समाजख़बर मंदिरा बेदी का स्टीरियोटाइप तोड़ना और पितृसत्ता के पोषक ट्रोल का तिलमिलाना | नारीवादी चश्मा

मंदिरा बेदी का स्टीरियोटाइप तोड़ना और पितृसत्ता के पोषक ट्रोल का तिलमिलाना | नारीवादी चश्मा

अभिनेत्री मंदिरा बेदी ने बेहद मज़बूती और सहजता से स्टीरियोटाइप को तोड़ा है और जिसका क्रम आगे भी जारी रखना ज़रूरी है।

बीते 30 जून को अभिनेत्री मंदिरा बेदी के पति राज कौशल का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया, जो एक जाने-माने प्रोड्यूसर और डायरेक्टर थे। ज़ाहिर है यह मंदिरा बेदी और उनके पूरे परिवार के बेहद मुश्किल समय है, पर दुर्भाग्यवश इस मुश्किल दौर में भी सोशल मीडिया पर ट्रोल करने वाले धर्म और संस्कृति के नामपर उन्हें ट्रोल करना बंद नहीं कर रहे है। राज कौशल के निधन की खबर जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल होना शुरू हुई, उसके साथ ही धीरे-धीरे उनकी अंतिम यात्रा से जुड़ी तस्वीरें भी शेयर होने लगी। इन्हीं तस्वीरों में जब मंदिरा बेदी सफ़ेद टी-शर्ट और जींस में अपने पति के अंतिम संस्कार की रस्में करती हुई दिखी तो सोशल मीडिया पर उन्हें ट्रोल किया जाने लगा। वो लोग जो कुछ देर पहले मंदिरा बेदी की तस्वीरों को साझा करके उन्हें लिए अफ़सोस जता रहे थे, अचानक वे तीखी भाषा में उनकी निंदा करने लगे।

हमारे देश में ये ट्रोलिंग अब मानो नए भारत की नयी संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है। आए दिन हम महिलाओं को बुरी तरह ट्रोल होने की खबर सुनते हैं, कभी कोई अभिनेत्री तो कभी कोई राजनेता, कभी कोई पत्रकार तो कभी कोई सामाजिक कार्यकर्ता। यानी कि हर वह औरत जो आगे बढ़ रही है, जिसकी अपनी एक सामाजिक पहचान है और जिसका व्यक्तित्व और विचार दूसरों को प्रभावित करता है, हर वह लिखती-बोलती-लड़ती महिला ट्रोल के निशाने पर होती है। पर इस ट्रोलिंग की संस्कृति में पितृसत्ता की गहरी और कट्टर पैठ को ज़रूर देखा-समझा जा सकता है, जो महिलाओं के साथ किसी भी तरह की हिंसा से बाज नहीं आती है, जब-जब वो पितृसत्ता के ढाँचे को चुनौती देती है। मंदिरा बेदी के साथ भी यही हुआ। पति के देहांत पर पत्नी के जींस-टीशर्ट पहनकर पति के अंतिम संस्कार रस्में करना हमारा समाज में पितरसत्ता के पोषकों को ये रास नहीं आया और फिर क्या था सभ्यता और संस्कृति का हवाला देकर उनके विरोध में अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया जाने लगा। वहीं सोशल मीडिया पर मंदिरा बेदी के पक्ष-विपक्ष में बहस भी तेज हो गयी। ‘मंदिरा बेदी ने तोड़ा स्टीरियोटाइप’ की हेडलाइन के साथ खबरों का सिलसिला चल पड़ा।

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बेशक हमारे भारतीय समाज ख़ासकर हिंदू धर्म से जुड़ी सदियों पुरानी परंपरा को मंदिरा बेदी ने तोड़कर जाने-अनजाने ही सही समाज में महिलाओं की भूमिकाओं और प्रस्थिति को एक नयी दिशा दी है, जो बेहद सहज और ज़रूरी भी है। आज के आधुनिक युग में जब हम महिलाओं के सशक्तिकरण और बराबरी की भागीदारी की पैरोकारी कर रहे है और इसी क्रम में महिलाओं के पहनावे और उनकी जीवन-शैली (जो पहनावा और जीवनशैली, जिसमें वे सहज है।) को स्वीकार कर रहे है तो अचानक से ये ट्रोलिंग समाज की आधुनिकता की पोल को खोल देती है, वही पोल जो आज से नहीं सदियों से हमारी संस्कृति का हिस्सा रही है।

