समाजपर्यावरण अर्थ ओवरशूट डे : हर साल प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की गंभीरता बयां करता दिन

अर्थ ओवरशूट डे : हर साल प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की गंभीरता बयां करता दिन

1970 में ओवरशूट डे 29 दिसंबर को पड़ा था। सन् 1980 से 1999 के दौरान अर्थ ओवरशूट डे आम तौर पर अक्टूबर या शुरुआती सितंबर में आता था लेकिन पिछले बीस सालों में यह तारीख घटती जा रही है। सितंबर और अगस्त के बाद हम जुलाई में प्रवेश कर गए हैं।

क्या होगा जब आपको पता चलेगा कि आपका पूरे महीने के लिए लाया घर का राशन 15 दिनों में ही खत्म हो गया। आपका पूरा बजट गड़बड़ हो जाएगा। आप पूरे एहतियात बरतेंगे ताकि अगली बार से ऐसी गलती न हो। जेब और सीमित संसाधनों का मामला है तो चिंता तो होगी ही। ऐसे कैसे कोई अपनी मेहनत से कमाए गए पैसों को बर्बाद होने दे सकता है। ठीक ऐसा ही होता आ रहा है पृथ्वी के साथ। अफ़सोस की बात यह है कि उसकी चिंता करने वाले मात्र मुठ्ठीभर लोग हैं और पृथ्वी का राशन इस्तेमाल करनेवाले दुनिया के 7.9 अरब लोग। यहां राशन से हमारा मतलब प्राकृतिक संसाधनों से है। प्राकृतिक संसाधनों का जो बजट सालभर चलना चाहिए वह हम इंसान मात्र सात महीनों में खत्म कर देते हैं और फिर अगले साल के राशन को खाना शुरू कर देते हैं। यह चक्र सालों से चलता आ रहा है, इंसान अपनी भूख और इच्छा को मिटाने के लिए जल, जंगल और जमीन सबके संतुलन को बिगाड़ रहा है। इस साल का अर्थ ओवरशूट डे 29 जुलाई को मनाया जाएगा। यह वह तारीख है जहां तक हम पृथ्वी के एक वर्ष के लिए दिए गए संसाधनों को खर्च कर देते हैं। बाकी के बचे साल के लिए हम इंसान अगले साल के संसाधनों की खपत की ओर बढ़ जाते हैं।

आगे के उपभोग के लिए जो खर्च होता है, उसकी भरपाई पृथ्वी कभी नहीं कर पाती है। यह रफ्तार दिखाती है कि मनुष्य पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग 1.75 गुना तेज़ी से कर रहा है। यह तेज़ी प्राकृतिक जैव साधनों के पुर्नजीवित होने की दर से बहुत आगे है। 365 दिन यानि एक साल तक चलने वाले संसाधन इस साल हमने मात्र 210 दिन में खर्च कर डाले। बचे 155 दिन हम अगले साल के संसाधनों का प्रयोग करेंगे। यह सिलसिला नया नहीं है। सालों से पृथ्वी के दोहन का सिलसिला इसी तरह चल रहा है। दुनिया भर में पर्यावरण पर नज़र रखने वाली संस्थानों की रिपोर्टों के अध्ययन के बाद ‘ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क नामक एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान संस्थान ‘अर्थ ओवरशूट डे’ का एलान करता है। साल 1970 से लेकर अब तक हर साल अर्थ ओवरशूट डे का एलान किया जाता आ रहा है।

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साल 1970 में ओवरशूट डे 29 दिसंबर को पड़ा था। साल 1980 से साल 1999 के दौरान अर्थ ओवरशूट डे आम तौर पर अक्टूबर या शुरुआती सितंबर में आता था लेकिन पिछले बीस सालों में यह तारीख घटती जा रही है। सितंबर और अगस्त के बाद हम जुलाई में प्रवेश कर गए हैं। पर्यावरण संरक्षण पर होनेवाले समिट के तमाम दावों के बाद भी ओवरशूट डे लगातार जल्दी आ रहा है। कोविड-19 महामारी की गिरफ्त में फंसी पूरी दुनिया जब लॉकडाउन में थी तब ओवरशूट डे जुलाई से आगे अगस्त में शिफ्ट हो गया था। गौरतलब है कि लॉकडाउन होने के बाद यह बदलाव सामने आए थे वरना अनुमान के मुताबिक इस साल की तारीख़ 29 जुलाई से पहले होती। हर साल दुनिया के बड़े ताकतवर नेता पर्यावरण विमर्श पर बड़े ताम-झाम के साथ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के आयोजनों में शामिल होते हैं। लंबे विमर्श के बाद नए दावों की रिपोर्ट जारी होती है। धरातल से दूर ये रिपोर्ट्स वर्तमान में समाचार सुर्खियों तक में भी जगह नहीं बना पाती है। प्रकृति का शोषण मनुष्य की आदतों में शुमार हो गया है, उसकी हर नीति, विकास प्रकृति की अवहेलना पर निर्मित हो रही है।

