समाजख़बर उत्तर प्रदेश के ‘विकास’ के दावों की पोल खोलते सरकारी आंकड़े

उत्तर प्रदेश के ‘विकास’ के दावों की पोल खोलते सरकारी आंकड़े

देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में चुनावी बिगुल बज गया है। अगले दो महीने में राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। नेताओं के लुभावी चुनावी वादों के बड़े-बड़े होर्डिंग से प्रदेश की सड़के लद गई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर विपक्ष के नेताओं ने अपनी-अपनी रैलियां लगानी शुरू कर दी हैं। जनसरकोर के मुद्दों से अलग धर्म के मुद्दे को खूब तूल दी जा रही है। जनता के स्वास्थ्य, रोजगार, शिक्षा और सुरक्षा जैसे मुद्दों को गायब कर अलग तरह की ही बयानबाजी शुरू कर दी गई है। अव्यवस्थाओं से भरे प्रदेश में मुद्दों और जरूरतों की एक लंबी सूची होने के बावजूद भी नेता उसे नज़रअंदाज़ करने में लगे हुए हैं। हाल ही में जारी हुए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य न केवल कई मायनों में फिसड्डी साबित हुआ है बल्कि नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत का तीसरा सबसे गरीब राज्य भी है। जनहित की बातों से आंखें बंद कर बैठी सरकार और विपक्ष की आपसी बयानबाजी के बीच जनता के असल मुद्दों पर कितना काम करने की आवश्यकता है उसे भारत सरकार के द्वारा जारी आंकड़े ही बता रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के 65 फीसद से अधिक बच्चों में खून की कमी

बच्चे हमारा कल हैं, इनकी स्वास्थ्य-सुरक्षा, शिक्षा पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले के बीआरडी अस्पताल में बच्चों की मौत हो या फिर इसी वर्ष डेंगू से बीमार होते बच्चों के हालात और चिकित्सा सुविधाओं के अभाव पर होती सियासत से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि मौजूदा सरकार खासतौर पर बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर कितनी असंवेदशील है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण-2020-21 के आंकड़े बताते है कि उत्तर प्रदेश के 66.4 फीसद बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं। प्रदेश के शहरी क्षेत्र के 65.3 और ग्रामीण क्षेत्र के 66.7 फीसद बच्चों में खून की कमी से होने वाला रोग एनीमिया पाया गया। पिछले राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण-4 में यह दर 63.2 प्रतिशत की थी।

हाल ही में जारी हुए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य न केवल कई मायनों में फिसड्डी साबित हुआ है बल्कि नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत का तीसरा सबसे गरीब राज्य भी है।

सरकार के बड़े-बड़े जनहितकारी विकास के वादों के बीच प्रदेश में बच्चों में एनीमिया की दर का बढ़ना खोखले वादों को साफ दिखाता है। इस वर्ष राज्यसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने बताया था कि देश में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे उत्तर प्रदेश में है। गांव कनेक्शन की खबर के अनुसार उन्होंने अपने जवाब में कहा था कि देश में 9,27,606 बच्चों की पहचान गंभीर रूप से कुपोषित के तौर पर की गई है। साथ ही उन्होंने बताया था कि इस संख्या का बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश से है। केन्द्रीय मंत्री के अनुसार उत्तर प्रदेश में 3,98,359 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।

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नेताओं की सभा में महिला सुरक्षा में बड़े-बड़े दावे

राज्य में महिला सुरक्षा को लेकर तमाम बड़े-बड़े दावे हो रहे हैं। लगभग हर रैली में प्रधानमंत्री मोदी हो या यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ अपराध कम करने की दिशा में अपनी सरकार के काम गिनाते नजर आते हैं। महिलाओं की सुरक्षा के विषय में लगातार कहा जा रहा है कि पहले प्रदेश में बहनें और बेटियां सुरक्षित नहीं थीं। एक चुनावी रैली में महिला सुरक्षा को अपनी प्रमुख वरीयता बताते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि पहले राज्य में बेटियां असुरक्षित थी बहनें असुरक्षित थीं और तो और भैंस और बैलगाड़ी भी सुरक्षित नहीं थे। लेकिन आज किसी बैलगाड़ी और उसके भैंस को या किसी बालिका को या किसी महिला को कोई जबरन नहीं उठा सकता है।पश्चिमी उत्तर प्रदेश को केंद्र में रखकर मुख्यमंत्री ने भैंसा और महिला सुरक्षा को लेकर यह टिप्पणी की थी।

यदि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ही आंकड़ों की ही बात करें तो बीते सालों में महिलाओं के प्रति प्रदेश में अपराध की बढ़ोत्तरी देखी गई है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक 2017 से लेकर 2019 के बीच प्रदेश में लगातार महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में बढ़ोत्तरी देखी गयी है। क्रमशः महिला हिंसा से जुड़े साल 2017 में 56,011, साल 2018 में 59,445 और साल 2019 में 59,853 के मामले दर्ज हुए। साल 2019 के आंकड़ों के अनुसार यूपी में महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर 55.4 है।

हालांकि, 2020 के एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध में 49,385 मामलों के साथ कमी हुई है। महिला के साथ अपराध में कमी के आंकड़ों के साथ इस बात को बिल्कुल नहीं भुलाया जा सकता कि इसी सरकार के कार्यकाल के दौरान हाथरस की घटना और उसके एक साल बाद तक भी सर्वाइवर के परिवार के साथ जिस तरह की स्थिति बनी हुई वह कितनी भयावह है। दूसरी ओर सरकार के नेताओं के खिलाफ बलात्कार के आरोपी नेताओं के साथ पुलिस और सरकार की शह पर किस तरह से सर्वाइवर को न केवल न्याय के लिए मुसीबतों का सामना करना पड़ता है, बल्कि जान से हाथ तक धोना पड़ा।

