इतिहास अन्नै मीनमबल शिवराज : जातिवादी व्यवस्था का विरोध करने वाली पहली दलित महिला| #IndianWomenInHistory

अन्नै मीनमबल शिवराज : जातिवादी व्यवस्था का विरोध करने वाली पहली दलित महिला| #IndianWomenInHistory

अन्नै मीनमबल शिवराज भारत की पहली दलित नेत्री थी जिन्होंने देश में दलितों के अधिकारों के लिए लड़ा और दलित महिलाओं को उनके सम्मान और अधिकार से रूबरू कराया। उनकी लड़ाई देश के राष्ट्रीय मामलों में दलित महिलाओं को शामिल करने की थी लेकिन फिर भी मुख्यधारा मीडिया में अन्नै के नाम की कभी चर्चा नहीं हुई। उनका जन्म 26 दिसंबर 1904 को हुआ था। इनके पिता का नाम वासुदेवपिल्लई और माता का नाम मीनाक्षी था। उनका बचपन बर्मा (अब म्यांमार) के रंगून में बिता। आगे चलकर इनके परिवार ने वहां से तमिलनाडु की तरफ रुख किया।

अन्नै मीनमबल शिवराज का परिवार पहले से ही जातिगत भेदभाव के सख्त खिलाफ था। उनके परिवार में ज्यादातर लोग प्रसिद्ध दलित नेता थे। उनके दादा पी.एम. मदुरई पिल्लई उस समय के जाने-माने दलित नेता हुआ करते थे। उनके पिता मद्रास के निगम द्वारा चुने गए पहले व्यक्ति थे, जो तमिलनाडु सभा में सदस्य बने और आदि द्रविड़ आंदोलन में पहले से ही शामिल थे। इसलिए अन्नै मीनमबल को आंदोलन के संघर्षों के बारे में पहले से ही पता था। अपना स्नातक पूरा करने के बाद वह मद्रास चली गई ताकि देश की राजनीतिक स्थिति को बेहतर जान सके और दलित औरतों के लिए कुछ कर सकें।

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वास्तविक रूप से अन्नै मीनमबल के राजनीतिक कार्य साल 1928 में शुरू हुए जब उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र में साइमन कमीशन के पक्ष में भाषण दिया था। कई उच्च जाति के भारतीय नेताओं ने इस कमीशन का यह कहकर बहिष्कार किया था कि यह भारतीय हितों का प्रतिनिधित्व नहीं करता। जबकि मिनमबल ने कमीशन से दलितों के लिए सकारात्मक कार्रवाई की अपील की। फिर वह डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और इ.वी.आर रामास्वामी के सानिध्य में आईं और तमिलनाडु के दलितों के मन में चेतना और जाति-विरोधी आंदोलनों का संदेश दिया। उन्होंने 31 दिसंबर 1937 में हुए कांफ्रेंस के दौरान कहा, “कहा जाता है कि यदि एक परिवार में एकता ना हो तो उसका नाश हो जाता है। इसी वजह से यह ज्ञात होना चाहिए कि समाज, राष्ट्र या अन्य कोई भी चीज को उन्नति करने के लिए एकता की ताकत चाहिए। हालांकि हमारे देश से इस बात को खत्म करने में समय लगेगा, लेकिन फिर भी हमें अपने समुदाय के लोगों को एक साथ होकर यह साबित करना होगा कि हम भी उनकी तरह मनुष्य हैं।”

अन्नै मीनमबल मद्रास विश्वविद्यालय सीनेट का प्रतिनिधित्व करने वाली और मद्रास कॉरपोरेशन की सदस्य बनने वाली पहली दलित महिला थीं। इसके अलावा वह डॉ अंबेडकर द्वारा शुरू विशेष रूप से अनुसूचित वर्ग के लिए पहले अखिल भारतीय राजनीतिक दल AISCF (अखिल भारतीय अनुसूचित जाति महासंघ) की पहली दलित महिला अध्यक्ष बनीं। 1944 में उन्होंने डॉक्टर अंबेडकर के साथ AISCF की राष्ट्रीय महिला सम्मेलन की अध्यक्षता की। इसका आगे का सत्र 6 मई 1945 को बंबई में आयोजित किया गया जिसमें इन्होंने महिलाओं के पढ़ाई की जरूरत को दृढ़ता से अभिव्यक्त किया। उनकी शादी एन शिवराजन से हुई, जो वकील और जाने-माने राजनीतिज्ञ थे। उनके पति को डॉक्टर आंबेडकर का बेहद करीबी माना जाता था।

अपने जीवनकाल के दौरान अन्नै मीनमबल ने विभिन्न पदों को संभाला। वह मद्रास की मानद मैजिस्ट्रेट थीं, वह पोस्ट-वार रिहैबिलिटेशन सेंटर की सदस्य भी रहीं, वह अनुसूचित जाति सहकारी बैंक के निदेशक भी थीं। वह विरोधी-पैरी निगम श्रम संघर्ष कि नेत्री थीं। इन्होंने ही मद्रास सम्मेलन के दौरान ई.वी.रामास्वामी को ‘पेरियार’ का नाम दिया था। कहा जाता है कि रामास्वामी इस नाम को सुनकर पहले हंसे फिर एक बहन के उपहार के रूप में स्वीकार कर लिया। 1925 में ई.वी. रामास्वामी द्वारा आत्मसम्मान आंदोलन की शुरुआत की गई। मीनमबल इस आंदोलन की जबरदस्त समर्थक थीं। वह इस आंदोलन की नारीवादी नेताओं में से एक थीं। इसके तहत उन्होंने दलित औरतों को उत्पीड़न, जाति असमानता, छुआछूत के खिलाफ लड़ाई में उनकी सक्रिय भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया और इसका महत्व बताया। अपने पूरे जीवन में उन्होंने दलित समुदाय के लिए काम किया और 80 वर्ष की आयु में सार्वजनिक सेवा से सेवानिवृत्त हो गईं। लोग इन्हें प्यार से अन्नै कहकर बुलाते थे। 30 नवंबर 1992 को 92 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।

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तस्वीर : फेमिनिज़म इन इंडिया

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