इंटरसेक्शनलहिंसा फेमिसाइड : जब महिलाओं की हत्या सिर्फ उनके जेंडर के कारण होती है

फेमिसाइड : जब महिलाओं की हत्या सिर्फ उनके जेंडर के कारण होती है

विश्व भर में महिलाएं लिंग आधारित हिंसा का कई प्रकार से सामना करती आई है। भारत ऐसा देश है, जो महिलाओं के खिलाफ हिंसा से कभी अछूता नहीं रहा है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा को कई प्रकार से अंजाम दिया जाता है और इसका सबसे भयावह रूप है, महिलाओं हत्या। हाल ही में जारी नैशनल फेमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट-5 बताती है कि अब भारत में मर्दों की तुलना में महिलाओं की संख्या अधिक है। हालांकि, रिपोर्ट का दूसरा पहलू दर्शाता है कि महिलाओं के प्रति हिंसा में काफी बढ़ावा हुआ है।

महिलाएं सामाजिक,आर्थिक, राजनीतिक, लगभग हर पहलू से समाज का एक कमज़ोर वर्ग हैं जो इनके प्रति होनेवाली हिंसा का एक बड़ा कारण है। कमजोर वर्ग के प्रति होने वाली हर प्रकार की हिंसा निंदनीय है लेकिन यह तब और भयावह हो जाती है जब यह हत्या का रूप लेती है। जहां किसी से जीने का अधिकार ही छीन लिया जाता है। फेमिसाइड आज दुनियाभर में एक बड़ी समस्या बन चुकी है। महिलाओं के प्रति हिंसा का हत्या में बदल जाना आम होने लगा है। जहां इस पर बात करना और इसे कानूनी पोशाक पहनाना अनिवार्य होना चाहिए वहीं सरकार इससे बचती दिखती हैं। समय-समय पर कुछ मुद्दे उठते हैं और हमेशा की तरह शांत भी हो जाते हैं।

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क्या है फेमिसाइड ?

फेमिसाइड, होमिसाइड यानि मानव हत्या से भिन्न है क्योंकि इसका मुख्य कारण सीधे जेंडर से संबंधित है। फेमिसाइड लिंग आधारित हत्या है। विश्व स्वास्थ्य सगंठन के अनुसार फेमिसाइड महिलाओं की जानबूझकर की जाने वाली हत्या है, कारण क्योंकि वे महिलाएं हैं। आमतौर पर ऐसी हत्याएं पुरुषों के द्वारा की जाती है लेकिन कभी-कभी इसमें महिलाएं भी शामिल होती हैं। उन महिलाओं का जो पितृसत्तामक समाज के लिए एक एजेंट का काम करती हैं। जो बचपन से ही बच्चियों को कैसे उठना, पहनना, बैठना, खाना है व घर के बाहर कैसा व्यवहार करना है इसकी शिक्षा पितृसत्तामक नजरिये से देती हैं। डब्लयूएचओ ने फेमिसाइड को चार प्रकार से विभाजित किया है जो निम्नलिखित हैं:

1- इंटिमेट फेमिसाइड या अंतरंग स्त्री हत्या : ऐसी स्त्री हत्याएं जो महिलाओं के वर्तमान या पूर्व मे रहे पार्टनर द्वारा की जाती हैं। डब्लयूएचओ के अनुसार विश्वभर में लगभड 35 फीसद महिलाओं की हत्या इंटिमेट पार्टनर द्वारा की जाती है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर वैश्विक आंकड़े बताते हैं कि दुनियाभर में तीन में से एक महिला अपने जीवनकाल में अपने साथी द्वारा हिंसा का सामना करती है। यह भी पाया गया कि वे महिलाएं जो अपने पुरुष साथी की हत्या कर देती हैं वे अक्सर स्वरक्षा यानि सेल्फ डिफेंस में ऐसा करती हैं क्योंकि वे लंबे समय तक शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का सामना कर रही होती हैं।

2- ऑनर किलिंग : ऐसी महिला हत्याएं जो समाज में ‘परिवार की इज्ज़त’ रखने के लिए की जाती है। अक्सर महिलाओं का व्यवहार समाज में घर की इज्ज़त से जोड़ दिया जाता है। भारत में एक परिवार की ‘इज्ज़त’ का यह बड़ा मानदंड है। किसी के साथ प्रेम संबंध, शारीरिक संबंध, अलग जाति या धर्म के पुरुष के साथ प्रेम संबंध, शादी से पहले गर्भवती होना या महिला का बलात्कार, ये सब पितृसत्तात्मक समाज में गलत व्यवहार की परिभाषा में आता है। ऐसा होने पर महिलाओं को घर निकाला दिया जाता है या उनकी हत्या तक कर दी जाती है। डब्लयूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल विश्वभर में ऑनर किलिंग के नाम पर लगभग 5000 हत्याएं होती है, जिसमें लगभग 1000 सिर्फ भारत में होती हैं।

