समाजख़बर एनीमिया: भारत की महिलाओं और बच्चों के लिए ‘लाइलाज’ क्यों बनती जा रही है यह बीमारी

एनीमिया: भारत की महिलाओं और बच्चों के लिए ‘लाइलाज’ क्यों बनती जा रही है यह बीमारी

साल 2019-21 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के तहत जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश के बच्चों और महिलाओं में एनीमिया चिंता का विषय बना हुआ है। 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बच्चों और महिलाओं के बीच एनीमिया (खून की कमी) की परेशानी बढ़ी है। इन आंकड़ों के अनुसार देश में महिलाओं की कुल आबादी की आधी से भी अधिक महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं।

पांचवें एनएफएचएस 2019-21 के आंकड़ों के अनुसार देश में 15-19 वर्ष की उम्र की 57.0 प्रतिशत महिलाओं में एनीमिया की कमी है। इस समूह में शहरी क्षेत्र की 53.8 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र की 58.5 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। एनएफएचएस-4 (2015-16) अनुसार यह आंकड़ा 53.1 प्रतिशत था। देश में 15-19 वर्ष की आयु की लड़कियों की आबादी का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा एनिमिक पाया गया। इस आयु वर्ग की 59.1 प्रतिशत महिलाओं में खून की कमी पाई गई। इस समूह में शहरी क्षेत्र में 56.5 प्रतिशत की तुलना में ग्राणीण क्षेत्र में 60.2 प्रतिशत महिलाओं में एनीमिया पाया गया। एनएफएचएस-4 में यह प्रतिशत दर 54.1 थी।

देश में 15-49 आयुवर्ग की गर्भवती महिलाओं में 52.2 प्रतिशत महिलाओं में एनीमिया मिला। दोनों आयुवर्ग में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं में एनीमिया की समस्या का सामना करने वाली महिलाओं की संख्या ज्यादा मिली है। पिछले सर्वेक्षण के मुकाबले इस वर्ष हर आयुवर्ग की महिलाओं में एनीमिया की समस्या ज्यादा मिली हैं। महिलाओं के मुकाबले पुरूषों में एनीमिया की समस्या बहुत कम देखी गई। 15-49 आयु वर्ग में 25 प्रतिशत और 15-19 आयु वालों में 31.1 प्रतिशत में एनीमिया पाया गया है।

महिलाओं के अलावा सभी आयुवर्ग के बच्चों में भी एनीमिया की वृद्धि हुई है। 6-59 महीने की आयु के बच्चों के लगभग 70 फीसदी के करीब बच्चों में एनीमिया पाया गया। आंकड़ों के मुताबिक, 6-59 महीने की आयु के 67.1 फीसद बच्चों में एनीमिया है। शहरी क्षेत्र के 64.2 फीसद और ग्रामीण क्षेत्रों में 68.3 बच्चों में एनीमिया है। पिछले सर्वेक्षण के मुकाबले 8.5 फीसद की वृद्धि देखी गई है। एनएफएचएस-4 में बच्चों में यह दर 58.6 फीसद थी।  

और पढ़ेंः कैंसर के बारे में जागरूकता की कमी से हो रहा ग्रामीण भारत का नुकसान

एनीमिया, रक्ताल्पता यानि मानव शरीर में खून की कमी होना। यह शरीर की लाल रक्त कोशिका में पाए जाने वाले हीमोग्लोबिन की संख्या में कमी आने से होता है। हीमोग्लोबिन पूरे शरीर में ऑक्सीजन को प्रवाहित करता है। इसकी कमी होने से शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है, जिस कारण व्यक्ति थकान और कमज़ोरी महसूस करने लगता है।  

दुनियाभर में एनीमिया का सबसे आम प्रकार आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया है। महिलाओं में विशेष रूप से कई कारणों से एनीमिया होने की ज्यादा संभावना होती है। 12 से 49 उम्र की महिलाओं को हर महीने होने वाली माहवारी के कारण आयरन की विशेष कमी हो जाती है। एनीमिया का ज्यादा खतरा उन महिलाओं में अधिक होता है जिनकी महामारी लंबी होती है। कुछ महिला गर्भाशय फाइब्रॉएड से भी आयरन खो देती हैं।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के ताजा आंकड़ों के अनुसार देश में खासतौर से गर्भवती महिलाओं में खून की कमी ज्यादा देखी गई हैं। गर्भावस्था के दौरान बच्चे के विकास के दौरान एक महिला को ज्यादा आयरन की मात्रा की आवश्यकता होती है। सामान्य दिनों के मुकाबले गर्भावस्था में एक महिला को 50 प्रतिशत ज्यादा (प्रति दिन सामान्य 18 मिलीग्राम के बजाय 27 मिलीग्राम प्रतिदिन) आयरन की आवश्कता होती है। प्रसव के दौरान खून के बहने के कारण भी महिला में एनीमिया होने संभावना बनी रहती है। एनीमिया के कारण गर्भावस्था के दौरान मृत्यु होने का भी खतरा बना रहता है। एनीमिया के कारण बच्चे में विकलांगता और कमजोर मानसिक स्वास्थ्य होने का खतरा भी बना रहता है।   

