नहीं है। किसी तरह भाभियों के ताने बंद नहीं होते हैं। मेरे मां-पापा कुछ नहीं कहते जबकि वे भाई-भाभी की कमाई पर निर्भर नहीं हैं। भाई भी मुझे डांट देते हैं कि तुम चुप रहो, कुछ मत बोलो। उन लोगों का कहना है कि इतने पैसे लगाकर तुम्हारी शादी की है, मायके में रहने के लिए नहीं। भाई, भाभी से डरते भी हैं क्योंकि वे गाली देने लगती हैं, मर जाने की धमकी देती हैं। यह भी धमकी देती हैं कि हमने अधिक बोला तो थाने में जाकर रिपोर्ट लिखवा देंगी।

सच पूछो तो जब तक मेरी मां हैं और पापा कमा रहे हैं तभी तक मैं मायके में रह सकती हूं। जब वे दोनों नहीं रहेंगे तो मेरा क्या होगा। इसलिए मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं ताकि किसी दूसरे पर निर्भर न रहना पड़े। मुझे FAT से हिम्मत मिलती है। यहीं मैंने सीखा कि अपने हक के लिए लड़ना चाहिए। उसके लिए जानकारी भी ज़रूरी है कि कब कहां बोलना है। मैं पापा से कहती हूं कि मैं यहां हिस्सा लूंगी। तब पापा हाटते हुए कहते हैं कि मायके में बेटी का हिस्सा नहीं होता है। पापा नाराज़ हो जाते हैं। मुझ से बात भी नहीं करते हैं। बोलते हैं कि मैं फालतू बातें करती हूं, भाई के साथ झगड़ा करना चाहती हूं। जबकि मैं तो केवल अपने हक की बात करती हूं। मैं सोचती हूं कि कुछ पैसा कमाने लगूंगी तो मैं मायके से अलग रहने लगूंगी। उसके बाद आगे के बारे में सोचूंगी।

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तस्वीर : फेमिनिज़म इन इंडिया

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