इंटरसेक्शनलजेंडर क्या पैटरनिटी लीव अपनाने के लिए हमारे पितृसत्तात्मक समाज में तैयार हैं पुरुष ?

क्या पैटरनिटी लीव अपनाने के लिए हमारे पितृसत्तात्मक समाज में तैयार हैं पुरुष ?

भारत में पैटरनिटी लीव की अवधारणा नई है और बहुत से पुरुष इस अवकाश को लेना नहीं चाहते। भले ही उन्हें कंपनी से इसका लाभ भी क्यों न मिल रहा हो। असल में समस्या कंपनियों के नियमों से ज्यादा उस मानसिकता की है जो पुरुष को पितृत्व दिखाने की इजाजत नहीं देता

बीती जनवरी अभिनेत्री अनुष्का शर्मा और भारतीय क्रिकेट कप्तान विराट कोहली एक लड़की के माता-पिता बने। भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया दौरे पर थी जब कोहली पितृत्व अवकाश यानि पैटरनिटी लीव लेकर पहले टेस्ट के बाद भारत वापस आ गए। अपने इस फैसले के कारण कोहली उन दिनों काफी चर्चा में रहें। जहां उन पर राष्ट्रीय कर्तव्य न निभाने का आरोप लग रहा था तो कुछ लोगों ने उनके इस फैसले की प्रशंसा भी की। भारत में पैटरनिटी लीव का मुद्दा बच्चे और पिता के बंधन और परिवार में पिता के महत्व के अलावा, लैंगिक समानता का भी है। भारतीय व्यवस्था में साधारणतः महिलाओं से बच्चे के पालन पोषण की जिम्मेदारी निभाने की आशा की जाती है और पुरुषों से परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी उठाने की। लैंगिक समानता के लिए काम करने वाली अमरीकी संस्था प्रोमुंडो के साल 2019 के एक सर्वेक्षण के अनुसार इसमें शामिल हुए 187 देशों में से सिर्फ 90 देशों में वैधानिक भुगतान की जाने वाले पैटरनिटी लीव की मान्यता थी जिसमें भारत की गिनती नहीं थी। इस सर्वेक्षण में भारत के 80 फीसद पुरुषों का यह मानना था कि बच्चों को नहलाना, नैपी बदलना और खाना खिलाना महिलाओं का काम है।

भारत में पैटरनिटी लीव की अवधारणा नई है और बहुत से पुरुष इस अवकाश को लेना नहीं चाहते। भले ही उन्हें कंपनी से इसका लाभ भी क्यों न मिल रहा हो। असल में समस्या कंपनियों के नियमों से ज्यादा उस मानसिकता की है जो पुरुष को पितृत्व दिखाने की इजाजत नहीं देता। जो पितृत्व के अंतर्गत बच्चे से प्यार करने की इजाज़त तो देता है लेकिन उसका दायरा मिथक पुरुषत्व के अनुसार सीमित कर देता है। इसके अलावा, कई बार भारतीय परिवेश में माता-पिता के पास बच्चे के पालन पोषण के लिए घर के बुजुर्ग या घरेलू मदद की सहायक प्रणाली होती है। सामाजिक नियमों में जकड़े पिता के पैटरनिटी लीव न लेने के निर्णय से छोटा परिवार कहीं अधिक प्रभावित होता है क्योंकि पिता की गैरमौजूदगी में माँ के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर होता है।

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साल 2018 में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के एक विश्लेषण के अनुसार, भारत दुनिया की उन 99 देशों में से एक है जहां नए पिता का अपने नवजात बच्चे के साथ पर्याप्त समय बिता पाने को सुनिश्चित करने के लिए भुगतान की जाने वाली पैटरनिटी लीव की कोई राष्ट्रीय नीति नहीं है। हालांकि ब्राज़ील और कांगो जैसे देश जहां भारत की ही तरह बड़ी संख्या में नवजात शिशु हैं लेकिन वहां अल्पकालिक राष्ट्रीय भुगतान पैटरनिटी लीव नीतियां मौजूद हैं। यूनिसेफ के अनुसार दुनिया के दो-तिहाई बच्चे जिनकी उम्र एक साल से कम है यानी लगभग 90 मिलियन बच्चे उन देशों में रहते हैं जहां पिता एक दिन के भुगतान किए गए पैटरनिटी लीव के भी हकदार नहीं हैं। कई शोध बताते हैं कि पिता का अपने बच्चे के साथ जीवन की शुरुआत से जुड़ने से बच्चे के विकास में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की संभावना होती है। जब बच्चे अपने पिता के साथ बचपन से ही बड़े होते हैं, तो उनका बेहतर मानसिक स्वास्थ्य, आत्म-सम्मान और जीवन में संतुष्टि होते पाया गया है।

