इंटरसेक्शनलयौनिकता बाज़ार और बढ़ती उम्र की यौन इच्छा के सवाल

बाज़ार और बढ़ती उम्र की यौन इच्छा के सवाल

यह सच है कि बाज़ार ने हमारे सामने एक विशेष प्रकार की देह के विमर्श को ही सेक्स के लायक बताया है पर सेक्स एक व्यक्तिगत अधिकार है जिसकी रक्षा हर हाल में होनी चाहिए।

भारतीय समाज एक ऐसा समूह है जहां शरीर और उससे जुड़ी इच्छाओं को लेकर जब भी बात होती है तो स्वर गायब हो जाते हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि सेक्स और उससे जुड़ी जागरूकता में एक ऐसा वर्ग भी है जो कि इस प्रकार के विमर्श से कोसों दूर है। वह वर्ग है बुज़ुर्ग व्यक्ति और उनकी यौन इच्छा का प्रश्न। हम इसी भाषा में देख सकते हैं कि जब हम सेक्सुअल प्लेज़र की बात कर रहे हैं तो उसको ‘यौन’ इच्छा का नाम दे रहे हैं जिससे यह भ्रम होता है कि ऐसी इच्छाएं केवल युवाओं तक सीमित हो सकती हैं।  

इरोटिका, एक दिलचस्प विषय है। विशेषकर, जब यह हिन्दुस्तानी इरोटिका के बाज़ार को समझने का अवसर हो। लॉकडाउन का खाली वक़्त मुझे बहुत सारे रास्तों पर लेकर गया जिसमे से एक था, एक प्रसिद्ध हिंदी इरोटिका वेबसाइट के लिए SEO लिखना। SEO का अर्थ होता है, सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन यानि कि जब आप कई बार कोई कंटेंट खोजते हैं तो उसके नीचे आपको हैशटैग दिखते हैं। इस लिखने की प्रक्रिया में आपको सबसे सटीक शब्द चुनना और लिखना होता है। यहां यह बता देना ज़रूरी है की भारत में पॉर्न बनाना, बेचना और उसमे काम करना दंडनीय अपराध के अंतर्गत आता है पर इरोटिका लिखना और पब्लिश करना पूरी तरह से वैध है। सामान्य शब्दों में यह जटिल प्रक्रिया है, इसलिए इस पर लिखना और उसके लिए लिखना मेरे शोध की प्रक्रिया का हिस्सा था। यह ऐसा काम था जिसे बतौर शोधार्थी मुझे समझने की बहुत ज्यादा इच्छा थी। 

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इस प्रक्रिया में मैंने कई प्रकार के मुद्दों पर भारतीय जनता की इच्छा को समझने की कोशिश की है। अगर आप इरोटिका से परिचित हैं तो आप यह समझते होंगे कि हर इरोटिका में एक कैटेगरी होती है पर इंडियन इरोटिका अपने आप में एक कैटेगरी है। इसलिए उस कैटेगरी में अलग-अलग प्रकार की सब-कटेगरी होती है। उस सब-कटेगरी में एक विशेष कटेगरी होती है ‘caught।’ भारत में ऐसे इरोटिका का चलन बहुत ज्यादा है जिसमें किसी एक कपल को तथाकथित तौर पर ‘रंगे हाथ’ पकड़ा जाए। इन कथानकों में अकसर ऐसे व्यक्तियों की कहानियां होती हैं जो कि बाहर किसी खेत में या ऐसे किसी खुले जगह पर सेक्स कर रहे होते हैं। यह बेशक एक क्लास का मसला है, साथ ही इस बात के विमर्श का कि सेक्स का टैबू कैसे एक समुदाय विशेष के लिए काम करता है।

“हम उस समाज का हिस्सा हैं जहां सेक्स को हम केवल एक तय उम्र, समूह और वर्ग तक देखना पसंद करते हैं। ऐसे में यह सोचना कि हमारे दादा या हमारी नानी की सेक्स और प्लेज़र से संबंधित इच्छाएं होंगी, यह न सिर्फ मुश्किल है बल्कि यह ख्याल ही बेकार लगता है।”

