समाजख़बर एक-एक सांस के लिए संघर्ष करते देश में सेंट्रल विस्टा परियोजना की ज़रूरत क्या है ?

एक-एक सांस के लिए संघर्ष करते देश में सेंट्रल विस्टा परियोजना की ज़रूरत क्या है ?

हालांकि, सेंट्रल विस्टा परियोजना सिर्फ एक संसद भवन बनाने के बारे में नहीं है। यह दिल्ली के दिल को मौलिक रूप से बदलने का प्रस्ताव देता है।

हाल ही में, केंद्रीय लोक निर्माण विभाग को भारत सरकार द्वारा सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के काम को आवश्यक कार्य के तौर पर काम करने की मंजूरी दे दी गई। मौजूदा हालातों को ध्यान में रखते हुए, जहां भारत कोरोना महामारी, ऑक्सिजन, वेंटिलेटर, अस्पताल बेड्स और दूसरी मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के संकट से लड़ रहा है, वहां इस परियोजना के काम को शुरू करना भारत सरकार की अब तक की सबसे बड़ी गलतियों में से एक माना जा रहा है। आगे बढ़ने से पहले हमारा यह जानना बहुत ज़रूरी है कि आखिर यह परियोजना है क्या और जब दिल्ली अपने एक-एक सांस के लिए संघर्ष कर रही है तब इस परियोजना के काम को चालू रखना एक बेवकूफ़ी भरा कदम नहीं तो और क्या है?

केंद्रीय विस्टा पुनर्विकास परियोजना घोषणा साल 2019 में मोदी सरकार द्वारा की गई थी, जिसकी नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पिछले साल रखी गई। इस परियोजना के तहत 3.2 किलोमीटरबे राजपथ जो कि राष्ट्रपति भवन और इंडिया गेट को आपस में जोड़ता है उसे पुनर्निर्मित किया जाएगा। इस पुननिर्माण के दौरान उत्तर और दक्षिण ब्लॉक को सार्वजनिक संग्रहालयों में परिवर्तित किया जाएगा, जबकि सभी मंत्रालयों के लिए नए सचिवालय भवनों का एक समूह बनाया जाएगा, और उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के कार्यालयों और उत्तर और दक्षिण ब्लॉकों के आसपास के घरों को स्थानांतरित किया जाएगा। इस परियोजना को आम चुनाव से पहले साल 2024 में पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है और मई 2022 तक इसके पूरा होने का अनुमान भी लगाया जा रहा है। इस परियोजना के अंतर्गत नई इमारतों को बनाने के साथ-साथ, पुराने प्रतिष्ठित लैंडमार्क का भी पुननिर्माण किया जाएगा जो की दिल्ली की खूबसूरती पर चार चांद लगाती है। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग को इस परियोजना के लिए नोडल एजेंसी बनाया गया है। हाल ही में देश-विदेश के 76 स्कॉलर्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि वह इस परियोजना को रोक दें। कोरोना महामारी के इस विध्वंसकारी माहौल के बीच इस परियोजना को रोककर इस पर दोबारा विचार करने की ज़रूरत है।

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हालांकि, सेंट्रल विस्टा परियोजना सिर्फ एक संसद भवन बनाने के बारे में नहीं है। यह दिल्ली के दिल को मौलिक रूप से बदलने का प्रस्ताव देता है। इस परियोजना को लेकर अब सरकार पर कई तरीके के सवाल उठने लगे है और सवालों का उठना एक लाज़मी बात है। सेंट्रल विस्टा परियोजना में आने वाला कुल खर्च बीस हजार करोड़ रुपए का है। जहां सरकार को इस वक्त अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था को मज़बूत करने की ज़रूरत है, कोरोना महामारी से बेमौत मरते लोगों की जान बचाने की ज़रूरत है।वहीं, सरकार इस समय अपनी इस महत्वाकांक्षी परियोजना में हज़ारो-करोड़ों रुपए लगाकर, लोगों की जान को खतरे में डाल रही है। इस बात से यह तो ज़ाहिर हो जाता है कि सरकार की प्राथमिकताएँ उनकी जनता का स्वास्थ्य नहीं बल्कि अपने लिए नए आवास, नई इमारतें बनाना है। जब भारत की जनता कोरोना की दूसरी लहर का सामना कर रही है और हर दिन कोरोना से होनेवाली मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। इस समय सरकार का पहला काम लोगों को ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराना है लेकिन सरकार इस परियोजना के काम को आवश्यक सेवा के तौर पर चालू रखकर जनता के मुंह पर तमाचा मार रही है।

जब दिल्ली अपने एक-एक सांस के लिए संघर्ष कर रही है तब इस परियोजना के काम को चालू रखना एक बेवकूफ़ी भरा कदम नहीं तो और क्या है?

