कहने को तो आनेवाले 15 अगस्त को देश को आज़ाद हुए 74 साल पूरे हो जाएंगे पर क्या वाकई में हम आज़ाद हैं? जवाब है नहीं। आज भी हमारा देश जातिवाद से उतना ही ग्रसित है जितना कि 74 साल पहले था। ना उस वक्त दलित, पिछड़े और मुस्लिम और अन्य हाशिये पर गए समुदाय को वह सम्मान और दर्ज़ा मिला था जिसके वे हकदार थे और ना ही आज मिला है। आज भी इन सभी समुदाय के लोगों को ब्राह्मणवादी जातिवादी समाज दोयम दर्जे का समझता है। भले ही वे इस देश के लिए ओलंपिक में इतिहास ही क्यों ना बना दें?
वंदना कटारिया, जो कि भारतीय महिला हॉकी टीम की खिलाड़ी हैं और जिन्होंने ओलंपिक में अपने हुनर का जलवा दिखाया है। इस पितृसत्तात्मक जातिवादी समाज में तमाम संघर्षों का सामना करते हुए उनकी उपलब्धियों के बाद सम्मान तो दूर, उनके परिवार को जातिवादी गालियों का सामना करना पड़ा। बीते बुधवार को टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम के सेमीफाइनल में अर्जेंटीना से हारने के कुछ घंटों बाद ही, कथित रूप से उच्च जाति के दो पुरुषों ने हरिद्वार के रोशनाबाद गांव में वंदना कटारिया के घर के चक्कर लगाने शुरू कर दिए। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, उन्होंने वंदना के घर के आगे पटाखे जलाए। वे दोनों अपने कपड़े उतारकर नाचने लगे और वंदना के परिवार को उन्होंने जातिवादी गालियां भी दीं, यह कहते हुए कि भारतीय महिला टीम इसलिए हारी है क्योंकि इसमें बहुत सारे दलित खिलाड़ी थे। इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक इस मामले में हरिद्वार पुलिस ने अब तक तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया है।
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वंदना के भाई ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, “हम टीम की हार से परेशान थे, लेकिन टीम ने अपनी पूरी हिम्मत के साथ मैच खेला। इस पर हमें गर्व है। अचानक से मैच के तुरंत बाद ही हमने तेज आवाजें सुनीं। हमारे घर के बाहर पटाखे फोड़े जा रहे थे। जब हम बाहर गए तो हमने अपने गांव के ही दो आदमियों को देखा। दोनों ही आदमी ऊंची जाति से थे। परिवार के बाहर आने पर उन दोनों ने हमें जातिवादी गालियां दीं और यह भी कहा कि न सिर्फ हॉकी बल्कि सारे खेलों से दलितों को बाहर रखना चाहिए। इसके बाद उन दोनों ने अपने कपड़े निकालकर डांस भी किया। इसमें कोई शक नहीं हैं कि यह जातिगत हिंसा थी।” इस घटना के बाद वंदना कटारिया ने भी ट्वीट करते हुए कहा कि उनका परिवार और वह इस वक्त बहुत मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं। अपने नाम पर कई फेक़ अकाउंट बन जाने के कारण भी वंदना काफी परेशान दिखीं। बाद में इन सभी फेक अकाउंट्स को ट्विटर द्वारा सस्पेंड कर दिया गया। बता दें कि वंदना कटारिया ने टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम के शानदार प्रदर्शन में एक अहम भूमिका निभाई है। ओलंपिक में हैट्रिक लगाने वाली वह पहली भारतीय महिला खिलाड़ी भी हैं। उन्होंने ये गोल साउथ अफ्रीका के खिलाफ खेले गए मैच में किए थे जिसमें भारत ने 4-3 से जीत हासिल की थी।
यह सिर्फ एक किस्सा नहीं है और ना ही कोई मामूली बात है। यह चेहरा है उस जातिवादी देश का जो एक दिन मैच जीतने पर खिलाड़ियों को देश की बेटी बना देता है और मैच हारने के चंद मिनटों बाद उस ‘बेटी’ के परिवार को जातिवादी गालियां दी जाती हैं। इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक लेख के मुताबिक, जब पीवी सिंधु ओलंपिक में देश के लिए मेडल जीत रही थी तब भी भारत में लोग उनकी जाति को गूगल कर रहे थे। गूगल ट्रेंड्स के मुताबिक, टोक्यो ओलंपिक में सिंधु की जीत के बाद उनकी जाति सबसे ज्यादा सर्च किए जाने वाले विषयों में से एक थी। यह कोई पहली बार नहीं था जब भारतीय पीवी सिंधु की जाति को जानने को लेकर उत्सुक थे। इससे पहले भी गूगल ट्रेंड्स के मुताबिक, साल 2016 में पीवी सिंधु के रियो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने के बाद भी उनकी जाति गूगल ट्रेंड्स में शामिल थी।
यह सिर्फ एक किस्सा नहीं है और ना ही कोई मामूली बात है। यह चेहरा है उस जातिवादी देश का जो एक दिन मैच जीतने पर खिलाड़ियों को देश की बेटी बना देता है और मैच हारने के चंद मिनटों बाद उस ‘बेटी’ के परिवार को जातिवादी गालियां दे दी जाती है।
आईएएएफ विश्व अंडर-20 चैंपियनशिप में महिलाओं की 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय एथलीट हिमा दास की भी जाति ही गूगल की गई थी। अगर कोई गूगल में हिमा टाइप करता है तो उसी समय सर्च रिजल्ड में हिमा दास की जाति के सर्च ऑप्शन आते थे। इसी के साथ मशहूर किक्रेटर विनोद कांबली को भी जातिवादी गालियों का सामना करना पड़ा है। साल 1993 में एक टेस्ट क्रिकेट मैच में जब कांबली को अपनी चोट की वजह से मैच छोड़ना पड़ा। तब भीड़ के बीच से गुजरते हुए लोगों ने उन्हें ‘आलसी’ और ‘बेकार’ कहते हुए जातिवादी गालियां भी दीं। विनोद कांबली भारतीय इतिहास में आज तक के कुछ उन क्रिकेट खिलाड़ियों में से एक है जिन्हें बेहतरीन खिलाड़ी माना जाता है।
एक तरफ़ खिलाड़ियों को अपनी जाति के कारण जातिवादी हिंसा का सामना करना पड़ रहा है तो वहीं दूसरी ओर वर्तमान के कुछ क्रिकेट खिलाड़ी अपनी जाति के दंभ को प्रदर्शित करने से नहीं चुकते हैं। हाल ही में सुरेश रैना ने एक इंटरव्यू में गर्व के साथ खुद को ब्राह्मण बताया और रविंद्र जडेजा तो वह खिलाड़ी हैं जो समय-समय अपने राजपूताना गौरव को अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर दिखाते ही रहे हैं। संवैधानिक रूप से तो भारत में जातिवाद को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू हुए कई साल हो गए हैं लेकिन जाति के आधार पर होने वाली हिंसा अभी भी हर क्षेत्र में बदस्तूर जारी है।
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तस्वीर साभार : Asianet
Kirti is the Digital Editor at Feminism in India (Hindi). She has done a Hindi Diploma in Journalism from the Indian Institute of Mass Communication, Delhi. She is passionate about movies and music.