इंटरसेक्शनलजेंडर क्यों पितृसत्ता को बर्दाश्त नहीं सोशल मीडिया पर औरतों की मौजूदगी

क्यों पितृसत्ता को बर्दाश्त नहीं सोशल मीडिया पर औरतों की मौजूदगी

इंटरनेट ट्रोलिंग का सीधा संबध पितृसत्ता से जुड़ा है। यह मानसिकता मानती है कि औरतें खुलकर अपनी बात न कहें। महिलाओं की अपनी कोई राय नहीं होती है, पुरूष के आदेश पर चलना ही उनका कर्तव्य होता है।

उन्हें परेशानी है कि महिलाएं बेबाकी से अपनी राय रखती हैं, वे परेशान हैं कि आभासी दुनिया में निडर होकर औरतें अपनी पंसद-नापंसद जाहिर कर रही हैं। उन्हें परेशानी है हंसती, आत्मविश्वास से लबरेज औरतों की तस्वीरों से। दुनिया में ऐसा कोई कोना नहीं जहां से महिला के खिलाफ हिंसा की खबरें न मिले। इसी तरह आभासी दुनिया इंटरनेट, सोशल मीडिया ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसी जगहों पर भी महिलाएं साइबर हिंसा और ट्रोलिंग का सामना कर रही हैं। ट्रोलिंग यानि भद्दे अपशब्द, बदलसूकी, जान से मारने की धमकियां, बलात्कार और मुंह पर तेजाब फेंकने तक की बातें महिलाओं को इंटरनेट स्पेस में सुनने को मिलती हैं। यह इक्कीसवीं सदी का इंटरनेट युग है। कोविड-19 महामारी के बाद से तो इंटरनेट पर लोगों की निर्भरता और अधिक बढ़ गई है। ऐसे समय में साइबर क्राइम में भी बढ़त हुई है।

एक तरफ इंटरनेट के माध्यम से देश के दूर कोनों तक में पहुंचकर हाशिये पर रह रहे लोगों की आवाज़ को सामने लाया जा रहा है। वहीं धार्मिक और जातिगत हिंसा, भेदभाव और लिंगभेद से इंटरनेट भी अछूता नहीं रहा है। यहां भी महिलाओं पर आसानी से हिंसा का वार किया जा रहा है। यह भी कहा जा सकता है कि पितृसत्ता की सामंतवादी सोच जिसमें एक महिला दीवारों में कैद रहनी चाहिए, उस सोच को आभासी दुनिया में उन्मुक्त विचार रखने वाली महिलाएं एक समस्या नज़र आती हैं। तकनीक के चलते इंटरनेट के सार्वजनिक मंचों पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है लेकिन उनके प्रति नफरत की मानसिकता को साइबर स्पेस में फैलाकर उन्हें इंटरनेट से दूर करने का काम किया जा रहा है।

पितृसत्ता की सामंतवादी सोच जिसमें एक महिला दीवारों में कैद रहनी चाहिए, उस सोच को आभासी दुनिया में उन्मुक्त विचार रखने वाली महिलाएं एक समस्या नज़र आती हैं।

आम हो या ख़ास हर वह महिला जो भी इंटरनेट पर स्वतंत्र राय जाहिर करती है, अपने निजी कड़वे अनुभव सामने रखती है या फिर लीक से हटकर काम करती है तो रूढ़िवाद सोच के व्यक्तियों के निशाने पर आ जाती है। अपने क्षेत्र में प्रभावी रूप से काम करने वाली महिलाओं को बेवजह सुर्खियां बनाकर ट्रोल किया जाने लगता है। महिलाओं के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल, जान से मारने से लेकर बलात्कार तक की धमकियां सोशल मीडिया पर सार्वजनिक रूप से दी जाती हैं और उन्हें शेयर भी किया जाता है।। कुछ बड़े नाम जो चर्चा का विषय बने हैं उनमें से कुछ ने कानूनी रूप से इस हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई। इससे अलग सोशल मीडिया पर मौजूद लगभग हर महिला बिना किसी प्रतिक्रिया ज़ाहिर किए भी इनबॉक्स में अश्लील, अनचाहे मैसेज के माध्यम से इस तरह की घटनाओं का सामना करती हैं। ज़्यादातर महिलाएं इसे नजरअंदाज कर आगे बढ़ती हैं। वहीं, ऐसे कुंठाग्रस्त मेसेज का रिप्लाई न देने की वजह से भी उन्हें लगातार ऑनलाइन स्टॉक कर उनके इनबॉक्स को गालियों से भर दिया जाता है।

