समाज ऑनर किलिंग : झूठी इज़्ज़त के नाम पर होने वाली हत्या में कैसा सम्मान

ऑनर किलिंग : झूठी इज़्ज़त के नाम पर होने वाली हत्या में कैसा सम्मान

जब कोई महिला अपनी मर्ज़ी से अपना साथी चुनती है, प्रेम करती है तो, इस समाज का सम्मान कम होने लगता है। पुरुष प्रधान समाज, इसे पचा नहीं पाता कि आखिर एक महिला इतनी सशक्त कैसे होने लगी, वह प्रेम करने का दुस्साहस कैसे करने लगी?

प्रेम करके महिला सामाजिक सत्ता को चुनौती देती है। सत्ता कोई भी हो, विरोध पसंद नहीं करती। लिहाजा परिवार की इज़्ज़त के नाम पर उनकी हत्या कर दी जाती है।समाज के लिए जितना ज़रूरी, रोटी-कपड़ा और मकान है, उतना ही ज़रूरी है, सामंजस्य और प्रेम। आपसी रिश्तों में सामंजस्य ज़रूरी है ताकि समझदारी से फैसले लिए जा सकें। आखिर एक समाज इन्हीं रास्तों से ही तो आगे बढ़ता है। कहते हैं कि एक आदर्श समाज बनने के करीब पहुंचने के लिए नियम बनाए जाते हैं। इन नियमों को हर व्यक्ति मानता है, जो नहीं मानता, उसे दंड मिलता है। जब समाज और उन्नत हुआ, भाषाएं और विकसित हुईं तो एक शब्द आया। नाम दिया गया ‘डाटा’ यानी आंकड़ा। बड़े काम की चीज़ है ये आंकड़े। समाज में पारदर्शिता बनी रहे, वह अपनी हकीक़त से रूबरू होता रहे, इसके लिए ज़रूरी था कि लोगों के सामने आंकड़े रखे जांए तो, प्रशासन ने समाज में होने वाले अपराध के आंकड़े रखने शुरू किए। हमारे देश में एनसीआरबी है यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो। एनसीआरबी ने ने आखिरी बार अपराध पर आंकड़ा साल 2019 में दिया था। इस रिपोर्ट में तमाम तरह के अपराधों के आंकड़े होते हैं। एक ऐसा अपराध भी जिसका कोई जिक्र ही नहीं था लेकिन इस अपराध से जुड़ी ख़बरें अक्सर छाई रहती हैं। ये अपराध है ‘ऑनर किलिंग’ का। ऑनर किलिंग यानी झूठे सम्मान के नाम पर हत्या। 

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ऑनर किलिंग का मतलब परिवार का तथाकथित सम्मान बचाने के लिए घर के ही किसी सदस्य द्वारा दूसरे सदस्य की हत्या। यह दूसरा सदस्य जिसकी हत्या होती है अक्सर एक महिला ही होती है। वह महिला, जो बालिग होने पर अपना जीवन-साथी चुनने का अधिकार रखती है। जो समाज की रीतियों को तोड़ना चाहती है। अक्सर, इन हत्याओं का कारण प्रेम होता है। या यूं कहें कि सिर्फ प्रेम ही होता है। जब कोई महिला अपनी मर्ज़ी से अपना साथी चुनती है, प्रेम करती है तो, इस समाज का सम्मान कम होने लगता है। पुरुष प्रधान समाज, इसे पचा नहीं पाता कि आखिर एक महिला इतनी सशक्त कैसे होने लगी, वह प्रेम करने का दुस्साहस कैसे करने लगी, वह अपनी मर्ज़ी से कैसे जीने लगी। ये महज बातें नहीं हैं, आंकड़े हैं। साल 2016 में, देश भर में ऑनर किलिंग के 77 मामले दर्ज किए गए थे। साल 2015 में इसी तथाकथित सम्मान को बचाने के लिए 251 लोगों को अपनी जान देनी पड़ी।