निर्माणकार्य में लगे मज़दूरों पर मंडराता जोखिम

दूसरी तरफ उन मजदूरों का क्या? जो दिन-रात इस संकट भरे कोरोना की परिस्थति में अपनी जान जोखिम में डालकर सरकार के इस सेंट्रल विस्टा परियोजना के लिए काम कर रहे है। इस बात से हमें यह पता चलता है की सरकार को इन मज़दूरों या उनके परिवार की न के बराबर फिक्र है। वहीं, कहीं न कहीं इस बात को भी पूरी तरह से नज़रअंदाज़ किया जा रहा है की इस परियोजना के निर्माणकार्य में लगे मज़दूर कोरोना की चपेट में आकर इस बीमारी के वाहक बन सकते हैं। आगे जाकर वे ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना वायरस के फैलाव का कारण बन सकते हैं। अभी हाल ही में द वायर की रिपोर्ट में यह बताया गया कि इन मजदूरों को आवश्यक सेवा का कार्ड देकर बसों के जरिए कन्स्ट्रक्शन साइट पर लेकर जाया जा रहा है या इन मजदूरों को कन्स्ट्रक्शन साइट पर ही रखा जा रहा है। इन्हीं बातों को मद्देनजर रखते हुए एक सवाल जो कि हमें सरकार से पूछना चाहिए कि इन मज़दूरों की स्वास्थ्य सुरक्षा का क्या? ये मज़दूर लॉकडाउन की स्थिति में भी काम कर रहे हैं और ऐसी परिस्थति में काम कर रहे हैं जहां कोरोना का खतरा उनके आस-पास मंडरा रहा है। वहीं मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए, अभी मज़दूरों से काम करवाना उनके स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने के बराबर नहीं तो और क्या है? ऐसी परियोजनाओं का क्या फायदा जो देश को फायदे से ज्यादा नुकसान करे। साथ ही इसमें करोड़ों रुपये खर्च करना वह भी उस वक्त जब देश बहुत ही नाजुक हालातों से गुजर रहा है, यह एक गैरज़िम्मेदाराना रवैया नहीं तो और क्या है?

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वहीं, अगर हम दूसरी तरफ देखते हैं तो केंद्रीय विस्टा पुनर्विकास परियोजना से न दिल्ली के वातावरण पर असर पड़ेगा, बल्कि बड़ी तादाद में पेड़ों को काटे जाने की संभावना है और पेड़ों को काटने का असर आप अपने आस-पास आजकल बखूबी देख सकते हैं। खासकर दिल्ली के प्रदूषण के संदर्भ में बात करें तो पेड़ों का कटना और भी गंभीर हो जाता है। इसके साथ-साथ इस सेंट्रल विस्टा परियोजना से दिल्ली की विरासत पर जो असर पड़ेगा वह एक अलग बात है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सरकार को इस परियोजना को समय से पहले खत्म करने की बजाय इसे रोककर इसका विस्तृत अध्ययन करने की जरूरत है। यह सोचने की ज़रूरत है कि कैसे यह परियोजना दिल्ली की विरासत से लेकर उसके वातावरण और ट्रैफिक पर कितना असर करेगी। वहीं, इस परियोजना पर खर्च करना पैसे की बर्बादी ही मानी जानी चाहिए। बहरहाल, अगर यह पुननिर्माण जब पूरा हो तो यह परियोजना राष्ट्र के विवेक में खेद, पश्चाताप और पीड़ा का एक दुखद शून्य छोड़ देगी। इस परियोजना से मन में सवाल तो ज़रूर पैदा होता है की क्या पांच साल की अवधि के लिए चुनी गई सरकार इस तरह के विशाल विध्वंस को सही ठहरा सकती है, जिससे अपरिवर्तनीय परिणाम और अपूरणीय क्षति हो सकती है।

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तस्वीर साभार : The Telegraph

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