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वर्तमान की कुछ घटनाएं

सोशल मीडिया पर ज़हर उगलने वाले दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। इसमें महिलाओं को बहुत आसानी से निशाना बनाया जा रहा है। ट्रोलिंग के सिलसिले में अपनी स्मृति पर थोड़ा जोर डालें तो कई उदारहण आपके सामने हैं जिनमें बिना अपनी राय जाहिर किए भी महिलाओं को अश्लील गालियों और धमकियों का सामना करना पड़ा। जीते जी तो महिलाएं यह सब सहन करती ही हैं मरने के बाद भी उनके नाम को इस्तेमाल कर उन्हें ट्रोल किया गया। पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ बेहद अभ्रद अशोभनीय बातें कहीं गई। वहीं, भारतीय क्रिकेट टीम जब मैच जीतती है तो श्रेय जाता है टीम और कप्तान को और अगर हारती है तो हार का ठीकरा अक्सर खिलाड़ियों की पत्नियों पर फोड़ दिया जाता है। कप्तान विराट कोहली की असफलता पर अक्सर उनकी अनुष्का शर्मा को बेवजह ट्रोल किया जाता है। जहरीले स्त्रीदेष का डिजिटल दुनिया में ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। हाल ही में अभिनेत्री मंदिरा बेदी के पति की मृत्यु के बाद ट्रोल आर्मी ने उनकों ट्रोल करना शुरू कर दिया। उनके पति की अंतिम यात्रा से जुड़ी तस्वीरें जारी होने के बाद मंदिरा को इंटरनेट पर भला-बुरा कहा गया। उनके पहनावे और पति की अंतिम क्रिया करने को लेकर इस मुश्किल वक्त में इंटरनेट पर उनके खिलाफ बहुत बयानबाज़ी की गई।

इंटरनेट ट्रोलिंग का सीधा संबध पितृसत्ता से जुड़ा है। यह मानसिकता मानती है कि औरतें खुलकर अपनी बात न कहें। महिलाओं की अपनी कोई राय नहीं होती है, पुरूष के आदेश पर चलना ही उनका कर्तव्य होता है।

वहीं, आमिर खान और किरण राव के तलाक पर न केवल किरण राव को ट्रोल किया गया बल्कि आमिर की एक सहयोगी कलाकार फातिम शेख को भी इंटरनेट स्पेस में भला-बुरा कहना शुरू कर दिया गया। पति-पत्नी के निजी फैसले तलाक के बारे में तो लोगों की प्रतिक्रिया मिल ही रही है, साथ में तलाक के लिए केवल महिला पार्टनर को निशाना बनाना समाज में महिलाओं के प्रति घृणित सोच को दर्शाता है। इसके अलावा हर वह महिला जो लिखती-बोलती हैं, जिसकी बातें दूसरों पर प्रभाव ड़ालती है उनरी राय को सोशल मीडिया पर तमाशा बनाकर उनके साथ बेहद ही अशोभनीय व्यवहार किया जाता है। पत्रकार राणा अयूब वह शख्सियत हैं जो इंटरनेट पर धार्मिक कट्टरता, स्त्रीदेष, लैगिंग भेदभाव का लगभग हर दिन सामना कर रही होती हैं। राणा के काम को निशाना बनाकर उनके तमाम सोशल मीडिया स्पेस पर उनके खिलाफ की गई बहुत बातें आपको मिल जाएगी। राणा व उनके परिवार को इंटरनेट पर जान से मारने तक की धमकियां मिली है। अभी कुछ दिनों पहले ही इंस्ट्राग्राम पर उन्होंने ट्रोल्स द्वारा भेजे गए मेसेज भी शेयर किए थे।