और पढ़ेंः यूटीआई : महिलाओं को होनेवाली एक आम बीमारी, जिसपर चर्चा है ज़रूरी

योजनाओं के बाद भी एनीमिया की समस्या बरकरार

दुनियाभर में पोषण की कमी एनीमिया का एक सामान्य कारण है। भारत में पोषण की कमी से संबंधित एनीमिया के लगभग आधे मामले बहुत कम आयरन के सेवन की वजह से होते हैं। विटामिन बी-9 और बी-12 का कम सेवन इसका एक आम कारण है। बिजनस स्टैंडर्ड में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 1970 में एनीमिया को खत्म करने के लिए राष्ट्रीय एनीमिया प्रोफिलैक्सिस कार्यक्रम की शुरुआत हुई। यह कार्यक्रम मुख्य रूप से गर्भवती महिलाओं और एक से पांच साल तक की उम्र के बच्चों के बीच आयरन और फॉलिक एसिड की गोलियां वितरित करने पर केंद्रित थी। इस पहल के बावजूद भी 2021 में भी देश में आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया का सबसे ज्यादा संकट है। भारत में 20 प्रतिशत मातृ मृत्यु का कारण एनीमिया है। 50 प्रतिशन मातृ मृत्यु में एनीमिया एक सहयोगी कारक बनता है।

अधिक जागरूकता और पौष्टिक आहार की पूर्ति के माध्यम से एनीमिया को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। वहीं, महिलाओं में सबसे ज्यादा होने वाली एनीमिया की समस्या को दूर करने के लिए सामाजिक दृष्टिकोण को भी बदलने की आवश्यकता है। भारतीय परिवार व्यवस्था में महिलाओं की पोषण संबंधी जरूरतों को बहुत कम प्राथमिकता दी जाती है।

भारत सरकार की तमाम योजनाओं और पहल के बाद एनीमिया की समस्या लगातार बनी हुई है। भारत में एनीमिया को खत्म करने के लिए लगातार राष्ट्रीय पोषण एनीमिया नियंत्रण कार्यक्रम, साप्ताहिक आयरन और फॉलिक एसिड सप्लीमेंटेशन, राष्ट्रीय आयरन प्लस पहल जैसे सरकारी कार्यक्रम बनते आ रहे हैं। एनीमिया की कमी को दूर करने के लिए मार्च 2018 में पोषण अभियान की शुरुआत की गई। ‘एनीमिया मुक्त भारत की योजना के तहत भारत में साल 2018 से 2022 के बीच हर साल तीन प्रतिशत एनीमिया का प्रसार कम करने की योजना बनाई गई। योजनाओं की बड़े बजट और कागजी उद्देश्यों के बावजूद भारत में एनीमिया की समस्या बड़े स्तर पर बनी हुई है। गर्भवती महिलाओं को 100 आईएफए टैबलैट मुफ्त मिलने के बावजूद एनीमिया की समस्या लगातार बनी हुई हैं। तमाम बड़ी योजना और घोषणाओं के बाद शोध के मुताबिक आईएफए के अनुपालन दर में लगभग 30 की कमी है। इस पर काबू पाने के लिए सामुदायिक स्तर पर, सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन पर ध्यान देने की प्रमुख आवश्यकता बताई गई है।

जागरूकता है समस्या का समाधान

सरकार की नीतियों के अनुसार देश में एनीमिया को खत्म करने के लिए बड़े कदम उठाए जा रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर सरकार के द्वारा जारी आंकड़ों से यह पता चलता है कि कैसे एनीमिया की समस्या भारत के लिए बड़ी चिंता का कारण बनती जा रही है। इंडियास्पेंड की एक के रिपोर्ट अनुसार कम राजनैतिक प्रतिबद्धता इसकी पहली आम समस्या है। एनीमिया को गंभीरता से न लेने के कारण इसकी समस्या लगातार बनी हुई है। सरकार के निवारण कार्यक्रमों में व्यापकता की बहुत समस्या है। आयरन-फॉलिक एसिड की खुराक की कमियां लगातार बना रहना और उनको लाभार्थियों तक न पहुंचना भी प्रमुख कारण है। यही नहीं, आज से तीन दशक पहले भी विशेषज्ञों ने एनीमिया को खत्म करने के लिए प्रचार और जागरूकता पर विशेष ध्यान के लिए कहा था। विशेषज्ञों ने खराब कवरेज, स्वास्थ्य कर्मियों की अक्षता, अपर्याप्त व अनियमित आपूर्ति को एनीमिया को दूर करने के बीच की बाधा बताया था।

आज भी देश में एनीमिया को लेकर जानकारी का अभाव है। इसके लिए जागरूकता पैदा करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। एनीमिया बीमारी गंभीर होने तक इसका पता नहीं चलता है, इसलिए इसके लिए विशेष कार्यक्रम और जागरूकता पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। देश की महिलाओं के एक वर्ग महिलाओं को यह नहीं मालूम है कि उन्हें गोलियां लेने के लिए क्यों कहा जाता है। अधिक जागरूकता और पौष्टिक आहार की पूर्ति के माध्यम से एनीमिया को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। वहीं, महिलाओं में सबसे ज्यादा होने वाली एनीमिया की समस्या को दूर करने के लिए सामाजिक दृष्टिकोण को भी बदलने की आवश्यकता है। भारतीय परिवार व्यवस्था में महिलाओं की पोषण संबंधी जरूरतों को बहुत कम प्राथमिकता दी जाती है। पारंपरिक परिवारों में आज भी महिलाएं सबसे बाद में भोजन करती है। इंडियास्पेंड की जुलाई 2017 की रिर्पोट में बताया गया था कि यह आदत महिलाओं के द्वारा खाए जाने वाले भोजन की मात्रा को कम करती है। महिलाओं का परिवार के अन्य सदस्यों के साथ बराबर मात्रा में खाना मिलने से उनमें पौष्टिक आहार की कमी से होने वाली समस्याओं को दूर किया जा सकता है।

और पढ़ेंः एंडोमेट्रियोसिस : लाखों महिलाओं को होने वाली एक गंभीर और दर्दनाक बीमारी


तस्वीर साभारः ORF

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content