दूसरा इस कैटेगरी में सबसे अधिक होते हैं बुजु़र्ग या अधेड़ उम्र के व्यक्तियों के। जैसे 50 से 80 साल की उम्र के लोगों की कहानियां। जानने वालों के लिए यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि SEO लिखना मानसिक रूप से एक ड्रेनिंग और पीड़ादायक प्रक्रिया भी है। जबकि आप क्लास, कास्ट और प्राइवेसी के संबंध को समझते हैं और ये कॉन्टेंट अक्सर लोगों की मर्ज़ी के बिना बनाए जाते हैं। ऐसे कथानकों के साथ वीडियो के लिंक भी होते हैं। आपको इन वीडियोज़ को पूरा देखना होता है, तब इनके बारे में टिप्पणी लिखनी होती है। वह भी बहुत ही चटकारे वाली भाषा में ताकि व्यूरशिप को बढ़ाया जा सके। ऐसे में इनके SEO कुछ इस तरह के होते है- ‘रंगीला बुड्ढा, हरामी चाचा आदि।’ इस प्रकार के वीडियो के नीचे आने वाले कॉमेंट भी द्वेष से भरे होते हैं पर ऐसे वीडियोज़ पर सबसे अधिक व्यूज़ आते हैं और सबसे ज्यादा पब्लिक का इंगेजमेंट भी होता है।

इस प्रकार के पॉर्न के संदर्भ में मुझे जो बात समझ आई वह यह है कि हमारे समाज में अधेड़ व्यक्तियों की यौन इच्छाओं को बिलकुल ही नकार दिया जाता है। इसी कैटेगरी में सबसे हाई रेटेड पॉर्न जैसे ‘ससुर बहु, आंटी सेक्स और ग्रैनी सेक्स भी आता है।’ इस प्रकार के पॉर्न में आने वाले कॉमेंट्स से यह प्रतीत होता है कि हम अपनी घृणा को किसी व्यक्ति के निज़ी जीवन में झांककर कैसे स्पष्ट करते हैं। इस प्रक्रिया में सामने वाले की उम्र उनका शरीर और उनकी इच्छाएं हमारी गालियों के केंद्र में होती हैं। 

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हम उस समाज का हिस्सा हैं जहां सेक्स को हम केवल एक तय उम्र, समूह और वर्ग तक देखना पसंद करते हैं। ऐसे में यह सोचना कि हमारे दादा या हमारी नानी की सेक्स और प्लेज़र से संबंधित इच्छाएं होंगी, यह न सिर्फ मुश्किल है बल्कि यह ख्याल ही बेकार लगता है। यौनिकता का मसला वैसे तो सिर्फ सेक्स के विषय में नहीं है पर यह उन बहुत से मुद्दों में से एक है जहां हम अपने समाज के कुछ व्यक्तियों, इच्छाओं और प्लेज़र को पूरी तरह से नकार देते हैं। यौन इच्छा और प्लेज़र हर उम्र और वर्ग के लोगों में अपनी तरह से बेहद व्यक्तिगत तौर पर मौजूद होता है। ऐसे में जब हम अपने बड़े-बूढों की शारीरिक ज़रूरतों को नकार देते हैं तो वह उनकी नहीं एक समाज की विद्रूप भावना का हिस्सा होती है। 

इस वक़्त अगर हम इस बात को स्वीकार नहीं करेंगे कि हमारे समाज में प्रत्येक व्यक्ति की सामाजिक और शारीरिक ज़रूरत का एक हिस्सा यौन इच्छा भी है तो हम इस प्रकार से एक बड़े समूह को धोखा दे रहे हैं।

