समाजख़बर सुप्रीम कोर्ट के बाहर महिला द्वारा आत्मदाह की कोशिश और न्याय व्यवस्था पर उठते सवाल

सुप्रीम कोर्ट के बाहर महिला द्वारा आत्मदाह की कोशिश और न्याय व्यवस्था पर उठते सवाल

सुप्रीम कोर्ट के बाहर एक युवती और युवक ने खुद को आग के हवाले करते हुए आत्मदाह का प्रयास किया है। वेबसाइट द प्रिंट की खबर के मुताबिक, दोनों ने सुप्रीम कोर्ट के गेट के बाहर खुद को आग लगा दी। युवती ने फेसबुक लाइव करते हुए आत्मदाह की जानकारी दी थी। इस दौरान महिला ने खुद को रेप सर्वाइवर बताया। जलती आग को देखकर आसपास के लोगों ने आग बुझाने की कोशिश की। बाद में दोनों को दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया। दिल्ली पुलिस के मुताबिक दोनों की स्थिति बहुत गंभीर बनी हुई है। युवती का 85 फीसद से अधिक शरीर और युवक का भी 65 फीसद से अधिक शरीर जल चुका है। दोनों बयान देने की स्थिति में नहीं हैं। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक केस को मिसलीड करने के लिए एक सब-इंस्पेक्टर और डिप्टी एसपी का इस मामले में निलंबन हो चुका है।

गौरतलब है कि युवती ने 1 मई 2019 को उत्तर प्रदेश के घोसी से बसपा सांसद अतुल राय के खिलाफ बलात्कार और यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था। अपने फेसबुक लाइव में युवती ने सांसद के साथ उत्तर प्रदेश की पुलिस की मिलीभगत और कार्रवाई पर भी सवाल किए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक युवती ने उत्तर प्रदेश पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों का नाम लेते हुए उन पर सांसद अतुल राय को बचाने के गंभीर आरोप लगाए हैं। वहीं दूसरी ओर, युवती पर धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के तहत भी एक मुकदमा चल रहा है। सांसद अतुल राय के भाई पवन कुमार के द्वारा नवंबर 2020 में दर्ज करवाए गए इस केस में इसी महीने युवती के खिलाफ वाराणसी कोर्ट ने गैर-ज़मानती वांरट जारी किया था।   

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संसद में आपराधिक मामले वाले राजनेता

महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वाले नेताओं की संसद और विधानसभा में कोई कमी नहीं है। कानून बनाने वाले ही आरोपी होने के बावजूद सत्ता के दम पर आज़ाद हैं। भारतीय कानून के मुताबिक आरोप चाहे कितने भी गंभीर हो, जब तक वे साबित नहीं होते तब तक नेता अपनी कुर्सी पर बने रहते हैं। इसी ताकत का प्रयोग करते हुए कई मामलों में पीड़ित और उनके परिवारजन को न केवल परेशान किया जाता है बल्कि उनकी जान तक चली जाती है। गैर-सरकारी संस्था एसोशिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्स (एडीआर) के अनुसार 17वीं लोकसभा में निर्वाचित सांसदों के खिलाफ दर्ज अपराधिक मामले सबसे ज्यादा है। साल 2009 से लेकर 2019 तक में ऐसा सांसदों की संख्या में 850 प्रतिशत तक की वृद्धि देखी गई है जिन पर महिलाओं के खिलाफ होनेवाले अपराध से जुड़े केस दर्ज हैं।

एडीआर के मुताबिक सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के 21 सांसद और विधायकों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध करने के केस दर्ज हैं। कांग्रेस के 16 सांसदों और विधायकों के नाम भी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में शामिल हैं। महिला के खिलाफ बलात्कार जैसे क्रूरतम अपराध करने वाले तीन सांसद और छह विधायक मौजूद हैं। इसी रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच सालों में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में 572 ऐसे उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा जिन पर महिलाओं के खिलाफ़ होनेवाले अपराधों से जुड़े मामले दर्ज थे। इनमें से किसी भी उम्मीदवार को अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में सत्ता दल बीजेपी के 37 फ़ीसद विधायकों पर अपराधिक श्रेणी के तहत आरोप दर्ज हैं। एडीआर के ही मुताबिक 17वीं विधानसभा में बीजेपी ने 312 सीटें जीती थीं। इनमें से 114 निर्वाचित विधायकों ने अपराधिक मामलों का सामना करने का खुलासा अपने हलफनामे में किया था।

