इंटरसेक्शनलजेंडर लैंगिक समानता के बहाने क़ायम जेंडर रोल वाले विशेषाधिकार| नारीवादी चश्मा

लैंगिक समानता के बहाने क़ायम जेंडर रोल वाले विशेषाधिकार| नारीवादी चश्मा

समय के बदलाव ने पुरुषों को भले ही रसोईघर तक पहुँचाया है, लेकिन उनके क़ायम विशेषाधिकार ने इन कामों को लेकर अभ्यस्त होने की दिशा में इसे परवरिश में शामिल नहीं होने दिया है।

‘महिलाओं को बचपन से ही घर के काम करने को कहा जाता है। वहीं पुरुषों को घर के काम की बजाए बाहर जाकर पैसे कमाने को कहा जाता है।‘ अब आप कहेंगें कि ज़माना बदल गया है। किचन का मतलब सिर्फ़ महिला नहीं और पैसे कमाने का मतलब सिर्फ़ पुरुष नहीं रह गया। अब तो महिला-पुरुष साथ काम करते है और घर के कामों में भी बराबर हाथ बँटाते है। पर क्या वास्तव में ऐसा है? या कहीं ऐसा तो नहीं कि हम घर के काम के प्रति पुरुषों के शौक़ और महिलाओं की ज़िम्मेदारी वाली अदृश्य टैग में फ़र्क़ नहीं कर पाते है? बेशक पुरुष अब घर के कामों में महिलाओं का हाथ बँटाते है, लेकिन ये उनके लिए आज भी शौक़ का काम है न की ज़िम्मेदारी का, जो अपने आप में एक विशेषाधिकार है।

गाँव में एक़बार महिलाओं के साथ जेंडर के मुद्दे पर बैठक के दौरान जब मैंने महिलाओं से सवाल किया कि आप में से कितने महिलाओं के घर में पुरुष खाना बनाने और अन्य घर के काम में हाथ बँटाते है। सवाल सुनते ही क़रीब आधी महिलाओं ने एकसाथ हाथ उठाया। जब बारी-बारी से उनसे पूछा गया कि उनके पति ने आज सुबह खाने में क्या बनाया? तो महिलाओं का ज़वाब था कि, ‘अरे वो रोज़ नहीं कभी कभार बनाते है। अगर घर में कोई ख़ास मेहमान आ गया तो नानवेज बनाना या फिर हम महिलाएँ जब बीमार हो या बाहर गए हो और बच्चे बीमार होतो पुरुष खाना बनाते है। सीधा-सा मतलब ये है कि – जब बात उनके अपने पेट या फिर किचन की किसी विशेष डिश पर अपने वर्चस्व की हो तो पुरुष खाना बनाते है। पर वे हर बार करें ये ज़रूरी नहीं है, ये उनके मूड पर निर्भर करता है। यानी कि खाना बनाना उनके लिए वैकल्पिक है।

समय के बदलाव ने पुरुषों को भले ही रसोईघर तक पहुँचाया है, लेकिन उनके क़ायम विशेषाधिकार ने इन कामों को लेकर अभ्यस्त होने की दिशा में इसे परवरिश में शामिल नहीं होने दिया है।

ये तो अनुभव रहा ग्रामीण महिलाओं के साथ, लेकिन अगर मैं अपनी बात करूँ तो मैंने भी अपने परिवार और आसपास के परिवारों में सिर्फ़ इन्हीं स्थितियों में पुरुषों को खाना बनाते या घर का काम करते देखा है। बदलते वक्त के साथ पितृसत्ता ने अपने रंग को बेहद सतर्कता से बदला है। इस व्यवस्था ने पुरुषों को रसोईघर और घर के काम तो सीमित संख्या में पहुँचाया है, लेकिन उनके वर्चस्व और विशेषाधिकार को भी मज़बूती से क़ायम रखा है।

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खाना बनाना, घर का काम और परिवार सँभालना ये सब अभी भी महिलाओं की ही मूल ज़िम्मेदारी मानी जाती है, जिसमें पुरुष वैकल्पिक रूप से कभी-कभार मदद करते है। लेकिन इस कभी-कभार वाली मदद की कंडीशन भी बहुत साफ़ है – अगर पुरुष का मूड अच्छा है तो खाना बनाने या घर के काम हाथ बँटाएगा। महिला बीमार हो या बाहर गयी तो और अगर वो एकल परिवार में रहता हो। क्योंकि अधिकतर संयुक्त परिवारों में जैसे ही कोई पुरुष महिला के काम में हाथ बँटाने की कोशिश करता है उसके सीमित प्रयास को भी मर्दानगी का हवाला देकर ख़त्म कर दिया जाता है।

समय के बदलाव ने पुरुषों को भले ही रसोईघर तक पहुँचाया है, लेकिन उनके क़ायम विशेषाधिकार ने इन कामों को लेकर अभ्यस्त होने की दिशा में इसे परवरिश में शामिल नहीं होने दिया है। भले ही घर में मम्मी के बीमार होने पर पापा खाना बनाए। लेकिन बेटे को रसोई के काम का अभ्यास नहीं करवाया जाता है, ज़ाहिर है इस अघोषित विशेषाधिकार से अभी वाक़िफ़ होते है।जिस तरह पुरुषों के लिए रसोई और घर का काम वैकल्पिक बनाकर इसे एक विशेषाधिकार बनाया है। ठीक उसी तरह महिलाओं के लिए पैसे कमाने के काम को भी वैकल्पिक बनाया गया है, इसके चलते कई बार महिलाएँ पढ़ी-लिखी होने के बावजूद घर के काम का चुनाव करती है और बचपन से ही उन्हें अच्छी नौकरी करने या पैसे कमाने की बजाय रसोई और घर-परिवार के काम में परिप्वक करने की दिशा में मज़बूती से काम किया जाता है। क्योंकि पितृसत्ता ने ये विचार महिलाओं के संदर्भ में मज़बूती से रचा है कि ‘अगर महिला घर में कामों में अच्छी होगी तो उसकी ज़िंदगी अच्छे से गुजर जाएगी।‘

पितृसत्ता में जेंडर की अवधारणा महिला-पुरुष के बीच में फ़र्क़ को बनाए रखने में बेहद प्रभावी तरीक़े से काम करती है। इतना ही नहीं, समय के साथ इसमें बदलाव भी ख़ूब देखने को मिलता है, जो सतही होता है, जिसके साथ विशेषाधिकार और दमन का समीकरण क़ायम रहता है। इस समीकरण को दूर करने के लिए ज़रूरी है कि लैंगिक समानता का ढोंग करने वाले तमाम बदलाव का हम बारीकी से अध्ययन करें और उसकी विशेषाधिकार की परतों को समझें, क्योंकि बिना इसकी समझ से हम कभी भी बुनियादी तौर पर किसी भी बदलाव की शुरुआत नहीं कर पायेंगें।  

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तस्वीर साभार : www.dailyo.in 

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