इंटरसेक्शनलजेंडर औरतों के लिए क्यों ज़रूरी है अपनी पहचान और अपना काम

औरतों के लिए क्यों ज़रूरी है अपनी पहचान और अपना काम

हमारे घरों में ऐसे लोग मौजूद हैं जो धीरे से लड़कियों के उन सभी परों को काट देते हैं ताकि आगे चलकर वे ऊंची उड़ान ना भर सकें।

अक्सर आप पर जब कोई काम करने का दवाब बनाया जाता है उस परिवेश में जिसे आप छोड़ नहीं सकते या उन लोगों द्वारा जिनसे आप भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं वहां या तो आप वह काम कर लेते हैं या कोई शॉर्टकट निकाल लेते हैं। वहीं, कई बार हम लड़कर काम नहीं भी करते हैं लेकिन क्या हो अगर आपके पास कोई विकल्प ही मौजूद ना हो? हमारे घरों में लड़कियों को लड़कों के मुकाबले ज्यादा रोक-टोक और सवालों का सामना करना पड़ता है। लड़की को ‘घर की इज्जत’ होने के नाते बहुत सारी मर्यादाओं का ध्यान रखना होता है। इसके बीच कई बार उन्हें अपने जरूरी कामों को भी किनारे करना पड़ता है। घरों में लड़कियों पर काबू पाना, साफ भाषा में कहें तो उन्हें ‘ज्यादा उड़ने’ से रोकने के लिए एक माहौल तैयार किया जाता है। इसे हम परिवार के प्यार में नजरअंदाज तो कर देते हैं लेकिन यही रोक-टोक इस कदर यह हम पर धीरे-धीरे हावी हो जाती है कि हम अपने कामों के दायरों को सीमित करने लगते हैं और कामों की छंटनी करने लगते हैं कि यह काम करने की जरूरत है या नहीं। इसी का नतीजा है कि लड़कियां अपनी पहचान को खो देती हैं और एक घरेलू महिला बनकर घर संवारने में लग जाती हैं।

कितनी तेज़ी से महिलाएं छोड़ रही हैं नौकरी

बड़ी संख्या में लड़कियां शादी के बाद अपनी अच्छी खासी नौकरी को छोड़कर गृहस्थ जीवन में लग जाती हैं क्योंकि तमाम कोशिशों के बाद भी वे परिवार को यह समझाने में कामयाब नहीं हो पाती कि उनका काम भी कितना ज़रूरी है। हमारे पितृसत्तात्मक समाज में औरतों का तो काम ही होता है घर संभालना इसलिए पहले घर, बाकी बाद में अगर समय रहा तो नौकरी भी कर सकती हैं लेकिन घर तो संभालना ही पड़ेगा। डेक्कन क्रॉनिकल की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2004-2005 और साल 2011-12 के बीच करीब 20 मिलियन महिलाओं ने अपनी नौकरी छोड़ी थी और हैरानी की बात यह है कि ठीक उसी समय 24 मिलियन पुरुषों में नौकरी ज्वाइन की। वहीं, वर्ल्ड बैंक द्वारा की गई नैंशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन और सेंसस के आंकड़ों के अध्ययन के मुताबिक देश में महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी साल 1993-94 जो 42 फीसद थी, वह साल 2011-12 में 31 फीसद तक आ गई।

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द क्विंट की अप्रैल 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक वे महिलाएं जो बच्चों को जन्म देने के बाद ही अपनी नौकरी छोड़ देती हैं उनका आंकड़ा 73 फ़ीसद है। इसके साथ ही 50 फ़ीसद महिलाएं 30 की उम्र में ही बच्चों की देखभाल करने के लिए अपनी नौकरी से इस्तीफा दे देती है, इनमें से केवल 27 फ़ीसद महिलाएं ही वापस नौकरी करने के लिए खुद को तैयार कर पाती हैं। ऐसा क्यों है? यह त्याग लड़कियों को ही क्यों करना होता है, यह किसके तय किया कि लड़की ही घर संभालेगी या अपनी पहचान को छोड़ देगी। क्यों उसकी अपनी कोई पहचान नहीं रह जाती सिवाय घर संभालनेवाली एक हाउसवाइफ के।

आपको जानकर हैरानी होगी, बहुत से शब्द जैसे करमजली, चुड़ैल, कुलटा और डायन जैसे शब्दों का इस्तेमाल केवल लड़कियों पर ही किया जाता है, इन शब्दों का कोई पुल्लिंग नहीं है। यह वह शब्द है जिनका इस्तेमाल महिलाओं के लिए उस समय किया जाता है जब शहर समाज से अलग चलती हैं या परिवार से अलग आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करते हैं।

श्रम के आधार पर शोषण की बुनियाद है हमारा घर

लड़की को क्या करना है, क्या नहीं, यह सब हमारे पितृसत्तात्मक वातावरण में इस तरह से घुला-मिला है कि जिसमें गलत लगने जैसी कोई गुंजाइश नहीं होती। देखने में लगता है सब ऐसे ही तो होता है, लड़की घर संभालती है और लड़का पैसे कमा कर लाता है। इस तरह के माहौल की शुरुआत बहुत पहले से ही हो जाती है जिसे हम बातों बातों में नजरअंदाज कर देते हैं। आपने अक्सर घरों में कहते सुना होगा की लड़कियों को खाना बनाना तो आना ही चाहिए, लड़कियों में शर्म होनी चाहिए, उन्हें नाज़ुक होना चाहिए ताकि वह आवाज न उठा सके। एक बार असमय जब मैं अपनी दोस्त के घर पहुंची तो उसने मुझे पास्ता लाकर दिया जिस पर उनकी मां ने बातों-बातों मैं मुझसे कहा,”यही सब बनवा लो इससे, ससुराल में जाकर नाक कटवाएगी ये लड़की।” दिल्ली में रहने वाला निशांत, जो मेरा दोस्त भी है। उसने एक दिन मुझे बताया कि उसकी शादी होने वाली है। मैंने इतनी जल्दी शादी की वजह पूछी तो उसने बताया कि उसकी मां अब अकेले घर का काम नहीं संभाल पा रही हैं अगर बहू आएगी तो घर का काम संभाल लेगी और मां को थोड़ा आराम भी मिल जाएगा, उनकी सेवा हो जाएगी।