3- दहेज संबंधित स्त्री-हत्या : डब्लयूएचओ के अनुसार सबसे अधिक दहेज संबंधित स्त्री हत्याएं भारतीय उपमहाद्वीप में होती हैं। इसमें अक्सर महिलाओं को जलाकर मार दिया जाता है, जिसे फिर परिवार द्वारा स्वाभाविक मौत के तौर पर दर्शाया जाता है। दहेज संबंधित हत्याओं में महिलाओं द्वारा की गई आत्महत्या से मौत भी शामिल हैं। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज के आंकड़ों के अनुसार जलना दुनिया भर में 18-44 आयु वर्ग की महिलाओं के लिए सातवां मौत का सबसे आम कारण है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दक्षिण पूर्व एशिया में 15-44 आयु वर्ग की महिलाओं का जलकर मरना तीसरा सबसे बड़ा कारण है।

4- नॉन-इंटिमेट फेमिसाइड या गैर-अंतरंग स्त्री हत्या : गैर-अंतरंग स्त्री हत्या किसी अंजान या कम परिचित व्यक्ति द्वारा की जाती हैं। इसमें रेप और सीरियल कीलिंग शामिल हैं। इसमें यौन आक्रामकता शामिल है और ये हत्याएं नियोजित या अचानक हो सकती हैं।

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भारत में फेमिसाइड की घटनाएं

आज भारत में वर्कफोर्स में औरतों की भागीदारी है, उनकी एक आवाज़ है, पहचान है । लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में औरतें पितृसत्तामक सोच में दबी हुई है। साल 2018 रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत महिलाओं के लिए दुनिया में सबसे खतरनाक देश है। भारत महिलाओं के खिलाफ हिंसा से कभी अछूता नहीं रहा है। आज भी भारत में महिलाओं की हत्या संस्थागत तरीकों से जारी है। इसके खिलाफ कानूनी प्रावधानों के बावजूद यह फल-फूल रही है। रि

भारत में महिलाओं के ख़िलाफ़ होनेवाली हिंसा में बाल विवाह, जबरन विवाह, शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न, भ्रूणहत्या व महिला जननांग अंगभंग करना आदि शामिल हैं। नेशनल फैमिली हेल्श सर्वे (2015-17) के अनुसार 29.5 फीसद महिलाएं 15 वर्ष की आयु तक शारीरिक हिंसा का शिकार हो जाती हैं। एनसीआरबी 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग एक दिन में 87 बलात्कार के मामले रिपोर्ट किए गए। साल 2019 में दहेज के कारण भारत में प्रति घंटे एक महिला की मौत हुई और लगभग प्रति घंटे 4 महिलाओं का बलात्कार हुआ। साल 2020 में भारत ने लगभग 7000 दहेज संबंधित मृत्यु दर्ज की।

महिला हिंसा के आंकड़े और लैंगिक भेदभाव लॉकडाउन में काफी बढ़े। राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में महामारी के दौरान महिलाओं के द्वारा पिछले 10 वर्षों मे की गई शिकायत की तुलना में हिंसा की अधिक शिकायत दर्ज की गई, यह लगभग 131% की वृद्धि थी। भारत में आयशा जैसी दहेज उत्पीड़न के कारण होनेवाली आत्महत्या से मौत, हाथरस जैसी भयावह घटनाएं, पिता का इज्जत के लिए बेटी का सर कलम कर देना जैसे मामले आम हो गए हैं। दुखद यह है कि एक बड़ा वर्ग इस हिंसा सही भी ठहराता है। ऐसे मुद्दों पर समाज मोटी चमड़ी विकसित किए जा रहा है। महिला सुरक्षा संबंधित कानून भी मजबूत नहीं हैं, उन्हें सही तरीके से लागू नहीं किया जाता। हमारी पुलिस और अदालतें महिला हिंसा के प्रति संवेदनशील नहीं हैं, इसलिए महिलाएं कोर्ट के चक्करों से बचने और समाज की नज़र में विक्टिम ब्लेमिंग से बचने के लिए बीच का रास्ता खोजती है जो अक्सर उनके द्वारा हो रही हिंसा को स्वीकार करना होता है।

बता दें कि साल 2017 में सबसे अधिक महिला हत्याएं एशिया में दर्ज की गई थी। इसके बावजूद जो कुछ देश स्त्री-हत्या को मानव-हत्या से अलग पहचानते हैं, वे अधिकांश लैटिन अमेरिका के हैं। जहां 16 देशों ने स्त्री-हत्या को एक विशिष्ट अपराध के रूप में शामिल किया है। भारत जहां आज भी महिलाओं के प्रति हिंसा संस्थागत तरीके से जारी है और जहां फेमिसाइड की दर भी बहुत अधिक है, वहां सरकार महिलाओं के खिलाफ भेदभाव वाले कानूनों को संबोधित करने में विफल है। जाहिर है, फेमिसाइड अन्य होने वाली हत्याओं से अलग है। इसलिए इसे अपराधिक संहिता में अलग से शामिल किया जाना चाहिए और इससे संबंधित आंकड़ों का अधिक यथार्थता से संग्रह किया जाना चाहिए, जिससे समाज में इससे संबंधित जागरूकता पैदा हो सके और यह सिर्फ अलग-अलग मुद्दों में बंट कर न रह जाए।

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तस्वीर साभारः The Korea Times

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