सेक्स और उससे जुड़ी बातें दो तरफा प्रक्रिया का हिस्सा हैं। जब भी हम अधेड़ आयु के व्यक्तियों के बारे में बात करते हैं हमारे दिमागों में सत्संग, एक अकेले कोने में बैठे व्यक्ति की तस्वीर आती है। यहां तक अगर मैं यह कहूं कि एक 55 वर्ष की महिला सेक्सुली एक्टिव है तो हमारे दिमागों में उसके प्रति कोई अच्छी प्रक्रिया नहीं आएगी, जबकि पॉर्न का एक पूरा हिस्सा ‘MILF’ प्रकार की कैटेगरी से भरा हुआ है। बढ़ती आयु और सेक्स की इच्छा यदि एक महिला के लिए हो तो वह बस हमारे लिए मज़ाक का हिस्सा हो जाती है। जबकि पुरुषों को हम ‘ठरकी’ के लेबल से टैग कर देते हैं। इसका एक कारण यह भी है की बाज़ार सिनेमा और समाज में हमने ऐसे उम्रदराज़ व्यक्तियों की छवि को देखा है जो कि अपने से कम आयु के व्यक्तियों को उनकी यौन इच्छा के लिए जज करते आए हैं। इसलिए वे व्यक्ति खुद ही यह मानने से इनकार कर देते हैं कि प्रजनन से इतर भी सेक्स की ज़रूरत समाज में है और वह केवल और केवल प्लेज़र का हिस्सा होना चाहिए। 

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समाज में एक ऐसा बड़ा वर्ग है जो की खुद को महिला और पुरुष की बाईनरी से भिन्न और हेट्रोसेक्सुअल सेक्स से इतर देखता है। उसके साथ हमारे यह सवाल और भी गंभीर हो जाते हैं। मुझे कुछ दिन पहले की घटना याद है जब मैं अपनी एक उम्रदराज़ लेस्बियन दोस्त से बात कर रही थी और मेरे साथ वालों ने भी उनसे बात की। उसके बाद उन्होंने कहा कि हमें लगा ही नहीं था कि बूढ़े भी क्वीयर होते हैं और वह अपने पार्टनर के साथ रहते हैं। यह बात इसलिए भी गौर करने लायक है क्योंकि हमारे समाज में आज भी यह सोचना कि दो समलैंगिक व्यक्ति एक साथ रह रहे हैं इसकी कल्पना कितनी मुश्किल है। 

इस वक़्त अगर हम इस बात को स्वीकार नहीं करेंगे कि हमारे समाज में प्रत्येक व्यक्ति की सामाजिक और शारीरिक ज़रूरत का एक हिस्सा यौन इच्छा भी है तो हम इस प्रकार से एक बड़े समूह को धोखा दे रहे हैं। यह हमारे अपने मन को भी धोखा देना ही है। हमें यह विचार ख़राब लगता है तो हमें इसकी जड़ में जाना होगा। यह सच है कि बाज़ार ने हमारे सामने एक विशेष प्रकार की देह के विमर्श को ही सेक्स के लायक बताया है पर सेक्स एक व्यक्तिगत अधिकार है जिसकी रक्षा हर हाल में होनी चाहिए। वह किसी भी आयु वर्ग और जेंडर की नीजिता और डिग्निटी का प्रश्न है, जिसे हमे हर स्तर समझना होगा और लगातार इस मुद्दे पर बात भी करनी होगी। सेक्स की इच्छा और समाज की नैतिकता दो अलग-अलग सवाल हैं जिससे हर आयु वर्ग प्रभावित होता है। एक ओर ऐसा पॉर्न है और इसका बड़ा बाज़ार है और दूसरी ओर उन्हीं इच्छाओं के खिलाफ़ भी एक बाज़ार है। इसलिए हमें उस चेतना की ओर आगे जाना है जहां व्यक्तियों का शरीर बाज़ार से आगे हो। उनकी इच्छा का सम्मान हो ताकि जब हम भी उस जगह पर पहुंचे तो हमे यह न लगे कि की हम अब यह हिस्सा नहीं जी सकते हैं। हम कभी भी कही भी वह कर सकते हैं जिसमे किसी का नुकसान न हो और हमें खुशी मिले। यह जीवन अपनी निज़ी इच्छा का सम्मान का हो।

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तस्वीर साभार: LA Times