इंटरसेक्शनलहिंसा दिल्ली सिविल डिफेंस वालंटियर केस : मीडिया की असंवेदनशील रिपोर्टिंग का एक और उदाहरण

दिल्ली सिविल डिफेंस वालंटियर केस : मीडिया की असंवेदनशील रिपोर्टिंग का एक और उदाहरण

महिला हिंसा की खबरों की रिपोर्टिंग करते वक्त सर्वाइवर के चरित्र, उसके दोस्त, व्यवहार, काम और मैरिटल स्टेटस की गहरी पड़ताल की जाती है। खबर को सनसनीखेज़ बनाने की चाह असंवेदनशीलता के उस चरम पर पहुंच जाती है जहां अपने पूर्वाग्रहों के आगे घटना के तथ्यों और सर्वाइवर की गरिमा का कोई भान नहीं रहता।

चेतावनी : बलात्कार, यौन हिंसा

तारीख, 27 अगस्त, 2021। जैतपुर एक्सटेंशन का रहने वाला निज़ामुद्दीन नाम का एक शख्स कालिंदी कुंज पुलिस थाने पहुंचता है और दावा करता है कि उसने अपनी पत्नी का कत्ल कर दिया है। दिल्ली पुलिस से सूचना फरीदाबाद पुलिस को दी जाती है। फरीदाबाद पुलिस लोकेशन पर पहुंचती है और लाश को बरामद कर लेती है। फिर फरीदाबाद पुलिस दिल्ली पुलिस को सूचित करती है और दिल्ली पुलिस उस शख्स को हिरासत में ले लेती है। पढ़ने में मामला सीधा सा लग रहा है लेकिन यह इतना भर नहीं, बड़ा पेचीदा है। हत्या कुबूल करने वाले और खुद को मृतका का पति बताने वाले इस आरोपी का कहना है कि कथित रूप से उसकी पत्नी सिविल डिफेंस वॉलंटियर के रूप में काम करती थी। उसके मुताबिक पहचान पत्र बनाने में उसने युवती की मदद की थी जिसके बाद से दोनों की बातें होने लगी थीं। आरोपी के मुताबिक 11 जून को उन्होंने साकेत कोर्ट में शादी की थी। इस आरोपी शख्स ने दिल्ली पुलिस को यह भी बताया कि 26 अगस्त के दिन युवती को लाजपत नगर से बाइक पर पिक करने के बाद दोनों सूरजकुंड की ओर गए जहां उसने अपनी पत्नी की हत्या कर दी।

वहीं, मृतका के परिजनों ने किसी शादी की बात से साफ इनकार किया है। इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक लड़की के परिजनों का कहना है कि आरोपी ने बस एक सहकर्मी होने के नाते उनकी बेटी की सहायता की। उन्होंने आरोप लगाया है कि पहले लड़की का गैंगरेप किया गया, फिर उसकी हत्या कर दी गई। परिवार ने दावा किया कि इस साजिश में कई लोगों का हाथ है। उन्होंने मामले की स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम से हाई लेवल जांच कराने की मांग की है। इंडियन एक्सप्रेस की ही ताजा रिपोर्ट बताती है कि पुलिस ने अपनी जांच में पाया है कि मृतका आरोपी की पत्नी थी। आरोपी के परिवारवालों ने दोंनो की शादी से संबंधित दस्तावेज़ पुलिस को मुहैया करवाए हैं।

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पुलिस ने क्या कहा ?

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बीते 3 सितंबर को फरीदाबाद की डीसीपी डॉक्टर अंशु सिंगला के मुताबिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न की बात सामने नहीं आई है। शव भी क्षत-विक्षत नहीं है। शरीर पर किसी नुकीली चीज से कई चोटें आई हैं और चाकू से कई वार किए गए हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक, लड़की के शरीर पर 15 घाव हैं जिसमें से 14 किसी नुकीली चीज से हुए हैं और एक जलने का भी निशान है। रिपोर्ट में महत्वपूर्ण अंगों, जैसे कि गर्दन, छाती, सिर और अन्य पर चोट लगने के कारण सदमा लगने और खून बहने को मौत की वजह बताया गया है।