भारत के साइबर स्पेस में इस्लामोफोबिया एक स्थायी ट्रेंड बना दिया गया है। लगातार आभासी दुनिया में मुस्लिम धर्म के खिलाफ ज़हर उगलकर वास्तविक धरातल पर धार्मिक नफरत को फैलाया जा रहा है। इससे भी आगे लगभग हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मुस्लिम महिलाओं को के लिए बेहद अश्लील, अपमानजनक बातों और धमकियों का इस्तेमाल होता है। बीते हफ्ते की बात है, एक ऐसा ऐप बनाया गया जिसमें ओपन इंटरनेट स्पेस में मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरों और निजी जानकारियों को शेयर कर उनकी बोली लगाई जा रही थी। इस ऐप का नाम था ‘सुल्ली डील’। गौरतलब है कि ‘सुल्ली’ मुस्लिम महिलाओं के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक अपमानजनक शब्द है। इस ऐप पर लिखा था कि ‘फाइंड योर सुल्ली डील’। ऐप पर मुस्लिम महिलाओं को लोग अश्लील टिप्पणी करते हुए उनका मोल-भाव कर रहे थे। इंटरनेट पर सरेआम मुस्लिम महिलाओं की नीलामी के लिए उनकी तस्वीर के नीचे उनकी कीमत लगाई जा रही थी। समाज में तो महिलाओं को लैंगिक भेदभाव हिंसा का सामना करना ही पड़ता है वही वर्चुअल दुनिया में भी उनको हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।     

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पिततृसत्ता सोच से ग्रसित है ट्रोल आर्मी

ऐसा लगभग हम हर दिन देखते हैं कि कोई न कोई सोशल मीडिया पर ट्रोल होता है। कोई अपने कपड़े की वजह से तो कोई अपनी राय की वजह से भद्दी गालियों, अश्लील चित्र, जाति और धर्मसूचक शब्दों का सामना करता है। इंटरनेट ट्रोलिंग का शिकार पुरुष भी होते हैं लेकिन उनके मुकाबले महिलाएं अपने जेंडर, जाति, धर्म आदि की वजह से ज्यादा हिंसा का सामना करती हैं। तमाम शोध में इस बात का ज़िक्र किया जा चुका है कि इंटरनेट पर होने वाली हिंसा का महिलाएं ज्यादा शिकार होती हैं। इंटरनेट ट्रोलिंग का सीधा संबध पितृसत्ता से जुड़ा है। यह मानसिकता मानती है कि औरतें खुलकर अपनी बात न कहें। महिलाओं की अपनी कोई राय नहीं होती है, पुरूष के आदेश पर चलना ही उनका कर्तव्य होता है। महिलाओं की आवाज को नियंत्रित करना पितृसत्ता के लिए आवश्यक होता है। महिला को अपनी पहचान हमेशा एक पुरूष के साये में रखनी चाहिए। इस तरह की मानसिकता के कारण इंटरनेट ऊंची जाति, वर्ग से आनेवाले लोगों का स्पेस बनता जा रहा है। वे महिलाएं जो सामाजिक अन्याय के विरूद्ध अपनी आवाज़ मुखर रखती है, राजनीतिक रूप से स्पष्ट तौर पर अपनी बात जाहिर करती है उनको सोशल मीडिया पर लिंगभेद का अधिक सामना करना पड़ता है। वहीं, एलजीबीटी समुदाय के लोगों को तो बहुत ज्यादा साइबर क्राइम का सामना करना पड़ता है।

इंटरनेट ट्रोलिंग का शिकार पुरुष भी होते हैं लेकिन उनके मुकाबले महिलाएं अपने जेंडर, जाति, धर्म आदि की वजह से ज्यादा हिंसा का सामना करती हैं।