साल 1970 में ओवरशूट डे 29 दिसंबर को पड़ा था। साल 1980 से साल 1999 के दौरान अर्थ ओवरशूट डे आम तौर पर अक्टूबर या शुरुआती सितंबर में आता था लेकिन पिछले बीस सालों में यह तारीख घटती जा रही है। सितंबर और अगस्त के बाद हम जुलाई में प्रवेश कर गए हैं।

ओवरशूट डे कैसे होता है निर्धारित

इस वर्ष वैज्ञानिक डेविड लिन के नेतृत्व में ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क के द्वारा तमाम पर्यावरण की रिपोर्ट्स के आंकलन के बाद वर्तमान साल की तारीख को तय किया गया है। लगातार बढ़ते अंतर को दूर करने और चालू वर्ष के लिए अर्थ ओवरशूट डे निर्धारित करने के लिए, ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क, ग्लोबल कार्बन परियोजना और अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी जैसे अन्य संस्थानों और देशों के आंकड़ो के द्वारा जारी रिपोर्ट के अध्ययन से परिणाम तय करता है। कार्बन उत्सर्जन में तेजी धरती के स्वास्थ्य के लिए सबसे खतरनाक है। साल 2020 में वैश्विक महामारी के कारण आई कमी के बाद इस साल एक जनवरी से अर्थ ओवरशूट डे तक के कार्बन उत्सर्जन में 6.6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की संभावना है। ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के हाल के डाटा के अनुसार यह अनुमान लगाया गया है। धरती पर बढ़ती जनसंख्या और उनकी जरूरतों के कारण जंगलों की कटाई तेजी से हो रही है। अमेजन के जंगलों की कटाई में वृधि के कारण वैश्विक वन जैव विविधता में कमी पाई गई है। अमेजन के जंगलों की कटाई में वृधि 2020 से 43 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है।

ओवरशूट डे को बेहतर करने के उपाय

संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंट पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की सिफारिशों के अनुसार दुनिया के सभी देशों को जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) को पूरी तरह खत्म कर उर्जा के नये विकल्पों को तलाशना होगा। साल 2070 तक पूरी तरह से ऊर्जा के नये विकल्प पर आधारित होने वाली नीतियों का निर्माण करने की आवश्यकता है। यह योजना सीधे तौर पर देशों की इकोलॉजी फुटप्रिंट को बदलती है। गाड़ियों और उद्योग-धंधों से निकलता धुंआ वातावरण को दूषित कर रहा है। अगर दुनिया में कार्बन उत्सर्जन में कमी कर दी जाए तो बिगड़ती स्थिति को ठीक किया जा सकता है। कुल कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को आधा भी कर दिया जाए तो ओवरशूट डे तीन महीने आगे खिसक सकता है।

पिछले साल कोविड-19 महामारी की तालाबंदी के कारण ग्रीनहाउस गैसों के कम उत्सर्जन के कारण ही ओवरशूट डे की तारीख बढ़ गई थी। गाड़ियों में कमी कर, साईकिल के अधिक उपयोग पर ज़ोर देकर, सार्वजनिक परिवहन के प्रयोग और कार पूलिंग कर, सड़कों पर गाड़ियों की संख्या को घटाकर, साथ ही इकोफ्रेंडली वाहनों का इस्तेमाल करके पर्यावरण संरक्षण किया जा सकता है। दुनिया में जितनी ज़रूत है उससे ज्यादा मात्रा में खाने का इस्तेमाल किया जाता है। हर साल दुनिया में इंसानों के द्वारा इस्तेमाल होने वाले खाने का 30 प्रतिशत बर्बाद होता है। धनी देशों में यह स्थिति ज्यादा खराब है। पानी की बर्बादी रोकना, अधिक से अधिक पेड़ लगाना, प्लास्टिक पर प्रतिबंध और पर्यावरण के स्वास्थ्य के लिए कदम उठाकर ही इस संकट को कम किया जा सकता है।