महिला हिंसा की खबरों की रिपोर्टिंग करते वक्त सर्वाइवर के चरित्र, उसके दोस्त, व्यवहार, काम और मैरिटल स्टेटस की गहरी पड़ताल की जाती है। खबर को सनसनीखेज़ बनाने की चाह असंवेदनशीलता के उस चरम पर पहुंच जाती है जहां अपने पूर्वाग्रहों के आगे घटना के तथ्यों और सर्वाइवर की गरिमा का कोई भान नहीं रहता।

देशभर में कई जगहों पर पीड़िता को इंसाफ दिलाने के लिए प्रदर्शन हुए और सोशल मीडिया पर भी लोग पीड़िता के नाम से हैशटैग चलाकर इंसाफ की मांग कर रहे हैं। शुरुआत के कुछ दिनों तक इस घटना की सुध किसी ने नहीं ली। मुख्यधारा की मीडिया से यह ख़बर गायब रही। आम लोगों तक यह ख़बर सोशल मीडिया के ज़रिए पहुंची जिस पर पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए हैशटैग लगातार ट्रेंडिंग में रहे। इसके बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में कई सामाजिक संगठन और आम लोगों ने पीड़िता को न्याय दिलाने और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर विरोध-प्रदर्शन कर आवाज़ बुलंद की।

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खबर की हेडलाइन में सनसनी और असंवेदनशीलता

महिला सुरक्षा को लेकर उठते सवालों के बीच इन घटनाओं से संबंधित मीडिया की असंवेदनशील रिपोर्टिंग पर बात करना उतना ही ज़रूरी है। देशभर में महिलाओं के खिलाफ हुई यौन हिंसा इतनी व्यापक हो चुकी है कि इसे किसी दुर्घटना या चोरी जैसी वारदातों की तरह देखा जाता है। मीडिया को यौन हिंसा की खबरों में कुछ ‘सनसनीखेज़’ नज़र नहीं आता और अगर सोशल मीडिया और लोगों के विरोध- प्रदर्शन के दवाब के चलते खबर लिखी भी जाती है तो सनसनीखेज़ बनाकर। यौन हिंसा की खबरों की रिपोर्टिंग करते वक्त सर्वाइवर के चरित्र, उसके दोस्त, व्यवहार, काम और मैरिटल स्टेटस की गहरी पड़ताल की जाती है। खबर को सनसनीखेज़ बनाने की चाह असंवेदनशीलता के उस चरम पर पहुंच जाती है जहां अपने पूर्वाग्रहों के आगे घटना के तथ्यों और सर्वाइवर की गरिमा का कोई भान नहीं रहता। वहीं, खबरों की हेडलाइन्स भी बस अपनी व्यूअरशिप और टीआरपी को ही ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं।

उदाहरण के लिए इसी घटना से संबंधित कुछ खबरों को ध्यान से पढ़ें। अमर उजाला में छपी खबर की हेडलाइन है, पति की बेरहमी: पत्नी को ले गया जंगल, झगड़ा होने पर चाकू से किए कई वार, पत्तों से ढंका शव और फिर…। अमर उजाला ने बिना जांच पूरी हुए ही अपनी हेडलाइन के ही माध्यम से मृतका को आरोपी की पत्नी साबित कर रहा है। खबर के अंत में लिखा गया है कि हालांकि आरोपी ने अभी तक शादी का प्रमाण-पत्र पुलिस को नहीं दिखाया है। लेकिन आपने तो पहले ही इस संबंध की पुष्टि कर दी है। अगर कोई पीडित किसी की पत्नी भी तो क्या इससे अपराधी को अपराध करने की अनुमति मिल जाती है।

वहीं, आज तक इस घटना को ‘प्रेमी की सनक की शिकार महिला’ की कहानी बता रहा है। इस खबर में भी आरोपी की बातों को सबूत मानकर उसकी कहानी पर यकीन कर लिया गया है। साथ ही खबर में ‘ताबड़तोड़ चाकुओं से गोदकर की हत्या’, ‘मौत के घाट उतारना’, ‘प्रेम कहानी में खूनी मोड़’ जैसे सनसनीखेज शब्दों का प्रयोग किया गया है जिनको पढ़कर ऐसा लग रहा है कि किसी क्राइम थ्रिलर फिक्शन शो की बात हो रही है। ऐसे एक-दो नहीं, कई उदाहरण मिल जाएंगे।