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महिला सेहत पर नहीं हो रही बात

प्रदेश में यदि महिला स्वास्थ्य को लेकर बात की जाए तो सरकार के द्वारा उपलब्ध किए आंकड़े ही यह दर्शाते हैं कि महिला स्वास्थ्य की स्थिति राज्य में बहुत चिंताजनक है। महिला स्वास्थ्य और गर्भवती महिला स्वास्थ्य, कुपोषण, और महिलाओं की अस्पताल तक की पहुंच के नेताओं के दावों को खुद सरकार के ही आंकड़े गलत साबित कर रहे है। स्क्रॉल की खबर के मुताबिक केंद्र सरकार द्वार लागू प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के मापदंड़ों के पर उत्तर प्रदेश का बहुत खराब प्रदर्शन है। इस खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश में मातृ स्वास्थ्य के लिए बुनियादी जरूरत पौष्टिक आहार अधिकांश महिलाओं के लिए एक संघर्ष के समान है।

NFHS-5 के आंकड़े

राष्ट्रीय खाघ सुरक्षा अधिनियम साल 2013 के मुताबिक प्रत्येक गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को आयरन की गोलियां और अन्य खाद्य सामग्री और आंगनवाड़ी केन्द्रों पर पका हुआ खाना दिया जाएगा। सर्वेक्षण के अनुसार उत्तर प्रदेश में आंगनवाडी केन्द्रों की स्थिति बहुत निराशाजनक मिली। सर्वे के दौरान स्कूल की छुट्टियों के दौरान आंगनवाड़ी केन्द्र बंद मिलें। दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण-5 के अनुसार उत्तर प्रदेश में 15-49 आयुवर्ग की 45.9 गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित पाई गई हैं। इसी आयुवर्ग की उत्तर प्रदेश की आधी से ज्यादा 50.4 महिलाएं भी एनीमिया से पीड़ित मिलीं। 15-19 उम्र की राज्य की 52.9 प्रतिशत महिलाएं एनीमिक हैं। सर्वेक्षण-4 के मुकाबले राज्य की वर्तमान की स्थिति में कुछ भी ज्यादा बदलाव नहीं आया है।     

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भारत का तीसरा गरीब राज्य उत्तर प्रदेश

चुनाव का समय नज़दीक आते ही प्रदेश में विकास परियोजनाओं के शिनाल्यास के बड़े-बड़े कार्यक्रम हो रहे हैं। नेताओं के तमाम भाषणों में रोजगार और विकास योजनाओं के वादे होने के साथ राज्य की गरीबी की स्थिति बहुत भयावय है। हाल ही में नीति आयोग की एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश भारत का तीसरा सबसे गरीब राज्य है। बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के अनुसार देश के सबसे बड़े सूबे का गरीबी में मुकाबला पहले नंबर पर बिहार और दूसरे नंबर पर झारखंड राज्य से है। राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक और नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 आधारित रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 37.79 फीसद आबादी गरीब है।

हालांकि, देश के तीसरे गरीब राज्य होने के बाद भी नेताओं की जबान पर प्रदेश की गरीब जनता पर बोलने के लिए कुछ नहीं है। कोविड-19 में राज्य की नदी में तैरती लाशों की तस्वीरों को याद करके कहा जा सकता है कि गरीबी के कारण इलाज के अभाव के साथ बड़ी संख्या में लोग आखिरी वक्त में अपने परिजनों का अंतिम संस्कार तक नहीं कर पाए। बावजूद इन सब स्थितियों के प्रदेश के आगामी चुनावों के मुद्दे से गरीबी पर बात नहीं हो रही है।

उत्तर प्रदेश सरकार के चाढ़े चार साल के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड दिखाते हुए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का कहना है कि केंद्र की 44 योजनाओं के क्रियान्वयन में सभी राज्यों में यूपी नंबर वन है। उनके अनुसार उन्होंने महिलाओं की सुरक्षा के मिशन शक्ति कार्यक्रम शुरू किया। उन्होंने कहा कि राज्य में पिछले साढ़े चार साल में 1.38 करोड़ गरीबों को मुफ्त बिजली कनेक्शन दिया गया जबकि 2.61 करोड़ शौचलायों का निर्माण किया गया। साल 2019 में प्रदेश सरकार ने राज्य को खुले में शौच के मुक्त घोषित करने के बावजूद में पाया गया कि आज भी यहां के लोगों के पास शौचालय की सुविधा नहीं है। इंडिया टुडे में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार आगरा शहर में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में आज भी लोग खुले शौच करने को मजबूर हैं। जहां शौचालय निर्माण हुआ है तो वहां ताला लगा होने के कारण लोग उसे इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।

राज्य का पहला काम है कि मुफ्त इलाज देना है, शिक्षा देना है जिससे लोग स्वस्थ्य व शिक्षित होकर अपना जीवन स्तर सुधार सकें। इन सब पैमानों पर राज्य की स्थिति खराब है। खासतौर से प्रदेश के बच्चों और महिलाओं का जीवन स्वास्थ्य, चिकित्सक सुविधा तक उनकी पहुंच और सुरक्षा की स्थिति की सरकारी आंकड़े भयावह तस्वीर पेश करते है। हालात यह है कि चुनावी नज़दीक आते ही प्रदेश जनता को विकास दिखाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार अपने विज्ञापन में देश के ही दूसरे राज्य कोलकत्ता के पुल की तस्वीर का प्रयोग कर रही है।

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तस्वीर साभार : India Today/AFP

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