9 फरवरी व 15 फरवरी 2021 तक कतर और लक्ज़मबर्ग जैसे देश अपना एक साल का प्राकृतिक संसाधन खर्च कर चुके थे। वहीं, दुनिया के बड़े देश अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा ने अपने एक वर्षीय प्राकृतिक संसाधनों का कोटा पूरा कर बाकी बचे में सेंध लगा चुके है।

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9 फरवरी व 15 फरवरी 2021 तक कतर और लक्ज़मबर्ग जैसे देश अपना एक साल का प्राकृतिक संसाधन खर्च कर चुके थे। वहीं, दुनिया के बड़े देश अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा ने अपने एक वर्षीय प्राकृतिक संसाधनों का कोटा पूरा कर बाकी बचे में सेंध लगा चुके है। यदि पूरे विश्व के लोग अमेरिका की तरह जीवनयापन करने लगे तो विश्व को जीवित रहने के लिए पृथ्वी ग्रह जैसे पांच ग्रहों की आवश्यकता होगी। दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश चीन भी 7 जून 2021 के बाद से आने वाले साल के संसाधनों का उपभोग कर रहा है। भारत की बढ़ती आबादी और उसके जीवनयापन के लिए बढ़ते प्रकृति के दोहन से जैव विविधता में तेज़ी से कमी आ रही है। मनुष्य के संसाधनों के उपभोग से धरती बंजर होती जा रही है। जंगल तेज़ी से खत्म हो रहे हैं। दूसरे देशों के मुकाबले भारत की स्तिथि अभी थोड़ी बेहतर है, लेकिन विकास के क्रम में बढ़ते कदम भारत को भी उसी परिपाटी में लाकर खड़ा कर देंगे। भारत की सामाजिक विषमता और देशों के मुकाबले अलग है लेकिन यहां होने वाले विकास, उद्योग-धंधों का रास्ता दुनिया के देशों के मॉडल पर ही आधारित है, जो चिंता की बात है। दुनिया में दूसरी सबसे अधिक आबादी वाले देश भारत की खपत दर उसकी जैव क्षमता से अधिक है। खपत के मौजूदा स्तरों पर भारतीयों को खुद को बनाए रखने के लिए अपने आकार के दो देश की आवश्यकता हो सकती है। अभी भी यदि भारत की कार्बन खपत को कम कर दिया जाए स्थिति को बहुत खराब होने से रोका जा सकता है।

बचत ही एक उपाय

रोटी,कपड़ा और मकान की रफ्तार में धरती को बर्बाद कर खुद के अस्तित्व पर हम इंसान संशय खड़ा कर रहे हैं। अभी दुनिया एक महामारी की गिरफ्त में है और इंसान बेतहाशा तरक्की के रास्ते पर चलकर पर्यावरण का दोहन करने पर लगा हुआ है। अर्थ ओवरशूट डे वास्तव में सरकारों और जनता के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए है ताकि अभी भी समय रहते इस ग्रह को बचाया जा सके। मनुष्य की खर्चीली अर्थव्यवस्था और विलासता की जीवनशैली के बोझ को पृथ्वी ज्यादा वहन नहीं कर सकती है। हमें ज़रूरत है कि हम एक ऐसी दुनिया की कल्पना करें, जहां प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर लगाम लगे। अर्थव्यवस्था के उद्देश्य सामान्य प्रक्रिया पर आधारित होकर प्राकृतिक संरक्षण के मूल्य पर बल दें। वैश्विक औद्योगिक अर्थव्यवस्था कचरा, कार्बन और ग्रीनहाउस गैसों का कम उत्सर्जन करे। यहीं सब उपक्रम है जो दांव पर लगे मनुष्य के अस्तित्व के खतरे को कम कर सकते हैं।

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तस्वीर साभार : New Scientist

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