अभिनेत्री मंदिरा बेदी ने बेहद मज़बूती और सहजता से स्टीरियोटाइप को तोड़ा है और जिसका क्रम आगे भी जारी रखना ज़रूरी है।  

यों तो भारतीय समाज की संस्कृति और इसकी सभ्यता में महान विचारकों और समाज सुधारकों की लंबी फ़ेहरिस्त है। समय के अनुसार समाज की संकीर्ण प्रथाओं और कुरितियों को तोड़ने के कई धर्म और विचाधारा का विकास हमारे समाज में हुआ। लेकिन मौजूदा समय में जब हम किसी भी धर्म के मूलभाव को सरोकार में तलाशते है तो अधिकतर हम निराश होते है, क्योंकि धर्म-विचारधारा चाहे जो भी उसके मूल को अपने जीवन से जोड़ने की बजाय हमने मूल को ग़ायब कर आडम्बरों और चिन्हों को वरीयता दी है। विचारकों के विचार को नहीं उसे महान बताकर पूजने को वरीयता दी है, यही वजह है कि कई बार हम किसी भी बदलाव को अपनी ज़िंदगी से जोड़ नहीं पाते है। क्योंकि उस बदलाव की दिशा में पहला कदम जिस इंसान को उठता है उसे हम महान बताकर या आधुनिक युग में ट्रोल के माध्यम से गाली देकर आगे अपने ढर्रे में बढ़ जाते है और इन्हीं आडम्बरों का बिम्ब हम मंदिरा बेदी के ट्रोलिंग केस में देख सकते है।  

मंदिरा बेदी ने अपने साथी, अपने पति को खोया है, वो दिन और वो पल उनकी ज़िंदगी और उनके पूरे परिवार के लिए सबसे मुश्किल पलों में से था। ऐसे में उनके लिए जींस-टीशर्ट पहनना या फिर अपने पति की अंतिम यात्रा से जुड़ी रस्मों को पूरा करना बेहद सहज था। मंदिरा बेदी ने अपने जीवनसाथी का उसकी अंतिम यात्रा तक साथ दिया, जो हर इंसान अपने साथी के लिए चाहता है, जिससे उसे लगाव और प्यार है, ये बेहद स्वाभाविक था, जिसे हमें महान बताने की बजाए सहजता से स्वीकारने की ज़रूरत है। क्योंकि यही सहजता समाज में लैंगिक समानता को सरोकार से जोड़ने की क्षमता रखती है। सामाजिक बदलाव के लिए कई माध्यम होते है, जिनमें से व्यवहार में बदलाव को लाना सबसे प्रभावी है। अभिनेत्री मंदिरा बेदी ने बेहद मज़बूती और सहजता से स्टीरियोटाइप को तोड़ा है और जिसका क्रम आगे भी जारी रखना ज़रूरी है।

ऐसे में सोशल मीडिया पर संकीर्ण पितृसत्तात्मक विचारों से लबरेज़ ट्रोल ये उम्मीद करते है कि मंदिरा बेदी ट्रोल के अनुसार बतायी जाने वाली संस्कृति का पालन करें तो इसके लिए प्रसिद्ध गायिका सोना मोहापात्रा का मंदिरा बेदी के समर्थन  में किया गया ट्वीट सटीक ज़वाब है, जिसमें वे लिखती है कि ‘लोग अभी भी मंदिरा बेदी का ड्रेस कोड देख रहे हैं। पति की अर्थी को कंधा देने पर कॉमेन्ट कर रहे हैं। हमें इससे सरप्राइज नहीं होना चाहिए। क्योंकि दूसरी दुनिया के मुकाबले हमारे समाज में मूर्खता ज्यादा भरी हुई है।’ आख़िर में ट्रोल करने वालों से यही कहूँगी कि – आप जब मंदिरा बेदी जैसे व्यक्तित्व को ट्रोल करने लिए चुनते है, वो आपके लिए सिर्फ़ ख़ुद की भड़ास और सड़ी सोच को निकालने का ज़रिया होते है। पर वास्तव में वे आपकी ट्रोलिंग से पहले सामाजिक बदलाव की नींव रख चुके होते है, जिसकी मज़बूत इमारत आप अपनी बढ़ती ट्रोलिंग तैयार करते है और लैंगिक समानता के पैरोकारों को एकजुट करते है। इसके लिए शुक्रिया, ट्रोलिंग के इस फ़िल्टर को जो हर टूटते स्टीरियोटाइप को सुर्ख़ियों में लाकर आमजन तक पहुँचाने का काम कर रही है।  

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तस्वीर साभार : bhaskar.com

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