भारत में पैटरनिटी लीव की अवधारणा नई है। असल में समस्या कंपनियों के नियमों से ज्यादा उस मानसिकता की है जो पितृत्व दिखाने की इजाजत नहीं देता।


सिर्फ माँ द्वारा बच्चे का प्राथमिक देखभाल करने की दृष्टिकोण महिलाओं के कार्यबल को कामकाजी दुनिया से न केवल अलग कर देती है, बल्कि ऐसी परिस्थितियां भी पैदा करती है जो कंपनियों में महिला अगुआई को नियुक्त करने से रोकती है। भारतीय श्रम कानून में केंद्रीय नागरिक सेवा (छुट्टी) नियम, 1972 के तहत पैटरनिटी लीव का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे पुरुष जो सरकारी कर्मचारी हैं, बच्चे के जन्म के छह महीने के अंदर या जन्म के पहले महज 15 दिनों का अवकाश ले सकते हैं। साल 2017 में कांग्रेस सांसद राजीव सातव ने पितृत्व लाभ विधेयक 2017 पारित किया था जिसमें सभी क्षेत्रों में समान मातृत्व और पितृत्व अवकाश का प्रस्ताव रखा गया था। बहरहाल यह अभी तक स्वीकृत नहीं हुआ है।

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साल 2019 में ज़ोमैटो का भारत में पैटरनिटी लीव के लिए एक नया मानदंड स्थापित करते हुए नए पिताओं के लिए 26 सप्ताह की भुगतान की जाने वाली पैटरनिटी लीव की घोषणा करना एक सफल कदम है। सशुल्क पैटरनिटी लीव की उपलब्धता का मतलब यह होगा कि पुरुष अपनी पत्नियों के बच्चे के जन्म के बाद उनपर मानसिक दबाव को दूर करने में सक्षम होंगे। यह उन्हें एक साथ समय बिता पाने के लिए प्रोत्साहित भी करेगा और गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शारीरिक स्वास्थ्य की क्षतिपूर्ति में भी सहायक होगा। पूरी तरह से महिलाओं के कंधों पर नवजात शिशु की देखभाल की जिम्मेदारी आमतौर पर उन्हें अपने काम से लंबी छुट्टी लेने के लिए मजबूर करती है। ऐसे में महिला कर्मचारी को नियुक्त न करना, उन्हें नौकरी से निकाल देना या उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से दूर रखना कंपनियों के लिए सहज उपाय है। 

मीडिया में आई खबरों के अनुसार आईकीआ इंडिया ने इस दिशा में परिवर्तन लाने की कोशिश करते हुए सभी कर्मचारियों के लिए छह महीने भुगतान की जाने वाली पैटरनिटी लीव की घोषणा की थी। वहीं साल 2018 में पेप्सिको इंडिया ने 12 हफ्तों की पैटरनिटी लीव घोषित किया था। माइक्रोसॉफ्ट इंडिया छह हफ्तों का सशुल्क पैटरनिटी लीव के साथ-साथ कर्मचारियों के अनुकूल कार्य व्यवस्था की पेशकश की है। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि ये कंपनियां मूल रूप से विदेशी हैं और ये भारतीय समाज के अनुसार नहीं चलते। इसलिए भारतीय कंपनियों को दकियानूसी विचारधारा का आवरण उतारने और पितृत्व अवकाश के संकल्पना को अपनाने की जरूरत है। बच्चे को जन्म देना किसी महिला के लिए एक भावनात्मक और थका देने वाला अनुभव होता है। ऐसे में, एक पिता और जीवनसाथी के रूप में पुरुष का उसके पास रहना और सभी कामों में मदद करना सबसे अच्छा और अहम योगदान है। गर्भावस्था या उसके बाद भी एक मां को अपनी नींद, खान-पान, जीवन शैली को बदलने की जरूरत होती है। इसलिए बतौर जीवनसाथी यह जरूरी है कि पिता गर्भावस्था के दौरान या उसके बाद सहायता के लिए मौजूद हो। आज पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंडों को नकार पुरुषों को इस आवश्यकता को महसूस करनी ताकि अकेली महिला पर बच्चे के जन्म का दबाव न रहे।

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तस्वीर साभार : Live Law

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