स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य महंगे पैड और इसकी सीमित पहुंच के कारण आज भी कपड़े के इस्तेमाल पर निर्भर हैं महिलाएं

महंगे पैड और इसकी सीमित पहुंच के कारण आज भी कपड़े के इस्तेमाल पर निर्भर हैं महिलाएं

जब मैं घर पर रहा करती थी तो उस समय मेरी मम्मी मुझे कपड़े का इस्तेमाल करने को कहती थी ताकि पैड खरीदने में होनेवाले खर्चे से बचाया जा सके।

मेरी उम्र 21 साल है और मैं अपने बहन-भाइयों में सबसे बड़ी हूं। मेरी मां ने पीरियड्स के दौरान कभी भी पैड का इस्तेमाल नहीं किया। मैं खुद भी कपड़े का ही इस्तेमाल करती लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि मेरे स्कूल में हर महीने सैनिटरी पैड दिया जाता था। हालांकि स्कूल से मिलनेवाले पैड बहुत छोटे होते थे जिसके कारण हमेशा पीरियड्स के दौरान मेरे कपड़े गंदे हो जाया करते थे। उस समय ना ही मैं खेलकूद कर सकती थी और ना ही ठीक से उठ-बैठ सकती थी। जब कॉलेज जाना शुरू किया तो पैड खरीदने की जरूरत मां को बताई तब उन्होंने मुझे पैसे दिए और मैंने स्टेफ्री का पैड खरीदा। हालांकि कीमत उस पैड की भी कम नहीं थी। घर पर कभी इस बारे में ना तो बात होती थी ना ही अब तक किसी ने मार्केट में मिलनेवाले पैड्स का इस्तेमाल किया था। इसलिए यह कभी घर के बजट में शामिल ही नहीं हुआ। ऐसा नहीं है कि मैंने कभी कपड़े का इस्तेमाल नहीं किया, जब मैं घर पर रहा करती थी तो उस समय मेरी मम्मी मुझे कपड़े का इस्तेमाल करने को कहती थी ताकि पैड खरीदने में होनेवाले खर्चे से बचाया जा सके।

मैं जब स्टूडेंट थी तो मुझे घर से ही पैसे लेने पड़ते थे वरना मैं घर पर भी कपड़े का इस्तेमाल नहीं करती। कपड़ा खिसकने का डर हमेशा रहता था, साथ ही वह काफी मोटा होता था जिससे बहुत गर्मी लगती थी। कई बार मेरी स्कीन जल जाया करती थी और मुझे बहुत दर्द और खुजली भी होती थी। मैं पीरियड्स के दौरान पूरे वक्त परेशान रहती थी। यहां तक कि जब मैंने स्टेफ्री पैड का इस्तेमाल करना शुरू किया तो उसमें भी मुझे परेशानी रहती थी। मुझे कुछ ऐसा चाहिए था जो ब्लड को ठीक से सोख सके और फैले भी नहीं। पैड के कोनों से भी कई बार त्वचा घिस जाया करती थी। इसलिए फिर मैंने व्हिस्पर पैड का इस्तेमाल शुरू किया। मैंने अपनी ज़रूरत के हिसाब से कई कीमतों को पार किया जिसके बाद मेरी जरूरत 90 रुपये वाले व्हिस्पर पैड तक आ पहुंची जिसमें 6 पैड्स होते हैं। हालांकि मैंने अब तक दो बार ही 90 रुपये वाला पैड खरीदा है। मार्केट में मैंने जितना कंफर्ट पैड्स में तलाशा है वे मुझे उतने ही महंगे नजर आए जबकि पैड पीरियड्स के लिए अनिवार्य है। इसकी कीमत इतनी अधिक नहीं होनी चाहिए कि हम पैड्स खरीद ही ना सके। कई वजहों में से कीमतों के कारण पैड नहीं खरीद पाना एक बड़ी वजह है ।

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गौरतलब है कि साल 2018 में देश के प्रमुख ब्रांडो में व्हिस्पर बाय प्रॉक्टर एंड गैंबल हाइजीन एंड हेल्थ केयर लिमिटेड ने बाजार में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी कायम की है जो कि 51.42% रही। इसके बाद स्टेफ्री और कोटेक्स मार्केट में उपलब्ध बड़ी संख्या में पाए जाने वाले ऐसे पैड्स हैं जो मार्केट में कम कीमत में भी उपलब्ध हैं लेकिन इसके बाद भी बड़ी संख्या में लोगों की पहुंच पीरियड्स प्रॉडक्ट्स तक आज भी नहीं है। केंद्र सरकार ने सैनिटरी नैपकिन को अन्य उत्पाद जैसे खिलौने, मोबाइल जैसी चीजों के समान माना है जबकि यह पीरियड्स के लिए अनिवार्य उत्पाद है जिसकी पहुंच देश सभी तक होनी चाहिए। साथ ही यह ध्यान में रखते हुए ही इसकी कीमत और उपलब्धता तय होनी चाहिए थी। यहां तक कि सरकार सैनिटरी पैड्स पर 12 फीसद जीएसटी लगाती है। क्या सरकार इस लिए इन पर नहीं सोचती या बात नहीं करती क्योंकि इसके बारे में लोग सवाल नहीं उठाते।

ऐसा नहीं है कि मैंने कभी कपड़े का इस्तेमाल नहीं किया, जब मैं घर पर रहा करती थी तो उस समय मेरी मम्मी मुझे कपड़े का इस्तेमाल करने को कहती थी ताकि पैड खरीदने में होनेवाले खर्चे से बचाया जा सके।