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पुलिस और विक्टिम ब्लेमिंग

नेताओं के अपराध में शामिल होने के बाद उनका सत्ता में आना और फिर उसका दुरुपयोग कर सर्वाइवर को परेशान करना और जांच को बाधित करना एक पैटर्न बन चुका है। कई मामलों में सत्ता में होने की धौंस से नेता न केवल सर्वाइवर को अपराध के बाद डराते धमकाते हैं बल्कि जांच को भी अपने पक्ष में करने के लिए पुलिस पर ढिलाई बरतने का दबाव बनाते हैं। इसका सबसे ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश का उन्नाव केस है जहां एक सर्वाइवर को न्याय की आस में कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बात अगर हम हाथरस में दलित युवती के गैंगरेप के बाद पुलिस की कारवाई की करें तो यहां भी पुलिस की कार्रवाई एकतरफा नज़र आई। आम इंसान इंसाफ की आस में जब कानून की मदद लेता है तो सत्ता ताकत के बल पर कानून को अपने अनुसार इस्तेमाल करती है। ऐसा अक्सर देखा गया है पुलिस हाईप्रोफाइल केस में आरोपी के पक्ष में कारवाई करती नजर आती है।

कई बार पुलिस के अमानवीय व्यवहार के कारण प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज करवाना भी रेप सर्वाइवर के लिए बेहद कठिन होता है। पुलिस स्टेशन में अक्सर सर्वाइवर के ऊपर ही शक किया जाने लगता है। विक्टिम ब्लेमिंग का व्यवहार हमारे पितृसत्तात्मक समाज में बेहद आम है। पुलिस विभाग में ही कार्यरत एक महिला अधिकारी ने अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर हमें बताया, ‘डिपार्टमेंट में बलात्कार जैसी घटना की पीड़िता को बहुत बुरी नज़रों से देखा जाता है। अक्सर हमारे सहकर्मी पीड़िता को ही आरोपी बताते हैं। ‘उसकी रंजामदी से ही बात बढ़ी होगी’ जैसी बातें कहकर उसपर शक करते हैं। पुलिस स्टेशन और चिकित्सीय जांच के दौरान उस पर भद्दी फब्तियां कसी जाती हैं।” सुप्रीम कोर्ट के सामने आत्मदाह करती युवती उत्तरप्रदेश पुलिस पर आरोप लगाती नजर आई। युवती आग लगने के दौरान किए गए फेसबुक लाइव में कह रही थी कि पुलिस उसे चरित्रहीन साबित करने में लगी हुई है। आरोपी राय को बचाने के लिए उसको फंसाया जा रहा है।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड 2019 के आंकड़े कहते हैं कि इस दौरान महिलाों के खिलाफ होने वाले अपराध के 4,05,861 मामले दर्ज हुए थे। साल 2018 के मुकाबले महिला के खिलाफ होने वाले अपराधों में सात प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी। 2019 के ही आंकड़ो के अनुसार देश में 32,033 बलात्कार के मामले दर्ज हुए थे। एनसीआरबी के ही अनुसार दलित और वंचित समुदाय से आने वाली महिलाओं के खिलाफ अधिक हिंसा के मामले दर्ज किए जाती हैे। दूसरी ओर पुलिस का व्यवहार ऐसा है, जिसमें सर्वाइवर से ही सवाल किए जाते हैं। यौन हिंसा के अलावा तो शायद ही कोई ऐसा अपराध होगा जिसमें इतने सवाल जवाब सर्वाइवर से किए जाते हो। इस व्यवहार के कारण बहुत से अपराध तो कभी दर्ज ही नहीं होते हैं।  

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तस्वीर : सृष्टि शर्मा फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए

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