टीवी9 भारतवर्ष भी इस ख़बर को कुछ इसी तरह का मोड़ देता नज़र आती है। अपनी खबर की शुरुआत में ही टीवी9 भारतवर्ष ज़िक्र करता है, ‘लड़की की गलती सिर्फ इतनी थी कि वह आरोपी को इग्नोर कर रही थी।’ पीड़िता के साथ हुई हिंसा को नजरअंदाज़ कर इसमें उल्टे उसी की गलती मानी जा रही है। लड़के को इग्नोर करने को यहां लड़की की गलती बताया जा रहा है। यह सिर्फ एक वाकया नहीं, किसी महिला के साथ हुई यौन हिंसा और हत्या के अधिकतर मामलों में सबसे पहले उसी की गलती ढूंढी जाती है। अपराधी कोई और होता है और सज़ा उल्टे सर्वाइवर और उसके परिजनों को भुगतनी पड़ती है।

बात अगर हिंदुस्तान की करें तो उसमें भी यही कहानी खबर बनाकर पाठकों को सामने परोसी गई है। यौन हिंसा की खबरों और उनकी हेडलाइन में बर्बरता जैसे उकसाने वाले शब्दों का इस्तेमाल न कर संवेदनशीलता बरतनी चाहिए।

खबर घटना के पूरा ब्यौरा देने को कहते हैं, न कि अपने हिसाब से तथ्यों को तोड़- मरोड़कर पेश करने को। घटना की जांच- पड़ताल करने का काम पुलिस और जांच- एजेंसियों का है। हां, अगर एक पत्रकार होने के नाते आपको पुलिस की जांच-पड़ताल में कुछ भी भ्रमित करने लायक नज़र आए तो सवाल करने चाहिए। लैंगिक हिसा की रिपोर्टिंग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि आपकी खबर/ रिपोर्ट में ऐसी भाषा का प्रयोग कतई न हो जो उल्टे सर्वाइवर पर ही सवाल करे। इसके अलावा मीडिया अक्सर ऐसी तस्वीरों का उपयोग करता है जिसमें आरोपी को मजबूत और सर्वाइवर को कमज़ोर दर्शाया जाता है। ऐसी खबरों के लिए हमें विरोध- प्रदर्शनों वाली तस्वीरों का इस्तेमाल करना चाहिए।

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सर्वाइवर का नाम उजागर करना

इसके साथ ही महिला हिंसा की रिपोर्टिंग करते वक्त कुछ मीडिया संस्थान सर्वाइवर और उसके परिवार की गरिमा का खयाल किए बिना उसकी पहचान उजागर कर देते हैं। क्या मीडिया रिपोर्टिंग बगैर सर्वाइवर का नाम लिए नहीं की जा सकती है। इस केस में भी जांच खत्म होने से पहले ही कई न्यूज वेबसाइट्स ने अपनी-अपनी थ्योरी के हिसाब से पीड़िता की तस्वीर का भी खुलेआम उपयोग किया है। मीडियाकर्मियों को यह समझना चाहिए कि सर्वाइवर और उसके परिजनों की पहचान का खुलासा करने से उनकी परेशानियां बढ़ सकती हैं। कानून के मुताबिक, किसी भी सूरत में बलात्कार या यौन हिंसा की पीड़ित महिला की पहचान उजागर नहीं की जा सकती है, उसकी मुत्यु के बाद भी नहीं। उसके असली नाम या उससे जुड़ी कोई भी जानकारी को उजागर नहीं किया जा सकता। चाहे वह उसके परिजन या दोस्‍त ही क्‍यों ना हो। बताते चलें कि आईपीसी की धारा 228 ए (1) के तहत जिसके साथ अपराध हुआ है उसका नाम प्रचारित या प्रकाशित करना दंडनीय अपराध है। कानून के तहत सर्वाइवर के निवास, परिजनों, दोस्तों, विश्वविद्यालय और उससे जुड़े अन्य विवरण को भी उजागर नहीं किया जा सकता है।

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तस्वीर साभार : Columbia Blogs

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