इंटरनेट ट्रोलिंग का असर काम पर तो पड़ता ही है, साथ में यह मानसिक स्वास्थ्य को भी हानि पहुंचाता है। यूनेस्को के द्वारा किये गए ग्लोबल सर्वे के अनुसार दुनियाभर में महिला पत्रकारों को ऑनलाइन हिंसा का सामना करना पड़ता हैं। इस शोध में 125 देशों की 900 महिला पत्रकारों ने हिस्सा लिया था। 73 प्रतिशत महिला पत्रकारों ने कहा है कि उन्होंने अपने काम की वजह से ऑनलाइन हिंसा का सामना किया है। 25 प्रतिशत को जान से मारने की धमकी तक मिल चुकी है। वहीं, 18 प्रतिशत को यौन हिंसा की धमकियों तक मिली है। 20 प्रतिशत के केस में उन्होंने ऑफलाइन जिस हिंसा का सामना किया है उसका तार ऑनलाइन धमकियों से जुड़ा मिला है। ऑनलाइन स्पेस में इस तरह का व्यवहार झेलती 26 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि इन सबका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ा है। इस कारण उन्होंने सोशल मीडिया छोड़ने के अलावा अपने प्रोफेशन तक को छोड़ने की बात कही है। ऑनलाइन हिंसा न केवल महिला पत्रकारों को हानि पहुंचाती है बल्कि यह प्रेस की स्वतंत्रता के लिए भी खतरा है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल के भी एक शोध के अनुसार भारत में महिला नेताओं ने ट्वीटर पर बहुत ज्यादा अभ्रद भाषा का सामना करती है। ‘ट्रोल पोर्टल इंडियाः एक्सपोजिंग ऑनलाइन अब्यूज फेस्ड बाई वुमेन पॉलिटीशियन इन इंडिया’ के अनुसार महिला नेताओं को न केवल उनकी राय के लिए बल्कि जेंडर, धर्म-जाति, और उनके वैवाहिक स्टेट्स तक को भी निशाना बनाया गया है। इस रिसर्च में पिछले आम चुनाव के दौरान और उसके बाद के तीन महीनों में महिलाओं के किए गए ट्वीट का अध्ययन किया गया जिसमें पाया गया कि महिला नेताओं के खिलाफ आसानी से सार्वजनिक रूप से अश्लील भाषा का इस्तेमाल कर उनके चरित्र का वर्णन किया। इस रिपोर्ट के अनुसार भारतीय महिला नेता अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम की नेताओं से भी ज्यादा अभद्र भाषा का सामना करती हैं। इस स्पेस में सभी महिलाओं को निशाना बनाया जाता है। इसके अलावा विपक्ष की महिला नेताओं के लिए ज्यादा अभद्रता की भाषा का प्रयोग होता है। वही 55.5 प्रतिशत मुस्लिम महिलाएं अन्य धर्म की महिला नेताओं से ज्यादा ट्विटर पर नस्लभेद और धार्मिक कट्टरता का सामना करती हैं। सवर्ण जाति के मुकाबले पिछड़ी, अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाली महिला नेताओं को 59 प्रतिशत ज्यादा हिंसक जातिसूचक शब्दों से भरे पोस्ट्स का सामना करना पड़ता है।

ऑनलाइन ट्रोलिंग का सामना करती अधिकतर महिलाएं बिना किसी कानूनी कारवाई के ही ट्रोलर्स को नजरअंदाज करती है। बहुत कम महिलाएं हैं जिन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई है। भारतीय कानून व्यवस्था में कुछ धाराएं है जो साइबर स्पेस में होने वाली इन घटनाओं में सजा का प्रावधान देती है। यदि ट्रोल हत्या करने की धमकी देता है तो उस पर धारा 506 के तहत कार्रवाई की जा सकती है। आईपीसी की धारा 354 ए के अंतर्गत यौन उत्पीड़न के लिए दंडित किया जाता है। महिला के अनादर के लिए धारा 509 के तहत चार्ज किया जा सकता है। यदि किसी महिला पर जातिगत टिप्पणी होती है तो वह एससी/एसटी एक्ट के तहत शिकायद दर्ज करा सकती है। वहीं, गृह मंत्रालय के नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर इस तरह के मामलों की शिकायत दर्ज की जा सकती है।

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तस्वीर साभार : Free vectors

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