कविता जो दो बच्चों की मां है और एक गृहणी हैं वह बताती हैं कि उन्होंने आज तक मार्केट में आने वाले पैड का इस्तेमाल नहीं किया है और वह करना भी नहीं  चाहती। उन्हें कपड़ा ज्यादा बेहतर लगता है। एक बार उन्होंने कोशिश की थी कि वह पैड का इस्तेमाल करें लेकिन ऐसा करने पर वह डर में रही की कहीं इससे लीकेज ना हो जाए। पैड उन्हें कपड़े से काफी ज्यादा हल्का महसूस हुआ जिसके चलते उन्होंने अगली बार से डर के मारे पैड का इस्तेमाल नहीं किया। कपड़े के इस्तेमाल से उन्हें कभी-कभी काफी गर्मी महसूस होती है। वह बताती हैं कि घर में पड़े सूती कपड़ों को ज़रूरत के हिसाब से वह इस्तेमाल करती हैं क्योंकि पीरियड्स की शुरुआत के 2 दिनों में खून का प्रवाह ज्यादा होता है तो कपड़े को ज़रूरत के हिसाब से वह छोटा-बड़ा या पतला-मोटा बना लेती हैं जबकि पैड में ऐसा नहीं होता और अगर अच्छा पैड ले भी तो वह बहुत महंगा पड़ जाता है। वहीं, सुमन जो सरकारी डिस्पेंसरी में नर्सिंग का काम करती हैं वह भी अक्सर कपड़े का ही इस्तेमाल करती हैं। सुमन बताती हैं कि जब वह कपड़े का इस्तेमाल करती हैं तो वह कपड़ा 24 घंटे में दो बार ही बदलने की जरूरत पड़ती है। हालांकि यह निर्भर करता है कि ब्लड का फ्लो कैसा है फिर भी कभी दो बार से ज्यादा कपड़ा इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ी।

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कितना सही है कपड़े का इस्तेमाल

बड़ी संख्या में महिलाएं सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल आराम और सुविधा को ध्यान में रखते हुए करती हैं लेकिन आज भी कई घरों में कपड़े का इस्तेमाल होता है। पीरियड्स के दौरान कपड़े का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन कुछ सावधानियां भी बरतनी चाहिए ताकि इंफेक्शन और एलर्जी से बचा जा सके। हालांकि ऐसा बहुत से लोग नहीं कर पाते हैं इसीलिए डॉक्टर्स कपड़ा इस्तेमाल करने की सलाह कम ही देते हैं क्योंकि इसमें लापरवाही की उम्मीद है बहुत ज्यादा होती है। कई महिलाएं पुराने कपड़े का इस्तेमाल कर लेती हैं या एक ही कपड़े को कई बार इस्तेमाल कर लेती हैं जो कि स्वास्थ के लिए खतरनाक है। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में डॉक्टर अंजलि कुमार, सीनियर कंसल्टेंट और एचओडी, गायनोकोलॉजी एंड ऑब्सटेट्रिक्स बताती हैं कि पीरियड्स के दौरान इस तरह की स्वास्थ्य लापरवाही अपनाने से महिला जननांग में संक्रमण हो सकता है। पीरियड्स के दौरान सेहत व साफ सफाई पर ध्यान ना देने से कई अन्य संक्रमण का सामना करना पड़ता है।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के अनुसार देशभर में केवल 42 फीसद युवा महिलाएं ही सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं। वहीं, ग्रामीण इलाकों में 48 फीसद महिलाएं ही पैड का इस्तेमाल कर पाती हैं। वहीं उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में तो आज भी 81 फीसद महिलाएं कपड़े का ही इस्तेमाल करती हैं। सबसे अधिक बिहार में करीब 82 फीसद महिलाएं आज भी कपड़े पर ही निर्भर हैं। जैसा कि सुमन ने हमें बताया था कि वह कपड़े का इस्तेमाल लगभग 12 घंटे तक करती हैं जो बेहद खतरनाक है। डॉक्टर सैनिटरी नैपकिन को अगर बहाव ज्यादा है तो 4 घंटे में और बहाव कम है तो 8 घंटे के अंदर बदलने की सलाह देते हैं।

आज मार्केट में कई तरह के पैड्स और हाइजीन प्रोडक्ट्स मौजूद हैं। ऐसे भी पैड्स हैं जिनका दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। टैम्पन भी मौजूद है, मेंस्ट्रूअल कप्स का इस्तेमाल भी हो रहा है। यह सभी प्रोडक्ट्स जीवन को सरल बनाते हैं लेकिन आज भी इतनी बड़ी संख्या में लोग इन सब के बारे में जानते भी नहीं, फिर किसके लिए है यह सब? जब आज भी इतनी बड़ी संख्या में ऐसी लोग हैं जो कपड़े का इस्तेमाल कर रहे हैं। सभी उच्च स्तरीय, बढ़िया गुणवत्ता वाले हाइजीन प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल वही लोग कर पाते हैं जो आर्थिक रूप से मजबूत हैं और बड़े शहरों में रहते हैं। अगर सभी का यही मानना है कि मार्केट में आने वाला सैनिटरी प्रोॉडक्ट्स कपड़े से ज्यादा बेहतर होते हैं और सभी को इनका इस्तेमाल करना चाहिए तो इन तक सभी वर्ग की पहुंच, इसकी जिम्मेदारी सरकार की नहीं है? सेनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करने से अगर सेहत को इतना नुकसान होता है तो क्या यह हमारे जीवन जीने के अधिकार में शामिल नहीं है।

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तस्वीर साभार : Medical Daily

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