इंटरसेक्शनलजेंडर मर्दों के वर्चस्व वाले व्यवसाय में ‘गुड़िया’ ने बनाई अपनी एक अलग पहचान

मर्दों के वर्चस्व वाले व्यवसाय में ‘गुड़िया’ ने बनाई अपनी एक अलग पहचान

गुड़िया का कहना है कि "इस मार्किट के माहौल में एक लड़की होने के नाते काम करना बहुत मुश्किल है। यहां लोग बिना गालियों के बात नहीं करते हैं। उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि सामने कोई लड़की खड़ी है और अगर उन्हें कोई ऐसा करने के से रोकता है तब और ज्यादा गाली–गलौच करते हैं।"

“खिलौने से खेलने की उम्र में गुड़िया ने तराजू और बाट को ही खिलौना बनाकर घर की पूरी ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली थी। अपने पिता की मौत के वक़्त गुड़िया बहुत छोटी थी। इस समाज में एक अकेली औरत का तीन बेटियों के साथ जीना बहुत मुश्किल है। मायके और सुसराल की तरफ़ से कोई ख़ास समर्थन नहीं था। पति की मौत के बाद हालात इतने ख़राब हो गए थे कि घर में खाने को बहुत मुश्किल से कुछ होता था। छोटी बेटी के लिए दूध नहीं मिल पाता था जिसकी वजह से उसे दूध की जगह आटा घोल-घोलकर पिलाकर बहलाना पड़ता था। ग्रेजुएट होने के बावुजूद बच्चे बहुत छोटे होने की वजह से कोई जॉब करना मेरे लिए बेहद मुश्किल था लेकिन गुड़िया ने बहुत हिम्मत और लगन से दुकान संभाली। गुड़िया ने बचपन से बहुत हिम्मत की है।” यह कहना है खारी बावली में ‘हिना ट्रेडर्स’ के नाम से मसाले की दुकान चलाने वाली गुड़िया की माँ मंजू चौहान का।

गुड़िया, खारी बावली में पिछले 13-14 सालों से एक छोटी सी मसालों की एक दुकान चलाती है। तीन बहनों में सबसे बड़ी गुड़िया का असल नाम लीना चौहान है। लेकिन पूरा खारी बावली बाज़ार और उसकी दुकान पर आने वाले लोग उसे गुड़िया के नाम से जानते हैं। खारी बावली में ‘हिना ट्रेडर्स’ के नाम से यह मसाले की दुकान गुड़िया के पिता किशन सिंह चौहान चलाते थे लेकिन साल 2006 में मार्किट सीलिंग की ख़बर सुनकर उनका ब्रेन हेमरेज हो गया था जिसकी वजह से उनका देहांत हो गया। गुड़िया की माँ मंजू चौहान बीए पास हैं। उनका कहना है कि बच्चे बहुत छोटे थे इसलिए वह कहीं जॉब नहीं कर सकती थी। वह बताती हैं कि उनका घर मार्किट में ही है लेकिन आस-पड़ोस में रिश्तेदारों की भी दुकानें हैं और वह रिश्तेदारों से पर्दा करती हैं इसलिए दुकान चलाने में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ता। परिवार में कोई और पुरुष सदस्य भी नहीं था इसलिए उनकी गुड़िया ने बहुत कम उम्र में ही यह ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली।

अपनी दुकान में गुड़िया, तस्वीर साभार: फरहाना रियाज़

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जब गुड़िया ने ये दुकान संभाली तब वह पास के ही एक स्कूल में आठवीं क्लास में पढ़ती थीं। दुकान संभालने के लिए उसने स्कूल जाना छोड़ दिया और आगे की बारहवीं तक की पढ़ाई बहुत मुश्किलों के साथ प्राइवेट स्टूडेंट के तौर पर की। गुड़िया हर रोज़ सुबह नौ बजे से रात आठ बजे तक अपनी छोटी सी मसालों की दुकान पर खड़ी रहती थी। जिस दिन उसे एग्ज़ाम देने जाना होता था दुकान पर अपने पिता के किसी पुराने जानकार पल्लेदार या फ़िर दुकान पर माल लाने वाले को एक-दो घंटे तक के लिए खड़ा करके एग्ज़ाम देकर आती थी।

गुड़िया बताती हैं, “शुरुआत में दुकान को संभालना बहुत मुश्किल काम था क्योंकि पिता के देहांत के बाद कोई जल्दी से माल नहीं देता था। उन लोगों को लगता था कि पैसा नहीं मिलेगा लेकिन बहुत मिन्नतें करके उन लोगों से माल लेती थी और वादा करती थी कि पैसे शाम को ही दे जाऊंगी। इस तरह धीरे-धीरे फ़िर उन लोगों का यक़ीन हासिल किया जिसकी वजह से अब माल आसानी से मिल जाता है।” गुड़िया का कहना है कि “इस मार्किट के माहौल में एक लड़की होने के नाते काम करना बहुत मुश्किल है। यहां लोग बिना गालियों के बात नहीं करते हैं। उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि सामने कोई लड़की खड़ी है और अगर उन्हें कोई ऐसा करने के से रोकता है तब और ज्यादा गाली–गलौच करते हैं।”