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रोहिणी में रहने वाली नेहा जो अभी हाल ही में ग्रेजुएट हुई है और सिविल सर्विसेज़ की तैयारी कर रही है, बताती है, “मेरा भाई जो लगभग मेरी ही उम्र का है और फिलहाल घर पर ही रहकर आगे की पढ़ाई की तैयारी कर रहा है, बावजूद इसके कभी भी उसे घर के किसी काम के लिए नहीं बोला जाता, मुझे काम करना पड़ता है कभी गुस्से में अगर मैं जिद्द पर आकर काम नहीं करती हूं और भाई को करने के लिए बोलती हूं तो वह तो साफ मना कर देता है लेकिन उसके बाद मां मुझ पर ही गुस्सा होकर खुद काम करने चली जाती हैं।” NSO की रिपोर्ट के अनुसार घर के कामों में ज्यादा हिस्सेदारी महिलाओं की ही होती है। घरेलू काम जैसे खाना बनाना और साफ सफाई करना इनमें महिलाओं की हिस्सेदारी 81.2 फ़ीसद होती है। वहीं, दूसरी ओर आदमी केवल 26.1 फ़ीसद ही काम करते हैं।

आपको जानकर हैरानी होगी, बहुत से शब्द जैसे करमजली, चुड़ैल, कुलटा और डायन जैसे शब्दों का इस्तेमाल केवल लड़कियों पर ही किया जाता है, इन शब्दों का कोई पुल्लिंग नहीं है। यह वह शब्द है जिनका इस्तेमाल महिलाओं के लिए उस समय किया जाता है जब शहर समाज से अलग चलती हैं या परिवार से अलग आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करते हैं। चुड़ैल, कुलटा यानि बुरी औरत जिसके घर में आने से कुछ अच्छा नहीं होता और सुशील-संस्कारी वह होती है जो घर संभालती है और किसी काम के लिए जिद्द नहीं करती, ज़ुबान नहीं चलाती, बहस नहीं करती। मानसिकता ऐसी है कि लोग आज भी इस तरह की बहू अपने घर में नहीं लाना चाहते जो पढ़ी- लिखी हो क्योंकि पढ़ी लिखी होगी तो जुबान चलाएगी, घर में लड़ाई होगी और गृह कलेश रहेगा जोकि अच्छी बहू की निशानी नहीं होती।

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लड़कियों को कैद रखना है असल मकसद

पितृसत्तात्मक समाज में आदमियों के प्रभुत्व का सबसे बड़ा आधार लड़कियों की यौनिकता होती है जिसे इज्ज़त के नाम पर लड़कियों को उनके मानवाधिकारों से दूर रखा जाता है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (World Economic Forum) ने जेंडर गैप पर इस साल(2021) की रिपोर्ट जारी की है जिसके मुताबिक कोरोना महामारी के दौरान पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी का अंतर एक पीढ़ी और बढ़ गया है। रिपोर्ट की मानें तो महिला और पुरुष के बीच बराबरी लाने में एक सदी से भी ज्यादा का समय लगेगा। बता दें कि इस रिपोर्ट में शामिल 156 देशों में जहां भारत पहले 112वें स्थान पर था अब फिसल कर 140वें स्थान पर पहुंच गया है यानि कि यहां भेदभाव पहले के मुकाबले और ज्यादा बढ़ा है। जेंडर गैप रिपोर्ट में आकलन का आधार महिलाओं की अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी और उन्हें मिलने वाले अवसर, शैक्षणिक स्थिति, राजनीति में सक्रियता और स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर होता है।

हमारे घरों में और आसपास ऐसे लोग मौजूद हैं जो धीरे से लड़कियों के उन सभी परों को काट देते हैं ताकि आगे चलकर वे ऊंची उड़ान ना भर सकें क्योंकि लड़की का काम मुख्य रूप से घर संभालना होता है। वही काम सबसे पहले है इसलिए लड़की को अच्छा खाना बनाना आना चाहिए, कपड़े सिलना आना चाहिए, ज्यादा सवाल-जवाब नहीं करना चाहिए, बाहर नहीं निकलना चाहिए, यह नहीं पहनना चाहिए, ऐसे नहीं बैठना चाहिए, हंसकर नहीं चलना चाहिए। अक्सर जब कोई लड़की अपने अलग रास्ते पर चलने की कोशिश करती है तो उसकी राह बहुत सीधी नहीं होती, घर में ही बहुत संघर्ष करना होता है। मानसिक रूप से भी बहुत मजबूत बनना पड़ता है घर में लड़ना भी पड़ता है। इसलिए लड़िए और अपनी समझ से अपने लिए एक रास्ता, एक पहचान बनाइए ताकि आपका भविष्य घर की चारदीवारी में ही बंध कर ना रह जाए।

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