आंकड़ों के मुताबिक ऐसी हत्याएं सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में होती हैं। फिर पंजाब, हरियाणा समेत देश के बाकी राज्यों में। जब रिपोर्ट जारी की जाती है तो हर अपराध को विभिन्न हिस्सों में वर्गीकृत किया जाता है। साल 2014 में इन आंकड़ों में एक नई श्रेणी, ऑनर किलिंग जोड़ी गई थी। साल 2001 से 2017 तक की एनसीआरबी रिपोर्ट्स से पता चलता है कि हत्या के अन्य कारणों से जुड़ी घटनाओं में तो कमी हुई पर ऑनर किलिंग में 28 फीसदी की वृद्धि हुई। सिर्फ इतना ही नहीं, महिलाओं से जुड़ा कोई भी अपराध हो, उसमें साल दर साल वृद्धि हो रही है।

जब कोई महिला अपनी मर्ज़ी से अपना साथी चुनती है, प्रेम करती है तो, इस समाज का सम्मान कम होने लगता है। पुरुष प्रधान समाज इसे पचा नहीं पाता कि आखिर एक महिला इतनी सशक्त कैसे होने लगी, वह प्रेम करने का दुस्साहस कैसे करने लगी?

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इतने बड़े स्तर पर ऑनर किलिंग होने के बावजूद इसके लिए अलग से कानून नहीं है। जब भी कोई मामला, बड़ा बन जाता है। तब संसद में इस पर विचार-विमर्श शुरू होता है। लेकिन, ऐसा कानून कभी पास नहीं हो पाता, क्योंकि ऐसा हमारे प्रतिनिधि करना ही नहीं चाहते। 2 साल पहते, राजस्थान सरकार ने खुद से कदम उठाते हुए, इससे संबंधित एक कानून पास किया था। साल 2018 में ऑनर किलिंग से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दो वयस्क अगर शादी करना चाहते हैं, तो कोई तीसरा उसमें दखल नहीं दे सकता। उसी समय, पब्लिक डिबेट से ये बात भी सामने आई कि ऐसी हत्याओं के 3 फ़ीसद मामले गोत्र संबंधी और 97 फ़ीसद मामले धर्म या अन्य कारणों से जुड़े होते हैं। 

अर्चना कौल समाजसेविका हैं। ‘सृजनात्मक मानुषी संस्था’ नाम से वह अपना एनजीओ चलती हैं। इस मामले पर वह कहती हैं, “ऑनर किलिंग होने के पीछे एक बड़ा कारण है, पावर को चुनौती दिया जाना। समाज चुनौती नहीं चाहता। पितृसत्ता के पास मज़बूती है, शक्ति है, वह नहीं चाहता कि कोई उनके बनाए नियमों को तोड़े। इस पितृसत्ता को बनाए रखने में महिलाओं का भी बराबर योगदान है। उन्हें पता ही नहीं होता कि वे साथ दे रही हैं। महिलाओं के बड़े समूह को यह भ्रम रहता है कि वे संस्कारों की, संस्कृति की रक्षा कर रहीं हैं। महिलाएं भी नहीं चाहती कि इस शक्ति के ढांचे को तोड़ा जाए और परिवर्तन के लिए मेहनत की जाए। जब कोई स्त्री अपनी मर्ज़ी से प्रेम करती है तो वह जाति, धर्म की सत्ता को चुनौती देती है।” वह आगे कहती हैं कि समाज में बदलाव धीरे-धीरे ही आता है। यह बदलाव तभी आ सकता है जब लोग विवेकशील होकर सोचना शुरू करें। शुरुआत में दिक्कत होगी, पर फिर हम सही करने की दिशा में आगे बढ़ रहे होंगे। यह शुरुआत हर व्यक्ति को खुद से करनी होगी। एक व्यक्ति ही दूसरे व्यक्ति को बदल सकता है। हमारे समाज को ऐसे लोगों की ज़रूरत है। जो खुलकर बोल सकें, लिख सकें। सवाल कर सकें। अपने हक़ों का हनन रोक सकें। 

अपने अधिकारों के लिए जो पहला इंसान आवाज़ उठा सकता है, वे हम लोग ही हैं। देश के हर व्यक्ति को यह ध्यान रखना चाहिए कि संविधान हमें अधिकार देता है। हमें हमारा जीवन, हमारी शर्तों पर जीने का हक़ है। यह हक़ हमसे कोई छीन नहीं सकता, न हम यह हक़ किसी और को दे सकते हैं।

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(यह लेख अदिति अग्निहोत्री ने लिखा है जो भारतीय जनसंचार संस्थान से हिंदी पत्रकारिता कर रही हैं।)

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