होना तो यह चाहिए था पिता की मौत के बाद सारा घर संभालने वाली गुड़िया के हौसले को समाज सराहता, लेकिन अफ़सोस हमारे पितृसत्तात्मक समाज की सोच देखिए कि वह इस हौसले को सराहने के बजाय उस पर ऊंगली उठाता है।

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हालांकि इन सबके अलावा गुड़िया कुछ ऐसे ग्राहकों का ज़िक्र भी करती हैं जो उसे बहुत प्रोत्साहित भी करते हैं। वह बताती हैं, “कुछ ऐसे ग्राहक हैं जो उसके नियमित ग्राहक बन चुके हैं और वे दूसरे ग्राहकों को भी दुकान पर भेजते हैं।” गुड़िया बताती हैं कि शुरुआत में वह अकेले दुकान संभालती थी चाहे कुछ भी परेशानी हो। बीमारी हो, सुबह से शाम तक दुकान पर खड़ा रहना पड़ता था। जब पता होता है कि घर में कमाने वाला कोई और नहीं है तब उन्हें बीमारी भी बीमारी नहीं लगती है। गुड़िया से छोटी दो बहनें और हैं प्रिया और हिना। गुड़िया नहीं चाहती थीं कि उसकी बहनों को यह काम करना पड़े। इसलिए पिता की मौत के बाद हर परेशानी से जूझते हुए गुड़िया ने अपनी बहनों की पढ़ाई का पूरा ख्याल रखा। इसके अलावा अब उसके साथ दुकान संभालने के लिए एक कर्मचारी मौजूद होता है। होना तो यह चाहिए था पिता की मौत के बाद सारा घर संभालने वाली गुड़िया के हौसले को समाज सराहता, लेकिन अफ़सोस हमारे पितृसत्तात्मक समाज की सोच देखिए कि वह इस हौसले को सराहने के बजाय उस पर ऊंगली उठाता है।

गुड़िया से छोटी बहन प्रिया ने सीए और एमबीए किया है प्रिया ने अपनी कोचिंग एकेडमी शुरू की थी लेकिन लॉकडाउन की वजह से उसे बंद करना पड़ा। वह कहती है “हमारी दीदी ने बहुत संघर्ष किया है और आज हम जो भी हैं दीदी के संघर्ष की वजह से हैं। सिर्फ पढ़ाई नहीं बल्कि दीदी हमारी हर ज़रूरत का ख्याल बहुत अच्छी तरह रखती हैं । मैं दीदी से ज़्यादा छोटी नहीं हूं फ़िर भी दीदी ने इस बात लेकर कभी दबाव नहीं दिया कि मैं उनके साथ दुकान संभालूं। हमें गर्व है कि हमारी बहन इतने बुलंद हौसले वाली है।”

गुड़िया का कहना है कि “इस मार्किट के माहौल में एक लड़की होने के नाते काम करना बहुत मुश्किल है। यहां लोग बिना गालियों के बात नहीं करते हैं। उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि सामने कोई लड़की खड़ी है और अगर उन्हें कोई ऐसा करने के से रोकता है तब और ज्यादा गाली–गलौच करते हैं।”

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हिना जो प्रिया से छोटी हैं उन्होंने डायटिशियन का कोर्स किया है और कत्थक में पीएचडी की है। वह बताती हैं, “मेरी दीदी ने हम सबके लिए बहुत संघर्ष किया है एक बहन होने के नाते ऐसा करना बहुत मुश्किल है। मेरी दीदी ने हमें बहुत आज़ाद ज़िन्दगी दी। कुछ भी खाना, पीना, पहनना, करियर चुनने की भी पूरी आज़ादी दी। शायद आज के दौर में माँ-बाप दोनों मिलकर अपने बच्चों के लिए इतना नहीं कर सकते हैं जितना हमारी दीदी ने हमारे लिए किया है। शायद पापा की ज़िन्दगी में हमारी लाइफ इतनी अच्छी नहीं होती जितनी हमारी दीदी ने हमें दी है।”

गुड़िया की मेहनत धीरे –धीरे रंग ला रही है। एक वक्त वो था जब घर का खर्च चलाना मुश्किल होता था लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। गुड़िया बताती है कि उसकी शादी के सिलसिले ने एक परिवार उसके लिए रिश्ता लेकर आया लेकिन उन्होंने रिश्ता करने से इनकार कर दिया क्योंकि लड़की दुकान चलाती है। वह कहती है कि उसे अपने बारे में ऐसी टिप्पणी से बेहद दुख हुआ। गुड़िया का कहना है, “मैं ज़्यादा पढ़ नहीं पाई मुझे इस काम के अलावा कुछ नहीं आता है इसलिए मैं कहीं जॉब नहीं कर सकती हूँ। मैंने बचपन से सिर्फ़ यही दुकान संभाली है मेरी इच्छा है कि मेरी यह दुकान ऐसे ही चलती रहे।”

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तस्वीर साभार : फरहाना रियाज़

Comments:

  1. COLONEL ISENHOWER says:

    *A beautiful article, very emotional and touching*. Farhana has put her heart and soul into the story. Great efforts.
    I wish to extend my heartfelt thanks for your wonderfully rich and highly motivating real-life story. Not only was I moved but was also educated on the symbolic representation of life’s struggles and how to negotiate them. The story showed that even though the language and context differ, communication, emotion and the human experience are transcendental.
    Experience is not what happens to you–it’s how you interpret what happens to you.
    *Very gifted, well done!*

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